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[६७] सो सन्निपजत्ते, उरलं सुहुमे सभासुतं चनसु॥ बायरि सविउव्विगं, पजसन्निसु बार उवयोगा ॥५॥ पज चरिंदिवसन्निसु, दुदंस दुअनाण दसम् चख्खुविणा ॥ सन्निअपज्जे मणना--ण चख्खुकेवल दुगविहूणा ॥ ६॥ सन्निदुगि बलेस अप-ज्जबायरे पढमचउ ति सेसेसु॥सतह बंधुदीरण, संतुदया थट्ट तेरससु॥७॥सत्तहजेगबंधा, संतुदया सत्त अट्ट चत्तारि ॥ सत्तटबपंचदुर्ग, उदोरणा सन्निपज्जत्ते ॥॥ गइ दिए अकाए, जोए वेए कसाय-नाणेसु ॥ संजम-दसण-खेसाभव--सम्मे सन्नि-आहारे ॥ ए ॥ सुरनरतिरिनिरयगई, गबिअतिथचउपणिं दि छकाया ॥ जूजलजलणाऽनिलवण, तसा य मणवयणतणुजोगा॥ १० ॥ वेधनरिस्थिनपुंसा, कसाय कोहमयमाय लोन त्ति ॥ मइसुअवहिमणकेवल, विजंगम सुथनाणसागारा ॥११॥ सामाश्य. अपरिहार सुहमअहखायदेसजयअजया ॥च ख्खु अचखू श्रोही, केवलदसण अणागारा ॥१२॥