________________
[११ सूक्ष्म बादर त्रस थावर वली,जीव विराहण टास ॥ मन वच काया रे त्रिविधं स्थिर करी, पहिy व्रत सुविचार ॥ स्वा॥२॥ क्रोध लोन नय हास्य करी, मिथ्या म नांखो रे वयण ॥ त्रिकरण शुद्धे व्रत आराधजे, बीजु दिवस ने रयण ।।स्वा० ॥३॥ गाम नगर वनमाहे विचरंतां, सचित्त अचित्त तृण मात्र ॥काम अदीधांमत अंगीकरो, त्रीजुं व्रत गुणपात्र ॥ स्वा० ॥४॥ सुर नर तियेष योनि संबंधियां, मैथुन कार्य परिहार ।। त्रिविधे त्रिविधं तुं नित्य पालजे, चोथु व्रत सुखकार ।। स्वा० ॥ ५॥ धन कण कंचन वस्तु प्रमुखवली, सर्व अधित्त सचित्त ॥ परिग्रह मूळ रे तेहनी परहरी, धरी व्रत पंचम चित्त ॥ स्वा०॥६॥ पंचमहाव्रत एणी परें पालजो, टालजो जोजन राति ॥ पापस्थानक सघनां परहरि, धरजो समता सविभांति ॥ स्वा०॥ ७॥ पुढवी पाणी वायु,वनस्पति, अग्नि ए थावर पंच ॥ बिति चन पंपिंदि जलयर थलयरा, खयरा त्रस ए पंच