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[४६] णि कमिष्टो ॥६॥ खरडिअ खुहिय मोवा.
लेव संसद्ध मुच्च मंडाई ॥ उख्खित्त पिंडविगईणं, मक्खियं अंगुलीहिं मणा ॥ २७॥ लेवाम आयामाइ, श्यर सोवीरमच्छ मुसिणजलं ॥धो. अण बहुल ससिथ्यं, उस्सेश्म श्यर सिथ्यविण। ॥२॥ पण चल चल चल विद, बजरुव उद्धाश्-विग इगवीसं ॥ ति पुति चविह अनख्खा, चउ महमाई विग बार ए॥ खीर घय दहिअतिवं, गुड पकन्नं भख्ख विगईयो ॥ गो-महिसि-हि-अय-एलगाण पण उद्ध यह चउरो ॥३॥ घय दहिया उद्दिविणा, तिल सरिसब अयसि लट्ट तिल्ल चऊ ॥ दवगुम पिंगुडा दो, पक्कन्नं तिल घयतलियं ॥३१॥ पय. साडिखोर-पेयाऽवलेहि दुट्टि उद्धविगगया॥ दख्ख बहु अप्पतंजुल, तच्चुन्नंबिल सदिअमुके ।। ३२॥ निब्नंजण वीसंदण, पकोसहितरिय किहि पक्वघयं ।। दहिए करंब-सिहरिणि-सलवणदहि घोल घोलवडा ॥३३॥ तिलकुट्टी निजंजण, पक