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[१७] सिद्धा अंतरं नहि ॥ ४८ ॥ सव जियाणमणंते, भागे ते तेसिं दंसणं नाएं | खईए जावे परिणा मिएका पुण होइ जीवन्तं ॥ ४८ ॥ थोवा नपुंस सिद्धा, थी नर सिद्धा कमेण संखगुणा ॥ अमुख्खतत्तमेां, नवतत्ता लेस विद्या ॥ ५० ॥ जीवा नव पयत्थे, जो जाइ तस्स होइ सम्मत्तं ॥ जावेण सद्दतो, यापमाणेऽवि समत्तं ॥ ५१ ॥ सव्वाइं जिणेसर जासिआई वयपाई नंनहा हुंति ॥ इअ ( 5 ) बुद्ध | जस्स मणे, सम्मत्तं निच्चलं तस्स ॥ ५२ ॥ तो मुहुत्त मित्तं पि फासि हुज्ज जेहिं सम्मत्तं ॥ तेसिं वपुग्गल, परिट्टो चेव संसारो ॥ ५३ ॥ उस्सप्पिणी अयंता, पुग्गल परिश्र मुणेश्रव्वो || तेऽताऽतीअद्धा, अणागयका अांतगुणा ॥ २४ ॥ जिए जि तित्थ तित्था, गिहि अन्न सलिंग थी नर नपुंसा ॥ पत्ता सयंबुद्धा, बुद्धबोदिय 'सिद्धणिक्काय ॥ ५५ ॥ जिसिद्धा १ इक्कणिक्का य. पाठा०