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[९७१ गुणिसु वेश्रणिधनंगा ॥ गोए पण चळ दो तिसु, एगट्टसु दुन्नि कमि ॥४६॥ अठच्छाहि गवीसा, सोलस वीसं च बारस दोसु ॥ दो चन तोसु कं, मिच्छाइसु आजए नंगा॥४॥ गुणगणगेसु अहसु, इकिकं मोहबंधगणं तु॥ पंचानिअहिठाणे, बंधोवरमो परं तत्तो ॥ ४ ॥ सत्ताइ दस उ मिच्छे, सासायणमीसए न. कोसा ॥ छाई नव उ अविरए, देसे पंचाई अठेव ॥ ४ए ॥ विरए खोवसमिए, चउराई, सत्त छच्च पुर्वमि ॥ अनियट्टिबायरे पुण, श्को व मुवे व उदयंसा ॥ ५७ ॥ एगं सुहुमसरागो, वे. एइ अवेअगा नवे सेसा ॥ नंगाणं च पमाणं, पुवुद्दिष्टेण, नायचं ॥५१॥ इक्केछक्केकारे सेव
कारसेव नव तिन्नि ॥ एए चळवीसगया, बार पुगे पंच कमि ॥ ५५ ॥ बारसपणसठिसया, उदयविगप्पेहिं मोहिया जीवा ॥ चुलसीई सत्तुत्तरि, पविंदसएहि विन्नेया ॥५३।। बग चन चउ चउर-छगा य चउरो अ हुंति चल.