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[१६] सुस्सा अट्ट सेसेसु ॥ गंभीर महुरसह, महस्थजुतं वइ युक्तं ॥ ५८ ॥ परिक्रमणे चेइय जिमण. चरम पडिकमण सुबोड़े || चिश्वंदण इअ जणो, सत्त उ वेला अहोरत्ते ॥ ५० ॥ पडिक्कम गिहिणोत्रि हु, सगवेलापंचवेल इरस्स || आसु तिसंझासु अ, होइ तिवेला जहन्नेणं ॥ ६० ॥ तंबोल पाण जोयणु, वाह मेहुन्न सुण निवणं ॥ मुत्तुच्चारं जूां, वज्जे जिणना जगईए ॥ ६१ ॥ इरि नमुकार नमुत्थुप, कारिहंत थुइ लोग सव्व थुइ ॥ पुक्खथुइ सिद्धा वेळा थुइ, नमुत्थु जावं |त थय जयवी ॥ ६२ ॥ सव्वोवादिविसुद्धं, एवं जो वंदर सया देवे || देविंदविंद महिां, परमपर्यं पावइ लहु सो ॥ ६३ ॥
॥ इति श्री चैत्यवंदनजाष्यं समाप्तम् ॥
॥ श्री गुरुवन्दन जाष्य प्रारंभः ॥ गुरुवंदमह तिविहं, तं फिट्टा बोज बार