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________________ [१०] बहुसुश्रा, पूरेऊणं परिकहंतु ॥ ए३॥ गाहगं सयरीए, चंदमहत्तरमयाणुसारीए ॥ टीगाइ नियमियाणं, एगणाहो न श्यो॥ए ॥ ॥ सप्ततिकानामा षष्ठः कर्मग्रंथः समाप्तः॥ ॥ श्री रत्नाकर पञ्चोशी ॥ श्रेयः श्रियां मंगलके लिसन, नरेंद्रदेवेंद्रनताघ्रिपद्म सर्वज्ञ सर्वातिशयप्रधान, चिरं जय ज्ञानकलानिधान ॥१॥ जगत्त्रयाधार कृपावतार, मुरिसंसार विकारवैद्य ॥ श्री वीतराग त्वयि मुग्धनावाद्विज्ञ प्रनो विज्ञपयामि किंचित् ॥२॥ किं बाललीलाकलितो न बालः, पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः ॥ तथा यथार्थ कथयामि नाथ, निजाशयं सानुशयस्तवाग्रे॥३॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च, न शालिशीलं न तपोऽजितप्तं ॥ शुलो न भावोऽप्यनवनवेऽस्मिन्, चिनो मया ज्रांतमहो मुधैव ॥४॥ दग्धोमिना क्रोधमयेन
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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