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[१९] मेहावी, किश्कम्मं पउंजई ॥१६॥ पमिकम्मणे सज्जाए, काउस्सग्गावराह-पाहुणए ॥ आलोयण संवरणे, उत्तमढे य वंदणयं ॥ १७ ॥ दोवणय महाजायं, आवत्ता बार चउ सिर तिगुत्तं॥ दपवेसिगनिख्खमणं, पणवीसावसय किश्कम्मे ॥१७॥ किश्कम्मपि कुणतो, न हो किश्क. म्मनिज्जराभागी ॥ पणवीसामन्नयरं, साहू गणं विराईतो ॥१५॥ दिहि पडिलेह एगा, छ उह पप्फोम तिगतिगंतरिया ॥ अख्खोड पमज्जणया, नव नव मुहपत्ति पणवीसा ॥२०॥पायाहिणेण तिअ तिअ, वामेअरबाहु-सीस-मुहहियए ॥ अंसुट्ठाहो पिटे, चउ बप्पय देहपणवीसा ॥१॥ आवस्सएसुजह जह, कुण पयत्तं बहीणमरित्तं ॥तिविहकरणोवउत्ती, तह तह से निज्जरा होइ ॥२॥दोस 'अणाढिब'थद्विअ, पविक परिपिडियंच टोखगई॥'अं. कुस कच्छभरिंगिअ, मच्छवत्तं “मणपउठं ॥३॥ "वेश्यबद्ध "नयंतं, "जय गारव