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________________ [१०] जिनेश्वर तथाप्येतां न याचे श्रियम् ॥ किंवईनिदमेव केवलमहो सब्दोधिरत्नं शिव-श्रीरत्नाकरमंगलैकनिलय श्रेयस्करं प्रार्थये ॥२५॥ ॥इति रत्नाकर पच्चीशी समाप्ता॥ ॥ अथ श्रीवृद्धि विजयजीकृत दशवकालिकनी सज्झाय प्रारंज॥ ॥ तत्र प्रथमाध्ययनसज्झाय प्रारज्यते ॥ ॥ सुग्रीव नयर सोहामणुंजी ॥ए देशी ॥ श्री गुरुपदपंकज नमी जी, वलि धरी धर्मनी बुद्धि ॥ साधुक्रिया गुण भांखशुं जी, करवा समकित शुद्धि ॥ मुनीश्वर धर्म सयल सुखकार ॥ तुम्हें पालो निरतिचार ॥ मुनीश्वर, धर्म स. यल सुखकार ॥१॥ ए आंकणी ॥ जीवदया संयम तवो जी, धर्म ए मंगलरुप॥जेहनां मनमा नित्य वसे जी, तस नमे सुर नर जूप ॥ मु॥ ॥ध०॥२॥ न करे कुसुमकिलामणा जी ॥वच
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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