________________
[ ६३ ] निरयसोल सासपि, सुराउ एग तीस विणु मीसे ॥ ससुराज सपरि सम्मे, बी अकसाए विद्या देसे ॥ ए ॥ इ चगुणेसु वि नरा, परमजया सजिए हु देसाई || जिणश्क्कारसहीणं, नवसय अपजत्त तिरिय नरा ॥ १० ॥ निरयव सुरा नवरं, हे मिच्छे इगिंदितिगसहिया ॥ कप्पदुगे वि एवं जिलही पो जो भववणे ||११| रयणु व सकुमारा आण्याई उतोअ चनरहिआ । अपज्जतिरिव नव सय मिगिंदि पुढवि जल तरु विगले ॥ १२ ॥ छनवइ सासणि विणु सुहुमतेर के पुण बिंति चनवई ॥ तिरि नराऊहिं विद्या, तणु पज्जत्तिं न जंति जय ॥ १३ ॥ ओहु पणिदितसे गश्त से जिणिकार नरतिगुच्च विद्या ॥ मणवयजोगे यो हो, उरले नरजंगु तम्मि स्से |१| आहारबग विणोदे, चउदससन मिच्छि जिणपणगहीणं । सासणि चउनवइ विद्या, तिरिअनराऊ सुहुमतेर || १५ || अपचडवीसाइ विद्या, जिलपणा सम्मि जोगियो सायं ॥ विणु तिरि