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[१८] जराय ॥ विकथा करतां पारकीजी, अति उलसीत मन थाय ॥ चेतनजी० ||२|| काउसग्गमां उमा थइजी, करत दुखे पाय ॥ नाटिक पेखण देखतांजी, उज्जा रयणि जाय ॥ चेतनजो० ॥३॥ संवरमा मन नवि वरेजी, आश्रवमां हुसीयार सूत्र सुणे न शुभ मनेजी, वात सुणे धरि प्यार ॥ चेतनजी० ॥ ४ ॥ साधुजनथी वेगलोजी, नीचासुं धरे नेद ॥ कपट करे कोको गमेजी, घरममां धूजे देह ॥ चेतनजी० ||५|| धरमनी वेला नवि दिएजी, फुटी कोडी एक ॥ रालमा रुध्यो थकोजी, खुणो गणी दीये बेक ॥ चेतनजी० ॥ ॥ ६ ॥ जिनपूजा गुरु बंदणाजी, सामायक पच्चखखाण || नोकारवाली नवी रुचेजी, करे मन आरत ध्यान | चेतनजी० ॥ ७ ॥ खिमा दया मन खाणीयेजी, करीए व्रत पच्चखखाण ॥ धरिए मनमांदे सदाजी, धरम सुकल दोय ध्यान ॥ चेतनजी इम जव तरस्योजी० ८ ॥ शुद्ध मने आराधस्योजी जो गुरुना पद पद्म ||