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अणवज्जं वयागरे ॥ ४६॥ तदेवासंजयं धीरो, थासएहिं करेहि वा, सयंचिठ वयाहित्ति, नेवं भासेद्य पन्नवं ॥ ४ ॥ बहवे श्मे असाहू, लोए वुच्चंति साहुणो; नलवे असाहुं साहूति, साहु साहुत्ति आलवे ॥४७॥ नाण देसण संपन्नं, संजमे य तवेरये, एवं गुणसमाउत्तं, संजयं साहू मालवे ॥४॥ देवाणं मणुयाणुंच, तिरियाणंच बुग्गहे, अमुयाणं जउ हो, मा वा होउत्ति नोवए ॥ ५० ॥ वाउ वुठंच सी उन्हें, खेम धायं सिवंति वा, कयाणि हुज एयाणि, मा वा होउत्ति नोवए ॥५१॥
(काव्यम्. ) तदेव मेहं व नहंच माणवं, नदेवदेवेत्ति गिरं वएज्जा, समुबिए उन्नए वा पउए, वएज. वा वुह वलाहएत्ति ॥५॥
. ( अनुष्टुवृत्तम् ) अंतलिक्खेत्तिणं बूया, गुज्झाणु चरियत्तिया, रिद्धमंतं नरं दिस्स, रिधिमंतंति आलवे॥५३॥