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[११५] संभाल॥ संयम शुद्ध करवा जणी जी, एषणा दूषण टाल ॥ सुज० ॥ १॥ प्रथम सज्झायें पोरिसी करीजी, अणुसरी वली उपयोग ॥ पात्र पडिलेहण पाचरोजी, श्रादरी गुरु अणुयोग ॥ सु० ॥२॥ ठार धूयर वरसादना जी, जीव वि. राहण टाल॥ पग पग ा शोधतां जी; हरिकायादिक नाल ॥ सु०॥३॥ गेह गणिका तणां परिहरी जी, जिहा गयां चलचित्त होय ॥ हिंसक कुल पण तेम तजोजी, पाप तिहां प्रत्यक्ष जोय ॥ सु०॥४॥ निज हाथे बार उघाडीने जी, बेसीय नवि घरमांहि ॥ बाल पशु निलुक प्रमुखने संघटें, जश्ये नहिं घरमांहि ॥ सुण ॥५॥ जल फल जलण कण खूणझुंजी, नेटतां जे दिये दान ॥ ते कटपे नहिं साधुनें जी, वरजवू अन्न ने पान ॥ सु० ॥६॥ स्तन अंतराय बालक प्रत्ये जी, करीने रडतो ग्वेय ॥ दान दिये तो उलट भरी जी, तोहि पण साधु वर. जेय ॥ सु०॥ ७॥गर्नवती वली जो दिये जी,