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एकणी ॥ साहामो खाएयो आहार न लीजे, नित्य पिंक नवि दरीयें । शी इच्छा एम पूछी थापे, ते नवि अंगीकरियें के मु० ||२|| कंद मूल फल बीज प्रमुख वली, लवणादिक सचित्त ॥ वर्जे तिम वली नवि राखीजें, तेह सन्निधि निमित्त के ॥ मु० ॥ ३ ॥ ऊवटपुं पीठि परिहरियें, स्नान कदा नवि करियें, ॥ गंध विलेपन नवि खाचरियें, अंगकुसुम नवि धरिये के ॥ ० ॥ ४ ॥ गृहस्थनुं भाजन नव वावरिये, परहरियें वली आजरण || छाया कारण छत्र न धरियें, धरे न ऊपानह चरण के ॥ मु० ॥ ५ ॥ दाहण न करे दर्पण न धरे, देखे नवि निज रूप || तेल चोपडीयें नें कांकसी न कीजें, दीजें न वस्त्रें धूप के ॥ मु० ॥ ॥ ६ ॥ मांची पलंग नवि बेसीजें, किजें न विंजणे वाप | गृहस्थ गेह नवि बेसिजें, विए कारण समुदाय के ॥ मु० ॥ 9 ॥ वमन विरेचन चिकि त्सा, अग्नि आरंभ नवि कीजें ॥ सोगां सेज