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॥श्ण॥ जोयणसहस्समाणा, मच्छा उरगा य गब्भया हुंति ॥ धणुह पुहुत्तं पक्खिसु, जुश्चचारी गाउअपहुत्तं ॥३०॥ खयरा धणुहपुहुत्तं, नुअगा उरगा य जोयणपुहुत्तं ॥ गाउअ पुहुत्तमित्ता, समुच्छिमा चउपया नणिया ॥३१॥ छच्चेव गाउयाई, चनप्पया गब्जया मुणेयव्वा ॥ कोसतिगं च मणुस्सा, उकोस शरीरमाणेणं ॥ ३२ ॥ ईसाणंत सुराणं, रयणीओ सत्त हुँति उच्चत्तं ॥ जुग जुग जुग चउगेवि. जणुत्तरे इकिक परिहाणी ॥३३॥ बावीसा पुढवीए, सत्तय थाउस्स तिनि वाउस्स ॥ वाससहस्सा दस तरु, गणाण तेज तिरित्ताओ॥३॥ वासा णि बारसान, बेदियाणं तेइंदियाणं तु॥ अजणापन्न दिणाश्, चरिंदीणं तु छम्मासा ॥ ३५ ॥ सुरनेझ्याण लिई, उकोसा सागराणि तित्तीसं ॥ चपय तिरिय मणुस्सा, तिन्निय पलियोवमा हुँति ॥३६॥ जलयर उरजुअगाणं, परमाऊ होश पुत्व कोमियो। पक्खी.