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२०५] ॥१५॥ महागरा आयरिया महेसी, समाहिः जोगे सुयसील बुद्धिए, संपाविउ काम अणुत्तराई, आराहए तोसश्धम्मकामी ॥१६॥ सोचाण मेहावी सुनासिया, सुस्सुसए आयरियमप्पमत्तो, आराहश्त्ताण गुणे थाणेगे, से पावर सिद्धि मणुत्तरं त्तिबेमि॥१७॥ इति विषयसमाहि जायणे पढमो उद्देसो समत्तो ॥१॥
(काव्यम्.) मूलाउ खंधप्पभवो उमस्स, खंधाउ पडा समुर्विति साहा, साहप्पसाहा विरुदंति पत्ता, तज से पुप्पं च फल रसोय ॥१॥
(अनुष्टुववृत्तम् ) एवं धम्मस्स विणो ,मूलं परमोथ से मो. क्खो, जेण (कत्तिं सुयं सिग्धं, निस्सेसं चानिगढ॥॥ जे य चंडे मिए यद्धे, जुवा नि. यडी सढे, वजह से अविणीयप्पा, कटं सोयगयं जहा ॥३॥ विणयंपि जो उवाएणं, चोश्यो कुप्पर नरो, दिवं सो सिरि मिजंति, दंडेणं पमिसेहए