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________________ [१२०] रे, फल फूल पत्रादिन बेदोरें॥ बीज कूपल वन मत फरजो रे,जीव विराधनथी डरजो रे ॥२॥वली अग्नि मनेटशो नारे, पीजो पाणी ऊन सदाइ रे॥ मत वावरो काचुं पाणी रे, एहवी ने श्री वीरनी वाणी रे ॥३॥ हिम धूअर वड उंबरां रं, फल कुथुया कोडी नगरा रे ॥ नाल फूल हरी अंकूरा रे, इंडाल ए आठे पूरा रे ॥४॥ स्नेहादिक, नेदें जाणी रे, मत हणजो सूक्ष्म प्राणी रे ॥ पडिलेही सवि वारजो रे, उपकरणे प्रमाद म करजोरे ॥५॥ जयणायें डगला जरजो रे, वाटे चालतां वात म करजो रे॥ मत ज्योतिष निमित्त प्रकासो रे, निरखो मत नाच तमासोरे ॥६॥दी अणदीतुं करजो रे, पाप व्यसन न श्रवणे धरजो रे ॥ अणसूजतो आहार तजजो रे, राते सन्निध सवि वरजो रे ॥७॥बावीस परि. सह सहेजो रे, देहःखें फल सद्दहजो रे॥अण पामे कार्पण्य न करजो रे, तप श्रुतनो मद नवि धरजो रे ॥७॥ स्तुति गति समता ग्रहजो रे,
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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