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[ ८६ ] असुरसुहाणं, संकेस विसो दियो विवज्जययो ॥ मंदरसो गिरिमदिरय जलरेहा सरिसक साएहिं । ६३ । चालाई सुहा, सुन्नदा विग्घदेस (धार) आवरणा ॥ पुमसंजल गिदुतिच-- वाणरसा सेस दुगमाई ||६|| निंबुच्छुरसो सहजो, दुतिचउभागक ढिक्कभागंतो ॥ गगणाई असुहो, सुहा सुहो सुहाणं तु ॥ ६५ ॥ तिव्वमिगथावरायव, सुरमिच्छा विगल सुहुम निश्यति ॥ तिरिमणुआ तिरिनरा, तिरिदुग बेवह सुरनिरया ॥ ६६ ॥ विजविसुराहरग दुगं, सुखगश्वन्नचनतेय जिणसायं ॥ समच परघातसदस-- पणिं दि सासुच्च खवगान ॥ ६७ ॥ तमतमगा उज्जोयं, सम्मसुरा मणुयउरलदुगवरं । पमन्तो अम राउ, चउगइ मिच्छात सेसाणं ॥ ६८ ॥ श्रीतिगं प्रणमिच्छं, मंदरसं संजमुम्मुदो मिठो ॥ बियतियकसाय विरय, देस पमत्तो रइसोए ॥ ६ । पमाई हारगदुगं, दुनिद्दसुवन्नदास रइकुच्छा ॥ भयमुवधायमपुढो, अनियही पुरि
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