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________________ २११] गवतेहिं चत्तारि विणय समाही गणा पन्नत्ता, श्मे खल्तु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणय समाही गणा पन्नत्ता, तं जहा, "विणय समाही १ सुय समाही । तंव समाही ३ थायार स. माही ४” विणए सुय तवेय, आयारे निश्च पंडिया, अजिरामयंति अप्पाणं, जे नवंति जिई. दिया ॥१॥ चनविदा खलु विणय समाही नवर तंजहा अणुसासिज्जतो सुस्सूस १ समं संपडि. वज २ वेयामाराह३ न य जव अत्तसंपगह ए ५ चउई पयं नवश् भवश् य श्व सिलोगो॥ (काव्यम् ) “पेदेशहियाणु सासणं,सुस्सुसतंचपूणो अहिए, न य माण मएण मज्जर, विणय स. माही आयअगिए" ॥२॥ चनविदा खलु सुय समाही नवर, तंजहा सुयं मे भविस्तरत्ति थ. जावं नवर, एगग्गचित्तो नविस्सामित्ति अजाश्यत्वं नवर, विउ परं वावश्स्सामित्ती ध
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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