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________________ [२१८] वले परिवाए ॥१३॥ बहुसाहारणा गिहीणं कामनोगा ॥१४॥ पत्तेचं पुन्नपावं ॥१५॥ अणिच्चे खलु जो मणुआण जीविए कुसग्गजलबिधुचंचले ॥१६॥ बहुं च खलु जो पावं कम्म पगम् ॥ १७ ॥ पावाणं च खलु नो कडाणं कम्माणं पुचि पुच्चिन्नाणं पुप्पमिकंताणं वेश्त्ता मुक्खो नत्थि अवेइत्ता तवसा वा झोसश्त्ता ॥ १७ ॥ अगरसमं पयं जव जव अ इत्थ सिलोगो॥ जया य चयश् धम्मं, अणजो जोगकारणा ॥ से तत्थ मुलिए बाले, आयशं नावबुज्झर ॥१॥जया ओदावियो होश, दो वा पडियो छम।। सवधम्मपरिजो ,स पडा परितप्प३॥२॥ जया च वंदिमो होइ, पहा होइ अवंदिमो ॥ राया व रऊपब्जगे, स पडा परितप्पर ॥३॥ जया अपूश्मो होश, पहा होअपूश्मो॥राया व रऊपन्नतो, स पहा परितप्पश्॥॥ जया थ
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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