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________________ [२२३] समायरामि ॥ १२ ॥ किं मे परो पासइ किंच अप्पा, किं वाद खलियां न विवजयामि ॥ इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो, ऋणागयं नो परिबंध कुज्झा | १३ | जत्थेव पासे कइ डुप्पउत्तं, कारण वाया अडु माणसे ॥ तत्थेव धीरो पडिसादरिका, आइनो खिप्पमिव खलीणं ॥ १४ ॥ जस्से रिसा जोग जिइंदिअस्स, धिइमो सप्पुरिसस्स निच्चं ॥ तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीवइ संजमजीविएणं ॥ १५ ॥ अप्पा खलु सइ पररक्खिअवो, सबिंदिएहिं सुसमाहिएहिं ॥ जाइपदं उवेश सुरक्खियो सब हा त्तिबेमि ॥ १६ ॥ रक्खि मुच्चइ || ॥ इति विवित्तचरिआ बीआ चूला सम्मत्ता ॥२॥ ॥ इअ दसवेआलि मूलसुत्तं सम्मतं ॥
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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