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[१] जिअ-अजिब-पुएण-पावा-सव-संवर-बंधमुख्खनिऊरणा । जेणं सदहइ तयं, सम्मं खरगावहुनेअं ॥१५॥ मीसा न रागदोसो, जिणधम्मे अंतमुहु जहा अन्ने । नालिअर दीव. मणुणो, मिच्छं जिणधम्म विवरीयं॥१६॥ सोलस कसाय नव नोकसाय विहं चरित्तमोहणियं । अण अपचख्खाणा, पञ्चख्खाणा य संजलपा।१७। जा जीव वरिस चनमास, पख्खगा निरय तिरिय -नर-अमरा । सम्माणु-सब विरई, अहक्खाय चरित्तघायकरा ॥१७ ॥ जल रेणु पुढवि पवय, राईस रिसो चलबिहो कोहो । तिणिसलया कट्ट
अ, सेलत्थंनोवमोमाणो ॥१॥ मायावलेहि गोमु-त्ति मिसिंग घणवंसमूलसमा। लोहो हलिद्द खंजण, कद्दम किमिरागसा रित्यो (सामाणो)॥२॥ जस्सुदया हो जिए, हास रई अरइ सोग जय कुच्छा ॥ सनिमित्त मन्नहा वा, तं श्ह हासाश्मोहणियं ॥३१॥ पुरिसित्थि तमु भयं पर, अहिलासो जवसा हव सो उ। थी