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-The TFIC Team.
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परमपूज्य एलाचार्य 108 मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज का शुभ सन्देश ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज धर्मनिष्ठ समाज है । वह अहंदभक्ति, जिनवाणी सेवा एव गुरुभक्ति मे सदैव तत्पर रहती है । अनेक बाधाओ के उपरान्त मुलतान से सभी जिन प्रतिमाओ को, हस्तलिखित शास्त्रो को जयपुर लाना तथा आदर्शनगर मे भव्य एव विशाल जिनालय का निर्माण, शास्त्र भण्डार की सुव्यवस्था एव साधुओ की सेवा सुश्रूषा आदि कार्य, उनकी देवशास्त्र गुरुभक्ति के प्रत्यक्ष उदाहरण है । मुलतान समाज ने भगवान महावीर के 2500 वे परिनिर्माण महोत्सव के अवसर पर महावीर कीर्तिस्तम्भ का निर्माण कराकर एक बहुत ही सुन्दर कार्य किया है । ऐसी जीवित एव क्रियाशील समाज का इतिहास अवश्य लिखा जाना चाहिए। जिससे भविप्य मे उससे प्रेरणा प्राप्त हो सके।
इसके लिए मेरा शुभाशीर्वाद है ।
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सन्देश
Marwar
7
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परम श्रद्धय पूज्य श्री कानजी स्वामी
सोनगढ (गुजरात)
मुलतान दिगम्बर जैन समाज आदर्शनगर का पत्र डा० श्री हुकुमचन्द जी भारिल्ल ने जब पूज्य कानजी स्वामी को पढकर सुनाया तो उनके मुख से जो अमृत वचन निकले वे इस प्रकार है -
"मुलतान दिगम्बर जैन समाज तत्व प्रेमी समाज है। दो सौ पच्चीस वर्ष पहले मुलतान की समाज के प्रश्नो के उत्तर मे ही पण्डित श्री टोडरमल जी ने अपनी रहस्यपूर्ण चिट्ठी लिखी थी।
अच्छा है कि वे वेदी प्रतिष्ठा और पुस्तिका प्रकाशन कर रहे हैं । उनको ही क्या हमारा तो सवको ही यह मगल आशीर्वाद है कि सभी जीव तत्वाभ्यास कर शुद्धात्मतत्व को प्राप्त करे, आत्मा का अनुभव करें, अनन्त सुखी हो ।
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सन्देश
श्रीमान साहू श्रेयासप्रसाद जी जैन
बम्बई
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने अपनी धार्मिकता, समाज-सेवा एव सास्कृतिक धरोहर को यथावत कायम रखा है । वस्तुत जयपुर में स्थापित इस सस्था की पृष्ठभूमि युग-युगान्तरो तक स्मरणीय रहेगी।
___ यह भी गौरव का विषय है कि सस्था द्वारा स्थापित दिगम्बर जैन मन्दिर की "रजत जयन्ती" इस वर्ष अप्रेल मे विविध कार्यक्रमो के साथ मनाई जा रही है। यह एक पवित्र अनुष्ठान है । इस अवसर पर "मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे" पुस्तक का प्रकाशन स्तुत्य है ।
आशा है, उक्त पुस्तक मे मुलतान जैन समाज के विषय मे व्यापक सामग्री से समाज लाभान्वित होगा और प्रेरणा मिलेगी। इसके सफल प्रकाशन के लिए मैं अपनी शुभकामनाये भेजता हूँ।
श्रेयांस प्रसाद
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सन्देश
सरसेठ, कैप्टन श्री भागचन्द जी सोनी
अजमेर
मूलतान नगर के निवासियो के साथ मेरा पत्र-व्यवहारात्मक प्राचीन सम्पर्क रहा है और मैं उनकी धार्मिक रुचि व गतिविधियो से परिचित हूँ। देश के विभाजन के बाद आई अभूतपूर्व आकस्मिक महान विपत्ति, जिसमे मुलतानी धर्म बन्धुओ को अपना सर्वस्व छोडना पडा । परम पूज्य प्रतिमाओ को स्थानान्तरण करना साधारण कार्य नही था। किन्तु वहा की धर्मप्रिय, अगाधशृद्धालु जैन समाज ने अपनी सारी शक्ति लगाकर अदम्य उत्साह के साथ उन्हे जयपुर लाकर विराजमान ही नहीं किया किन्तु उन्हे एक ऐसे विशाल, भव्य, पावन, मनोहर जिनालय मे चिरस्थायी कर भक्तिमान धर्मात्माओ के इतिहास में एक ऐसी नवीन कडी जोड दी जिसे आगामी पीढी आदर्शरूप मे स्मरण करती रहेगी।
श्री महावीर कीर्तिस्तम्भ धर्मोद्योत का कारण होकर चिरकाल तक जैन धर्म की प्रभावना करता रहेगा यह सुनिश्चित है ।
में मलतान दिगम्बर जैन समाज के उत्साह व लगन की सराहना करता ह तथा उन समारोहो की सफलता चाहता हुआ यह धर्मायतन चिरकाल तक धर्म-बन्धमओ के आत्म-कल्याण का निमित्त बने और सर्व मुलतानी वन्धुओ का सर्वप्रकार से उत्कर्ष हो यही कामना करता हूँ।
भागचन्द सोनी
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सन्देश
श्रीमान् बाबू भाई चुन्नीलाल जी मेहता
फहेतपुर मोटा (गुजरात)
आपका मुलतान दिगम्बर जैन समाज हमेशा सच्चे देवशास्त्र, गरु के अनन्य भक्त प्रेमी रहा है, कट्टर श्रद्धालु है । पडित टोडरमल जी के प्रति अति श्रद्धावान हैवीतराग-मार्गानुसारी है । आदर्शनगर मे एक आदर्श सस्था है । आपकी समाज भी सगठित है, उदार हृदय वाले सभी भाई-बहिन स्वाध्याय प्रेमी है।
श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज विशेषतया वीतरागमार्गानुसारी बनकर सुन्दरतम प्रशस्त मार्ग मे अरूढ होकर शीघ्रातिशीघ्र आत्म-कल्याण को प्राप्त हो यह मगल कामना करता हूँ।
बाबू भाई मेहता
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सन्देश
(डॉ० वीरेन्द्र स्वरूप भटनागर) प्रोफेसर एव अध्यक्ष इतिहास विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर पूर्व मध्यकाल मे मुलतान उत्तर-पश्चिमी भारत का प्रमुख नगर था। जैन ग्रन्थो मे इसे मूलत्राण अथवा मूलस्थान कहा गया है। इस नगर पर अरवो का अधिकार 8 वी शताब्दी मे ही हो गया था । तत्पश्चात् वहा सतत मुस्लिम शासन रहा।
मलतान की सैनिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थिति थी। मुगलकाल मे यह मुलतान सूबे की राजधानी रहा। यहा आगरा व लाहौर से बडी मात्रा मे सूती कपड़ा, वगाल के बने सूती वस्त्र, पगडिया, छीट, बुरहानपुर से सालू व थोडी मात्रा मे मसाले आते थे जिनका फारस को निर्यात किया जाता था। फारस आसपास के क्षेत्र से बडी मात्रा मे यहा से शक्कर लाहौर व थट्टा भेजी जाती थी और थोडी बहुत अफीम भी। यहा के बने धनष सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे । नगर का व्यापार मुख्य रूप से हिन्दू व जैन साहूकारो के हाथ मे था ।
प्रारम्भ से ही मुलतान का धार्मिक महत्व भी रहा है। यहा का सूर्य मन्दिर सम्पर्ण भारत मे प्रसिद्ध था । कुवलयमाला मे इसका उल्लेख है। यह भी विश्वास प्रचलित था कि यहा आकर कुष्ट रोग निवारण हो सकता है। कालान्तर मे मुलतान दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र बन गया। 13 वी शताब्दी से ही मुलतान सूफी सम्प्रदाय के सहरावर्दी सिलसिले का केन्द्र भी बन गया था। 17 वी शताब्दी मे महाकवि बनारसी दास के समयसार नाटक की बढती हुई लोकप्रियता के साथ ही यहा जैन समुदाय मे अध्यात्म का प्रभाव स्थापित हुआ। यह उल्लेखनीय है कि आगरा, मुलतान, डेरागाजीखान व लाहौर आदि, जहा जैन मतावलम्बियो मे अध्यात्म अधिक लोकप्रिय हुआ वे स्थान सूफी विचारधारा के भी केन्द्र थे और साथ ही समृद्ध ओसवाल जैन की व्यापारिक गतिविधियो तथा निवास स्थल भी थे। यहा स्वतत्र चिन्तन की परम्परा स्थापित हो चुकी थी। महाकवि वनारसीदास का अध्यात्म मूलरूप मे विभिन्न दर्शनग्राही, उदार, सुधारवादी विचारधारा थी जिसके पल्लवित होने के लिए मुलतान का धार्मिक वातावरण अनुकूल था।
मुलतान, डेरागाजीखान आदि के ओसवाल जैन समाज का इस क्षेत्र मे तथा पजाव में वरावर प्रभाव बना रहा और उन्होने साहित्यिक, धार्मिक व सास्कृतिक क्षेत्र मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रस्तुत पुस्तक मे डा० कासलीवाल ने विविध प्रकार की सामग्री सकलित कर इन्ही वाता पर प्रकाश डाला है और सामाजिक एव ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाते हुये मुलतान क दिगम्बर जैन समाज का इतिहास प्रकाश मे लाने मे अत्यधिक प्रशसनीय कार्य किया है। भी मिलेगी।
यत्न से इतिहास के विद्वानो को इस दिशा मे और अधिक गवेषणा करने की प्रेरणा
उनका
मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपूर ने प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है और इसके लिए सारा समाज धन्यवाद का पात्र हैं।
डॉ० वीरेन्द्र स्वरूप भटनागर
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प्रस्तावना
आदर्श समाज के सदियों से बढ़ते चरण
गुलाबी नगरी जयपुर मे आदर्श नगर स्थित दि० जैन मन्दिर के मुख्य द्वार पर जब मै आकर रुकी तो ऐसा लगा जैसे किसी चित्रपट गृह में आई हूँ । मन्दिर के बाहर का दृश्य ही वडा मोहक एव आकर्षक है । इस मन्दिर की पावन भूमि का यह तिकोना पथिको को भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर आव्हान करता हुआ सुशोभित होता है । महावीरकीर्ति स्तम्भ ने इस तिकोने की शोभा मे चार चाद लगाये है । बरबस ही दर्शक का मन मन्दिर मे प्रवेश पाने को बेचैन हो जाता है । मन्दिर मे सफाई ऐसी कि पत्थर चादनी सा चमकता है, जिसमे मुह देख लो | गर्भगृह मे वीतराग प्रभु की अनेक छवियो मे चमकता एव झाकता परमात्मा का सौम्य रूप सहज ही दर्शक को भीतर तक आप्लावित कर देता है । भक्तजन अनजाने मे ही कहने को विवश हो जाते है कि मन्दिर बहुत ही सुन्दर बनाया है । जयपुर मे आकर जिसने यह मन्दिर नही देखा उसने कुछ नही देखा । ये सभी मूर्तिया देश विभाजन के समय ई 1947 मे वायुयान द्वारा पाकिस्तान स्थित मुलतान एव डेरागाजी खान से आई है । यह सुनकर यात्री आश्चर्यान्वित हो श्रद्धा सहित कह उठता है धन्य है इन लोगो की धार्मिक निष्ठा को ।
मन्दिर के साथ स्वाध्याय भवन, सरस्वती भण्डार तथा रोगियो की सक्रिय सेवा के अर्थ महावीर कल्याण केन्द्र इसकी पूर्णता को प्रदर्शित कर रहा है जिसमे वैद्यरत्न श्री सुशील जी एव उनके सुशिष्य श्री अशोक जी गोधा निष्ठापूर्वक मानव सेवा करते है । सुदूर प्रदेश मे शका के समाधान रूप विद्वद्वर पंडित टोडरमल जी की रहस्यपूर्ण चिट्ठी इस समाज के तत्वप्रेम, आध्यात्मिक जिज्ञासा एव मानव सेवा के परिचायक है ।
यू तो वर्ष के तीन सौ पैसठ दिन यहा सामूहिक पूजन एव शास्त्र सभा चलती है । परन्तु दशलक्षण, अष्टान्हिका एव दीपावली आदि पर्वो के दिनो मे जिस सुर-ताल से गाजेबाजे के साथ सामूहिक पूजन एव साध्य आरती होती है, उसको सुनकर मूक भी मुखर हो उठता है । वह दृश्य देखते ही बनता है । पर्व के दिनो मे सभी लोग एकाशन पूर्वक हरीसब्जियो का त्याग करते है । इस समाज मे साधु-भक्ति भी कम नही है । साधुओ के आवास की सुन्दर व्यवस्था है तथा लोगो को साधु-सेवा व आहार-दान मे वडा आनन्द आता है । मुट्ठी भर जैन घर से बेघर होकर जयपुर व दिल्ली मे आकर बसे । अपने व्यापार को जमाया, घर बनाये और फिर इतने अल्प समय मे विशाल मन्दिर का निर्माण वास्तव मे ही दुष्कर परन्तु प्रशसनीय कार्य है । इसलिए कहा है- " धर्मो रक्षति रक्षित " ।
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श्री मन्दिर जी के रजत जयन्ती एवं महावीर कीर्ति स्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा समारोह के उपलक्ष मे "मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे" पुरतक का प्रकागन अति प्रसन्नता का विपय है। इस इतिहास से समाज का ओसवाल होते हुए दिगम्बर होने की प्राचीनता का सम्यक् परिचय मिलता है । इस अवलोकन से काफी प्राचीन तत्व इसके समर्थन मे प्रकाश मे आये है । इनमे से कुछ मुख्य ऐसे है-जैसे श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ की सवत् 1481 की मुलतान दि० जैन मन्दिर की मूलनायक प्रतिविम्ब थी। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वहा भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा प्रचलित थी । मुलतान दुर्ग ने प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ की ही सवत् 1548 वैशाख सुदी 3 की प्रतिष्ठित प्रतिविम्ब इस बात को और पुष्ट करती है। इसके अतिरिक्त सवत् 1565, 1638, 1883, 1 आदि की प्रतिमाये वहा दिगम्बर जैन धर्म की प्राचीनता का प्रमाण है। इस प्रकार सवत् 1745, 1748, 1750, 1778 के हस्तलिखित ग्रन्थो से पता लगता है कि वहा का समाज दिगम्वरत्व मे आस्था रखता था । मुलतान से 60 मील दूर सिन्धु नदी के किनारे रागाजीखान मे भी दि० जैन समाज इतना ही प्रचीन है। जिसके मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा (मति) सवत् लिखने की पद्धति से भी पूर्व की है। ऐसा प्रतीत होता है कि दिगम्बर साधुओ का मध्यकाल मे लोप प्राय होने से जैन समाज के पारस्परिक सम्वन्ध उतने निकट नही रह पाये । परन्तु प० टोडरमल जो की रहस्यपूर्ण चिट्ठी परस्पर तात्विक एव वैचारिक सम्बन्धो को प्रदर्शित करती है।
ब. कुमारी कौशल
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अपनी ओर से
मझे इस पुस्तक के सन्दर्भ मे यह कहना है कि इसके सकलन तथा सपादन एव प्रकाशन मे यदि किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि रह गई हो तो उसे मेरी अल्पबद्धि ही मानकर क्षमा करने की कृपा करे । यद्यपि मेरी ओर से यथाशक्ति यही चेष्टा रही है कि समाज से सम्बन्धित उल्लेखनीय विवरण अप्रकाशित न रहे पर फिर भी पूर्वाभ्यास. सीमित वृद्धि, शारीरिक स्वास्थ्य, एव सन्तोषप्रद मनोनुकूल परिस्थितियाँ नही होने से अन्जान मे यदि किसी परिवार परिचय मे तथा विशिष्ट जन के विवरण मे कोई विशेष वत्तात का समावेश होने से रह गया हो तो उसकी भूल के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरी ओर से पूरी सतर्कता बरतने मे कोई कसर नही रखो है फिर भी किसी की दृष्टि मे कोई अभिष्ट प्रकरण प्रकाशित होने से रह गया हो अथवा यथास्थान न हो तो क्षम्य समझा जावे।
__ ओसवाल दि० जैन परिवारो का बाहुल्य प्राय मुलतान डेरागाजीखान, मजफ्फरगढ आदि (वर्तमान पाकिस्तान) नगरो तक ही सीमित था । यह समाज कब से वहाँ था यह खोज का विषय है किन्तु 15 वी शताब्दी से अस्तित्व के सकेत अवश्य मिलते है, तथा तथ्यो के आधार पर यह भ्रान्ति भी निर्मूल हो जाती है कि यह सब श्वेताम्बर से दिगम्बर हुए होगे ।
मुलतान दि० जैन समाज का अब तक कोई क्रमबद्ध इतिहास लिपिबद्ध नही था, जबकि यह नितान्त आवश्यक है और इसका अभाव निरन्तर अखर रहा था। इतिहास कालावधि मे समाजिक कार्यकलापो का दिग्दर्शन कराता है और स्वरूप वोध कराने में सहायक होने से उपादेयता को दृष्टि से भी आवश्यक होता है । इसी दृष्टि से यह पुस्तक लिखो गई है । इसमे मुलतान प्रदेश को धार्मिक, आर्थिक एव सामरिक दृष्टि से महत्व वर्धमान नौलखा का पाडित्य, उनकी सुपुत्री कवयित्नी अमोलका वाई की कृतिया विशेष उल्लेखनीय हैं । जयपुर से मुलतान मे दी गई प्रवर पडित टोडरमल की महान रहस्पपूर्ग चिट्ठी वर्तमान सिंगवो परिवार के जनक यशस्वो श्री लुणिन्दामल जी की जीवनी का दिग्दर्शन, मुलतान मे हुए कवि दौलतराम जी को भी उजागर किया गया है। समाज की प्राचीनता पर तो प्रकाश डाला ही है, गत शताब्दि के कतिपय कुछ महानुभावो की जीवन झाकियो का भी समावेश किया गया है । भारत विभाजन का करुण दृश्य दिल्ली तथा जयपुर बसने का वृत्तान्त एवं आदर्शनगर, जयपुर मे बने दि० जैन मन्दिर, महावीर कीर्ति स्तम्भ, महावीर कल्याण केन्द्र एवं सामाजिक गतिविधियो का सक्षिप्त परिचय दिया गया है। इसके अतिरिक्त विशेष व्यक्तियो एवं समाज के परिवारो का परिचय दिए जाने का प्रयास किया गया है । मुलतान दि० जैन समाज के विषय मे भारतवर्षीय दि० जैन विद्वानो के विचार भी उद्धृत किए गये हैं।
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16 वर्ष पूर्व पडित श्री अजितकुमार जी ने श्री न्यामत राम जी को मृलतान दि० जैन रामाज का इतिहास लिपिबद्ध कराने की अभिलापा व्यक्त की थी। किन्तु उनका अचानक दुर्घटनाग्रस्त होकर देहावसान हो जाने से इतिहास लिखवाने वाली बात उन्ही के साथ समाप्त हो गई। किन्तु कार्य होने का समय निश्चित होता हे और जमा होने का होता है वही होता है उसके निमित्त भी वैसे ही बनते है । कम से कम इस प्रकरण मे तो ऐसा ही हुआ ।
अनायास ही कुछ समय पूर्व दिल्ली मे श्री गुमानीचन्द जी से मेरी बात हुई कि एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित कराई जाय जिसमे हमारी समाज में प्रचलित पद्धति से पजायें, स्तोत्र पूर्वजो से चले आ रहे भक्ति, अध्यात्म, उपदेशात्मक प्राचीन गीतो का क्रमबद्ध सकलन हो तथा कुछ अपना इतिहास भी लिखा जाय जिससे भविष्य मे समाज पूर्व परम्परागत धर्म साधन कर सके अथा पूर्वजो के विषय में जानकारी प्राप्त कर सके ।
इस योजना को उपयोगी जानकर इसे मूर्तरूप देने के लिए वहा समाज के कुछ विशिष्ट महानुभावो से सम्पर्क किया गया । आर्थिक सहायता उपलब्ध होने के आश्वासन स्वरूप इस कार्य का शुभारम्भ हुआ ।
जयपूर आकर जव श्री न्यामतराम जी को इसकी जानकारी दी तो वे आनन्द विभोर हो गये और कहा कि मेरा दीर्घकालीन स्वप्न साकार हुआ तथा उन्होने पडित श्री अजितकुमार जो की बात दोहराई, समाज की कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया जिस पर प्राय सभी ने प्रसन्नता प्रकट की तथा परिवार परिचय प्रकाशन के रूप मे धन राशि की प्राप्ति हेतु प्रस्ताव की भी स्वीकृति प्रदान कर अनुमोदित किया ।
श्री न्यामतराम जी के साथ पुस्तक प्रकाशन की रूपरेखा तैयार किए जाने के सम्बन्ध में जब श्रीमान् डा० हुकुमचन्द भारिल्ल से मिले तो उन्होने पूजन आदि की पुस्तक नित्य उपयोग मे लिए जाने की दृष्टि से इतिहास की पुस्तक का पृथक प्रकाशन कराये जाने का परामर्श दिया । इतिहास के लिए समाज-सेवी डा० कस्तूरचन्द जी कासलीवाल से सम्पर्क स्थापित किया गया तथा उनसे इतिहास लेखन का कार्य करने की प्रार्थना की गई जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार कर हमे कृतार्थ कर दिया जिसके लिए समस्त समाज उनका आभारी रहेगा । डा० कासलीवाल जी ने निरन्तर आदर्शनगर मन्दिर आकर वहाँ रखी हस्तलिखित पाण्डुलिपियो नथा मूर्तियो के प्रशस्ति लेखो से अभीष्ट सामग्री एकत्रित करने मे जो अथक परिश्रम किया उसके लिए मुलतान दि० जैन समाज सदैव ऋणी रहेगा ।
मलतान दि० जैन समाज को आशीर्वाद रूप गुरुजनो, विद्वानो एव श्रीमानो ने शभ सदेश एव लेख भेजकर जो उपकृत किया है, समाज सदैव उनका आभारी रहेगा।
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इस पुस्तक प्रकाशन की योजना के प्रणेता मुलतान दि० जैन समाज के प्राण श्री गमानीचन्द जी दिल्ली वाले विशेष धन्यवाद के पात्र है जिन्होने न केवल मुझे प्रारम्भ मे प्रेरित किया अपितु, उनका सहयोग सदैव प्राप्त होता रहा । इसी भाति श्री तोलाराम जी गोलेछा, श्री मनमोहन जी सिगवी, श्री रोशनलाल जी गोलेछा आदि का सराहनीय सहयोग प्रशसा किए बिना नही रहा जा सकता । जयपुर मे श्रद्धय श्री चामत राम जी जिस स्फूर्ति एव लगन से सभी योजनाओ को हमेशा क्रियान्वित कराने मे अग्रणी रहकर प्रेरणाप्रद पथ-प्रदर्शक रहे यह सर्व विदित है उनको समाज कभी भुला नहीं सकता।
श्री बाबूलाल जी सेठी अध्यापक श्री महावीर विद्यालय प्रेस कापी बनवाने एव श्रीमान् सुरेन्द्रकुमार जी जैन वाचनालयाध्यक्ष श्री दि० जैन महावीर उच्चतर मा० विद्यालय जयपुर ने प्रकाशन मे जो अपूर्व सहयोग दिया वे बहुत-बहुत धन्यवाद के पात्र हैं ।
जयपुर मे इस पुस्तक के प्रकाशनार्थ अर्थ सग्रह कराने मे श्री शम्भकुमार जी, श्री जवाहरलाल जी, श्री शीतलकुमार जी आदि ने जो सहयोग दिया उन सभी को मै धन्यवाद देता हू तथा श्री रामकलप जी पाण्डेय का पुस्तक प्रकाशन मे जो सहयोग रहा वह भी सराहनीय है ।
अन्त मे मै समस्त मुलतान दि० जैन समाज दिल्ली, जयपुर को जिन्होने धनराशि, परिवार परिचय विवरण तथा अन्य सामग्री उपलब्ध कराकर पुस्तक प्रकाशन मे सहयोग दिया, हार्दिक धन्यवाद देता हू । क्षमा प्रार्थी ।
E. Gu dung
जयकुमार जैन मत्री-मुलतान दि० जैन समाज
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लेरवक..
मुलतान आदि नगरो (वर्तमान पाकिस्तान) से आने के कारण इस समाज का नाम मलतान दि० जैन समाज पड गया है। इसमे डेरागाजी खान आदि से आये समाज का भी इतिहास जुडा है।
किसी भी देश, समाज एव जाति का इतिहास उसके अतीत की घटनाओ का क्रमवध्द प्रस्तुतीकरण है । उस इतिहास के आधार पर भविष्य का सुन्दर महला खडा किया जा सकता है। जिप समाज का जितना उज्ज्वल इतिहास है वह उतना ही गर्वोन्नत होकर चल सकता है। जैनधर्म एव जैन समाज के इतिहास के अभो तक अधिकाश पृष्ट इधर उधर विखरे हुए हैं जिनके सलन एव सु सम्पादन की महती आवश्यकता है । आज समूचा जैन समाज विभिन्न सम्प्रदायो, पथो, जातियो एव उपजातियो मे बटा हुआ है इसलिये एक दूसरे को पहिचानना भी कठिन प्रतीत होता है । खडेलवाल, अग्रवाल, ओसवाल, परवाल, जैसवाल, पल्लीवाल आदि चौरासी जातियो मे विभक्त समाज आज कुछ ही जातियो तक सीमत रह गया है और शेष जातिया हो नही उनका इतिहास भो अतीत के पृष्ठो मे विलुप्त हो चुका है उनके वारे मे जानने को न तो हम उत्सुक है ओर न उनके इतिहास को सामग्री ही सहज रूप से उपलब्ध होती है। इसलिये अवशिष्ट जातियो एव प्रकाशन की यदि कोई योजना बन सके तो हमारी आगे आने वाली पीढी उससे प्रेरणा ले सकेगी।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज एक जीवित एव धर्मनिष्ठ समाज है । गत 500-600 वर्षा से जैन धर्म एव समाज को अनुप्रागिन रखने के लिये उसने अपना महान योगदान दिया है । यह समाज प्रारम्भ से हो दिगम्बर समाज के रूप मे रहा है और कभी कम कभी अधिक सख्या मे अपना अस्तित्व बनाये रखा है । सन् 1947 मे मुलतान से जयपुर मे आने के पश्चात् इस समाज ने अपने अस्तित्व को बनाया हो नहो रखा किन्तु उसको उज्ज्वल बनाने का भी प्रयास किया है । ऐसे ममाज के इतिहास को महतो आवश्यकता थी जो प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन से बहुत कुछ रूप में पूरी हो सकेगो । जब मुलतान समाज के अध्यक्ष एव मत्रो मेरे पास आये और उन्होंने महावोर कोतिस्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव एव मन्दिर के रजत जयंती समारोह के आयोजन के समय मुलतान दि० जैन समाज के इतिहास को लिखने एव प्रकाशन मे सहयोग देने का प्रस्ताव रखा तो मुझे प्रसन्नता हुई और मैने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।
लेकिन इतिहास लेखन के लिये सामग्री का उपलब्ध होना आवश्यक है क्योकि बिना तथ्यों के किसा जानि अयवा समाज का इतिहास लिखा भो कैसे जा सकता है। मुलमान तो अब पाकिस्तान का अग बन चुका है इसलिये मुलतान समाज का इतिहास किस
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आधार पर लिखा जावे । इसके अतिरिक्त मुल्तान समाज के बारे मे हमारे मन मे बड़ी गलत धारणा यह रही कि मुलतान समाज ओसवाल होने के नाते श्वेताम्बर से दिगम्बर धर्म वा अनुयायी हुआ होगा | इस गलत धारणा ने समाज को शेष भारत की दिगम्बर समाज से दूर रखा और अलगाव का भाव बनाये रखा । लेकिन मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता है कि मुलतान दिगम्बर जैन समाज गत 500-600 वर्षो से तो पूर्णत दिगम्बर समाज रहा और इसके पूर्व भी वह इसी रूप मे था । इसमे कोई सदेह नही है । श्वेताम्बर ओसवाल समाज के गोत्र होने पर भी वह अपने उद्भवकाल से ही दिगम्बर था और फिर दिगम्बर ही रहा इसमे कोई सदेह नही है |
मुलतान समाज के इतिहास लेखन में मैने समाज के शास्त्र भडार एव मूर्ति लेखो के सहारे इतिहास के रूप मे कुछ तथ्य रखने का प्रयास किया है । मैं उसमे कितना सफल हो सका हूँ यह विद्वानो के निर्णय करने की वस्तु है । फिर भी समाज का इतिहास संक्षिप्त रूप मे ही सही प्रस्तुत हो सका है इसीकी मुझे प्रसन्नता है ।
अन्त मे मुलतान समाज के, अध्यक्ष श्री न्यामतरामजी एव मंत्री श्री जयकुमारजी जैन का आभारी हूँ जिन्होने इतिहास लेखन मे कितने ही तथ्यो को बतलाकर मुझे पूर्ण रूप से सहयोग दिया है । प्रस्तुत पुस्तक मे हमने समाज के परिवरो का परिचय देने का भी प्रयास किया है उसका प्रमुख उद्देश्य यही है कि आज का परिचय ही कल के इतिहास की एक कडी होगी ।
"इतिहास के आलोक मे" पुस्तक के लिये हमने समाज के कुछ विद्वानों के समाज से संबंधित संस्करणों को भी प्रस्तुत पुस्तक मे देने का प्रयास किया है । वे सभी इतिहास के ही अग है और भविष्य के लिये महत्वपूर्ण तथ्य हैं । मैं सभी विद्वानो का आभारी हूँ जिहोने हमारे निवेदन को स्वीकार करके अपने विचार भेजने का कष्ट किया है ।
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
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अध्यक्षको
कलम से
मुलतान डेरागाजीखान (वर्तमान पाकिस्तान) मे दि० जैन प्राचीन काल से रहते चले आ रहे हैं, जिसका इतिहास इस पुस्तक मे भली भाति बताया गया है ।
___ पाकिस्तान बनने के बाद ये सब परिवार भारत आकर जयपुर, दिल्ली, बम्बई आदि मे अपनी सुविधानुसार व्यवसाय की दृष्टि से बस गये। धीरे धीरे अपनी शक्ति के अनुसार आवासीय भवन आदि बना लिये । राजस्थान सरकार ने आदर्शनगर बसाया उसमे हम लोगो को प्लाट भी मिले और मन्दिर के लिए एक भूखण्ड भी आवटित कराया गया। जब सब लोग अपने को पुनर्स्थापन करने, रोजगार आदि जमाने मे लगे थे उसी समय धर्म साधन के लिए मन्दिर निर्माण की भी आवश्यकता उसी तरह आवश्यक समझ रहे थे।
माघ सुदी पचमी सन् 1954 ई० को श्रीमान् कवरभान जी ने समाज के सहयोग से श्रीमान् पडित चैनसुखदास जी जिनकी कि हमारे समाज पर विशेष धर्मस्नेह एव कृपा थी, के सानिध्य मे श्रीमान् सेठ गोपीचन्द जी ठोलिया के कर-कमलो द्वारा इस मन्दिर का शिलान्यास कराया गया । सर्वप्रथम समाज श्री कवरभान जी का सदैव आभारी रहेगा कि जिन्होने अथक प्रयत्न से मदिर की जमीन ली तथा धर्म साधन का बीजारोपण किया।
___ मन्दिर का निर्माण कार्य आगे बढा। समस्त मुलतान दि० जैन समाज दिल्ली, जयपुर एवम् बम्बई आदि के महानुभवो ने विषम परिस्थितियो मे भी अपनी सामर्थ्य से अधिक जो आर्थिक सहयोग दिया उसके लिए मैं उन सबको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ।
श्री आसानन्दजी वगवाणी दिल्ली का जीवन पर्यन्त बडे उत्साह के साथ तन मन धन से मन्दिर निर्माण मे सहयोग रहा इसके लिए वह श्री पल्टूसिंह जैन आचींटेक्ट को कईवार लेकर जयपुर आये । इसी प्रकार श्री घनश्याम दासजी जब तक जयपुर रहे पूर्ण सहयोग देते रहे । दिल्ली चले जाने पर भी उनका सहयोग कम नही हुआ वहाँ बैठे-बैठे भी उन्होंने इस कार्य को पूरा कराने मे पूर्ण रुचि ली तथा गुमानी चन्दजी, श्री तोलारामजी आदि ने स्वयं तो हर प्रकार का महयोग दिया ही समाज से भी अर्थ सग्रह के लिए समय-समय पर योजनाएं बनाकर धन एकत्रित कराया । इस तरह श्रीमान शिव नाथमल जी, श्री दीवान चन्दजी, श्री श्रीनिवासजी, श्री शकर लालजी आदि समस्त मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली ने इस मन्दिर के निर्माण में सभी प्रकार का तन मन धन से जो सहयोग दिया उन मवको जितना भी धन्यवाद दिया जाय थोडा है।
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महावीर कीर्ति स्तम्भ के निर्माण मे श्री रगलाल जी वगवाणी एव श्रीमती विशनी देवी धर्मपत्नी स्व० श्री घनश्याम दास जी सिंगवी तथा उनके पुत्र श्री इन्द्र कुमार, श्री वीर कुमार ने आर्थिक सहयोग देकर जो यह महान कार्य पूरा कराया मै उन्हे हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
जयपुर मन्दिर मे श्री मोतीराम कवरभानजी ने स्वाध्याय भवन, श्री माधोदास, श्री वलभद्र कुमार ने मुख्य द्वार. श्रीमती पदमो देवी एव उनके पुत्र श्री शीतल कुमार ने महावीर कल्याण केन्द्र भवन की नीचे की मजिल बनवाकर एव श्री रमेश कुमार, श्री बशीलाल जी ने ऊपर की मजिल मे आर्थिक सहयोग देकर तथा श्रीमती रामो देवी धर्मपत्नी श्री आसानन्दजी सिंगवी एवम् उनके पुत्रो ने अतिथि गृह, अपने ससुर श्री आसानन्दजी सिंगवी की स्मृति मे श्री महेन्द्र कुमारजी ने मन्दिर भवन के आगे चौक का फर्श वनवाकर जो सराहनीय कार्य किये वह अद्वितीय है । तथा समस्त मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर के सभी महानुभावो ने मन्दिर निर्माण के दायित्व को तन मन धन से सहयोग देकर बडी कुशलता दृढता एव उदारता के साथ पूर्ण किया। समाज का अध्यक्ष होने के नाते मै अपना कर्तव्य मानता हूँ कि उन सभी महानुभावो को हार्दिक धन्यवाद दूं। जिन्होने इसको पूर्ण कराने मे सहयोग दिया है।
इस विशाल भव्य एव सुन्दर मदिर को मूर्तरूप दिया मत्री, श्री जयकुमारजी ने अपने जीवन के बहुमूल्य समय के 25 वर्ष देकर और साथ दिया श्री बलभद्र कुमारजी ने मन्दिर आदि के निर्माण कार्य को पूरा कराने मे। मै तो क्या समस्त मुलतान दि० जैन समाज उन दोनो की जितनी प्रशसा करे थोडी है। जिसके लिये वे धन्यवाद के पात्र है और समाज उनका सदैव आभारी रहेगा।
जैसे ही मन्दिर निर्माण का कार्य पूरा होने को आया मुझे याद आई उस पत्र की जो आज से करीब 16 वर्ष पूर्व पडित श्री अजितकुमार जी ने दिनाक 1-4-64 ई० को मुझे लिखा था कि "मुलतान के ओसवाल दि० जैन समाज का कोई लिपिबद्ध इतिहास नहीं है मेरी इच्छा है कि वह अवश्य लिखा जाना चाहिए। अगर आप तैयार हो तो मै उसे लिखना चाहता हूँ जिसमे पूर्ण इतिहास एव परिवारो की फोटू सहित जानकारी दी जावे ।" जिसकी याद मेरे मन मे बार-बार उठती थी किन्तु मन्दिर निर्माण के कठिन कार्य को देखते हुए अन्दर ही अन्दर रह जाती थी।
वज्रपात पडा उस दिन जब अचानक सुना कि पडित जी का महावीर जी मे दुर्घटना से देहावसान हो गया, इच्छा कुछ मर सी गई कि अव यह काम शायद कभी न पूरा हो पायेगा।
अनायास एक दिन मत्री श्री जयकुमार जी ने मुझसे आकर यह कहा कि मेरे विचार से एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित कराई जाय जिसमे हमारी समाज में प्रचलित पूजाए, भक्ति, आध्यात्मिक एव उपदेशक गीत आदि हो तथा उसमे समाज का इतिहास भी हो ।
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इसके लिए दिल्ली मे श्री गुमानीचन्द जी से बात हुई थी जिसे उन्होंने बहुत पसन्द किया तथा मेरे साथ चलकर कुछ लोगो से आर्थिक सहयोग देने का वचन भी ले दिया ।
सुनते ही मुझे अन्दर से कुछ ऐसी खुशी की अनुभूति हुई कि जिस कार्य को मैं अव असम्भव मान बैठा था उसके होने की कुछ किरण दिखाई देती है, सराहना की और साथ देने का निर्णय लिया इस काम को पूरा करने का ।
इतिहास का प्रारूप तैयार करने के लिए डा० श्री वस्तूरचन्द जी कासलीवाल के पास गये उन्होने कार्य को करने की महर्ष स्वीकृति दी - कार्य प्रारम्भ हुआ ।
पूजा पाठ सग्रह की पुस्तक समाज के सामने आ चुकी है । इतिहास आपके सामने है । श्री कासलीवाल जी ने तीन महीने तक जयकुमार जी को साथ बिठाकर मुलतान से आये लिखित शास्त्रभण्डार तथा वहाँ से आई मूर्तियो के लेखो मे जो सामग्री प्राप्त की है उस आधार पर कठिन परिश्रम से यह इतिहास का ग्रन्थ तैयार किया गया है । यह हमारी समाज के लिए एक अद्वितीय कार्य हुआ है । इसका लाभ सैकड़ो वर्षो तक समाज को मिलता रहेगा । मैं डा० श्री कस्तूरचन्द जी कासलीवाल का बहुत-बहुत आभारी हूँ तथा उन्हे कोटिश धन्यवाद देता हूँ एव इसमे अन्य उन सभी महानुभावो को जिन्होने दिल्ली जयपुर मे अर्थ सग्रह एवं मामग्री एकत्रित करने मे सहयोग दिया, उन सबका भी मे बहुत-बहुत आभारी हूँ ।
न्यायतराम
अध्यक्ष
मुलतान दि० जैन समाज
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श्री मुलतान दि० जैन समाज
की कार्यकारिणी के सदस्य
अध्यक्ष
उपाध्यक्ष मत्री
कोषाध्यक्ष
सगठन मत्री
श्रीमान् न्यामतराम जी " अर्जुनलाल जी
जयकुमार जी ईश्वरचन्द जी बलभद्रकुमार जी गिरधारी लाल जी जयकुमार जी (रगवाले) ज्ञानचन्द जी भागचन्द जी महेन्द्रकुमार जी
सदस्य
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विश्यानुक्रमणिका
1: इतिहास खण्ड भगवान महावीर के पश्चात्
पंजाब में जैन धर्म
मुलतान प्रदेश
वर्धमान नौलखा
अमोलका बाई
पडित प्रवर श्री टोडरमलजी
रहस्यपूर्ण चिट्ठी
लुणिन्दामल एव उनकी वशावली
कवि दौलतराम ओसवाल
सवत् 1901 से 2004 तक (भारत विभाजन)
कल्याणी बाई
बीसवी शताब्दि के कुछ विशिष्ट
महानुभाव
पडित अजित कुमारजी शास्त्री मुलतान का दिगम्बर जैन मन्दिर
मुलतान छावनी
स्वतन्त्रता वर्ष 1947
डेरा गाजीखान
जयपुर मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज
भगवान महावीर 2500वाँ निर्वाण महोत्सव
महावीर कीर्तिस्तम्भ
महावीर कल्याण केन्द्र
11
24
25
7
33
36
43
981445088
1 से
1
39
42
53
2
4
60
61
64
76
76
76
77
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( 11 )
पति चैन सुखदासजी एव मुलतान दिगम्बर जैन समाज के सदस्यों की आदर्शनगर मन्दिर मे मुनि विद्यानन्दजी से प्रथम भेट
महावीर कल्याण केन्द्र औषधालय
महावीर जीव कल्याण समिति
दिल्ली मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज
श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज
भारत वर्षीय दिगम्बर जैनविद्वानों की दृष्टि में
व्यक्ति परिचय
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर का
रजत जयन्ती समारोह
परिवार परिचय
श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर
परिवार परिचय
श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली
79
82
85
86
88
101
108
109
165
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ਨੇਲ
ਬੂਹs
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১৬ ভরি,
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में
विश्व के प्राचीनतम धर्मो मे जैन धर्म का विशेष स्थान है | इतिहासातीत काल से इस धर्म ने विश्व की सभी संस्कृतियों को प्रभावित किया है और अपने उदार सिद्धान्तो एव परम्पराओ के आधार पर उनके विकास में योगदान दिया है। इसी अवसर्पिणी काल मे इस धर्म मे 24 तीर्थकर 12 चक्रवर्ती सम्राट्, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण, 9 बलभद्र एवं हजारो पुण्य-पुरुष हुए हैं जिन्होने देशवासियो को जीने की कला सिखायी, बुराईयो, गलत परम्पराओ एव अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाया तथा जाति-भेद एवं वर्ग-भेद समाप्त कर प्राणी मात्र से प्रेम करने का मार्ग बतलाया । इन्ही कारणो से जैन धर्म देश के सभी भागो मे समान रूप से "जन-धर्म" के रूप मे लोकप्रिय बना रहा । इसके प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने देशवासियो को विज्ञान युग मे प्रवेश करना सिखलाया तथा असि मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या एव गिल्प का ज्ञान देकर उन्हे स्वावलम्बी बनना सिखाया । यही नही भगवान ऋषभदेव का सम्पूर्ण जीवन ही भारतीय भावनाओ का जनक बन गया । यही कारण है कि वे प्रथम तीर्थकर के रूप मे ही पूज्य नही, अपितु वैदिक मन्त्रों मे तथा पुराण एव भागवत मे आठवें अवतार के रूप मे भी मान्यता प्राप्त है । ऋषभदेव के पश्चात इस देश मे 23 तीर्थंकर और हुए, जिनमे तीर्थकर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की ऐतिहासिकता मे किसी को सन्देह नही है | भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण महावीर के 250 वर्ष पूर्व हुआ था । पार्श्वनाथ के समय अन्धविश्वासो का जोर था । पचाग्नि तप तथा कमठ का उपसर्ग इस बात का द्योतक है। भगवान पार्श्वनाथ ने इनका घोर विरोध किया और आध्यात्म का प्रचार किया । भगवान महावीर के युग मे हिंसा का ताण्डव नृत्य हो रहा था । उमके विरुद्ध उन्होने आवाज उठायी और अहिंसा धर्म की श्रेष्ठता की स्थापना की । साथ ही सह-अस्तित्व का पाठ पढाकर सब धर्मो से प्र ेम करना सिखलाया तथा अपरिग्रहवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर वर्ग भेद की लडाई को कम करने का प्रयास किया । उन्होने सृष्टि कर्तृत्ववाद समाप्त कर पुरुषार्थ का पाठ पढाया और प्रत्येक प्राणी के लिए परमात्मा वन सकने की घोषणा की। इस प्रकार तीर्थंकरो द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म इस देश मे हजारो वर्षों से गंगा और यमुना की तरह देश की सस्कृति मे घुला हुआ है और अपने पावन सदेगो से यहा के निवासियों के जीवन को समुज्ज्वल बनाने की दिशा मे अग्रसर है । भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात्
भगवान महावीर के परिनिर्वाण के समय से जैन धर्म उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर फैल गया । उत्तर मे पंजाब एव सीमा- प्रान्त तक इस धर्म के मुनि, उपाध्याय
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और भाचार्य विना किसी प्रकार की बाधा के बिहार करते थे तथा जन-जन को अहिंसा और विश्व-मैत्री का पाठ पढाते थे। दक्षिण मे अनेक राजाओ ने जैनधर्म स्वीकार कर उसके प्रचार-प्रसार मे योग दिया। इसी तरह महाराजा खारवेल एव सम्राट चन्द्रगुप्त जैसे और भी अनेक शासक हुए जिन्होने अपने शासनकाल मे इस धर्म को चलाया एव उसका विस्तार किया ।
जैन धर्म भारत तक ही सीमित नही रहा अपितु भारत से बाहर विदेशो मे भी इसका अच्छा-प्रचार-हुआ-। अफगानिस्तान मे जैन मन्दिर तथा जैनधर्म को मानने वाले थे, इस बात की पुष्टि कितने ही ऐतिहासिक तथ्यो से मिलती है। इसी तरह मिश्र, ईरान, लका, नेपाल, भूटॉन-एव-तिब्बत और वर्मा आदि देशो मे भी जैनधर्म का प्रचार था । यह इन देशों मे समय-समय पर प्राप्त मूर्तियो एव अन्य सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है। . . पजाव भारतीय सस्कृति का प्रमुख केन्द्र माना जाता है । वैदिक आर्यो-के भारत आने से पूर्व यहा जो सस्कृति विद्यमान थी वह श्रमण सस्कृति थी और उसका भी पहिले पजाव मे प्रमुख स्थान था । सभी इतिहासकारो का विश्वास है कि ऋग्वेद की रचना भी इसी प्रदेश में हुई थी। इसलिए इस प्रदेश मे श्रमण-सस्कृति और वैदिक-सस्कृति साथ-साथ पल्लवित होती रही । लेकिन अ ग्रेजो के पूर्व जितने भी आक्रमणकारी आये उन्होने सिन्ध और पजाव की सस्कृति को सबसे अधिक हानि पह चायी और इसे विकसित होने का अवसर नही दिया। इसलिए जब कभी इस प्रदेश मे खुदाई होती है तो प्राचीनतम सस्कृति के नये-नये तथ्य सामने आते हैं। पंजाब में जैन धर्म . : मोहनजोदडो एव हडप्पा की खुदाई से भारतीय सस्कृति बहुत प्राचीन सिद्ध हो चुकी है। उक्त दोनो स्थान वर्तमान सिन्ध प्रदेश के लरकाना जिले मे तथा पजाब के मोन्टगुमरी नामक स्थान के समीप स्थित है। उस समय इस प्रदेश का नाम पजाव नहीं था किन्तु पजाब प्रदेश विभिन्न प्रदेशो के नाम से विख्यात ,था। अकबर के शासन काल मे लाहौर, मुलतान, सरहिन्द एव भटिण्डा,ये,चार प्रान्त थे। बाद मे अकबर ने और भी स्थानो पर विजय प्राप्त करली । इसलिये ऐसा मालुम पडता है कि पजाव शव्द मुस्लिम बादशाहो का दिया हुआ है क्योकि इस प्रदेश मे सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एव झेलम ये पाच नदिया है । पज़ाब शब्द फारसी एवं उर्दू भाषा मे पज+आब इन दो शब्दो से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है पाच नदियो वाला प्रदेश । लेकिन प्राचीन साहित्य मे इस प्रदेश का नाम "वाहिक प्रदेश" था जिसका उल्लेख महाभारत में किया गया है। भगवान महावीर के परम भक्त राजा श्रेणिक को वाहिक वासी कहा गया है। राजा श्रेणिक शिशुनाग वशी था। ईसा से 642 वर्ष पूर्व शिशुनाग ने इस वश की स्थापना की थी और अंगिक इस वश का पाचवा.राजा था। इसके पूर्वज पजाब से मगध मे कब बस गये थे यह अभी खोज का विषय है । इसके अतिरिक्त सिन्ध, बिलोचिस्तान, कच्छ, उत्तरी-पश्चिमी-सीमान्त प्रान्त एव अफगानिस्तान आदि प्रदेशो से चन्ह-दडो, लोहुजदडो, कोहीरो, नम्री, नाल, अलीमुराद सक्कर-जो-दडो, काहु जो-दडो आदि विभिन्न स्थानो पर जो खुदाई हुई है, जिसके आधार परं भारतीय संस्कृति की विपुल सामग्री प्राप्त हुई है । पुरातत्वविज्ञो ने इस सभ्यता की सिन्धु 1. पचाना सिन्धु षोष्टानां नदीना ये अन्तराश्रिता वाहिकानाम देश - __ महाभारत अ० 44 श्लोक 7
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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घाटी की सभ्यता नाम दिया। मोहनजोदडो से प्राप्त मिट्टी की सीलो (मुद्राओ) पर एक तरफ खडे आकार मे भगवान ऋाभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्ति बनी हुई है तथा दूसरी तरफ बैल का चित्र बना हुआ है । इसी तरह हडप्पा की खुदाई मे कुछ खण्डित मतिया प्राप्त हुई है जिसके आधार पर विद्वानो ने लिखा है कि ये हडप्पा -काल की जैन तीर्थंकरो की मूर्तिया जैन धर्म में वर्णित कायोत्सर्ग मुद्रा की ही प्रतीक है। इसी तरह सिंहपुर मे भी जो खुदाई हई थी इसमे भी बहुत सी "जैन मतियो" "जैन मन्दिरो" एव स्तूपो के अवशेष प्राप्त हुए है जो आजकल लाहौर के म्यूजियम मे सुरक्षित है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पजाब मे वैदिक आर्यों के आने से पूर्व प्राग्वैदिक काल से अर्थात् भगवान ऋषभदेव के समय से लेकर आज तक पजाब मे जैन धर्म विद्यमान है । हाँ, यह अवश्य है कि कभी वह सर्वोच्च स्थान पर रहा तो कभी उसने अपना क्षीण रूप भी देखा ।
- पजाब मे विक्रम की 11वी शताब्दि से 15वी शताव्दि तक तथा महमद गजनवी से बादशाह सिकन्दर लोदी तक जितने भी मुसलमान 'शासक हुए उन्होने हिन्दू, जैन एव बौद्ध सम्प्रदायो के मन्दिर एव शास्त्रो को बुरी तरह नष्ट किया तथा मन्दिरो की बहुमूल्य सम्पत्ति लूट कर अपने यहा ले गये । यहा की अधिक ाश प्रजा को मौत के घाट उतार दिया गया तथा अवशिष्ट को मुसलमान बना लिया गया। आज भी काबुल के मुसलमानो मे एक ओसवाल भावडा पठान नाम की जाति है जो यह नहीं जानती है कि उसके पूर्वज कभी जैन थे ।
पाकिस्तान बनने से पूर्व रावलपिण्डी-छावनी, स्यालकोट-छावनी, लाहौर छावनी, लाहौर नगर फिरोजपुर, फिरोजपुर छावनी, अम्बाला एव अम्बाला छावनी, मुलतान, डेरागाजीखान आदि नगरो मे दिगम्बर जैनो के घर एव मन्दिर थे । इन जैनो मे ओसवाल, खण्डेलवाल एव अग्रवाल जातिया प्रमुख थी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर जैन ओसवालो को 'भाबडा' कहा जाता था तथा खण्डेलवाल एव अग्रवाल जाति वाले श्रावक, अथवा बनिये कहलाते थे पजाव-प्रदेश मे मुस्लिम शासन-काल मे भट्टारक जिनचन्द्र भट्टारक-प्रभाचन्द्र एव भट्टारक-शुभचन्द्र ने अवश्य विहार किया था तथा वहा दिगम्बर जैन धर्म का प्रचार किया था। इसके अतिरिक्त सवत् 1577 (सन् 1520) मे काष्ठासघी एव माथुरान्वयी भट्टारक गुणभद्रसूरी से सोनीपत में 'अमरसेन चरित्र' 'की साधु छल्ह एव उसकी पत्नी कर्मचन्दही अग्रवाल जैन ने प्रतिलिपि बनवायी थी। 'अमरसेन चरित्र' मे सिकन्दर लोदी का उल्लेख किया गया है और रोहतक नगर के श्रावको की प्रशसा की गयी है।
इसी तरह सवत् 1723 मे लाहौर मे खडगसेन कवि ने त्रिलोकदर्पण कथा की रचना की थी ऐसा उल्लेख ग्रन्थ प्रशस्ति में मिलता है। लाभपुर (लाहौर) मे एक दिगम्बर जैन मन्दिर था वही बैठकर वे धार्मिक चर्चा किया करते थे। उनकी मैली थी जिनके
1. मध्य एशिया एवं पजाब मे जैनधर्म, पृष्ठ सं० 146 2. प्रशस्ति सग्रह डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृष्ठ 80
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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पडित हीरानन्द, जगजीवन सिंघवी, रत्नपाल, अनूपराम, दामोदर, माधोदास, हीरानन्द द्वितीय, तिलोकचन्द, विशनदास, प्रतापमल्ल मोहनदास, हृदयराम एव त्रिलोकचन्द सक्रिय सदस्य थे तथा सभी शास्त्र-स्वाध्याय एव धार्मिक चर्चा करते थे । उस समय देश मे शाहजहा का शासन था और चारो ओर सुख शान्ति थी । उस सैली मे खण्डेलवाल, अग्रवाल एव दिगम्बर ओसवाल तीनो ही जातियो के श्रावक थे । पडित खड्गसेन खण्डेलवाल जाति के श्रावक थे तथा पापडीवाल उनका गोत्र था ।
पजाब के अन्य नगरो मे भी ग्रन्थो की रचना हुई तथा कितने ही ग्रन्थो की प्रतिलिपिया की गई जो आज भी राजस्थान, देहली, पंजाब एवं हरियाणा प्रदेश के शास्त्र भण्डारो मे संग्रहीत है और अपने को प्रकाशित देखने की प्रतीक्षा मे है । मुलतान प्रदेश
मुलतान का प्राचीन नाम मूलस्थानपुर था । महाभारत रामायण एवं अन्य प्राचीन ग्रन्थो मे इनका 'मालव' के नाम से उल्लेख किया गया है तथा बादशाह सिकन्दर के इतिहास लेखको ने इसे "मल्लियो की भूमि" लिखा है । जैन ग्रन्थो में इसको 'मूलत्राण' के नाम से सम्बोधित किया गया है। पुराणों के अनुसार नरसिंहावतार इसी नगर मे हुआ था जिसने प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को मारा था । यहा के पुराने किले में भारत विभाजन के पूर्व नरसिहदेव का मन्दिर था जिसे प्रहलादपुरी कहा जाता था । मुलतान से 50 मील दूर 'सुलीमान पर्वत' का एक भाग है । कहते है वही से प्रहलाद को नीचे फेक दिया गया था । मुलतान से 4 मील दक्षिण मे एक कुण्ड है जिसे श्रीकृष्णजी के पुत्र साम्ब ने बनवाया था । जिसे देवताओ का वरदान प्राप्त था तथा जिसके जल से कोढ को बीमारी दूर होती थी । इस कुण्ड का नाम सूरजकुण्ड है जो तीर्थ के रूप मे पूजित था । ह्वेनसाग जब मुलतान गया था तो वहा एक सूर्य मन्दिर था जिसमे उसने भगवान की सोने की प्रतिमा के दर्शन किये थे । वह प्रतिमा बहुमूल्य पदार्थों से निर्मित थी । उसमे अलौकिक शक्ति थी तथा उसके गुण दूर-दूर तक फैल गये थे । वहा पर स्त्रिया निरन्तर बारी-बारी से गाया - बजाया करती थी । समस्त
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1. पंडित होरानन्द प्रवोण, चौदह विद्या मे लवलीन |
संघवो जगजीवन गुणखाण, सकल शास्त्र मय अरथ सुजाण रत्नपाल ज्ञाता बुधवत, हिरदे ज्ञान कला गणवत । अनुपराय अनूपम रूप, बाल पणो जिम मोहे भूप । दामोदर दंसण गुण लीन, माधोदास मधुर प्रवीण । होरानन्द हिरदे परगास, तिलोकचन्द तहा ज्ञान विलास । विषणदास बुद्धि तीक्षण सरी प्रतापमल्ल पूरण मतिधरी । मोहनदास महागुणलीन, हसराज जि हिरदे प्रवीन । कुन्दन कनक नारायणदास, ज्ञान क्ला आगम परकास । पाढे हिरदे पूजा करे, हिरदे हरष सेव चित धरे हृदय राम भो जग हितकार, सेवा करें सुजिन गुणधार । ए सब ज्ञाता अतिगुणवत, जिन गुण सुणै महाविकसत । सब श्रावक अति ही गुणवत, सुणै ग्रन्थ पावै विरतत ॥
- त्रिलोक दर्पण प्रशस्ति
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे
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भारत के राजा महाराजा वहा जाते और मूर्ति पर बहुमूल्य पदार्थ चढाते थे । इस मन्दिर मे हर समय विभिन्न देशो के लगभग एक हजार यात्री प्रार्थना के लिए मौजूद रहते थे । जैन मत्री वस्तुपाल एव तेजपाल ने विक्रम की 13वी शताब्दी मे इस सूर्य मन्दिर का स्वद्रव्य से जीर्णोद्धार करवाया था । तब भी इसका नाम 'मूलवाण' ही लिखा मिलता है | 5वी शताब्दी के उपलब्ध सिक्को मे सूर्य की प्रतिमा मिलती है तथा उसे परसिमन राजा की वेशभूषा मे चित्रित किया गया है तथा पुरोहितो को जो मुलतान के इस मन्दिर मे सूर्य की पूजा करते थे, बतलाया गया है । भविष्य पुराण के अनुसार इन पुरोहितो को शक द्वीप से लाया गया था । 'मूलस्थान' नाम साम्बपुराण, भविष्यपुराण, बराहपुराण एव स्कन्दगुप्त मे भी मिलता है । मुलतान का पुराना नगर रावी नदी के किनारे बसा हुआ था तथा वर्तमान मुलतान चिनाब नदी के समीप स्थित नगर है ।
उद्योतन सूरि की कुवलयमाला मे 'मूलस्थान' भट्टारक' का उल्लेख है तथा उसे सूर्य उपासना के केन्द्र का स्थान बताया है । मथुरा के 'अनाथ - मण्डल' में कोढियो का जमघट था । उसमे चर्चा चल रही थी कि कोढ रोग नष्ट होने का क्या उपाय है ? एक कोढी ने कहा था “मूलस्थान भट्टारक - लोक मे कोढ के देव है, जो उसे नष्ट कर देते हैं" । " मूलस्थान का यह सूर्य मन्दिर राजस्थान मे प्रसिद्ध था । प्रतिहारो ने सुल्तान पर जब कब्जा करना चाहा तो अरब के शासको ने धमकी दी सूर्य मन्दिर को नष्ट कर दिया जायेगा जिससे प्रतिहारो को पीछे लौटना पडा । क्योकि वे सूर्य के उपासक थे । इस मन्दिर का अलबरूनी को भी पता था । उसका 17वी शताब्दी तक अस्तित्व रहा बाद मे औरगजेब ने इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया । इस सूर्य मन्दिर के बाद भारत मे अनेक सूर्य मन्दिरो का निर्माण कराया गया । जयपुर मे गलता की पहाड़ी के सूर्य मन्दिर को दीवान झूथाराम ने निर्माण करवाया था । झुंथाराम दिगम्बर जैन धर्म का अनुयायी था ।
मुलतान अत्यधिक प्राचीन नगर है । सिकन्दर द्वारा अधिकृत भारत के क्षेत्रो मे इसका भी नाम था । इसके पश्चात प्राय सभी मुस्लिम शासको को मुलतान के लिए लडाई लडनी पडी । सन् 1527 मे बाबर ने इसे मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत कर लिया ओर सवत 1619 ( सन् 1562 ) मे अकबर ने इस पर पुनः कब्जा कर इसे एक सूबा बना दिया । इसमे मोन्टगुमरी से लेकर सक्खर तक का प्रदेश सम्मिलित था। सन् 1868 मे सिक्ख राजा रणजीतसह ने इसे अपने अधिकार मे कर लिया । इसके पश्चात् गुजरावाला के दीवान सावनमल को इसका हाकिम बना दिया गया । इसके पहले सुखदयालसिंह को भी वहा का हाकिम वना कर भेजा गया था । इन दोनो के सुप्रबन्ध से मुलतान की अच्छी उन्नति हुई । रणजीतसिंह ने डेरागाजीखान को भी सूवा मुलतान मे सम्मिलित कर लिया था । मावनमल के पश्चात् उसका लडका मूलराज हाकिम बना । लेकिन अग्रेजो ने मुलतान पर अधिकार कर मूलराज को कैद कर लिया और उसे कलकत्ता भेज दिया जहा उसकी हत्या कर
1. दी जोगराफीकल डिक्शेनरी आफ एनसियन्ट एण्ड मिडाइविल इंडिया पेज -132 2 मूलत्या भंडारउ कोढइ जे देइ उद्दालइज्जे लोयहु क वलयमाला 55.16 3. कुवलयमाला का सांस्कृतिक अध्ययन डा० प्रेमसुमन जैन, पृ० 391
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दी गई तथा 1848 से 1947 तक यह ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत रहा और सन 1947 मे देश के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान का अग वन गया ।
मुलतान नगर प्राचीन काल से ही जैन धर्म का केन्द्र रहा है। जैन ग्रन्थो मे इसे मूलनाण एव मूलचन्द्र के नाम से भी सम्बोधित किया गया है। भगवान ऋषभदेव के समय से ही मुलतान होकर पजाव एव सीमान्त के अन्य नगरो मे जैन सन्त धर्म प्रचार करते रहे । जव भगवान ऋषभदेव ने दीक्षा धारण की तो उन्होने अयोध्या के पट्ट पर भरत का राज्याभिषेक किया और बाहुबलि को पोदनपुर-तक्षशिला के पट्ट पर विठलाया। पोदनपुर गान्धार प्रदेश की राजधानी थी। इसलिए ऋषभदेव मुलतान होकर पोदनपुर गये होगे तथा वहा वाहुबलि का राज्याभिषेक किया होगा । भगवान ऋषभदेव की स्मृति मे वाहुवलि ने उनके चरण स्थापित किये थे ।। आदिपुराण मे सौवीर जनपद का उल्लेख आता हे । डा० वासुदेव शरण अग्रवाल ने सिन्धु प्रान्त या सिन्ध नगर के निचले कोठे का पुराना नाम सौवीर माना है । इसकी राजधानी रोद्रव वर्तमान रोडी मानी जाती है । पाणिनी ने सौवीर देश का निर्देश किया है । मूलतान सौवीर जनपद मे था । वाहुवलि के पश्चात् गान्धार प्रदेश भरत के साम्राज्य का अग बन गया ।
भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात इस प्रदेश मे दिगम्बर जैन मुनियो का वरावर विहार होता रहा । जब सिकन्दर वादशाह तक्षशिला मे गया था तो वहा उसने कितने ही जैन मुनियो को देखा था तथा एक कालानस नामक दिगम्बर मुनि को अपने साथ ले गया था इससे यह स्पष्ट है कि वहा दिगम्बर मुनियो का विहार होता रहता था। सम्राट चन्द्रगुप्त, अगोक एव हर्षवर्धन के समय तक जैन मनियो के विहार मे कोई वाधा नही पडी, लेकिन मुस्लिम आक्रमणो के पश्चात् लाहौर से आगे दिगम्बर जैन मुनियो का विहार नहीं हो सका।
मुलतान नगर कई वार उजडा और कई बार वसा । इसलिए इसमे प्राचीनता की दृष्टि से कोई उल्लेखनीय सामग्री नही मिलती । बार वार होने वाले मुसलमानो के वर्वर आक्रमणो से वहा न कोई मन्दिर वचा और न गास्त्र भण्डार सुरक्षित रह सका। प्रारम्भ मे अकबर को भी मूलतान पर अधिकार बनाये रखने के लिये कितने ही युद्ध करने पड़े इसलिये अकवर के पूर्व की जैन सस्कृति के चिन्ह पट बहुत कम रह सके ।
मुलतान नगर उत्तरी पजाब मे दिगम्बर जैन सस्कृति का महान केन्द्र था। यहा का ओसवाल समाज प्रारम्भ से ही दिगम्बर धर्मानुयायी रहा । ऐसा मालुम पडता है कि ओमिया से जव ओसवाल जाति देश के विभिन्न भागो मे कमाने के लिए निकली और पजाव की ओर वसने को आगे बढी तो उसमे दिगम्बर धर्मानुयायी भी थे। उनमे ने अधिकाण मुलतान, डेरागाजीखान, सैय्या एवं उत्तरी पजाव के अन्य नगरो मे बस गये और वही व्यापार करने लगे । अन्य नगरो मे वार वार के आक्रमण के सामने वे टिक नही मके इनलिये या तो वे वहा से और कही जाकर बस गये या फिर 1. पाणिनी कालीन भारत, पृष्ठ 64 2 आदि पुराण मे प्रतिपादित भारत 3 तक्षशिलायां बाहुबलो विनिर्मित धर्मचक्रम · विविध तीर्थ कल्प पृष्ठ 75 6 ]
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आक्रमण के शिकार हो गये। यही कारण है कि डेरागाजीखान क आगे के भाग में दिगम्बर जैनौ कि बस्तिया नहीं के बराबर मिलती है । इसलिये यह कहना कि मुलतान मे ओसवाल जैन बारहवी शताब्दी मे आकर बसे, सत्य प्रतीत नहीं होता।
मुलतानवासी दिगम्बर जैनो मे धार्मिक जाग्रति, आध्यात्मिकता, के प्रति प्रेम प्रेम एव दिगम्वरत्व के प्रति कट्टरता रही है । वहा के प्राचीन किले मे मन्दिर होना तथा उसमे सवत 1481, 1502 एव 1548 की मूर्तिया उपलब्ध होना तथा 1548 वाली मूर्ति के चमत्कारो की कहानी इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि मुलतान मे दिगम्वर धर्म के अनुयायी अच्छी सख्या मे थे और केवल ओसवाल जाति के थे। महाकवि बनारसीदास की अध्यात्मिक लहर का सबसे अधिक स्वागत मृलतान के दिगम्बर जैन समाज ने किया । आगरा के जैन समाज की तरह वहा भी आध्यात्मिक शैली स्थापित की गयी। जिसमे समयसार नाटक, प्रवचनसार जैसे ग्रन्थो का स्वाध्याय एव उस पर चर्चा होने लगी। प० नाथूराम प्रेमी ने भी लिखा है कि "मुलतान शहर आध्यात्मिक था जो वनारसीदास के अनयायियो का प्रमुख स्थान रहा है । यहा के ओसवाल श्रीमाल इसी मत के अनुयायी रहे है ।" "लेकिन हमारी मान्यता यह है कि यहा के ओसवाल परिवार दिगम्बर जैन थे। उस समय मे मुलतान में विहार करने वाले श्वेताम्बर साधु भी आध्यात्मिक बन गये थे तथा दिगम्बर ओसवाल भाईयो के साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा किया करते थे।
बनारसीदास का समय सवत 1700 के पूर्व का रहा है। सवत 1693 में उन्होने समयसार नाटक को पूर्ण किया और उसके पूर्ण होते ही सारे देश में इसका स्वाध्याय होने लगा । आगरा से वह लहर एक ओर मुलतान को भी पार कर डेरागाजीखान तक पहुची तो दूसरी ओर आमेर, सागानेर कामा मे अध्यात्म शैली स्थापित की गयी। फिर क्या था । सारे मुलतानी फिर चाहे वे दिगम्बर ओसवाल हो या श्वेताम्बर, अध्यात्म रस के रसिक बन गये । श्वेताम्बर साधुओ ने भी समयसार नाटक बनारसी विलास जैसे ग्रन्थो की प्रतिलिपिया करके उनके प्रचार प्रसार मे वहुत योग दिया । बनारसीदास के समय में ही लिखी हुए एक तारातबोल की पत्रिका मिलती है जिसमे मुलतान निवासी ५० बनारसीदास खत्री ने देश देशान्तरो की यात्रा की ओर वहा से वापिस आने पर उसने अपनी यात्रा का जैसा वृतान्त सुनाया वैसा ही पविका मे लिपिवद्ध कर दिया गया। पत्रिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है । सवत 1714 की समयमार नाटक की प्रतिलिपि मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर मे संग्रहित है । उस समय श्रावक चाहडमल, नवलखा वर्द्धमान, करमचन्द, जेठमल, ऋपभदास आदि अनेक दिगम्बर श्रावक अध्यात्म रस के रसिक बन गये थे और सवत 1722 में उन्ही के आग्रह से प्रबोध चिन्तामणि चौपाई एव योगशास्त्र चौपाई की रचना की गयी थी।
वर्धमान नवलखा
मुलतान मे अनेक विद्वान भी थे। इनमे वर्धमान नवलखा का नाम उल्लेखनीय है। ये पाहिराज के पुत्र थे तथा वर्धमान के साथ साथ वत भी उनका नाम था। ये ओनवाल
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दिगम्बर जैन श्रावक थे तथा नवलखा इनका गौत्र था | सवत 1746 माघ सुदी पचमी के शुभ दिन इन्होने वर्धमान वचनिका की रचना की थी जिसकी प्रतिलिपि चैत्र सुदी 1 स० 1747 को विशालोपाध्याय गणि के शिष्य ज्ञानवर्धन मुनि द्वारा मुलतान नगर मे ही की गयी थो । ग्रन्थ की प्रशस्ति में सर्वप्रथम वनारसीदाम को धर्माचार्य एव धर्मं गुरु के नाम से सम्बोधित किया है जिनके प्रयास से इन्होने आचार्य कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र, एव प० राजमलजी का उल्लेख किया है और उनके ग्रन्थो की प्रशसा की है तथा इन आचार्यो की स्याद्ववादमय वचन मे श्रद्धा करने को कहा गया है । इसी तरह चतुविध सघ स्थापना मे दिगम्बर धर्म की प्रशंसा की है तथा उसे ही मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया गया हे ।' सम्वत 1750 में मुलतान मे प० धर्मतिलक ने नाटक समयसार की स्वाध्याय के लिए प्रतिलिपि की थी। इसी पुस्तक के एक दूसरे उद्धरण से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि वर्धमान नवलखा बनारसीदास का कट्टर भक्त हो गये थे जिन्होने भेद विज्ञान बतलाया था । उन्होने मुनि दयासागर की भी प्रशंसा की है तथा उन्हे सच्चा
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धरमाचारिज धर्मगुरु, श्री बनारसीदास । जासु प्रसादें में लहयो, आतम निज पदवास ॥11॥
बंदू हूँ श्री सिद्धगण, परमदेव उतकिष्ट । अरिहंत आदि ले धार गुरू, भविक मांहि ए शिष्ट ॥12॥
संबहू
के सिरताज ॥13॥
परम्परा ए ग्यान को, कुंदकुंद मुनिराज । अमृतचन्द्र राजमलजी, ग्रन्थ दिगम्बर के भले, भीष ( 1 ) सेताम्बर चाल । अनेकान्त समझे भला, सो ज्ञाता की चाल ॥4॥
स्याद्वाद जिनके वचन, जो जानै सो जान । निश्च व्यवहारी आत्मा, अनेकान्त परमान ॥5॥
अब चतुविध संघ स्थापना लिख्यते साध्वी 1 श्रावक 2 श्रविका 3, अंबरसहित जाणवा 1 जघन्ये
श्वेताम्वर होवे । श्वेताम्बर होवे ।
साध लज्या जीत न सके तिणवास्ते साधवी पण निस्संकिता अंगरै वास्ते उतकृष्टा मुनीस्वर 6 गुणठाणे आदि ले केवली भगवंत सीम दिगंबर परम दिगबर होवे । परम दिगबर छँ तिको मोक्षसाधनरो अंग छै । भावकर्म 1. द्रव्यकर्म 2 नोकर्म ३ री त्यागभावना भावै । मेष भाव जिसो हुवं । परम दिगम्बर मोक्ष सार्धं । दिगम्बर मुनीस्वर ओलखवारो लिंग जाणवौ । इतरी चौथे आरेरी बात लिखी है । जिआं मुनीस्वरांरा संघयण सबला हुता ताहिवै पाचमा आरारी लिख्यते । अर्थ कथानक पृष्ट 109
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साधु बतलाया है क्योंकि वे सदैव अध्यात्म ग्रन्थों का स्वाध्याय करने लगे थे । और क्योकि स्वय वर्धमान आत्मज्ञानियो के दास थे इसलिये वे उनके लिए सच्चे मुनि थे। उनकी सैली मे धरमदास, मिठ्ठ, सुखानन्द, नेमिदास, शान्तिदास आदि साधर्मी जन भी थे। इस शैली का नाम अध्यात्म सैली था।
अध्यातम सैली मन लाय, सुखानन्द सुखदाइ जी।
साह नेमिदास नवलखा ने सवत 1761 मे अपने पुत्र के पढने के लिये पंचास्तिकाय भाषा पाण्डे हेमराज कृत की प्रतिलिपि लघु वजीरपुर मे करवाई थी। प्रतिलिपिकार थे मोहन, जो जैन थे। प्रस्तुत पाण्डुलिपि मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर के शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है।'
अध्यात्म शैली क दूसरे सदस्य मिठ्ठमल थे जो पहले बीकानेर के रहने वाले थे। उन्ही के पुत्र श्री सूरजमल के पठनार्थ सवत 1761 मे प्रवचनसार भाषा हेमराज कृत की प्रतिलिपि मुलतान नगर में की गयी थी । प्रतिलिपि करने वाले थे
जिनधरमी कुलसेहरो, श्रीमालां सिगणार । वाणारसी बहोलिया, भविक जीव उद्धार ॥1॥ बाणारसी प्रसादतै, पायो ज्ञान विज्ञान । जग सब मिथ्या जाणकरि, पायी निज स्वथान ॥2॥ वाणारसी सुपसाय ले, लाधो भेद विज्ञान । परगृण आस्यां छेडिके, लीजे सिव की थान । दयासागर मुनि चूप वताई, बद्ध के मन साची आई। दयासागर साचो जती, समझे निज नय संग। अध्यातम वाचै सदा, तजो करम को रंग ॥3॥ पाहिराज साहिको सुतन, नवलख गोत्र उदार आतम ज्ञानी दास हैं वर्धमान सुखकार ॥4॥ धरमदास आतम घरम, साचो जग में दीठ ।
और धरम भरमी गिणे, आत्म अमोसम सीठ ॥5॥ 2. संवत् 1761 वर्षे मिती फागुण सुदी 3 तिथौ बहस्पतिवारे रेवती नक्षत्रे श्रीमन्मूल
त्राण नगरे पं० श्री श्री वीरदास जी तत् शिष्य मुख्य पं० विमलदास लिपिकृतम् बीकानेर वास्तव्यं भडसाली गोत्रे सा० श्री मिठूमल जी तत्पुत्र सूरजमल जी पठनार्थ ।
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प० वीरदास के प्रमुख शिष्य विमलदास । मिट्ठूमल भडसाली गोत्र के दिगम्बर जैन श्रावक थे । संवत 1770 मे मुलतान में ही उन्होने ब्रह्म विलास की प्रतिलिपि करायी थी जिसमे साह श्री मिट्ठूमल को जिन धर्मदीपक, शुद्धात्म स्वरूप सवेदक की उपाधि से अलकृत किया है ।
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अध्यात्मी श्रावक चाहुडमल जिसके लिए सुमतिरग ने सवत 1722 मे प्रवोध चिन्तामणि चौपाई एवं योगशास्त्र चोपाई की रचना की थी वह चाहुडमल खेचादेश में उत्पन्न हुए थे । वे श्रावक थे, पुण्यप्रभावक एव देव शास्त्र गुरु के भक्त थे । उनके पुत्र साह लीलापति थे जो भी आध्यात्मिक चर्चाओ मे विशेष रूचि लेते थे । उन्होने अपने पढने के लिये संवत 1750 कार्तिक शुक्ला पचमी के शुभ दिन धर्म चर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराई थी ।प्रतिलिपि करने वाले प० राजसी थे जिन्होंने मुलतान मे ही धर्मचर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि की थी । उसके पश्चात् मुनि मेरुगणि के शिष्य स्थिर हपंगणि तथा उनके शिष्य पं० प्रवर श्री कीर्तिसोभाग्यगणी के भी शिष्य पं० रत्नधीर ने प्रतिलिपि की थी।± संवत् 1753 मे फिर साह लीलापति के पढने के लिये मुलतान नगर में ही वचनसार की प्रतिलिपि की गयी । प्रतिलिपि करने वाले प खेमचन्द के मुख्य शिष्य पं० अजैराज थे जो मुलतान निवासी ही थे ।
इसी चाहुडमल के दूसरे पुत्र थे साह भैरवदास । वे भी अध्यात्म प्रेमी श्रावक थ । उन्होंने अपने लिये संवत 1748 में बनारसीदास विलास एवं समयसार नाटक की प्रतिलिपि कराई थी । * एक दूसरी प्रशस्ति में भैरवदास के पुत्र भोजराज भेलामल्ल का उल्लेख आया है । उनके स्वाध्याय के लिये "चतुर्विंशति जिनचरण गीत" की इसी सवत
1. संवत् 1770 मगसिर सुदी 13 दिने पुस्तकमिदं लिपिकृतं मूलस्थाने शुभं भवतु । ब्रह्मविलास पत्र स० 258 उसवाल जातीय श्री जिनधर्मोपदीपक शुद्धात्मस्वरूप संवेदक भरणशाली गोत्रे साह श्री मिट्ठूमल जी ने लिखाया है। श्री जिनायनमः ।
2. संवत् 1750 वर्षे कार्तिक मासे शुक्ल पक्षे पंचमी तिथौ धर्म चर्चा लिखित
श्रावण पुण्य प्रभावक देव गुरु भक्तिकारिक सुभासिरिंग गारकरा चेखा को साह चाहडमल्ल जी तत्पुत्ररत्न साह श्री लीलापति जी वाचनार्थ प० राजसी लिखायते श्री मोलित्रारण मध्ये लिखतम् ।
3. संवत् 1753 वर्षे शाके मिति आषाढ सुदी दिने तिथौ शनिवारे पुष्यनक्षत्रे श्रीमान मूलत्रारण नगरे पं० श्री श्री खेमचन्द जी तत् शिष्य मुख्य प० श्रजैराज जी लिपिकृतम् । राखेचा गोत्रे सा० श्री चाहुडमल जी तत् पुत्र सा० श्री लीलापति जो ॥ 4 सवत् 1748 वर्षे शाके 1613 मगसिर मासे शुक्लपक्षे बीजतिथौ लिखिता जसेजा साह भैरवदास जी पठनाय शुभं ।
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म प्रतिलिपि कराई गयी थी । प्रतिलिपि करने वाले स्थिर हर्षगणि के शिष्य एव कीर्तिसौभाग्यगणि के शिष्य प० खेतसी थे ।
मुलतान नगर मे ही श्राविका माणिकदेवी भी सुशिक्षित महिला थी । वह भी अध्यात्म ग्रन्थो के पठन पाठन मे रुचि लेती थी । श्राविका माणिकदेवी ने समयसार नाटक अपने स्वाध्याय के लिये सवत 1778 आसोज सुदी 11 को उपाध्याय देवधर्मंगणि से लिखवाया
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धर्मचर्चा ग्रन्थ को लिखाने वाले सोमजी साह के सुपुत्र के श्रावक गंगाधर । इन्होने भैया भगवतीदास के ग्रन्थ "ब्रह्म विलास " की सवत 1797 मे प्रतिलिपि करायी थी । सोमजी एव गंगाधर कनोडा गोत्र के श्रावक थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि सवत् 1700 से 1800 तक मुलतान एव उसे बाहर अन्य नगरो मे ग्रन्थो की प्रतिलिपिया करवाने का क्रम बरावर जारी रहा जो मुलतान निवासियों के स्वाध्याय प्रेम का स्पष्ट द्योतक है ।
अमोलका बाई
प० वर्धमान नवलखा स्वयं तो पडित थे ही उनकी पुत्री अमोलका बाई भी सुशिक्षित स्वाध्याय प्रेमी एव कवयित्री थी । अपने पिता के समान उन्हे साहित्य रचना से प्रेम था । लेकिन पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मोदय से वह छोटी अवस्था मे विधवा हो गई । पति के स्वर्गवास के पश्चात जब एक ओर कुटुम्वी जन शोक सतप्त थे तथा हार्दिक दुख प्रकट कर रखे थे उस समय अमोलका बाई ने ससार की असारता पर विचार करते हुए शोक नही किया किन्तु अत्यधिक शान्ति एव धैर्य के साथ स्वपर कल्याण के लिये बारह भावना, वासा, वधावा आदि छोटी कविताए निबद्ध करती रही। जिनका प्रकाशन मुलतान समाज की ओर से " जैन महिला गायन" नामक एक लघु पुस्तक के रूप मे वीरनिर्वाण सवत् 2462 मे कराया गया था । पडित अजित कुमार जी शास्त्री ने इस पुस्तक का सम्पादन किया था ।
1-बासा
इसमे 26 पद्ध है जिनमे 24 तीर्थकरो के माता-पिता, आदि का परिचय है । बासा की भाषा वडी सरल एव मधुर है । बासा मे मुलतान एव डेरागाजीखान का भी जगहजगह उल्लेख किया है तथा वहा के मन्दिरो की प्रतिमाओ का वर्णन मिलता है । उसमे
1. संवत् मूसर रिषीदु वर्षे 1748 मार्गसिर मासे कृष्ण पक्षे द्वितीया कर्मवास्यां भृगुवासरे वाचनाचार्य वर्षधुप्ये श्री श्री 108 श्री श्री स्थिरहर्षगणी वराणां तशिष्य पण्डित श्री कीर्ति सोभाग्यगरणी तत् शिष्य पंडित नेतसी एतत् पुस्तिका
तास्ति । राखेचा गोत्रे साह श्री चाहुडमल्ल जी तत्पुत्र साह श्री भैरवदास जी तत्पुत्र भोजराज भेलामल्ल वाचनार्थ ।
2- समयासार नाटक - लिपि संवत 1778 आसोज बुदी 11 उपाध्याय श्री देवधमंगणि ते श्राविका श्री माणिकदेवी जी पठनार्थ लिखा ।
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वहा की अध्यात्म शैली का भी वर्णन किया है। 'वासा' मूल रूप मे पाटको के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। नाभि राजा मरुदेव्या रानी, जिन माता जन्म्यो श्री आदिनाथ स्वामी ।
आदिनाथ स्वामी सब कर्म खिपायो, जुगल्या बुद्धि मेटी जिन धर्म बतायो ।१॥ जित शत्रु राजा विजया देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री अजितनाथ स्वामी।
अजितनाथ स्वामी इक शुद्ध रस लोधा, समरस भावे अष्ट कर्माने जीत्या ॥२॥ दृढराज राजा सुसेना देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री संभवनाथ स्वामी।
संभवनाथ स्वामी निज अनुभव रसिया, सुख अनन्त मे अह निश लसिया ॥३॥ स्वयम्बर राजा सिद्धार्था रानी, जिन माता जन्म्यो श्री अभिनन्दन नाथ स्वामी ।
अभिनन्दन नाथ स्वामी अभय पद लीधा, राग द्वेष सब दूरे कीधा ॥४॥ मेघरथ राजा मंगला देवी रानी. जिन माता जन्म्यो श्री सुमति नाथ स्वामी।।
सुमतिनाथ स्वामी सुमति के दाता, भाव सु परन्यो सम्यक ज्ञाता ॥५॥ धरण राजा सुसीमा देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री पद्मप्रभ स्वामी।
पद्मप्रभ स्वामी जी पद्म सुभावे, सहस्त्र सागर वय सु प्रभावे ॥६॥ सप्रतिष्ठ राजा पृथिवी सेना रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री सुपारशनाथ स्वामी।
सुपारशनाथ स्वामी जी अन्तरयामी, कर्म क्षिपाये पंचम गति प्रानी ॥७॥ महासेन राजा सुलक्षणा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री चन्द्र प्रभु स्वामी।
चन्द्रप्रभ स्वामी जी को अमृत वानी, सुनत्या सुख पावे जे पण्डित ज्ञानी ॥८॥ राजा सुग्रीव जया रामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री सुविधिनाथ स्वामी।
सुविधिनाथ स्वामी नमो जिनदेवा, इन्द्र नरेन्द्र करें सब सेवा ॥६॥ हढरथ राजा सुनन्दा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री शीतलनाथ स्वामी।
शीतलनाथ स्वामी समोशरन विराजे, वाणी सुनत्यां मिथ्या मल भाजे ॥१०॥ विष्णु राजा नन्दा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्रेयांस नाथ स्वामी।
श्रेयांसनाथ दोष अष्टदश रहिता, गुण छयालीस सु प्रभु जी सहिता ॥११॥ वासुपूज्य राजा जयावती रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री वासपूज्य स्वामी।
वासुपूज्य स्वामी जी के दर्शन पावे, वैर विरोध सभी नश जावे ॥१२॥ कृत वर्म राजा जयभामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री विमलनाथ स्वामी।
विमलनाथ स्वामी का निर्मल ध्याना, लोक अलोक प्रकाशक ज्ञाना ॥१३॥ सिंहसेन राजा जयश्यामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री अनन्तनाथ स्वामी ।
अनतनाथ स्वामी नत चतुष्टय धारी, कर्म निसकता अनन्त बल धारी॥१४॥ भानु राजा सुप्रभा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री धर्मनाथ स्वामी ।
धर्मनाथ स्वामी जी धर्म बताया, वस्तु सभावे जिन रचना दिखलाया ॥१५॥
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विश्वसेन राजा ऐरा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री शान्तिनाथ स्वामी ।
शान्तिनाथ स्वामी नमो जिन ध्याइये, विकलप मेटि शांत रस पाइये ॥१६॥ सूरसेन राजा कांता देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री कुंथुनाथ स्वामी ।
कुंथुनाथ स्वामी के चरणां मै बन्दू, चिर संचित सब पाप निकन्दू ॥१७॥ सदर्शन राजा मित्रसेना रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री अरनाथ स्वामी ।
___ अरनाथ स्वामी ने अरि सब जीते, कर्म समाधि सुख मांहि लीधे ॥१८॥ कुम्भ सु राजा पद्मावती रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री मल्लिनाथ स्वामी ।
मल्लिनाथ स्वामी जी बालब्रह्मचारी, पुरुष शिरोमनि आनन्द बलधारी ॥१६॥ सुमित्र राजा सोमा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो मुनि सुब्रतनाथ स्वामी।
___ मुनि सुव्रतनाथ स्वामी मनसूधे जी ध्याइये; संसार सागर ते पार जु पाइये ॥20॥ विजय सेन राजा विप्रा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री नमिनाथ स्वामी।
नमिनाथ स्वामी के चरणां पूजे, नव अविकारी नव लाहो लीजे ॥21॥ समुद्र विजय राजा शिवादेवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री नेमिनाथ स्वामी।
नेमिनाथ स्वामी जी के नव अविकारी, सहस्र सरोवर सखी राजुल नारी ॥22॥ अश्वसेन राजा वामा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री पारशनाथ स्वामी।
पारशनाथ स्वामी का बिम्ब सोहे मुलाताना,मिथ्या रजनी दूर करवे को भाना॥23॥ सिद्धार्थ राजा त्रिशाला देवी रानो, जिनमाता जन्म्यो श्री महावीर स्वामी ।
___ महावीर स्वामी जी ना धर्म पालो, मोक्षमार्ग जो सीधा भालो ॥24॥ ये चौवीस जिनवर करूं परिणामा, ये चौबीस जिन उत्तम ठामा।
ये चौबीस जिन केवल ज्ञाना, ये चौबीस पहुँचे निर्वाना ॥25॥ 1 बधावा
इसमे पाच वधावा है जिनमे भगवान की पूजा एव भक्ति करने की प्रेरणा दी गयी है। मुलतान नगर मे पार्श्वनाथ स्वामी की मूलनायक प्रतिमा की अधिकाश बधावो मे स्तुति की गयी है। इससे स्पष्ट है कि अमोलका बाई भक्त कवयित्री थी। वे मुलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर मे विराजमान पार्श्वनाथ स्वामी की पूर्ण उपासिका थी तथा उन्हें मूर्ति के अतिशय मे विश्वास था।
(1) व्यन्तर भवना ज्योतिषी, वैमानिक तिर्यंचो जिनवर पूर्जे जी भावसू।
__अष्टापद आदिनाथा पूजसा भावसू, चंपापुर वासुपूज्य देवा सु भावसू। सम्मेदशिखर जिन पूजसां, तहां बीस तीर्थङ्कर पूजू भावसू ॥१॥
गिरनार पै नेमिनाथ पूजसां, पावापुर महावीर पूजू भावसू । मुलतान श्री पारशनाथ पूजसां, इह देव दिगम्बर पूजू जी भावसू ॥२॥
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पंच महाविदेह जिन पूजसां, इह विहरमान वीसूजिनवर पूजूजी भावसू। पंच महाविदेह गुरु वदसां, आचारज उवझाय भावसू ॥३॥
इह पंचदश करम भूमिने वदो, साधु निरग्रन्था जिनवर पूजी भाव सू। वदो साधु निरग्रन्था, जिनवर पूजू जी भाव सू ॥४॥
धन धन जिनवर धर्म वताया, चौवीस तीर्थकर मुक्ति सिधाया।
धन धन जिनवर .. • • • .. पच कल्याणक शत इन्द्र पाया; विनय सूविधि करी जय 2 थाया। धन धन जिनवर ॥१॥ उत्पाद व्यय ध्रौव्य सर्व बताया; द्वादश अग में गणवार गाया। धन धन जिनवर ॥२॥ षट् द्रव्य नोतत्व मेद समझाया, श्रावक मुनिवर लिंग जनाया। धन धन जिनवर ॥३॥ देव धरम गुरुतत्व सुनाया, भव्य जीवां सुन समकित पाया। धन धन जिनवर ॥४॥ सम्यक दर्श ज्ञान चरित कहाया, नेक जानहिय ध्यान लवलाया। धन धन जिनवर ॥५॥ वचन अनक्षर अमत पिलाया, जरा मरन मिटा, सुख सवाया। धन धन जिनवर ॥६॥ चौवीस तीर्थकर मुक्ति सिधाया, धन धन जिनवर धर्म बताया। धन धन जिनवर ॥७॥
(3) मुलतान नगर में चैत्य जिन शोभे, जिसमें अचल बघावन ।
तेवीसमो जिन बिम्ब विराजे, समोसरन सू सावन ।। नर नारी मिल वन्दन पावें, बलि धारो मन भावन ।
तीन प्रदक्षिण भावसू दीजे, आठ अंग भूमि लगावन ।। प्रष्ट प्रकारी सदा होवे पूजा, नित्य होवे पूजा ।।
सदा होवे पूजा, करत महा भविजन प्रारती । प्रारती करतां पाप सब जावें, दोष सब जावें, गीत गाओ भले भावसू।
जिनवर वारणी अर्थ विचारो, पढो सुनो भवि जन भला, मिथ्या मतादूर निवारो, दिन दिन यश प्रति को करन । दिन दिन यश अति की करन ।
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देवा पूजन रो चाव हो, हम अष्टापद में जायस्यां जी।।
मायारी मरुदेव्या जी रो पुत्र हो, हम प्रादिनाथ देव जुहारस्यां जी हम पहले गमत्यां पूजसा जी, देरा पुजन रो चाव हो ॥१॥
___ हम चम्पापुर में जायस्यां जी, माया जयावती रो पुत्र हो । हम वासुपूज्य जुहारस्यां जी, हम पहले गमत्यां पूजस्यां जी।
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हम शिखर सम्मेद में जायस्यां जी, माया री सुहावा जी रो पुत्र हो। हम बीस तीर्थकर पूजस्यां जी, देवा पूजन रो चाव हो ॥२॥
हम गढ गिरनार जी जायस्यां जी, माया री शिवा जी रो पुत्र हो। हम नेमिनाथ देव जुहारस्यां जी, हम पहले गमत्यां पूजस्यां जी,
___ हम पावापुर मे जायस्यां जी, माया री त्रिशला जी रो पुत्र हो । हम वर्धमान देव जुहारस्यां जो, हम पहले गमत्यां पूजरया जी,
हम गढ़ मुलतान मे जायस्यां जी, माया री वामा जी री पुत्र हो। हम पारसनाथ देव जुहारस्यां जी, हम पहले गमत्यां पूजसा जी,
हम पंच महाविदेह जायसां जी, माया री सुहावा जी रो पुत्र । हम विहरमान वीसो वंदसां जी, हम पहले गमत्यां पूजसा जी
हम पंच महाविदेह जायसां जी, माया री सुहावा जी रो पूत । हम आचारज गुरु वंदसां, हम उपाध्याय गुरु वंदसां जी,
हम पहले गमत्यां पूजसा जी, हम करमा भूमि जायसां जी, मायारी सुहावा जीरो पूत । हम गुरु निरग्रन्थ वन्दसां जी, हम पहले गमत्यां पूजसां जी।
(5) सखी डेरे दिगम्बर सैली मे मंगल । पहले बधावे पंच पद नमो, जिस नमत्यां ये लखिये पंच पद सार। मोह मिथ्यात डेरे होवे; ज्ञान लायरो केवल सिद्धकार
सखी डेरे दिगम्बर बीजे बधावे जिन बिम्ब नमू, कृताकृत्रम ऐ तीनो लोक मई सार।।
सुर नर पूर्जे भावसू, जिन पूजें सदा जय जयकार । सखी डेरे दिगम्बर . . अगले बधावे जिनवाणी नमो, वाणी सुनत्यां भवि जना, पालो सखी सत तत्व । सहिते षद्रव्य नव पदा, हो लखिये उपाध्याये लहिये निर्मल बोध ॥३॥
सखी डेरे दिगम्बर मोय ये भव भव सुखकार, सखी जी का उत्तम ऐ अच्छो चारो सरना, जव सज सभान ॥४॥ सखो डेरे दिगम्बर सैली में मंगल हो । पचवें वधावे रत्नत्रय नमो,
वैवर निश्वय ऐ सदा, उपाध्या भारषट् सिर्फ विवेकी प्रानिया, भेदाभेद ए निज वस्तु निहार । सखी डेरे दिगम्बर
छठे बधावे श्रावक श्राविका, नित वदये एकेदश विधि धार । सखी चारो विधि दान जे करें, लाभो ऐ जैसे शुद्ध प्राचार। सखी डेरे दिगम्बर सखी सातवें बधावे भो भावना, भावन भाताऐ भवि जन भलो। सखी सरफ दिवस मुझ आज है, ऐ गुण गावे ऐ मैं अपने काज ॥७॥
सखी डेरे दिगम्बर .
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बारह भावना यह अमोलक बाई की अच्छी कृति है जिसमे प्रत्येक भावना का अलग वर्णन किया गया है । बाई जी जगत से सर्वथा उदासीन हो चुकी थी इसीलिये प्रत्येक भावना के वर्णन मे कवयित्री ने अपना हृदय खोलकर ही रख दिया है। भापा बहुत सरल एव मधुर है । कही-कही कवयित्री ने अपना परिचय देते हुए "वर्द्धमान जी पडित विचारी तास सुता गुण गावे" पक्तिया लिखी हैं।
बारह भावनाओ के अन्त मे अमोलका बाई ने महाकवि बनारसीदास एव पडित राजमल को ज्ञानदाता के रूप में स्मरण किया है तथा अपने पिता वर्द्धमान को धर्मसन्त की उपाधि दी है जिसने स्वाध्याय की प्रेरणा दी तथा सस्कृत का ज्ञान कराया। शुद्ध सरूपे परनये ते परमातम जान । प्रातमभावना हूँ नमूभाव भगति उर पान ॥१॥ जिनवाणी सरसुति नमू, बिजिये सास्वति माय ।
भविक लोक में हित बनी जयवन्तो जग माहि ॥२॥ गुरुजन चरण कमल नमू, तिन मुझ कियोरे प्रकाश ।
प्रातम मुझ संतोषियो, अमृत वचन रसाय ॥३॥ मै बालक मतिहीन हूं वेद नहीं मुझ पास । बारह भावन भायसां पडित करें न हास ॥४॥ रस मई रचना कविकला, ते नाहीं मुझ शुद्ध । सीमन्धर परसादतै प्रगटी निर्मल बुद्ध ॥५॥ चंचलता मनते हरो, संकलप विकलप दूर । ध्यान निरंजन प्रातमा, ते आपा भरपूर ॥६॥ दान शील जप तप किया, कर कर नाना भेय ।
प्रातम शुद्ध प्रगटयो नही, किम संसार तिरेय ॥७॥
अनित्य भावना ये तो जिनवर प्राज्ञा लेवोरे प्राणी पहली भावना भाय, नित्य सदा ए सासतारे अविनाशी अविकार, निश्चय नयकरि प्रातमा रे भेद नहीं लगार ॥१॥ प्राणी पहली भावना भाय । ये संसार सदा सासता रे दरबित नय करि जानि । परजाय नय तै परिनमै, ऐसी जिनवर वानि ॥२॥ प्राणी पहली भावना माय । माता पिता सुत कामिनी रे परिजन सो परिवार, करम उदय प्रावी मिला रे अन्त होय सब छांड ॥३॥ प्रारणो पहली भावना भाय । परिग्रह दस परकार नी रे, वल नोकर्म शरीर, छिन २ आवे छोजतो रे, जैसे अंजलि नीर ॥४॥ प्राणी पहली भावना भाय।
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दर्शन ज्ञान चरित्र मांहिरे, अनुभव एक रस लीन, भेद विज्ञानी जे लखे रे ते ज्ञाता परवीन ॥५॥ प्राणी पहली भावना भाय । पांचो द्रव्यन तै जुदा रे, चेतन उपयोग शुद्ध । राग द्वष पुद्गल तजो रे प्रगटे निर्मल बुद्ध ॥६॥ प्राणी पहली भावना भाय । एकै मनमे किल वसरे, ध्यान पर विषय विकार । श्री योगीन्द्र बखानिया रे, बे खांडे की धार ॥७॥ प्राणी पहली भावना भाय ।
अशरण भावना एक जी प्रातम मेरा, शरना कोई नही तेरा। शरन कोई नही तेरा एक जी आतम मेरा ॥ जन्म मरण चेतन मे नांहीं, ऐसी विधि कर ध्यावो,
एक अरूपी ज्योति सरूपी, निश्चय नय करि पावो ॥१॥ सुख दुख कर्म उदयवश भोगे, सब संसारी प्रारणी।
कर्ता हर्ता कोई न किसका ऐसी जिनवर वारणी ॥२॥ परुषोत्तम अंत केवल ज्ञानी, तिन प्रशरन पद लीधा।
मै मूरख मतिहीन हूं ज्ञानो वल जो कच्चा हीया ॥३॥ विषय कषाय इक त्यागी प्राणी, रागादिक निरवारी।
उदासीन भावना नित भावें, ते ज्ञाता अधिकारी ॥४॥ मन बच काया पुद्गल छाया, निज सरूप मत ध्यावो ।
एक अरूपी ज्योति स्वरूपी, निश्चय नय करि पायो ॥५॥ चरम संहनन दुषमा काले, ध्यान कहां से ध्यावे।
निकट संसारी कर्म विडारी, महा विदेह ते पावें ॥६॥ वर्द्धमान जी पंडित विचारी तास सुता गुण गावे ।
अशरण भावना बीजी भावे, पातम रुचि मन लावे ॥७॥ आतम मेरा सरना कोई नहीं तेरा।
संसार संसरण ते ससार, चेतन पुग्दल मय भ्रन्यो। व्यवहार नय इमि जान, निश्चय निज निज गुण रभ्यो ।।1।। संसार अर नव माय, तरवा सम उद्यम धरो, जिम छाए दुख नास, शिवरमणी सनमुख वरो ।।2।। पांच प्रकार ससार, वार अनन्ता मै लिया। विन सुध आतम भाव, अजथारय बुद्धि सू चाह्या ।।3।। द्रव्य क्षेत्र काल भव भाव, पंच भेद जग जानिये। इनसे रहो रे उदास, शुद्ध आत्म नन आनिये ॥4॥ आप सरूप मे जान, पर बुद्धि मे नहीं लीनता । स्यादवाद परमान, शिवपद साधे धीमता ॥5॥
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अविरत समकित धार देशव्रती वखानिये । मुनिवर दोय प्रकार, निज निज भेद वखानिये ॥6॥ ये ही साधक जीव, ते साधे शुद्ध आतमा । सम्यक भेद अनेक, सर्व ज्ञान परमातमा ॥7॥
एकत्व एकत्व भावना भावियारे लाल, कर कर्म ते खीन रे सुभागी, मन विच काया थिर करी रे ले आतम गुण लीन । शुद्ध आतम ध्यावता रे लाल, ते कर कर्मन खीनरे । नय निक्षेप तहाँ नहीं रे, न व्यवहार को भेद, त्रय गुण आतम एकता रे, गये शुभाशुभ खेद रे सुभागी। चेतनता प्रगटी थई रे, ज्ञान गुरणे कर वीर, समरथ भाव भरी रे, अर ला निरजन पद धीर । एकत्व भाव करि तरया, आगे जे सरवंग रे। सुभागी वे तो महाविदेह मे, लीजा छ निज रग रे सुभागी चिदानन्द परमातमा रे, ध्यावै छे मुनि जे रे, सुभागी जो नर निश्चय पावसी; लहे अभय पद जीव रे सुभागी। निरविकल्प समाधि मे रे, स्वासन वेदन शुद्ध, श्री वीतराग सुधारसी रे, प्रगटिये निर्मल बुद्ध । ज्ञान गम्य सबगुण अच्छे रे सम्यक धारी जोग, अज्ञानी जाने नहीं रे, कर्म उदय वस भोग । सुभागी गुण अनन्त अपार छ रे, बुद्धि नहीं कहू केम, श्री जिन वचन प्रसाद ते रे, धर्म ऊपर छे प्रेम । वर्द्धमान सुता दीपता रे तीन रतन परधान, इस भावना को चिन्तवो रे कब पाऊ निर्वान । एकत्व भावना भाविया रे लाल, कर कर्म ने खीन रे। सुभागी
अन्यत्व अन्यपने जिया जगमे डोल्यो त जाणे विरला कोय। काललब्धि पाय भविजना सम्यकधारी होय। निश्चयनयतीन काल मे, ते आतम एक स्वभाव जी। पर जाये चहं गति भ्रम्यो, पण न गयो पर भाव जी। जीव स्वभाव रागादिक नाहीं ते मूढमति धर भ्रम्योजी एक स्वभाव करीने मानो ते उदय महाबल कर्म जी । चेतनरूपी ते अलख अरूपी ते ज्ञान सरूपी जान जी। तीन कर्म ते भिन्न पिछानो ते सुख दुख मन मत आनोजी
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दिन दिन निज गुणवद्ध अधिकारी मोहमिथ्यात निकंदजी, एही रीति जथा घट मांही जैसे दुतिया चन्द्र जी । शुद्ध सरूप मे लीन त नाही तबै उपाधि ये विचारजी परम समाधि प्रगट सुख पाया ते ज्ञाता हितकार जी अन्यत्व भावना एही बखानी ते आतम पर उपकारजी सुनोरे प्राणी ते मोक्ष निशानी ते पुग्दल प्रीति निवारजी । अशुचि
शुचपने शरीरा नख शिख सहित परमातमा । सात धातु करि धारया इनसे धरो मत राग । क्षणभंगुर अष्ट कर्मकरि धारया ।
चूरा चन्दन चम्पा वेला वलिए जे शुभ द्रव्या, इन सग कर मल जानिये ।
छट के दिखावो छेला चेतो चेतन, दुर्जन सग बखानिये ।
न्हावण धोवण नित मर्दन अति घना, फूल केशर सिगारिये सिगार बनायो नित्य । विषय रस लोभिया चहुँ गति दुख वधाविया, रोग शोक दुख नाना ।
झरा कर झर झारा । जन्म मरण चहू गति कीता नोको निर्मल देह ||
घट मे सोधे जो, साध सिद्ध पणे लह्या, प्या नहीं धम लाओ लेसा ।
मूढ मति न्यारा, त्यो तन छय छाड्या जी । शरण पर रहो धर्मात्मा, लखे जे शुद्ध माटी आत्मा जो बै आतम आरसी, क्रिया करत शठ घोरा । बाहर शुचिपणे, कर्म विपति फांसे मे पडा ।
देह देवल देवाभिन पूजू भावसू । व्यवहार साधे जिया क्रिया, ममता मदिरा रेता । सम्यक्त झूले से, दासी समझे राखिया, आदि सहनन संस्थाना । भली जे ज्ञाता देह | ससार सागर सू तिरया ॥
आस्रव
आस्रव हेतु रागादी छँ रे, ज्ञानी ने कर, त्याग से, सुज्ञानी द्रव्य आस्रव बध को नहीं रे, राग विषें मत लाग रे, सुज्ञानी अष्ट कर्म जुग बल घणा रे, फैला रह्या लोक माहि रे । सुज्ञानी पण तो बंध सके नहीं रे, सिद्ध अवस्था माहि रे । सुज्ञानी द्रव्य आस्तव बण घणा रे मूढ आत्म भवि आस्रवी रे, पास रहित जो पट अछेरे, राग रहित प्राणी ति केरे,
विषय कषाण अर्धान रे । सुज्ञानी सुख दुखमे रहि लीन रे । सुज्ञानी रंग न लागे चोया रे । सुज्ञानी बन्ध न याये कोय रे । सुज्ञानी
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समकित सूर प्रगट थया रे, मिथ्या रजनी दूर । सुज्ञानी नवा न प्रगटे अकुर रे । सुज्ञानी आगम ने धर आसरे । सुज्ञानी रे, आरुव ने कर त्याग रे । सुज्ञानी त्रिया बुद्धि अनुसार रे । सुज्ञानी मन्द छै रे, गुण अनन्त अपार रे । सुज्ञानी मानी, मैं तो गुरू वचना यो जाणी ।
पूर्व ला बन्ध भोगव्या रे, संसारी जे प्राणिआं रे, गजता विरला जान जो शास्त्र गमत्या अल्प छै रे, कहन शक्ति मुझ मेरे बात ऐसी मन
नाशे दुबिधा सुती दूर रे । सुज्ञानी संवर
विज्ञानी रे, ए वल निश्चय नय इम जाणो रे । आनोरे, तातै निज गुण नही पिछान्यो रे || सवर रसिया कि मुनि सुख पावें र लाल । सवर रसिया कि इन्द्रिय मन जीत्या रे, आत्म ध्यानसू लांगे डीपा रे । संवर केरा के सुख अगाधा रे, अंतर तिल भर नहीं है बाधा रे । सवर रसिया । मेद विज्ञानी प्रगट सुख पाधे रे । पूर्वला सो शुभाशुभ खिरता रे ॥ संवर रसिया ० पाले पूरा रे । भाव न आवे रे । संवर रसिया ० निर्मल ध्यावे रे ।
संवर पायके भेद वल नर कोई संशय
प्रथम अवस्था मोह खिपावै रे, पर गुण त्यागी संवर थिरता रे,
किया कोड़ि तपस्या सूरा रे, जब लग आपा के भेद न पावे रे,
पंच महाव्रत तब लग संवर
एक शुद्धात तणा सुख पावे रे, ध्यान निरंजन बाहर अभिन्तर परिग्रह त्यागी रे, वीतराग भाव सदा विरागी रे ॥ संवर रसिया ०
I
स्वसवेदी त समरस लीधा रे, भेद अभेद विकल्प छड लोधा रे । हेय उपादेय नहीं विचारया रे, परमातम प्रगट सुख धारया संवर रसिया • उपसर्ग सहित या कर्म खिपावे रे, कई अन्तकृत केवल पावे रे । मुनिव्रत चरण कमल मुनि पासे रे, ये ही अवस्था मुझ कब आसे रे । संबर रसिया मुनि सुख पावे रे |
निर्जरा निर्जरा रस लोधो, रस लीधो रस लीधो,
तीन कर्म क्षय कीधो, ज्ञाता मुनि निर्जरा रस लीधो । निर्जरा दोय प्रकार नीरे, एक सकाम अकाम रे, सकाम संसारी वण्या रे, ज्ञानी जीव अकाम रे । निर्जरा
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सकाम दोय भेद आपापर जान जोरे, बाहर कर्म विपाक रे। सुख दुख निरवाधित म्हारे; ते निर्जरा व्यवहार रे । निर्जरा पंच प्रमाद हणी करया रे, वीतराग भावे सूर रे । मिथ्या रजनी कायर वणी रे, भव सरवरकी दूर रे । निर्जरा०
आतम ध्यान सुरग धरोरे, परगुणक करे नाश है, निश्चय निर्जरा ते कही जे, लाभे लीला विलास है। निर्जरा० अष्टम गुणथाने धरोजे, क्षपक श्रेणी गुणखान रे, शुकल ध्यान वण दीयता रे, कर्न ईधन कूनाश रे । निर्जरा० प्रगट विन्दु सागर थया रे, अनतं चतुष्टय धार रे । तेरहवें केवल पामीया रे, प्रकृति पचासी छांड रे। निर्जरा० पच लघु अक्षर मे कहा रे, चेतन रूप प्रकाश रे। हृदय फमल नितहूनम रे, कब पाऊ शिव वास रे ॥
निर्जरा रस लीधा।
लोक भावना
लोक सरूपजाणी करया ममता बुद्धि ने डाल रे। स्वर्ग मध्य पाताल मे, जीव रुल्या अनतं काल रे॥ पाताल नरके दुख सुण्या रे, चिन्ता सू नहीं काम रे । स्वर्गे सुख सुर सम्पत दुख, भरमत चहुठाम रे । लोक० असंख्याता लोक छ अलोक अन्त आकाश रे। ज्ञान अनंतानंत छै एक समय प्रतिभास रे ॥ लोक० द्रव्य अनती लोक छ, खीर नीर ज्यो देख रे। पण सत्ता व्याप नही, निश्चय नय इस लेख रे ॥ लोक० पुरुष आकारा लोक छै षट द्रव्य भरो विचार रे । ज्ञेय रूप सब जानिये, चेतन उपजे सार रे ।। लोक० घट घट अतंर चेतना, सिद्ध अवस्था व्याप रे । निज ज्ञाता निज ज्ञान शुद्ध है, सिद्ध पद आप रे ॥ लोक० लोकां के अतं सिद्ध रमे, अनतं गुरणे अभिराम रे । एक में नेक रहा पिण, अब घणा निज पाम रे।
लोक भावना जानिये ।
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बोधि दुर्लभ बोधि लाभ भावना भली, जीवा वझो री, जीवा० आतम ने हितकार । जीवा बूझो री । निज घट मांही पावसा जीवा बूझो री, जीवा बूझो। निज गुण पर गुण ज्ञान भविक जीवा बूझो री दस दृष्टान्ते दोहेला जीवा बूझो री मानुष भव अवतार भविक जीवा बूझो री। जैन सिद्धान्त सुणो करया, जीवा बूझो री आलस चित्त निवार भविक जीवा बूझो री संशय विमोह विभ्रम तजो, जीवा बूझो री सरधान शुद्ध धार, भविक जीवा बूझो री एक पक्षे दृष्टान्त छ जीवा बूझो री मिथ्या रजनी दूर भविक जीवा बूझो री विषय महा मंझार, निज गुण सुख सभाल । भविक० सवै सिद्धान्ता ने सार छै जीवा बूझो री अन्तर दृष्टि उधार भविक जीवा बूझो री नवा कर्म बन्धे नही जीवा बूझो री जीवा० पूर्वला क्षय आन अविक जीवा बूझो री रुचि श्रद्धा परतीत, जीवा बूझो री जीवा बूझो री
धर्भ भावना धर्म जिनेश्वर भाषिया जी, व्यवहार निश्चय जान, निरबाछित वाहिज रहा जी, निश्चय अन्तर धार । जैन धर्म छे सार भविक नर जैनधर्म छे सार । द्रव्य क्षेत्र काल भव भ्रमणी भावे, धर्म सोधन भणा लेख, चार वार अनत मै पाया, आतमभाव अदेख । भविक नर आपापर नव भेद पिछानो, शिव दा कारण सो ही जानो चारो कारण आवी मिलता, तब लेसू निर्वान । भविक नर ... , धर्म शब्द बोले है सब जग, पण तो उदय विभाव। ता कारण जन पाम्या नाहीं, धर्म है वस्तु स्वभाव । भविक नर अवति सम्यक गुण धारी, धर्म आराधे जे । देशव्रती श्रावक सू विचारी, अनुभव स्वादी ते । भविक नर करणी दशाविधि मुनि आराधे, अन्तर आतम शुद्ध ।
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अतीन्द्रिय सुखके वेता, प्रगटीये निर्मल बुद्ध । भविक नर धर्म करतां शिव सुख पावे, चहुं गति दुःख निवार । नर सुर संपत्ति सहजें मिलसी, धर्म विना जग फास । भविक नर जैनधर्म छे सार ।
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जिन चौवीस नमू सुखकारी, परम धर्म धन धारी जी जिन ये बारह भावन भावी, शिवपुर इच्छा नाहीं जी । दल त्रयका- जैन बल अनंता श्री विहरमान जयवंता । निश्चय व्यवहार वंदना मोरी कर्मकी टूटी डोरी जी ॥ परम्पराय मोटा उपकारी जैनधर्म धन धारी जी । बनारसीदास राजमल विख्याता, ज्ञानदान के दाता ॥ वर्द्धमान वाचन शुभ' अक्षया, धर्मसन्त मुझ भास्या जी बीजा उपकार मोटा कीना, संस्कृत वचन मुझ दीनाजी अक्षर अर्थ पुनि मात्र दोष जोई, मिथ्या दु.कृत होई जी
छो अधको मै छ, भाख्या, तीक्षण जोजिन साखीजी ग्रीष्म ऋतु चौमासा होई, समके चतुर नर जोई जी । कृष्ण पक्ष पंचम शुद्ध वारा, त्रिदश ढाल अधिकारी जी । जिन चौबीस नमू सुखकारी ।
कवयित्री का डेगगाजीखान से सम्बन्ध था, इसलिये 2-3 स्थानो पर वहाँ के मन्दिर का भी उल्लेख किया है । वहा अध्यात्म सैली थी जिसमे भी मगल होना लिखा है । 1 मुलतान नगर मे बनारसीदास के अध्यात्म स्वरूप की पावन गंगा बरावर बहती
रही । समयसार, प्रवचनसार, पचास्तिकाय जैसे ग्रन्थो की स्वाध्याय का प्रचार वढता गया । उनकी पाण्डुलिपियो को माँग बढती गयी और एक के पश्चात दूसरे ग्रन्थो की प्रतिलिपियों की जाती रही । इन 100 वर्षों मे मुलतान नगर अध्यात्म प्रेमियो का केन्द्र बना रहा और ओसवाल दिगम्बर जैन श्रावको ने प्रमुख रूप से धार्मिक चर्चाओ मे भाग लेना जारी रखा । मुलतान के श्रावको का आगरा से बराबर सम्बन्ध बना हुआ था । वे वहाँ जाते आते रहते थे । आगरा के कविराज भैया भगवतीदास से भी वे प्रभावित थे इसलिये उनके ग्रन्थो की भी प्रतिलिपियों करायी जाती थी । वास्तव मे सवत 1700 से 1800 तक का समय मुलतान नगर को दिगम्बर जैन समाज के लिये पूर्णत शान्ति एवं अध्यात्मिक विकास का समय रहा। इस अवधि मे दिगम्बर एव श्वेताम्बर दोनो ही पूर्ण सद्भावना के साथ धार्मिक चर्चाओ मे भाग लेते रहे । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के खत्तर खतरगच्छ
1. सखी डेरे दिगम्बर सैली मै नंगल
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के साधु भी दिगम्बर श्रावको के लिये पाण्डुलिपि करते रहे । मलतान में कितने ऐसे भी पडित भी थे जो शास्त्र प्रवचन के साथ-साथ प्राचीन ग्रन्थो की पाण्डुलिपियां करने का कार्य भी करते थे, ऐसे पडितो मे प वीरदास, प रामदास, प दानचन्द के नाम उरलेखनीय है। सवत 1801 से 1900 तक
सवत 1800 के पश्चात मुलतान दिगम्बर जैन समाज का देश के सभी नगगे से सम्बन्ध हो गया। मुलतानी भाई ग्रन्थो की तलाश मे चन्देरी, मालपुग (राजस्थान) वाराणसी, हनुमानगढ, इन्दौर, सागानेर, जयपुर, पालम-दिल्ली, ललितपुर जैसे नगरो मे ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ करवा कर अपने शास्त्र भण्डार के लिये पाण्डुलिपियो का संग्रह करते रहे। जयपुर एव आगरा से उनका विशेप सम्बन्ध था। अध्यात्म की लहर तेजी से चल रही थी।
अध्यात्म की इस लहर के प्रमुख प्रस्तोता ये महाकवि वनारसीदास जिनके कारण उत्तर भारत के दिगम्बर जैन समाज की काया ही पलट गयी। वे अध्यात्म ग्रन्थो के पाठक वन गये और रात दिन आत्मा और शरीर पर चर्चा करने लगे। इसके पश्चात सागानेर मे बनारसीदास की मृत्यु के कोई 25 वर्ष पश्चात ही हिन्दी कवि जोधगज गोदीवा के पिता अमरा भौसा ने तेरहपय के नाम से एक नवीन पथ की स्थापना की और दिगम्बर जैन भट्टारको द्वारा प्रचलित शिथिलाचार के विरुद्ध अवाज उठाई गयी। यह पहिला अवसर था जब एक पन्थ की स्थापना किसी श्रीमन्त श्रावक द्वारा की गयी हो। बमरा भौसा मे अदभुत सगठन शक्ति थी इसलिये उसे भट्टारको के युग मे भी उन्ही के विरुद्ध एक नयी विचारधारा को जन्म दिया। __ इस तेरहपथ विचारधारा का केन्द्र धीरेधीरे सागानेर से जयपुर वन गया और यहाँ एक नयी विभूति का उदय हुआ। वह विभूति महापडित टोडरमलजी के रूप में समाज के सामने आयी । टोडरमलजी अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय पडित थे, जैन धर्म के ज्ञाता थे तथा गोमट्टसार, समयसार, त्रिलोकसार, लब्धिसार जैसे उच्चस्तरीय प्राकृत ग्रन्थो के मर्मज्ञ विद्वान थे । वे श्री शान्तिनाथ दि जैन बडामन्दिर तेरह पथियान् घी वालो का रास्ता, जौहरी बाजार मे नित्य प्रवचन किया करते थे। जब वे शास्त्र प्रवचन, करते तो सैकडो हजारो स्त्री-पुरुष उनकी प्रवचन सभा मे होते और ___महा पडित टोडरमलजी उनकी अपूर्व प्रवचन शैली से अध्यात्म तत्व चर्चा का आनन्द लेते। सवत 1811 के पहिले ही उनकी ख्याति राजस्थान की सीमा पार करके उत्तर मे मुलतान तक पहुच गयी थी।
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वहाँ के श्रावक पहिले से ही अध्यात्म ग्रन्थो के मर्मज्ञ थे तथा समयसार, प्रवचनमार, पचास्तिकाय जैसे ग्रन्थो का स्वाध्याय करते रहते थे । वहाँ भी नियमित सैली थी जिसमे समाज के सभी स्त्री पुरुष भाग लेते थे । शका समाधान भी होते थे लेकिन कुछ शकायें ऐसी होती थी जिनका समाधान पूर्णरूप से नही हो पाता था । जब उन्हे प टोडरमल जी की विद्वत्ता, पाडित्य एव चर्चा सम्बन्धी ज्ञान की जानकारी मिली तो उन्होने अपनी शकाओं के समाधान चाहने के लिये भारी उत्सुकता प्रकट की । उन्होने पत्र द्वारा अपनी शकाओ को लिखकर भेजने का निश्चय किया । आखिर पत्र लिखा गया और वह पडित टोडरमलजी के पास पहुचा दिया गया । वह मूल पत्र तो किसी शास्त्र भण्डार
प्राप्त नही हुआ है लेकिन प टोडरमलजी ने जो उनकी शकाओ का समाधान किया वह चिट्ठी के रूप मे है और वह जयपुर एवं सुलतान के शास्त्र मे भण्डारो सुरक्षित है । उस चिट्ठी का नाम रहस्यपूर्ण चिट्ठी है जो वास्तव से ही रहस्यपूर्ण हैं | प टोडरमलजी की सम्भवत यह प्रथम रचना है जो मुलतान एव जयपुर जैन समाज के लिये धरोहर के रूप मे सुरक्षित है ।
महापडित टोडरमलजी ने रहस्यपूर्ण चिठी सवत 1811 माघ वदी 5 के दिन तथा मुलतान निवासी खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धार्थदासजी एव अन्य साधर्मी भाइयो के नाम लिखी थी । इनमे गंगाधर श्रावक तो साह सोमजी के पुत्र थे जिन्होने सवत 1797 मे ब्रह्मविलास की प्रतिलिपि कराई थी तथा जो मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर के शास्त्र भण्डार मे सुरक्षित है । ये सभी दिगम्बर जैन श्रावक थे क्योकि प टोडरमलजी मे अपनी चिट्ठी मे इन्हे साधर्मी भाई लिखा है । इसके अतिरिक्त प टोडरमलजी ने भाई श्री रामसिंहजी एवं भुवानी दास का भी पत्र जो जिहानाबाद से आया था उसका भी उल्लेख उक्त पत्र या चिट्ठी मे किया है । प्रस्तुत पत्र प टोडरमलजी के पास किसके माध्यम से आया था इसका कोई उल्लेख नही किया गया है ।
रहस्यपूर्ण चिट्ठी पूर्णत चर्चा प्रधान है तथा उसमे गोम्मटसार समयसार, अष्टसहस्वी तत्वार्थ सूत्र आदि ग्रन्थो के आधार पर शकाओ का समाधान किया गया है । यह चिट्ठी अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा मुलतान एव जयपुर दोनो के लिये स्मरणीय पाती है जिसे हम अविकल रूप से पाठको की जानकारी के लिए यहाँ उद्दत कर रहे है ।
रहस्यपूर्ण चिट्ठी
सिद्ध श्री सुलताने नग्र महाशुभस्थान विषे, साधर्मी भाई अनेक उपमा योग्य अध्यात्मरस रोचक भाई श्री खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी, सिद्धार्थदासजी, अन्य सर्व साधर्मी योग लिखत टोडरमल के श्री प्रमुख विनय शब्द अवधारना । यहाँ यथा सभव आनन्द है तुम्हारे चिदानन्द घनके अनुभव से सहजानन्दकी वृद्धि चाहिये ।
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अपरंच पत्र 1 तुम्हारो भाईजी श्री रामसिंघजी भवानीदासजी को आया था तिसके समाचार जहानावादतें और साम्मियोंने लिखे थे सो भाईजी ऐसे प्रश्न तुम सारिखे ही लिखे । अवार वर्तमान काल मे अध्यात्मके रसिक बहुत थोडे हैं । धन्य है जे स्वात्मानुभवको बार्ता भी करै है, सौ ही कहा है -
तत्प्रतिप्रीतचित्त न, तस्य वार्तापि हि श्रुता।
निश्चित स भवेद् भव्यो, भावनिर्वाणभाजनं ॥ अर्थ-जिहि जीव प्रसन्न चितकरि इस चेतनस्वरूप आत्मा की बात भी सुनी सो जीव निश्चय कर भव्य है। अल्प काल विपे मोक्ष का पात्र है। सी भाई जी तुम प्रश्न लिखे तिस कर मेरी बुद्धि अनुसार कुछ लिखिए है सो जानना । और अध्यातम आगम की चर्चा गभित पत्र तो शोघ्र देवों करो। मिलाप कभी होगा तब होगा। और निरन्तर स्वरूपानुभव मे रहना। श्रीरस्तु ।
अर्थ स्वानुभव दशा विप प्रत्यक्ष परोक्षादिक प्रश्ननिके उत्तर बुद्धि अनुसार लिखिये हैं।
तहां प्रथम ही से स्वानुभवका स्वरूप जानने निमित लिखिये हैं।
जीव पदार्थ अनादितें मिथ्यादृप्टी है सो आपापर के यथार्थरूप विपरीत श्रद्धानका नाम मिथ्यात्व है। वहुरि जिस काल किसी जीव के दर्शन मोहके उपशम, क्षयोपशमतै आपापरका यथार्थ श्रद्धान रूप तत्वार्थ श्रद्धान होय, तब जीव सम्यक्ती होय हैं। याते आपापरका श्रद्धान विषै शुद्धात्म महान रूप निश्चय सम्यक्त गभित है। बहुरि जो आपापरका श्रद्धान नहीं है और जिनमत विषे कहे जे देव, गुरु, धर्म तिनको ही माने है, अन्य गत मत विषै कहे देवादिक वा तत्वादिक तिन जिनको नही माने है तो ऐसे केवल व्यवहार सम्यक्त करि सम्यक्ती नाम पावे नाही। ताले स्वपर भेदविज्ञान को लिये जो तस्वार्थ श्रद्धान होय सो सम्यक्त जानना।
बहरि ऐसा सम्यक्तो होते सते जो ज्ञान पचेन्द्री, पाच इन्द्री छटा मनके द्वारा, क्षयोपशमरूप मिथ्यात्व दशा में कुमति, कुश्रुति रूप होय रहा था सोई ज्ञान अब मति श्रतिरूप सम्यज्ञान भया। सम्यक्ती जेता कुछ जाने सो जानना सर्व सम्यग्ज्ञान रूप हैं।
जो कदाचित घट पटादिक पदार्थनकू अयथार्थं भी जानें तो वह आवरण जनित उदयको अज्ञान भाव है सो क्षयोपशम रूप प्रकटज्ञान है सो तो सर्व सम्यगज्ञान ही है। जात जानने विष विपरीत रूप पदार्थनको न साधे है । सो यह सम्यग्रज्ञान केवल ज्ञान का अश हैं। जैने थोडासा मेघपटल विलय भयै कछ प्रकाश प्रकट है सौ सर्व प्रकाशक अश है ।
जो ज्ञान मति श्रुतिरूप प्रवर्ते है सौ ही ज्ञान वधिता-वधिता केवलज्ञान रूप होय है। तातें सम्यग्रज्ञान की अपेक्षा तो जाति एक है। वहरि इस सम्यक्ती के परिणाम विष सविकल्प तथा निविकल्परूप होय दो प्रकार प्रवर्ते तहा जो विषय कषायादिरूप वा पूजा, दान शास्त्राभ्यासादिक रूप प्रवत है सो सविकल्परुप जानना यहां प्रश्न .
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जो शुभाशुभरुप प्रशामते सम्यक्तका अस्तित्व कैसे पाइए ।
ताका समाधान-जैसे कोई गुमास्ता साहूके कार्य विषै प्रवर्ते है, उस कार्य को अपना भी है है हर्ष विपादको भी पावे है, तिस कार्यं विषं प्रवर्ते है, तहा अपनी और साहू की जुदाई को नाही विचारे है परन्तु अतरंग श्रद्धान ऐसा है कि यह मेरा कारज नाही । ऐसा कार्यकर्त्ता गुमास्ता साहूकार है ।
परन्तु साहू के धनकू चुराय अपना माने तो गुमास्तो चोर ही कहिए | तैसे कर्मोदयजनित शुभाशुभरूप कार्य को कर्ता हुआ तदरूप परणमे तथापि अन्तरग ऐसा श्रद्धान है कि यह कार्य मेरा नाही । जो शरीराश्रित व्रत संयम की भी अपना माने तो मिथ्यादृष्टि होय । सो ऐसे सविकल्प परिणाय होय है ।
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अव सविकल्प ही के द्वारकरि निर्विकल्प परिणाम होने का विधान कहिए है सो सम्यक्ती कदाचित स्वरूप ध्यान करने को उद्यमी होय है तहा प्रथम भेद विज्ञान स्वपर स्वरुप का करै, नौकर्म, द्रव्यकर्म, भावकर्म रहित चैतन्य चित चमत्कार मात्र अपना स्वरुप जाने, पीछे परका भी विचार छूट जाय, केवल स्वात्मविचार ही रहे है । तहां अनेक प्रकार निजस्वरुप विषै अहवुद्धि धार है । मे चिदानन्द हू, शुद्ध हू, सिद्ध हूँ इत्यादि विचार होत सते सहज ही आनन्द तरंग उठे हैरोमाच होय है ता पीछे ऐसा विचार तो छूट जाय, केवल चिन्मात्र स्वरुप भासने लागे । तहा सर्व परिणाम उस रूप विषै एकाग्र होय प्रवर्ते । दर्शन ज्ञानादिकका वा नय प्रमाणादिकका भी विचार विलय जाय ।
चैतन्य स्वरुप जो सविकल्प ताकरि निश्चय किया था तिस ही विषै व्याप्य व्यापक रूप होय ऐसे प्रवर्ते । जहा ध्याता ध्यायपनो दूर भयो सो ऐसी दशा का नाम निर्विकल्प अनुभव है । सो वडे नयचक्र विषै ऐसा ही कहा है।
गाथा
ताच्चारों सरग काले समय बुज्झहि जुत्ति मग्गेरणा । गो राइख समये पञ्चक्खो अरण हवो जम्हा ॥
अर्थ -- तत्वका अवलोकन का जो काल ता विषै समय जो है शुद्धात्मा ताको जुत्ता जो नय प्रमाण ताकरि पहलै जाने । पीछे आराधना समय जो अनुभव काल, तिहि विषै नय प्रमाण नाही है । जाते प्रत्यक्ष अनुभव है । जैसे रत्न को खरीद विषे अनेक विकल्प करें हैं, प्रत्यक्ष वाको पहरिये तब विकल्प नाही, पहिरने का सुख ही है । ऐसे सविकल्प के द्वारे निर्विकल्प अनुभव होय है ।
बहुरि निर्विकल्प अनुभव विषै जो ज्ञानपञ्चेन्द्री, छट्टा मनके द्वारे प्रवर्ते था सो ज्ञान सब तरफ सो सिमटकर केवल स्वरुप सन्मुख भया । जातै वह ज्ञान क्षयोपशाम रूप हे सो एक काल विर्षे एक ज्ञेयही को जाने, सो ज्ञान स्वरुप जानने को प्रवर्त्या, तव अन्य का जानना सहज ही रह गया तहां ऐसा दशा भई जो ब्राह्म विकार होय तो भी स्वरुप ध्यानीको कछ खवर नाही, ऐसे मतिज्ञान भी स्वरुप सन्मुख भया । वहुरि नयादि के विचार मिटते
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श्रुतज्ञान भी स्वरूप सन्मुख भया । ऐसा वर्णन समयसार की टीका आत्मख्याति वि किया. है तथा आत्मा अवलोकनादि विषै है, इस ही वास्ते निर्विकल्प अनुभवको अतेन्द्रिय कहिए है, जाते इन्द्रीनको धर्म तो यह है जो फरस, रस, गन्ध, वर्णको जाने सो यहा नाही। अर मन का धर्म यह है जो अनेक विकल्प करे सो भी यही नाही, तातै जव जो ज्ञान इन्द्री मन के द्वारे प्रवर्ते था सो ही ज्ञान अनुभव विषै प्रवर्ते है तथापि ज्ञानको अतीन्द्रिय कहिये है। बहुरि इस स्वानुभव को मन द्वारे भी भया कहिये जातें इस अनुभव विपै मतिज्ञान श्रु तज्ञान ही है, और कोई ज्ञान नहीं।
मतिश्रु त इन्द्री मनके अवलम्ब बिना होय नाही सो इन्द्री मन का तो अभाव ही है जातै इन्द्रियका विषय मूर्तीक पदार्थ ही है । बहुरि यहा मतिज्ञान है जात मन का विषय मूर्तीक अमूर्तीक पदार्थ है, सो यहा मन सम्बन्धी परिणाम स्वरूप विप एकाग्र होय अन्य चिन्ता का विरोध करै है ताते याको मन द्वारै कहिए है।
___ "एकाग्रचिंतानिरोधो ध्यानम्" ऐसा ध्यान का भी लक्षण है, ऐसा अनुभव दशा विपै सभने है । तथा नाटक के कवित विषै कहा है :
दोहा वस्तु विचारत भावसें ध्यावते, मन पावै विश्राम ।
रस स्वादित सुख ऊपजै, अनुभव याको नाम ॥ ऐसे मन विना जुदा परिणाम स्वरूप विष प्रवर्ता नाही ताते स्वानुभवको मन जनित भी कहिए । सो अतेन्द्रीय कहने मे अरु मन जनित कहने मे कछ विरोध नही, विवक्षा भेद है।
बहुरि तुम लिख्या "जो आत्मा अतेन्द्रिय है" सो अतेन्द्रिय ही कर ग्रहा जाय, सो भाईजी मन अमर्तीक का भी ग्रहण कर हैं, जाते मति श्रुत ज्ञानका विषय सर्व द्रव्य कहै है। उक्त च तत्वार्थसूत्रे
"श्रु गतिक्षु तयोनिवन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेपु।" बहुरि तमुने “प्रत्यक्ष परोक्षका प्रश्न लिख्या" सो भाईजी, प्रत्यक्ष परोक्ष के तो भेद हैं नाहीं। चौथे गुणस्थान मे सिद्ध 'समान क्षायक सम्यक्त हो जाय है, तातें सम्पक्त तो केवल यथार्थ श्रद्धानरूप ही है वह जीव शुभाशुभ कार्यकर्ता भी रहे है ताते तुमने जो लिख्या था कि "निश्चय सम्यक्त प्रत्यक्ष है व्यवहार सम्यक्त परोक्ष है" सो ऐसा नाही है, सम्यक्त के तो तीन भेद है तहा उपशम सम्यक्त अरु क्षायक सम्यक्त तो निर्मल है, जातै मिथ्यात्व उदय इस सम्यक्त विपै क्षयोपशम सम्यक्त समल है । बहुरि करि रहित हैं, अर प्रत्यक्ष परोक्ष भेद तो नाही है।
श्रायक क्षाविक सम्यक्तके शुभाशुभ रूप प्रवर्तता वा स्वानुभवरूप प्रवर्तता सम्यक्त गुण तो सामान्य ही है ताते सम्यक्त तो प्रत्यक्ष परोक्ष भेद न मानना । बहुरि प्रमाण के प्रत्यक्ष परोक्ष भेद है सो प्रमाण सम्यग्रज्ञान है तातें मतिज्ञान श्रु तज्ञान तो परोक्ष प्रमाण हैं । अवधि मन पर्यय केवल ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
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"पाद्य परोक्षं प्रत्यक्षमन्यत्" ऐसा सूत्र कहा है तथा तर्कशास्त्र विषे ऐसा लक्षण प्रत्यक्ष परोक्षका है -
__"स्पष्टप्रतिभासात्मकं प्रत्यक्षमस्पष्टं परोक्षं" । ___ जो ज्ञान अपने विषयको निर्मलतारूप नीके जाने सो प्रत्यक्ष अर स्पष्ट नीके न जाने सो परोक्ष, सो मतिज्ञान थ तज्ञान का विपय तो घना परन्तु एक ही ज्ञेयको सम्पूर्ण न जान सके तातै परोक्ष है और अवधि मन पर्यय के विषय थोरे है, तथापि अपने विषयकौं स्पष्ट नीके जाने ताते एक देश प्रत्यक्ष है, अर केवल ज्ञान सर्व ज्ञेयको आप स्पष्ट जानै ताते सर्व प्रत्यक्ष है।
वहरि प्रत्यक्ष के दोय भेद है। एक परमार्थ प्रत्यक्ष दूसरा व्यवहार प्रत्यक्ष है। सो अवधि मन पर्यय केवल तो स्पष्ट प्रतिभासरूप है ही तातै पारमार्थिक है। बहरि नेत्रादिकते वरणादिकको जानिए है । ताते इनको साव्यवहारक प्रत्यक्ष कहिए, जाने जो एक वस्तु मे मिश्र अनेक वर्ण है ते नेत्र कर नीके ग्रह जाय है।
___ वहरि परोक्ष प्रमाण के पाच भेद है-1 स्मृति, 2 प्रत्यभिज्ञान, 3 तर्क, 4 अनुमान, 5 आगम ।
तहा जो पूर्व वस्तु जानी को याद करि जानना सो स्मृति कहिये । दृष्टात कर वस्तु निश्चय कीजिये सो प्रत्यभिज्ञान कहिये ।
हेतुके विचारते लिया जो ज्ञान सो तर्क कहिए। हेतू साध्य वस्तुका जो ज्ञान सो अनुमान कहिए।
प्रागमतें जो ज्ञान होय सो आगम कहिए। ऐसे प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाण के भेद किये है सोई स्वानुभव दशा मे जो आत्मा को जानिए सो श्र तज्ञान कर जानिए है। श्रु तज्ञान है सो मतिज्ञान पूर्वक ही है, सो मतिज्ञान श्रु तज्ञान परोक्ष कहै ताते यहा आत्मा का जानना प्रत्यक्ष नाही। बहुरि अवधि मन पर्यय का विषय रूपी पदार्थ ही है अर केवलज्ञान ह.दयरूप के है नाही तातै अनुभव विषै अवधि मन पर्यप केवल करि आत्मा का जानना ना हो । बहुरि यहा आत्माक स्पष्ट नोके नाही जाने है, तातै पारमार्थिक प्रत्यक्षपना तो सम्भव नाही, बहुरि जैसे नेत्रादिक जानिए है तातै एक देश निर्मलता लिये भी आत्मा के असख्यात प्रदेशादिक न जानिए है ताते साव्यवहारिक प्रत्यक्षपणे भी सम्भव नाही।
___ यहा पर तो आगम अनुमानादिक परोक्ष ज्ञानकरि आत्मा का अनुभव होय है । जैनागम विषे जैसा आत्माका स्वरूप कहा है ताक तैसा जान उस विष परिणामो को मग्न कर है ताते आगम परोक्ष प्रमाण कहिए, अथवा मै आत्मा ही हू तातें मुझ विष ज्ञान है । जहा-जहा ज्ञान तहा-तहा आत्मा है जैसे सिद्धादिक है। बहुरि जहा आत्मा नही तहां ज्ञान भी नाही जैसे मृतक कलेवरादिक है। ऐसे अनुमान करि वस्तु का निश्चय कर उस विष परिणाममग्न करै है, ताते अनुमान परोक्ष प्रमाण कहिए अथवा आगम अनुमानादिक कर जो वस्तु जानने में आया तिसहीको याद रखकै उस विपे परिणाम मग्न कर है ताते
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स्मृति कहिए। ऐसे इत्यादिक प्रकार स्वानुभव विप परोक्ष प्रमाण कर ही आत्मा विप परिणाम मग्न हो ताका कछ विशेष जानपान होता नाही । वहुरि यहा प्रश्न -
___ जो सविकल्प निर्विकल्प विषे जानने का विशेष नाही तो अधिक आनन्द कैसे होय है।
ताका समाधान-सविकल्प दशा विपै ज्ञान अनेक ज्ञेयको जानने रूप प्रवत था ते निर्विकल्प दशा विर्षे केवल आत्मा को ही जानने मे प्रवर्त्या, एक तो यह विशेपता है, दूसरी यह विशेषता है जो परिणाम नाना विकल्प विप परिणाम था सो केवल स्वरूप ही सौ तदात्मरूप होय प्रवा, तोजी यह विशेषता है कि इन दोनो विशेषताओ के होते वचनातीत अपूर्व आनन्द होय है। जो विषय सेवन विषे उसके अश की भी जात नाही तातें उस आनन्दकौं अतेन्द्रिय कहिये । वहुरि यहा प्रश्न -
___ जो अनुभव विषे भी आत्मा सो परोक्ष ही है तो ग्रन्थन विषे अनुभवकू प्रत्यक्ष कैसे कहिए।
___ ऊपर की गाथा विष ही कहा है। "पच्चाखा अणहवो जम्ही ताका समाधान अनुभव विप आत्मा तो परोक्ष ही है, कछ आत्मा के प्रदेश आकार तो भासते नाही परन्तु जो स्वरूप विपे परिणाम मग्न होते स्वानुभाव भया, सो वह स्वानुभव प्रत्यक्ष है । स्वानुभवका स्वाद कछ आगम अनुमानादिक परोक्ष प्रमाणादिक कर न जाने हैं। आप ही अनुभव के रस, स्वादको वेदै है । जैसे कोई अन्धा पुरुप मिश्रीको आस्वादे है, तहा मिश्रीके आकारादिक तो परोक्ष है, जो जिहवाकरि जो स्वाद लिया है सो वह स्वाद प्रत्यक्ष है ऐसा जानना ।
अथवा जो प्रत्यक्ष की सी नाई होय तिसको भी प्रत्यक्ष कहिए। जैसे लोक विषे कहिये है-हमने स्वप्न विष वा ध्यान विषै फलाने पुरुषको प्रत्यक्ष देखा, सो प्रत्यक्ष देखा नाही, परन्तु प्रत्यक्षकीसी नाई प्रत्यक्षवत् यथार्थ देखा तातें प्रत्यक्ष कहिए । तैसे अनुभव विप आत्मा प्रत्यक्ष की नाई यथार्थ प्रतिभासे है ताते इस न्याय करि आत्माका भी प्रत्यक्ष जानना होय है ऐसे कहिए है सो दोप नाही। कथन तो अनेक प्रकार होय परन्तु वह सर्व आगम अध्यात्म शास्त्रनसो विरोध न होय तैसे विवक्षा भेद करि कथन जानना । यहा प्रश्न . -
जो ऐसे अनुभव कौन गुणस्थानमे कहे हैं।
ताका समाधान-चौथे ही से होय है परन्तु चौथे तो वहत कालके अन्तरालमें होय है । और ऊपरके गुणठाने शीघ्र होय हैं । वहुरि प्रश्न -
जो अनुभव तो निर्विकल्प है तहा ऊपर के और नीचे के गुणस्थाननि मे भेद कहा।
ताका उत्तर-परिणामन की मग्नता विषै विरोध है। दोय पुरुष नाम ले है अर दो ही का परिणाम नाम विप है तहा एककै तो मग्नता विशेष है अर एकक स्तोक है तैसे जानना । वहुरि प्रश्न :
जो निर्विकल्प अनुभव विप कोई विकल्प नाही तो शुक्ल ध्यान का प्रथम भेद
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प्रथकत्ववितर्क वीचार कहा, तहा प्रथक्त्व वितर्कवीचार-नाना प्रकार श्रुत अर वीचार, अर्थ व्यजन योग, सक्रमन ऐसे रूप क्यो कहा?
तिसका उत्तर -कथन दोय प्रकार है एक स्थूलरूप है, एक सूक्ष्मरूप है। जैसे स्थूलता करि तो छटे ही गुणस्थाने सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत कहा, अर सूक्ष्मताकर नवमे गुणस्थान ताई मैश्र मैथुनत्तसज्ञा कही तैसे यहा अनुभव विषै निर्विकल्पता स्थूलरूप कहिये है। बहुगे। सूक्ष्मता करि प्रथक्त्ववितर्क वीचारादिक भेद वा , कषायादि दशामाताई कहे हैं। सो अव आपके जानने मे वा अन्य खे जानने मे आवे ऐसा भाव का कथन स्थूल जानना, अर जो आप भी न जाने केवली भगवान ही जाने सो ऐसे भावका कथन सक्ष्म जानना, अर करणानयोगादिक विषै सूक्ष्म कथन की मुख्यता है अर चरणानुयोगादिक विषे स्थूल कथन की मुख्यता है ऐसा भेद और भी ठिकाने जानना । ऐसा निर्विकल्प अनुभव का स्वरूप जानना।
वहरि भाईजी, तुम तीन दृष्टान्त लिखे वा दृष्टान्त विष लिखा प्रश्न सो दृष्टान्त सर्वा ग मिलता नाही। दृष्टान्त है सो एक प्रयोजनको दिखावै है सो यहा द्वितीया का विधु (चन्द्रमा) जलबिन्दु, अग्निकणिका, एतो एकदेश है, अर पुर्णमासी को चन्द्र महासागर अग्निकुड एक सर्वदेश है। तेसे ही चौथे गुणस्थानवर्ती आत्मा को ज्ञानादि गुण एक-देश प्रकट भये है तिनकी अर तेरहवे गुणस्थानवर्ती आत्मा के ज्ञानादिक गुण सर्व प्रकट होय है तिनकी एक जाति है। तहा तुम प्रश्न लिखा -
जो एक जाति है जैसे केवली सर्व ज्ञेयोको प्रत्यक्ष जाने है तेसे चौथे गुणस्थान वाला भी आत्माको प्रत्यक्ष जानता होगा ? |
ताका उत्तर-सो भाईजी, प्रत्यक्ष ताकी अपेक्षा एक जाति नाही सम्यमान की अपेक्षा एक जाति है। चौथे वाले के मति श्रुतरूप सम्यज्ञान है और तेरहवे वाले के केवलरूप सम्यज्ञान है, बहुरि एकदेश सर्वदेश का तो अन्तर इतना ही है जो मति श्रुतवाला अमतिक वस्तुको अप्रत्यक्ष मूर्तिक वस्तुको भी प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष किञ्चित अनुक्रमसो जाने है। अर सर्वथा सर्वको केवलज्ञानी युगपत् जाने है वह परोक्ष जाने यह प्रत्यक्ष जाने, इतना विशेष है अर सर्व प्रकार एक ही जाति कहिए तो जैसे केवली युगपत प्रत्यक्ष अप्रयोजन [जेयको निर्विकल्प रूप जान तैसे ए भी जाने मो तोहै नाही, ताते प्रत्यक्ष परोक्ष मे विशेप जानना।
उक्त च अष्टसहस्नी मध्ये-श्लोकस्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्वप्रकाशने ।
भेदसाक्षादसाक्षाच्च बह्मवस्त्वन्यतम भवेत् ॥ याका अर्थ-स्याद्वाद जो श्रुतज्ञान अर केवलज्ञान ते दोय सर्व तत्वन के प्रकाशनहारे हैं, विशेष इतना-केवलज्ञान प्रत्यक्ष है, ध्रुतज्ञान परोन है । वन्नु प से यह दोनो एक दूसरे से भिन्न नाही है । वहरि तुम निश्चय सम्यक्त्व का बाप अर व्यवहार सम्यक्त्वका स्वरूप लिया ।
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सो सत्य है, परन्तु इतना जानना सम्यक्त्ववी के व्यवहार सम्यक्त विषै निश्चय सम्यक्त्व गर्भित है सदैव गमनरूप है । बहुरि लिखी साधर्मी कहे है आत्मा को प्रत्यक्ष जाने तो कर्म वर्गणा को प्रत्यक्ष क्यो न जाने ।
सो कहिए है आत्माको प्रत्यक्ष तौ केवली ही जानें कर्मवर्गणाको अवधिज्ञानी भी जाने है । वहुरि तुम लिखा
द्वितीया के चन्द्रमा की ज्यो आत्मा के प्रदेश थोरे खुले कहा। ताका
उत्तर-
यह दृष्टान्त प्रदेशन की अपेक्षा नाही, यह दृष्टान्त गुण की अपेक्षा है । अर सम्यक्त्व विषे अनुभव विषे प्रत्यक्षादिक के प्रश्न लिखे थे तुमने, तिनका उत्तर मेरी बुद्धि अनुसार लिखा है । तुम हू जिनवानीते अपनी परणति से मिलाय लेना । अर विशेष कहा ताई लिखिये । जो बात जानिए सो लिखने मे आवे नाही | मिले कुछ कहिये भी सो मिलना कर्माधीन, ताते भला यह है कि चैतन्य स्वरूप की प्राप्ति के उद्यम मे रहना व अनुभव मे वर्तना सो वर्तमानकाल विषै अध्यात्म तत्व तो आत्मा ही है ।
तिस समयसार ग्रन्थ की अमृतचन्द्र आचार्यकृत टीका संस्कृत विप है अर आगम की चर्चा गोमट्टसार विषै है तथा और भी अन्य ग्रन्थ विषे है, सो जानी है, सो सर्व लिखने मे आवे नाहि । तातें तुम अध्यात्म आगम ग्रन्थ का अभ्यास रखना अर स्वरूप विषै मग्न रहना अर तुम कोई विशेष ग्रन्थ जाने होवे तो मुझको लिख भेजना । साधर्मी के तो परस्पर चर्चा ही चाहिए, अर मेरी तो इतनी बुद्धि है नाही | परन्तु तुम सारिखे भाइनसो परस्पर विचार है, सो अब कहा तक लिखिये । जेतै मिलना नही तेतै पत्र तो शीघ्र ही लिखा करो ।
मिती फागुन बदी 5 विक्रम स. 1811
- टोडरमल
उक्त चिट्ठी के अतिरिक्त सवत् 1811 का वर्ष मुलतान समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा। इसी सवत् मे किशनसिंह के क्रियाकोश की प्रतिलिपि की गयी । यह प्रतिलिपि भी जयपुर मे ही करायी गयी और फिर उसे मुलतान के शास्त्र भण्डार मे विराजमान किया गया । क्रियाकोश श्रावको की क्रियाओं का ग्रन्थ हैं । यह इस बात का भी द्योतक है कि मुलतान के जैन बन्धु क्रियाकोश मे प्रतिपादित क्रियाओ के पक्षपाती थे तथा उनकी जानकारी प्राप्त करना चाहते थे । क्रियाकोश के अतिरिक्त सवत् 1811 मे पूज्यवाद की सर्वार्थसिद्धि की भी प्रतिलिपि करवा कर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की गयी । उस समय मुलतान मे संस्कृत के पाठक भी हो गये थे । सवत् 1811 मे ही तत्वार्थ सूत्र को आचार्य कनककीर्तिकी भाषा टीका की प्रति करवाकर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की गई।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में
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लुरिन्दामल
इमी समय मुलतान मे श्रावक लुरिन्दामल हुए जो दिगम्बर जैन ओसवाल जाति के थे तथा सिघवी जिनका गोत्र था । लुरिन्दामल अच्छे पढे लिखे थे तथा स्वाध्याय मे अत्यधिक रुचि रखते थे। वे देश के कितने ही स्थानो मे धूम-धूम कर ग्रन्थो की प्रतिलिपि स्वयं करके अयवा दूसरो से करवाकर उनको स्वाध्याय करने के पश्चात् मुलतान के मन्दिर के शास्त्र भण्डार मे विराजमान करते रहते थे। लुरिन्दामल सर्वप्रथम आगरा गये
और वहां उन्होने महाकवि भूधरदास जी के पार्श्वपुराण की प्रतिलिपि की। उस दिन सवत 1817 पोष सुदी 1 मगलवार था ।'
सवत 1818 में लुरिन्दामल आगरा से सूरत बन्दरगाह गये और वहा जाकर भी आपने "तारातबोल की पत्रिका" की प्रतिलिपि की। इस पत्रिका मे मुलतान नगर का महत्वपूर्ण स्थान हैं क्योकि ठाकुर बुलाकीदास खत्री मुलतान का ही रहने वाला था । वह मुलतान से अहमदाबाद आया था और फिर 5500 मील की यात्रा की थी। और फिर उसने वापिस अहमदाबाद जाकर अपनी यात्रा समाप्त की थी। इस पत्रिका की सारी सामग्री महत्वपूर्ण है और भूगोल के कितने ही तथ्यो को प्रस्तुत करती हैं। सूरत मे लुरिन्दामल आठ वर्ष से भी अधिक रहे । सवत 1825 मे उन्होने सबोधसत्तरी, नयचक्र, षट्पाहुड एव पचास्तिकाय जैसे ग्रन्थो की
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1. पार्श्वपुराण-भूधरदास, लिखतु लुरीदानु सवाल सिंघवी वस्ति मुलतान श्री आगरे
विच सं० 1817 मिती पोह सुदि 1 बार मंगलवार शुभ दिन समापत कीनां ।
2. तारातंबोल की पत्रिका : संवत् 1684 मिति मंगसर सुदी 13 स्याह
जहान तखत बैठा । पीछे नी बात छ श्री मुलतान को वासी ठाकर बुलाकीदास जात को खतरी ते देस देसांतर फिर के देखी न घर आवा तिण बात कही सो लिखी छ। प्रथम श्री गुजरात मध्ये - अहमदाबाद की तारातंवोल नामे नगर कोष 5550 छे श्री मुलतान को वासी ठाकुर बुलाकिदास जात को खतरी ते फिर आउ तिगे बात कही छे ते लिखी छे श्री करंज मध्ये श्री राजा अभेसिंह लिख यो कही छे ते बात विसतरी छे पिछे खरी खोटी श्री बीतराग जी जाणे सी 1818 मिति माह सुदी 6 वारस सूरत बंदर विच लुरन्दानारी।
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प्रतिलिपि समाप्त की और उन्हे लाकर मुलतान के शास्त्र भण्डार मे विराजमान किया । "
इसके पश्चात् लुरिन्दामल को कथाओ को पढने की इच्छा हुई इसलिए सवत 1836 की फाल्गुण वुदी एकम को "पुण्याथव कथाकोश" की प्रतिलिपि कराई । लिपिकर्ता महात्मा गुमानीराम थे 1 इसमे प्रतिलिपिकार ने लुरिन्दामल को श्रावक उपाधि से सम्बोधित किया है । इसी वर्ष उन्होने अपने लिये प० बशीधर कृत द्रव्य संग्रह भाषा टीका की प्रतिलिपि श्वेताम्बर मोतीराम से कराई |
लुरिन्दामल सब नगरो मे भ्रमण करके वापिस मुलतान आ गये और वहां अपने लिये स वत् 1843 मे परमात्म प्रकाश भाषा की प्रतिलिपि करवायी । 3 प्रशस्ति के अनुसार लुरिन्दामल ओनवाल दिगम्बर जैन थे तथा कणोडे मिघवी उनका गौत्र था । उन्हे दिगम्बर धर्म के प्रचार प्रसार की अत्यधिक चिन्ता थी तथा वे चाहते थे कि देश मे स्वाध्याय का प्रचार हो और जैन वन्धु जैन धर्म के महात्म्य को जाने । इसीलिए प्रशस्ति के अन्त मे लिखा है
जिनधरम के प्रभाव वरध्मान होउ । दिन दिन विषै जैवन्त होउ ||
लुरिन्दामल के वंशज वर्तमान समय मे आदर्श नगर जयपुर एवं दिल्ली मे रहते है उनके पश्चात् होने वाली सन्तान का परिचय निम्न प्रकार हैं
1. संबोधसतरी - 1 - 19, नयचक्र मूल टीका 1-27, षट्पाहुड 28 - 48, पचास्तिकाय 82 तक, सवत् 1825 मिति सावन प्रथम सुदि 15 वार सुक्रवार सूरत बदर मध्ये लिखत लुरींदामल सिंघवी ओसवाल सुलतानी ।
2. पुण्यास्रव कथाकोष पृष्ठ 233, सवत् 1836 का वर्षे शाके 1801 मासोत्तम मासे उत्तम मासे फाल्गुण मासे शुभे कृष्ण पक्षे पुन्यतिथौ 12 गुरुवासरे इदं पुस्तकां लिपिकृता महात्मा गुमानीराम श्रावक लुरीदामल जी आत्म पठनार्थे शुभं भवतु |
3. परमात्म प्रकाश भाषा श्री मूलताण नगर मध्ये सवत् 1843 : अठारहसई तेतालीस मासोतम मासे असाढ मासे कृष्णा पक्षे सप्तमी 7 दिने रविवारे संपूरण भया श्री जिनधरम के प्रभाव वरधमान होउ दिन दिन विषे जैवंत होउ । श्री मूलत्राण नगरवासी सा० उडीन्दामल कणोडे उसवाल वचनार्थ लिपिकृत नैनसुख ।
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गिरधारीलाल
विहारीलाल
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प्रेमचन्द
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पोखरदास
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कवरभान
दयालचद
कर्मचन्द
गोगनदास
दासूराम
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गणेशदास
तिलोकचन्द
गुमानीचन्द ।
मोतीराम
हीरानन्द
जस्सूराम
सानूराम
ताराचन्द
फतेहचन्द
देवीदास
मल
सतीराम
ऋखवदास
जेठानन्द
नोतनदास
मूलचन्द
घनश्यामदास
ऋक्कीराम
लीलाराम
सिंघवी परिवार क्शावली
लुणीन्दामल
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इस प्रकार लुरिन्दामल के जीवन मे साहित्य एव समाज नेवा के भाव थे तथा उन्होने मुलतान समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया था । इमो तरह उनके वशजो मे समाज सेवा की आज भी रुचि जाग्रत है। . • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
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दौलतराम ओसवाल
दौलतराम नाम के कितने ही कवि हये हैं इनमें जयपुर के दौलतराम कासलीवाल एव अलीगढ के दौलतराम सर्वाधिक लोकप्रिय विद्वान हैं । दौलतगम कासलीवाल का समय संवत् 1749 से 1829 का माना गया है। दूसरे दौलत राम का समय सवत 1855 से 1923 का है। लेकिन अभी मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार को देखते समय एक नये दौलतराम की कृति मिली हैं जो मुलतान के ही निवासी थे। मुलतान नगर में स्वाध्याय प्रेमियों, ग्रन्थ लिपिकारों तथा जैन साधुओं के अतिरिक्त संवत 1800 अथवा इसके पूर्व "दौलतराम” नामक कवि हुये जिनको सस्कृत ग्रन्थो की भाषा टीका करने मे रुचि थी। उनका जन्म कब हुआ तथा उनके माता पिता आदि कौन थे इस सम्बन्ध में अभी खोज नहीं हो सकी है लेकिन इतना अवश्य है कि वे मुलतानवासी थे, ओसवाल जाति के दिगम्बर जैन श्रावक थे तथा विद्वान थे। सवत् 1828 मे जव उनका इन्दौर नगर जाना हुआ तो वहां पर मल्लिनाथ चरित्र की भाषा टीका लिखी । यह ग्रन्थ अभी तक अज्ञात था तथा इसके सम्बन्ध मे हमे प्रथम वार जानकारी प्राप्त हुई है। मल्लिनाथ चरित्र भट्टारक सकलकीति द्वारा रचित सस्कृत का काव्य ग्रन्थ है जिसकी इन्होंने हिन्दी गद्य मे टीका लिखी थो । इसकी एक प्रति मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर जयपुर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है जो सवत् 1955 भादवा सुदी 14 की लिखी हुई है ।
____ जयपुर में होने वाले महाकवि दौलतराम कासलीवाल का भी यही समय है । उनकी अन्तिम रचना पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका है जिसको महा पडित टोडरमल जी अपूर्ण ही छोड़ गये थे और जिसका रचना काल सवत् 1827 है।
इसके अतिरिक्त दौलतराम कासलीवाल एव दौलतराम ओसवाल की भाषा मे भी काफी अन्तर है इसलिए दौलतराम ओसवाल भिन्न कवि हैं । मल्लिनाथ चरित्र भाषा टीका के अन्त मे उन्होने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
सवत अठारेसत अठवीस भौम दिन तिथ निरवाण महावीर निरग्रन्थ है। जिनको इन्दौर मे निमिति बुद्धि दौलत की बुद्धि को विलास भयो मल्लिनाथ ग्रन्थ है ।। देववानी अर्थ प्रमाणी भाषा ठानी जामे ता करि के खुले भव्य मेधा मधि ग्रन्थ है ।। तदपि सकल कवि कोविद किया के मेरी मदता को हरो कछू लगत न ग्रन्थ हैं ।
इति श्री सकल कीर्ति आचारज विरचित सस्कृति श्री मल्लिनाथ चरित्र अनुसार समाप्तं । इह टीका भाषा वचनिका दौलतराम उसवाल मुलतानी कही है श्री मिती भादो सुदी 14 संवत् 1955 शाके 1820 शुभ ।
मल्लिनाथ चरित्र की भापा यद्यपि ढढारी है किन्तु उस पर मुलतानी प्रभाव है उसका एक उदाहरण इस प्रकार है
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प्रात समय सूर्य का प्रकाश भया । वदीजन मधुर मधुर स्वर सहित गीति गायते हते । अनेक प्रकार घर घर विषै मगल होते भये । ता समय भेरी का गब्द मुनि कटि क्षीण भई है निन्द्रा जाकी ऐसी प्रजावती राणी समस्त मगल की धरण हारी, प्रबोध प्राप्ति भई । सती जिन पल्यक से उठि करि समस्त मगल की मिद्वि अथि सामायिकादि धर्मध्याण करती हुई ।
मल्लिनाथ चरित्र भाषा का आदि भाग निम्न प्रकार है
ॐ नमः सिध्देभ्यः। अथ मल्लनाथ चरित्र लिख्यते । प्रथम ही मगलाचरण निमिति चौवीस तीर्थकरनि को नमस्कार करे हैं । दोहा
श्री आदीश्वर आदि पुनि अंत समय जिनवीर ।
नमो जोरि करि ते हम, देउ बुद्धि गम्भीर ॥ जिनवाणी को नमस्कार
श्री जिनवर वागीश्वरी सप्तभग मय सार ।
नमो जोरि करि सो हमै होह सुमति दातार । गुरुनि को नमस्कार-गतागत दोहा
नमौ जतन वसि वपु तजौ तपु वसि वन तजि भौन ।
नमो चरण गुरुवर तपो तरवर गुण रचि मौन । दोहा
मल्ल जिणेस असल्य होइ, पायो अविचल थान । मति माफिक तिनि को अगम, कहो चरित्र वधान ॥
___ संवत् 1851 से 1900 तक सम्वत 1851 से 1900 का काल मुलतान समाज के लिए अधिक उत्साहवर्धक सिद्ध नहीं हुआ । इन वर्षो मे विभिन्न श्रावको द्वारा ग्रन्थो की प्रतिलिपिया करवा कर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की गयी। लेकिन स्वाध्याय की उस परम्परा मे कुछ शिथिलता आयी लगती है। यद्यपि बनारसीदास का समयसार नाटक समाज मे सर्वाधिक लोकप्रिय कृति मानी जाती रही लेकिन मुलतान जैन समाज का इसके प्रति पहिले जैसा आकर्षण नही रहा ।।
सवत 1868 मे उकेश वश मे प्यारामल दुग्गड हुए । ये धार्मिक प्रवृति के श्रावक थे। इन्होने अपने स्वय के पढने के लिए मुलतान मे ही तत्वार्थ सूत्र सस्कृत टीका की प्रतिलिपि करवायी। प्रति लिपि से यह स्पष्ट है कि मुलतान मे उस समय सस्कृत के पाठी श्रावक थे ।। 1. तत्वार्थ सूत्रटीका-सर्वार्थसिद्धि , अपूर्ण, पत्र संख्या 149 । संवत 1868 वर्षे
फागण सुदी 5 मूलचक्र मध्ये लिखावंत उकेशवंशे जेकामल जी तत्पुत्र सूबेराय जी तत्पुत्र प्यारामल दुगर पठनार्थ ।
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सवत 1871 मे तत्वार्थ सत्र की पुन प्रतिलिपि करवायी गयी और उसे शास्त्र भण्डार मे विराजमान किया गया। प्रतिलिपि सागानेर (जयपुर) मे हुई थी तथा प्रतिलिपि करवाने वाले थे सुश्रावक दयाचन्द ।।
मुलतान मे श्रावक रूपलाल थे। उन्हे स्वाध्याय की रुचि थी इसलिये सवत 1880 मे नेमिचन्द्रिका की एक पाण्डुलिपि उन्होने वजरगलाल कन्नोज वाले से प्राप्त की तथा स्वाध्याय के पश्चात उसे मुलतान के शास्त्र भण्डार को भेट कर दी ।' रूपलाल ने मनोहरलाल खण्डेलवाल कृत धर्म परीक्षा की पाण्डुलिपि फरक्कावाद मे लिखवा कर प्राप्त की और उसे भी स्वाध्याय के पश्चात शास्त्र भण्डार को भेट कर दी । सवत 1911 मे चौबीस महाराज मण्डल पूजा की प्रतिलिपि देहली मे करवायी गयी। जयपुर प्रतिष्ठा मे भाग लेना
सम्वत् 1861 मे जयपुर नगर मे एक बडे भारी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन हुआ। उसके आयोजक थे श्री नन्दलाल जी छावडा। यह प्रतिष्ठा महोत्सव एक दृष्टि से राजस्थान मे होने वाले पचकल्याण प्रतिष्ठा महोत्सवो मे विशाल स्तर पर मनाये जाने वाले प्रतिष्ठा महोत्सवो मे से एक था। जिसमे हजारो की संख्या मे
1. सूत्र टीका : हिन्दी । पत्र संख्या 190
संवत क्षपानाथ गजाद्रिचद्रे पोषे सिते भत तिथौ कवौ च । व्यलेखि सग्रामपुरे मयैषा ग्रन्थश्चिरं तिष्ठतु वाच्यमान ।
सुश्रावक दयाचंद जी लिखायिता स्ववाचनार्थ । 2. नेमचन्द्रिका : एक सहस अरु अठ सत वरष असीती और ।
याही संवत मौ करी पूरन यहु गुनगौर । फाल्गुरणस्य तमौ पक्षे अष्टम्यां बुधवासरे।
कृते मुन्नूलालस्य लिपि एषा विनिर्मिता। पौथी इह रूपालाल मूलतानी की मनरगलाला कनोजवाले दीना पढता अरथ
फरका का विच . सवालाल दीनी। 3. धरमपरीक्षा-मनोहरलाल खण्डेलवाल । लिपि संवत 1871। श्री शास्त्र जी
लिखाई फरक्कावाद मध्ये रूपालाल मुलतान वाले वचनार्थ मिति सुदी 12 संवत 1909 चौबीस महाराज मण्डल की पूजा-वृन्दावन पृष्ठ 76 लिखते नानगचन्द श्रावक जैसवाल बीसपंथी मूलसंघी हवेली पालम मध्ये जेष्ठ कृष्णा 2 सवत 1911 पुस्तक लिखवाई रूपलाल श्रावक मुलतान वाले ने इन्द्रप्रस्थ मध्ये ।
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जिन विम्बो की प्रतिष्ठा की गयी थी । मुलतान के भी कुछ श्रावक इस प्रतिष्ठा महोत्सव मे सम्मिलित हुये थे। उन्होने मलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर के लिए कुछ मूर्तियो की प्रतिष्ठा भी करवायी थी जो आज वहा के मन्दिर मे विराजमान हैं ।
सम्वत् 1901 से 2004 तक (अगस्त 1947 भारत विभाजन तक)
मुलतान का दिगम्बर जैन समाज अपनी धार्मिकता, साधर्मी जनो के प्रति सहज वात्सल्य एव सामाजिक जाग्रति के कारण सारे देश मे प्रसिद्ध हो गया । पजाब के नगरो मे ही नही किन्तु राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, देहली आदि सभी प्रान्तो के श्रावक मुलतान जाते और मुलतानवासी वन्धु अन्य प्रान्तो की यात्रा करते रहते । देश मे अ ग्रेजी शासन का विस्तार हो रहा था और उस समय पजाब मे अ ग्रेजी शासन स्थापित हो चुका था । सामान्यत सर्वत्र शान्ति व्याप्त थी इसलिए मुलतान से अन्य नगरो मे जाने आने का कार्य वरावर चाल था । मुलतान का और देहली के उपनगर पालम एव जिहानावाद का विशेष सम्बन्ध हो गया था । इन दोनो ही उपनगरो मे उस समय ग्रन्थो के प्रतिलिपि करवाने की अच्छी व्यवस्था थी इसलिए मुलतान के श्रावक यहा आते ही रहते और हस्तलिखित पाण्डुलिपियो को खरीद कर अपने नगर के मन्दिर मे विराजमान कर दिया करते थे। जयपुर, आगरा, अजमेर एव इन्दौर की दिगम्बर जैन समाज से वहा की समाज का अच्छा सम्पर्क था ।
'सुदृष्टि तरगिणी' जयपुर के विद्वान टेकचन्द की रचना है । सवत 1823 मे प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी थी। इस समय टोडरमल जी का युग था और उनके यूग के अनुसार ही इस ग्रन्थ की रचना सम्पन्न हुई थी। इसी ग्रन्थ की प्रतिलिपि जयपुर के निवासी महात्मा गदचन्द ने जिहानाबाद मे की थी । उसको लिखाने वाले थे गोयल गोत्रीय सनेहीलाल जैनाग्रवाल । सवत 1902 मे पहिले देहली के हरसुखराय के मन्दिर मे ग्रन्थ को विराजमान किया गया लेकिन बाद मे मुलतान समाज के आग्रह से उसे मुलतान के शास्त्र भण्डार मे भेट म्वरूप दिया गया ।
सददष्टितरगीणी-लिखतं गदचंदमहात्मा वासी सवाई जयपुर का हाल सुसवान दिल्ली जीहानावाद जैसिंघपुरा मध्ये । लिखायत लाला सनेहीलाल न्यात अगरवाल श्रावक जैनी गोत्र गोयल वासी हिसाकहै के हाल सुवखात दिल्ली जिहानाबाद मध्ये अनार की गली मध्ये सहली लाला हरसुखराय के मन्दिर मध्ये लिसी मिती श्रावण सुदी 4 गुरुवासरे सवत 1902 ।
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जयपुर के प० जयचन्द जी छाबडा भी मुलतान में काफी लोकप्रिय थे। उनकी कृतियो के स्वाध्याय का भी वहा अच्छा प्रचार था। इसलिए सवत 19051 मे और फिर संवत 1962 में अष्टपाहुड भाषा की मुलतान समाज के लिए जयपुर में प्रतिलिपि कगयी गयी । इसी तरह संवत 1916 मे देवागम स्तोश्र भाषा की प्रतिलिपि प्राप्त की गयी। यह था जयपुर और मुलतान का सम्बन्ध । वास्तव मे मुलतान वासियों के लिए तो जयपुर सदैव घर जैसा रहा है और उनका यहा वराबर आवागमन भी होता रहा ।।
देहली मे भी मुलतानी बन्धु व्यापार कार्य से आते जाते रहते थे । उन्ही में से एक थे हीरालाल ओसवाल । संवत 1907 मे इन्ही हीराला , ने वख्तावर सिंह से जिनदत चरित्र लिखवाकर मुलतान को भिजवाया था।' इसी समय वहाँ घनश्यामदास नामक श्रावक थे। वे भी शास्त्रो के लिखवाने एव उन्हे विद्वानों को भेट करने में रुचि लेते थे। मुलतान में उस समय प० हमीरमल थे जो स्वाध्यायी एव तत्व चर्चा में रुचि रखने वाले थे । इसलिए श्रावक घनश्यामदास ने उनको विभिन्न पाठो के सग्रह वाला गुटका भेट स्वरूप दिया जिसमे “सम्यकत्व कौमुदी" आदि बहुत से पाठ है ।
साहित्यिक दष्टि से सम्वत 1909 मुलतान समाज के इतिहास मे विशेप उल्लेखनीय है । इस वर्ष जिन श्रावको ने साहित्यिक कार्यों में विशेष योगदान दिया उनके नाम है धर्म पत्नी सां० होवणमल पारख, खुशीराम सिंघवी, सा० मोहनमल सिंघवी एवं सा० बेगवाणो । ये सभी श्रावक मुलतान समाज के
1. अष्टपाहुड भाषा-पं० जयचन्द छावड़ा, पत्र सं० 199, रचनाकालः 1867
भादवा सुदी 13 । लिपि स्थान जयपुर तेरहपंथ मन्दिर । लिपिकाल 1905 पोष सुदी सप्तमी। अष्टपाड भाषा-पं० जयचंद छावडा। पत्र संख्या 132, रचनाकाल 1867 भादवा सुदी 13 लिपि । स्थान-जयपुर तेरहपंथ मदिर । लिपिकाल संवत 1962 पोष सुदी पचमी। जिनदत्त चरित्र-बख्तावरलाल-लिखितं दीली मध्ये बखतावरसिंह जैनी अग्रवाल ने मुलतान वाले हीरालाल ओसवाल रहने वाले हाल देहरे मे तिनके माथे दीणी स बखतावरसिंह ने लिखकर है सवत 1907 मागशीर्ष शुक्ल पक्षे 9
बुधवासरे। 4. गुटका सम्यकत्वकौमुदी कथा आदि-संवत 1908 मिती कातिक बुदी
12 भोमवासरे तथ जिनधर्मामृतपोषक शास्त्र घनश्याम जी इदं पुस्तक ५० हमीरमल दत्त ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में,
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सम्माननीय व्यक्ति थे तथा उन्होने वहा के शास्त्र भण्डार मे श्रावकाचार भाषा, भगवती आराधना भाषा, हरिवश पुराण भाषा एव प्रवचनसार भाषा आदि शास्त्र लिखवाकर भेट किये थे। सबकी सुचि अलग अलग थी । कोई श्रावकाचार को उपयोगी मानता था तथा दूसरा हरिवंशपुराण को। एक की दृष्टि मे भगवती आराधना का अधिक उपयोग था तो दूसरे की दृष्टि मे प्रवचनसार भाषा का अधिक महत्व था। लेकिन सभी का ध्यान समाज मे ज्ञानवर्धन की ओर था।
सम्वत 1923 मे दर्शनसार भाषा की प्रतिलिपि प्राप्त की गयी । यह पं० शिवजीलाल जी की कृति है जो जयपुर के थे। उन्होने अपना परिचय निम्न प्रकार दिया है
पंडित शिवजीलाल प्रधान, मध्य सवाई जयपुर थान ।
सकल शास्त्र निर्दार बणाइ, रच्यो दर्शनसार सुभाइ ॥
इसी वर्ष सदासुख कासलीवाल की अर्थप्रकाशिका की पाण्डुलिपि पालम मे अमीचन्द श्रावक से लिखवा कर प्राप्त की गयी । 1 इसी प्रतिलिपिकार द्वारा संवत 1929 मे लालजीत कृत अकृत्रिम जिन मन्दिर पूजा की प्रति की गयी।
सम्वत 1927 मे वहा पडित शिवराम थे जो कश्मीरी पडित थे। समाज के आग्रह से उन्होने मुलतान मे ही परिमल्ल कवि के श्रीपाल चरित्र की प्रतिलिपि की थी। जैन विवाह पद्धति
जब देश मे जैन पद्धति से विवाह कराने की आवाज उठी, तथा विद्वानो द्वारा पुरजोर माग की गयी तो मुलतान समाज कैसे पीछे रहने वाला था। उसने भी सवत 1938 मे विवाह पद्धति की प्रति लिखवा कर समाज के उपयोग के लिये प्राप्त की। इससे समस्त समाज के साथ चलने की उनकी भावना का परिचय मिलता है ।
राजाराम दिगम्बर जैन ओसवाल भी पडित टोडरमलजी, भाई रायमल्ल एव जयचन्द जी के बड़े भक्त थे। उन्होने अपने पढने के लिये श्रावकाचार भाषा वचनिका ज्ञानानन्दपरित निरभरनिजरस की प्रतिलिपि प क्षेम शर्मा से करवायी। पडितजी मुलतान मे ही रहते थे इसलिये वही पर यह कार्य सम्पन्न हो गया। लेकिन इस भाषा
1. अर्थप्रकाशिका-सदासुख-पृष्ठ संख्या 453 रचनाकाल सवत 1914 वैशाख
सुदी 10, लिपिकाल संवत 1923 लिख्यतं अमोचदं श्रावक पालम मध्ये मिती
पौष कृष्ण 2 बार अतवार सवत 1923 । 2. विवाह पद्धति-मिति मंगसिर शुक्ला 15 वार रविवार संवत 1938 लिखायतं
कार्य मुलतान के जैनी लोग अपने पढ़ने के लिये।
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वचनिका को आसानन्द कृत लिख दिया गया है। जबकि यह भाई गयमल्ल द्वाग लिखा गया एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है तथा जिसको प्रतिलिपि जयपुर के भण्डारो मे सग्रहीन है । श्रावकाचारों की प्रतिलिपिया प्राप्त करने की इच्छ क समाज द्वारा इस के अगले वर्ष मागचन्द वृत अमितगति श्रावकाचार भापा की प्रति संग्रहीत की गयी। भागचन्दजी ने मवत 1920 मे इसे ग्वालियर छावनी के मन्दिर में समाप्त की थी। जब मुलतान समाज को श्रावकाचार के बारे मे जानकारी मिली तो पालम नगर मे प० सुगनचन्द से प्रतिलिपि करवाई गयी और उसे शास्त्र भण्डार में विराजमान किया गया । कल्याणीबाई
मुलतान मे महिलाओ मे भी स्वाध्याय एवं तत्वचर्चा की अच्छी प्रवृति थी। पहिले हम माणकदेवी एव अमोलका वार्ड का परिचय दे चुके हैं। अमोलमा बाई के समान कल्याणी वाई यद्यपि कवयत्री नही थी लेकिन ग्रन्थों के पढने में बडी रुचि लेती थी-I कल्याणीवाई कौन थी तथा उसके माता पिता एवं पति के नाम क्या थे इसका अभी पता नही चला सका है। लेकिन मुलतान दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर मे कुछ अन्य ऐसे है जिनके पीछे "यह ग्रन्थ कल्याणी बाई का है" इस प्रकार लिखा हआ है। ऐमे ग्रन्थो मे नेमिचन्द्रिका, क्रियासार एव योगसार भाषा के नाम उल्लेखनीय है ।
इस प्रकार समाज में अनेक उदार, धर्मनिष्ठ एवं समाजसेवी व्यक्ति हुए । समाज में एसे बहुत से महानुभाव थे जिसके हदय में सदैव समाजहित की चिन्ता रहती थी, तथा उनकी भगवान महावीर के सिद्धान्तों के प्रचार प्रसार मे रुचि थी। कुछ अपनी माधना द्वारा धर्म की महिमा को प्रकट करना चाहते थे तथा वहुत से धनिक एवं सम्पन्न व्यक्ति गरीवा एवं बेरोजगारी को सहारा देने मे बडी प्रसन्नता का अनुभव करते थे। इसलिये सबका विस्तृत परिचय देना तो सभव नहीं है किन्तु यहा कुछ विशिष्ट ममाज सेवियो का सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है
1. श्रावकाचार भाषा वचनिका-ज्ञानानन्द पूरित निरभर निजरस नामः संवत 16
राजत केवल ज्ञान जुत परम औदारिककाय । निरखि छवि भवि छकत है पो रस सहज सुनाय । इति श्री श्रावकाचार भाषा वचनिका• आसानन्दकृतः सम्पर्णन । अथ शुभ संवत 1938 श्रावण कृणा प्रतिपदायां भौमे लिपिकृतं सेवालय विप्रेण स्वपठनार्थ भाई 'राजाराम ओसवाल मुलतान देश मध्ये । अमितिगति प्रावकाचार भाषां-भागचन्द । पत्र संख्या 218 । रचना काल संवत 1920 आषाढ की अष्टान्हिका । लिपिकाल संवत 1939 लिख्यत सुगनचन्द श्रावक जैसवाल पालम ग्राम मध्ये । रचना स्थान : ग्वालियर के पास छावनी : पार्श्वनाथ जिनालय ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास. आलोक मेने
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श्री घनश्यामदासजी सिंगवी श्री घनश्यामदासजी सिगवी श्री ऋक्कीरामजी के पुत्र एव श्री लणीन्दामल सिगवी के पोत्र थे।
श्री लुणिन्दामलजी का परिचय 33, 34, 35, पृष्ठो मे दिया गया है।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज मे श्री घनश्याम दास सुपुत्र श्री रिक्की राम सिंगवी एक आदर्श महापुरुष गिने जाते हैं । समाज में उनके प्रति जो गहरा सम्मान था, आदर एव श्रद्धा थी वैसा सम्मान अच्छे से अच्छे व्यक्ति को भी मिलना कठिन हो जाता है । वे धन सम्पत्ति से सम्पन्न तो थे ही साथ ही चरित्र मे भी बहुत ऊचे थे। धनाढ्य होते हुए भी सिद्धान्त ग्रन्थो के अच्छे वेत्ता थे। पूरा मुलतान समाज ही नही किन्तु डेरागाजीखान एव अन्य नगरो की समाज भी उनके निर्देशानुसार चलती थी वे भी समाज की आवश्यकताओ का अनुसरण करते थे।
दिगम्बर धर्म में उनकी दृढ आस्था थी तथा उनकी हादिक इच्छा भी यही रहती थी की
श्री घनश्यामदास सिंगवी धर्म का अधिक से अधिक प्रचार हो। उनकी श्वताम्बर भाइयो से अकसर गूढ सैद्धान्तिक चर्चाएं होती रहती थी। उन्हे सत्य मार्ग को समझाने का पूरा प्रयत्न करते। उन्हे अपने मिशन मे पूर्ण सफलता मिली और मुलतान के ही सर्व श्री चौथूराम सिंगवी एव श्री भोलाराम बगवानी एव नेभराज बगवानी आदि परिवारो को दिगम्बर धर्म मे दीक्षित किया। इस प्रकार सारे मुलतान समाज को अपने आदर्श जीवन से अनुप्राणित करते हुए आप सवत 1950 के पूर्व ही स्वर्गलोक के वासी हो गये लेकिन समाज मे आपने जो चेतना जागृत की थी वह सदैव स्मरणीय रहेगी।
जहाँ आप धार्मिक क्षेत्र मे धर्मज्ञ एव निष्ठावान एव प्रभावशाली व्यक्ति थे वहा व्यवसाय मे भी आप बहत ऊँचे दर्ज के व्यापारी थे। आपकी मुलतान एव डेरागाजीखान मे हाथी दात एव कपडे आदि के सस्थान थे । आपके रिखवदासजी, छोगामलजी एव श्री सन्ती राम तीन पुत्र थे जिनका परिचय आगे दिया जा रहा है।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री छोगमलजो सिंगवी
श्री छोगमल जी सिंगवी अपने पिता श्री घनश्याम दासजी सिगवी के समान धर्मात्मा एव निष्ठावान श्रावक थे। जहां आपने अपने व्यवसाय में काफी उन्नति की वहा आप धर्म साधन के प्रति भी जागरूक एव श्रावक के षटकर्म पालन मे सदा ही अग्रणी रहे । आप नित्य पूजन करते थे। देव पूजन मे अति अनुराग होने के कारण, आपने सवत् 1955 माघ शुक्ला 12 को भगवान आदिनाथ एव चन्द्रप्रभु स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराकर मुलतान लाये | भगवान ऋषभदेव की मूर्ति नीचे मूल वेदी मे एवं चद्रप्रभु स्वामी की मूर्ति ऊपर वेदी मे विराजमान की । सिद्धान्त के अच्छे ज्ञाता होने से आप नित्य सभा मे शास्त्र प्रवचन भी किया करते थे । आप धार्मिक कार्यों में उत्साह पूर्वक मुक्त हस्त से दान देते एवं दीन दुखियो को भी गुप्त सहायता देकर उनकी हर तरह से मदद करते । आप समाज में प्रतिभाशाली एव प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । आपका व्यवसाय हाथी दातके चूड़ों का था जो शहर भर में प्रसिद्ध एव उच्च कोटि का था ।
श्री छोगमल सिंगवी
आपके श्री गुमानीचदजी, श्री नेमीचदजी, श्री बुद्धसेन जी तीन पुत्र एव एक पुनी थीं । आप विशेष धर्म साधन हेतु दशलक्षण पर्व पर डेरागाजीखान गये हुए थे, जहा आकस्मिक बीमारी के कारण असमय मे ही आपका देहावसान हो गया । आप समाज का पूरा ध्यान रखते थे । आपकी छत्रछाया में समाज अपने आपको गौरवान्वित समझता था । OOCO
श्री राजाराम बगवानी
श्री राजारामजी बगवानी ने ओसवाल दिगम्बर जैन परिवार में जन्म लिया था तथा वचपन से ही अच्छे सस्कारो में पले । प्रति दिन देव दर्शन स्वाध्याय आदि बाल्य अवस्था से ही करते थे । स्वाध्याय के बल पर ही उन्हें शास्त्रो का अच्छा अभ्यास हो गया । भाषा शैली एव स्मरणशक्ति अच्छी थी । युवा अवस्था में ही उनकी विद्वानो मे गिनती होने लगी और वे प्रति दिन शास्त्र प्रवचन करने लगे ।
श्री राजाराम बगवानी
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वगवानीजी को मत्रो आदि का भी अच्छा ज्ञान था । उन्होने कई लोगो को चमत्कार भी दिखाये । एक वार मुलतान शहर में प्लेग फैल गया था, पूरा शहर इस बीमारी से आक्रान्त हो गया । लोग शहर के बाहर जाकर रहने लगे। मगर राजारामजी ने अपने मत्र द्वारा ऐसा चमत्कार दिखाया कि महामारी का अभाव हो गया और मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे
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लोग वापस अपने घरो मे जाकर रहने लगे । आपने श्रावकाचार भाषा वचनिका, नानानदपूरित निरभर-निजरस आदि की प्रतिलिपिया प० क्षेम शर्मा से मुलतान मे ही करवाई जो आज भी शास्त्र भण्डार मे मौजूद हैं । आपके किशनचद एव नेमीचद जी दो पुत्र थे ।
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श्री चौथूरामजी सिंगवी श्री चौथूरामजी पुत्र श्री गोपालदासजी सिंगवी पहले श्वेताम्बर जैन थे। श्री घनश्यामदास जी के साथ तत्त्व चर्चा से सही सिद्धान्त एव आत्मकल्याण का सही मार्ग समझ मे आ जाने के कारण दिगम्बर धर्मं मे दीक्षित हो गये और अपना सारा जीवन धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।
आप प्रात काल उठते ही सामायिक, स्वाध्याय आदि स्वय करते तथा अन्य साधर्मी भाइयो को भी कराते । तत्पश्चात् नित्यकर्म से निवत होकर मदिर जाकर स्वय पूजन आदि करते एव युवको को पूजा स्वाध्याय आदि की । प्रेरणा देते थे। सभा मे शास्त्र प्रवचन सुनने के पश्चात् घण्टो खुद स्वाध्याय करते और अन्य भाइयो के साथ चर्चा करते । इसमे श्री भोलारामजी . बगवानी उनके विशेष साथी थे।
श्री चौथूरामजी सिंगवी आपको मोक्ष-मार्ग प्रकाशक मे विशेष रुचि थी। बीसो वार उसका स्वाध्याय किया था जिससे उन्हे वह कठस्थ सा हो गया था। वे वच्चो, युवको, सभी को न्वाध्याय करने की प्रेरणा देते । स्वाध्याय के बल पर ही उनको सिद्धात की अच्छी जानकारी हो गयी थी।
वे अन्य मतावलवियो के साथ जैन सिद्धातो के बारे मे विशेपकर ईश्वर कर्ता, अहिंसा आदि विषयो पर ही चर्चा करते थे । यहा तक कि मुसलमानो के साथ मसजिद आदि मे भी जाकर अहिंसा आदि के महत्व पर वार्तालाप करते।
उनका जीवन साधारण था । स्वभाव से वे सरल किन्तु आचरण मे दढ ये । देगा जाय तो उनका जीवन व्रतियो जैसा था । मच्चाई, ईमानदारी के कारण उनका धन्धा भी अच्छा चलता था। वे नवयुवको को स्वतत्र कामधन्धा करने को प्रेरित करते रहते थे। यही नही उन्हे हर तरह से सहयोग देकर एव उनके विवाह आदि करा कर अच्छा नदगहम्प यगाने मे पूर्ण सहयोग देते थे। समाज मे उनकी बातो का पूर्ण विश्वास या। जैसा वो कहते वोही होता । इसी तरह से श्री चौथूराम ने पत्रानो युवको के जीवन का निर्माण किया । अपने
• मुलतान दिगम्बर जैन तमान--तिहार फे आलोक में
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पुत्रियो के विवाह आदि सम्पन्न करने के पश्चात् दस हजार रुपये अपने पास रखने का नियम लेकर अपना धन्धा छोड़ दिया और पूरा समय समाज एव धर्म की सेवा मे समर्पित कर दिया ।
60 वर्ष की आयु के लगभग उनको कम दिखने लगा, फिर भी स्वाध्याय करना नही छोडा । स्वय पढने योग्य न होते हुए भी दूसरो से सुनते और युवको को घर से बुला - बुला कर शास्त्राभ्यासी वनने हेतु मोक्ष मार्ग प्रकाशक आदि का स्वाध्याय करवाते । यदि वे किसी पक्ति को पढने मे चूक जाते तो उसे स्वय ठीक बोल कर सुधरवा देते ।
उनके कोई पुत्र नही था । अपनी वडी लडकी के पुत्र जयकुमार (जो वर्तमान मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज के मंत्री है) को बचपन से अपने पास रखा और बाद मे उन्हे गोद लेकर अपना लडका वना लिया ।
सवत् 2003 मे आपकी मृत्यु के समय आपका दत्तक पुत्र एव अन्य सबधी एक विवाह मे डेरागाजी खान गये हुए थे । उसी दिन सायकाल अचानक उन्हे अपने अन्तिम समय का ज्ञान हो गया । अपनी भानजी को बुलाकर सिद्धो की आरती वोलने को कहा और स्वयं भी बोलने लगे । जैसे ही आरती समाप्त हुई वोलते-बोलते आप इस नश्वर देह को छोडकर 70 वर्ष की आयु मे स्वर्गलोक सिधार गये ।
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श्री गोलाराम वगवानी
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0000 श्री भोलारामजी बगवानी
श्री थारचामल जी के पुत्र श्री भोलाराम वगवानी मुलतान दिगम्बर जैन समाज के सम्मानित व्यक्ति थे । पहिले वह श्वेताम्बर जैन थे लेकिन वाद मे श्री घनश्यामदास जी से धर्म का सत्यमार्ग समझ कर दिगम्वर धर्म मे दीक्षित हो गये । स्वाध्याय मे गहरी रुचि होने के कारण वे कितने ही ग्रंथो के अच्छे ज्ञाता हो गये ।
महाकवि बनारसीदास के समयसार नाटक को उन्होने कितनी ही वार स्वाध्याय किया था इसलिये उन्हे बहुत से दोहे एव सवैये कठस्थ याद हो गये और जब कभी शास्त्र सभा मे किसी श्रोता द्वारा प्रश्न उपस्थित होता तो वे उसका उत्तर दोहा सवैया सुनाकर दे दिया करते थे । उन्हे धर्म के प्रति इतनी लगन हो गयी थी कि प्रतिदिन 3-4 घन्टे तक शास्त्रो का स्वाध्याय करते रहते थे ।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में
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श्री भोलाराम का जीवन अत्यधिक सरल एवं धामिक क्रियाओं से सम्पन्न था । 45 वर्ष की आयु मे व्यवसाय आदि छोड ब्रह्मचर्य व्रत लेकर उदासीन जीवन व्यतीत करने लगे तथा समाज को अपने जीवन से प्रेरित करते रहते । मुलतान समाज मे उनके प्रति गहरी श्रद्धा थी।
बगवानी जी ज्यादा पढे लिखे नही थे तो भी स्वाध्याय के बल पर वे हिन्दी के अच्छे ज्ञाता हो गये थे। वे गोम्मटसार जैसे ग्रन्थो का स्वाध्याय करने लगे थे।
स्वाध्याय के बल पर उन्होने मलतान से मोरेना विद्यालय में जाकर गोम्मटसार की परीक्षा दी और उसमे प्रथम स्थान प्राप्त किया । मोरेना से मुलतान आते समय रास्ते मे फिरोजपुर पहुंचे जहा उनका स्वास्थ्य अधिक खराब होने से फिरोजपुर में ही स्वर्गवास हो गया ।
भोलाराम जी के तीन लडके थे, जिनके नाम श्री रिखवदास श्री आसानन्द एव श्री रंगूलाल है। तीनो ही लडके धार्मिक प्रवृत्ति के थे, तथा सामाजिक कार्यो मे गहरी रुचि लेते थे।
0000 श्री दासूरामजी (जिनदासमलजी) सिंगवी
__ श्री दासूरामजी (जिनदासमलजी) सिंगवी का जन्म श्री फतेहचन्दजी पुत्र श्री नोतनदासजी सिंगवी के घर मलतान मे हुआ। श्री दासूरामजी, जिनदासमलजी के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे। लाला जिनदासमलजी जैन समाज के उन व्यक्तियो मे से थे जिनका सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में समर्पित था। आप स्वभाव से शान्तिप्रिय, विवेकी, धर्मनिष्ठ और वद्धिजीवी, कर्मठ कार्यकर्ता, कुशल सचालक एव निष्ठावान समाजसेवी ; थे । अनाथ विधवाओं, विद्यार्थियो एवं दीनदुखियो तथा वेरोजगार भाइयो की सेवा करने मे आपको बडी रुचि थी। ऐसे कार्यों को अपना स्वयं का जरूरी से जरूरी कार्य छोडकर पहले करने को तत्पर रहते थे । नमाज में प्रेम.
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श्रीमती मिल
• मुनसान दिगम्बर जैन नमार निराम रे पागेर में
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वात्सल्य एवं एकता बनाये रखने में आपका पूर्ण सहयोग मिलता रहता था इसके लिये आप जितना भी त्याग बलिदान कर सकते करने को तैयार रहते थे ।
आप साधारण परिस्थितियो मे होते हुए भी अपनी बुद्धिमता से अपने व्यवसाय को इतना बढाया कि आपकी गिनती उच्च व्यवसायियो मे होने लगी । आप इतने बुद्धिमान एव न्यायप्रिय थे कि समाज में किसी भी परिवार के सदस्यों में कोई आपसी विवाद हो जाता तो वे आपसे पक्षपात रहित न्याय की अपेक्षा करते हुए आपके पास आते और आप ऐसा न्याय संगत फैसला करते कि परिवार मे शान्ति एव सौहार्द का वातावरण उत्पन्न हो जाता ।
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आप स्वाध्याय प्रेमी और कुशल वक्ता भी थे । शास्त्र सभा मे आप प्रभावशाली प्रेरणादायक प्रवचन किया करते थे । आपके श्री चादारामजी (जिनकी दुर्घटना से असामयिक मृत्यु हो गयी), श्री माधोदासजी, और श्री वलभद्र कुमार जी तीन पुत्र हैं जो आपकी तरह धर्मज्ञ, सेवाभावी एव शान्तिप्रिय हैं । आपका सन् 1947 से पूर्व ही समाधि पूर्वक स्वर्गवास हो गया ।
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श्री पदमचन्दजी नौलखा
श्री पदमचंद जी नौलखा का जन्म मुलतान मे ओसवाल दिगम्बर जैन समाज के प्राचीनतम परिवार मे हुआ था । मुलतान दिगम्बर जैन समाज के इतिहास मे आपके पूर्वजों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । आपके पिता का नाम श्री मूलचन्दजी नौलखा था । आप समाज में उत्साही एव कर्मठ कार्यकर्ता थे । समाज के किसी भी परिवार पर आई विपत्ति के समय आप हर प्रकार से काम आने वाले व्यक्ति थे । धर्मज्ञता तो आपके परिवार की परम्परागत विरासत थी । णमोकार मन पर आपकी अगाध एव दृढ श्रद्धा थी ।
नौलखा जी मुलतान मे जनरल मर्चेन्ट के अच्छे व्यापारी थे । उनकी मिया चन्नू मण्डी मे भी एक दुकान थी । आप मुलतान से वहा गये हुए थे कि उसी दिन रात्रि को 11वजे आपकी दुकान की लाइन मे एक पसारी की दुकान को आग लग गयी और एक के बाद दूसरी दुकान जलने लगी । आपको वहा के तहसीलदार ने दुकान खाली कर देने को कहा किन्तु आप मना करके दुकान के सामने पटरी पर बैठकर णमोकार मन्त्र का जाप करने लगे । देखते देखते आग आपकी दुकान को छोड़कर अगली दुकानो मे फैल गई । लाइन में चार दुकाने पूर्व को तथा तीन दुकानें पश्चिम की ओर की जल गयी बीच में आपकी दुकान ज्यो की त्यो बच गई जिससे मण्डी मे नौलखा जी के प्रभाव की बात बिजली की तरह फैल गई और सैकडो लोग आपके दर्शन करने आने लगे ।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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इसी प्रकार सन् 1930 मे क्वेटा, बलूचिस्तान मे भूकम्प आया था तव आप उन्ही दिनो वहा पर व्यवसाय करते थे और सारा परिवार आपके साथ रहता था। भूकम्प के समय जहा सारा क्वेटा तहस-नहस हो गया और परिवार के परिवार मौत के मुह मे चले गरे किन्तु आपके अतिरिक्त पारवार के एक बच्चे को भी चोट तक नहीं लगी। आपको अवश्य चोट लगो फिन्तु फिर भो नमोकार मन्त्र का जाप सावधानी पूर्वक करते रहे। आपने अपने लडके से कहा नुकसान जो हुआ सो हुआ मै मुलतान से स्वाध्याय के लिये मोक्षमार्ग प्रकाशक हस्तलिखित ग्रन्य लाया था उसे किसी तरह से अवश्य ढु ढवा लेना । ऐसा कहते ही चन्द मिनटो मे भूकम्प का दूसरा झटका लगते ही मकान का वचा हुआ भाग भी आ गिरा और वह ग्रन्थ चौको सहित आपके सामने आ गया। क्वेटा मे ही सात दिन की बीमारी के बाद आपका देहान्त हो गया । आपके जीवन में कितनी हो ऐसी घटनाये हैं जो णमोकार मन्त्र के प्रति श्रद्धा एव प्रेरणा पैदा करती है । आप अपने पीछे श्री मानकचन्द एवं श्री जयकुमार दो लडके छोड गये ।
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000 श्री नेमीचन्दजी बगवानी
श्री नेमीचन्दजी बगवानी श्रीराजाराम के सुपुत्र थे तथा अपने पिता के समान वे भी समाज के कर्मठ कार्यकर्ता थे। अपने व्यापार के अतिरिक्त जितना भी उन्हे समय मिलता वह सब समाज सेवा मे व्यतीत करते थे। जैन धर्म के प्रचार प्रसार की उनकी तीव्र उत्कण्ठा थी। वे अच्छे कार्यकर्ता थे।
आपने मुलतान मे दस वर्ष के बच्चो से लेकर बीस वर्ष के युवको तक की दो भजन मडिलिया बनायी तथा मण्डली के सभी सदस्यो को गाने एव
बजाने की शिक्षा दिलवाई। कुछ ही वो मे इन सगीत श्रा नेमीचन्द जी बगवानी मण्डलियो ने सारे पजाव मे ख्याति प्राप्त की। श्री नेमीचन्दजी इन मण्डलियो के प्रमुख थे। इसलिये जहा से उन्हे बुलावा आता वे सबको माय लेकर सहर्ष जाते और संगीत के माध्यम से जैन धर्म का प्रचार प्रसार करते । इन भजन मण्डलियो ने अमृतसर, लाहौर, सहारनपुर, फिरोजपुर, शिम्ला, देहली पानीपत आदि स्थानो मे कार्यक्रम देकर अपनी सगीत निपुणता की छाप छोडी थी।
___मुलतान के मन्दिर की वे पूरी देखभाल करते थे तथा उसे नवीनतम रूप देने में उनका पूरा सहयोग रहा था । आपके एकमात्र पुत्र श्री कन्हैयालाल जी है । आपका स्वर्गवान सन् 1947 से पूर्व हो गया।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलाक में
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पंडित अजितकुमारजी शास्त्री प अजितकुमारजी शास्त्री उत्तर प्रदेश के चावली (आगरा ) ग्राम के निवासी थे । छोटी अवस्था मे ही आपको माता पिता का वियोग हो गया । पहिले चौरासी मथुरा मे और फिर बनारस मे आपने शिक्षा प्राप्त की तथा आपको प चैनसुख दासजी, प राजेन्द्र कुमारजी एव प कैलाशचदजी, शास्त्री जैसे मेधावी साथी मिले । सन् 1923 मे आपका विवाह हुआ । आप बम्बई काम करने गये और 1924 में दिगम्बर जैन पाठशाला के अध्यापक के रूप मे मुलतान आ गये । उन्होने वहा पर समस्त युवको, प्रौढ पुरुषो एव महिलाओ को जैन सिद्धान्त पढाया तथा अच्छी धार्मिक जागृति पैदा की । प अजितकुमारजी के मुलतान आने से मुलतान समाज का उत्तर भारत की जैन समाज से और भी प० अजित कुमारजी शास्त्री अच्छा सम्वन्ध स्थापित हो गया । जब अम्बाला मे शास्त्रार्थं सघ की स्थापना की गयी तो प० अजितकुमारजी उसके प्रमुख कार्यकर्ता थे । सघ ने जैन दर्शन नामक पत्र का मुलतान से प्रकाशन किया और पण्डितजी उसके तीन सम्पादको मे से एक सम्पादक थे । आप बहुत उच्च कोटि के लेखक भी थे । आपने 25 से अधिक पुस्तकें लिखी जिनमे 'सत्यार्थ दर्पण', 'श्वेताम्बर मत समीक्षा', 'ढु ढक मत समीक्षा' आदि पुस्तकें प्रमुख हैं । आपने कई पुस्तको एव पत्तो का सम्पादन भी किया। जैन दर्शन मे 'सघ भेद' के नाम से उनकी लम्बी लेखमाला चली थी । उनके सम्पादकीय लेखो की बधी हुई ली थी ।
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पण्डितजी को शास्त्रार्थ करने मे बडी रुचि थी । आपने व पण्डित राजेन्द्र कुमारजी ने आर्य समाज के साथ कई शास्त्रार्थ किये जिनमे मुलतान का शास्त्रार्थ उल्लेखनीय है । जिसके प्रभाव से आर्य समाज के प्रकाण्ड विद्वान्, स्वामी कर्मानन्दजी जैन धर्म मे दीक्षित हुए थे । मुलतान में आपने अकलक प्रेस लगा लिया था ।
मुलतान जैन समाज से आपका विशेष सम्बन्ध हो गया था । यही कारण है कि लगातार 23 वर्ष तक आप मुलतान मे हो रहे और सन् 1947 के पश्चात् आप मुलतान छोड़कर दिल्ली आ बसे । आपका वहा भी मुलतान समाज से वैसा ही सम्पर्क रहा और समाज 'भी आपको अपना अभिन्न अग मानती रही । मृत्यु के कुछ वर्ष पूर्व आप शान्तिवीर नगर श्री महावीर जी आ गये और वहाँ आपने शान्तिवीर मन्दिर मे ग्रन्थ प्रकाशन आदि का कार्य सभाल लिया । 19 मई 1968 को रात्रि मे अचानक छत से गिर जाने के कारण दुर्घटना में आपका स्वर्गवास हो गया ।
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पण्डितजी अपने समय के ज्योतिमान दीपको में से थे तथा निर्भीक सम्पादक, कुशल साहित्यिक एव जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ थे। श्री शास्त्रीजी ऐसे दीपक थे जिन्होने विवादो मे भयकर तूफानो के बीच भी अपनी ज्योति ज्यो की त्यो रखी । पण्डितजी पर मुलतान समाज को ही नही अपितु समस्त जैन समाज को सदा गर्व रहेगा । आप अपने पीछे अपनी पत्नी श्रीमती चमेलाबाई, एक पुत्र एव चार पुत्रिया छोड गये हैं ।
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सम्वत् 1901 से 2004 तक की अन्य प्रमुख सामाजिक गतिविधियाँ विक्रम संवत् 1901 से सवत् 2000 तक सौ वर्ष का समय दीपक की लौ के समान रहा जो बुझने से पूर्व अधिक प्रकाश करता है । इसी तरह मुलतान दिगम्बर जैन समाज इन वर्षों के समय में, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से चरम उत्कर्ष पर था । वहा समय-समय पर आध्यात्मिक चर्चाओ के अतिरिक्त विशाल उत्सव भी मनाये जाते रहे, जिनमे सवत् 1965 का जलसा विशेष उल्लेखनीय रहा है । उस वर्ण एक बहुत बडे उत्सव का आयोजन किया गया था जिसमे बाहर से कई भजन मंडलिया, नाटककार, सगीतज्ञ आदि तथा विद्वद्वर्य श्री प० पन्नालालजी न्यायदिवाकर खरजा एव श्री प० कल्याणमलजी अलीगढ़ वाले आदि दिग्गज विद्वान बलाए गये ।
इसी अवसर पर इस महान उत्सव मे, एक विशाल पैमाने पर अपूर्व शोभा यात्रा अर्थात् जुलूस बडी सजधज के साथ निकाला गया था, जिसकी स्मृतिया आज भी सजीव है । रात्रि मे भजन मण्डलियो द्वारा हृदयग्राही उपदेशात्मक एवं आध्यात्मिक भजन, एव नाट्यकारो द्वारा नाटको के माध्यम से धार्मिक एव सास्कृतिक प्रदर्शन तथा बाहर से पधारे हुए गणमान्य विद्वानो के उद्बोधात्मक प्रभावी प्रवचनो द्वारा महती धर्म प्रभावना हुई, जिसकी स्मृतिया आज भी लोगो के हृदय पटल पर अकित है ।
इसी प्रकार प्रत्येक वर्ष पर्वाधिराज दशलक्षण पर्व भी अत्यन्त उत्साह पूर्वक एव धूमधाम से मनाया जाता था । प्रात 7 से 11 बजे तक सामूहिक पूजन, तत्पश्चात् बाहर से बुलाये गये विद्वानो द्वारा एक बजे तक शास्त्र प्रवचन, सायकाल भजन मण्डलियो द्वारा आरती एव भक्तिपूर्ण भजन, रात्रि मे विद्वानो द्वारा सार्वजनिक रूप से सैद्धान्तिक एव तलस्पर्शी आध्यात्मिक प्रवचनों से धर्म प्रभावना की जाती थी तथा दशलक्षण पर्व के अन्त मे नगर मे विशाल स्तर पर शोभायात्रा से महती धर्म प्रभावना सहित दगलक्षणी पर्व का क्षमावाणी एव समापन समारोह मनाया जाता था ।
मुलतान मे समय-समय पर बराबर विद्वानों का भी आगमन होता रहता था जिनमे सर्वश्री विद्वद्वर्य प० पन्नालालजी न्यायदिवाकर, प० श्री कल्याणमलजी अलीगड, प० श्री पन्नालालजी धर्मालकार गिखरजी, पं० श्री कस्तूरचन्दजी, प०श्री मक्खनलालजी मुरेना, प० श्री मक्खनलालजी दिल्ली, प० श्री कैलाशचन्दजो वाराणसी, प० श्री राजेन्द्रकुमारजी मथुरासध, प० श्री लालबहादुर शास्त्री, सगीतज्ञ भैयालालजी भजनसागर व प० नाचन्दजी गोरावाला आदि विद्वानो के नाम विशेषत उल्लेखनीय है ।
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कभी कभी त्यागी व्रतियो का भी मुलतान मे समागम होता रहता था ब्रह्मचारी पं० शीतल प्रसादजी का तीन वार चतुर्मास सुलतान मे हुआ, फलस्वरूप समाज को तात्विक एन भेदविज्ञानपरक आध्यात्मिक प्रवचनो का अपूर्व धर्म लाभ मिलता था, इसी प्रकार एक बार ऐलक पन्नालालजी का भी मुलतान मे शुभागमन हुआ जिससे लगभग सात दिन तक धर्म की अमृत वर्षा होती रही।
इसी प्रकार मुलतान नगर के बाहर श्रीमान दासूरामजी सुखानन्दजी गोलेछा ने अपने बाग में चैत्यालय का निर्माण कराया था जिसकी विक्रम सवत् 1992 मे वेदी प्रतिष्ठा के रूप मे समाज ने एक सप्त दिवसीय अभूतपूर्व जलसे का आयोजन किया, जिसमे मुलतान के साथ डेरागाजीखान की पूरी समाज एव भजनमण्डली ने भी आकर भाग लिया तथा उस जलसे की शोभा यात्रा के लिये डेरागाजोखान से रथ एव कृत्रिम विशाल हाथी तथा शोभा का अन्य लवाजमा मगाया गया था, इसके अतिरिक्त विशेष आकर्षण का केन्द्र फिरोजपुर से मगाया गया दो घोडो का विशाल अपूर्ण कलात्मक रथ या।
उन दिनो मूलतान मे हिन्दू मुस्लिम के भारी दगो से वहाँ का वातावरण अशात एन भयावह होने पर भी धर्म के प्रभाव से वह अपूर्व मनोरम गोभा यात्रा वगीचे से प्रमुख वाजारो मे होकर निविघ्न तथा धूमधाम के साथ शहर के मन्दिर तक सानन्द सम्पन्न हुई। इस प्रभावशाली शोभा यात्रा की स्मृति वर्षों तक जैन जैनेतर समाज मे वनी रही।
इसी तरह समय-समय पर विशेष धार्मिक आयोजन जैसे सिद्ध चक्र विधान, त्रिलोक मण्डल विधान, अढाई द्वीप विधान आदि बडे उत्साहपूर्वक मनाये जाते थे जिनमे सम्पूर्ण समाज वडे उत्साह के साथ भाग लेती थी।
पजाव प्रदेश मे अम्बाला एव मुलतान ही ऐसे नगर थे जहा की दिगम्बर जैन समाज अधिक क्रियाशील थी और समाज की कितनी ही गतिविधियो का वह केन्द्र थो । अम्बाला मे 'शास्त्रार्थ सघ' की स्थापना एव मुलतान से जैन दर्शन' मासिक पन का प्रकाशन उम समय की प्रमुख घटना रही। इन दिनो आर्य समाज के साथ खूब शास्त्रार्थ होते रहते थे और इसका प्रमुख केन्द्र भी पजाव के दो चार नगर ही थे। मुलतान समाज जैन विद्वानो एव शास्त्रार्थ सघ को पूरा सहयोग देती थी। मुलतान मे भी आर्य समाज के साथ गास्त्रार्थ हुआ था जिसमे जैन समाज की ही जीत हुई थी और उस जीत के फलम्बरूप म्वामी कर्मानन्दजी जो आर्य समाज के चोटी के दिग्गज विद्वान थे जैन धर्म मे दीक्षित हो गये । मुलतान समाज ही था जिसने सर्वप्रथम स्वामीजी को गले लगाया और समाज मे साधर्मी भाई की तरह उनको रखने लगा।
मन् 1924 मे मुलनान मे पडित अजितकुमारजी गास्त्री के आगमन से भी नमाज मे एक नयो चेतना जागृत हुई। एक ओर पडितजी ने पूरे समाज को धार्मिक विद्या से शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और अपने आपको मुलतान समाज की मेवा मे पूर्णत
मुन्नान दिन जैन नमाज-दतिहास के आलोक में
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समर्पित कर दिया तो दूसरी ओर मुलतान समाज मे शास्त्रीजी के धार्मिक एवं सामाजिक कार्यो मे परामर्श को सबसे अधिक महत्व दिया जाने लगा तथा पडितजी की प्रत्येक आवश्यकता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाने लगा ।
यह युग सामाजिक जागृति का युग था । सामाजिक सस्थाओ के जन्म का युग था तथा सामाजिक बुराइयो के प्रति जिहाद बोलने का था । ऐसे समय मे मलतान समाज भी पीछे नही रहा । यहा भी समाज पूर्णत समर्पित था और धर्म पर, समाज पर एव दिगम्बर संस्कृति पर जो भी विपत्ति आती उसका डटकर मुकाबला किया जाता था । मुलतान मे उस समय दिगम्बर जैन, ओसवालो के करीब 70 परिवार थे जिनमे सिघवी, गोलेछा, वगवानी, ननगाणी, नौलखा, दुग्गड आदि थे । नौलखा परिवार मुलतान दिगम्बर जैन समाज मे प्राचीनतम परिवारो मे से एक माना गया है क्योकि इसमे अमोलका बाई आदि का प्रमुख स्थान रहा है । और कुछ अग्रवाल दिगम्बर जैन परिवार भी थे। जिनमे रामजी दास परमानन्द आदि के परिवार मुख्य थे जो राजकीय सेवा मे मुलतान आये थे । वे लोग भी धर्मिष्ठ एवं अच्छे तत्व प्रेमी थे । सवत् 1980 मे रामजीदास ने जयपुर के महान दौलतरामजी कासलीवाल के "परमात्म प्रकाश" भाषा टीका की एक प्रति लिखवाकर मुलतान के मन्दिर को भेट स्वरूप प्रदान की थी और श्री रामजीदास तो कई वर्षो तक मुलतान दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष भी रहे ।
उसी प्रकार श्री परमानन्दजी भी शास्त्रो के अच्छे ज्ञाता, तत्व अभ्यासी एव शास्त्र सभा के प्रमुख स्रोता थे । इस प्रकार मुलतान मे रहने वाले सभी जातियो के परिवारो मे भाईचारा, एक दूसरे के प्रति वात्सल्य एव प्रत्येक क्षेत्र मे आपस मे सहयोग के साथ आगे वढने की भावना थी । वास्तव मे इन वर्षो का मुलतान समाज एक आदर्श समाज के रूप में विख्यात था ।
दिगम्बर जैन मन्दिर
मुलतान नगर पर पंजाब का प्रमुख नगर होने के कारण उस पर मुसलमानों के बरावर आक्रमण होते रहे इसलिये न जाने कितनो वार मन्दिरो का विन एव पुनर्निर्माण भी हुआ होगा । कुछ दिगम्बर जैन परिवार दुर्ग (किले) मे रहते थे और इन्होने वही पर अपना मन्दिर भी बना रखा था लेकिन जब लड़ाई में मुल्तान दुर्ग ध्वस्त हुआ तो उसके साथ मन्दिर, मूर्तियाँ, पाण्डुलिपियों एवं अन्य बहुमूल्य नाम भी नष्ट हो गई । जैन बन्धुओ को किला छोड़कर शहर में आकर रहना पड़
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के बालक ने
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पश्चात् जब दुर्ग की खुदाई हुई तो उसमे भगवान पाश्वनाथ की पाषाण की भव्य मूर्ति प्राप्त हुई, जिसके दर्शन मात्र से ही आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है। इस मूर्ति का आकार 81x5 इंच है तथा उसका फण टूटा हुआ है। इस पर सवत् 1548 वरसे वैशाख सुदी 3 अकित है। इस मूर्ति के सवत् के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 16वी शताब्दी मे मुलतान मे दिगम्बर जैन समाज का अस्तित्व था।
मुलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर मे नीचे एक वेदी थी जिसमे अनुमानतया 60 मूतिया विराजमान थी। भगवान पारसनाथ की प्रतिमा जिसमे मूलनायक थी।
__ ऊपर एक कमरे मे सिंहासननुमा वेदी मे भगवान चन्द्रप्रभु की एक सफेद पाषाण की मनोज्ञ मूर्ति विराजमान थी, जो अतिशय युक्त एव चमत्कारिक मानी जाती है। इसके विषय मे ऐसी किवदन्ती है कि रात को कई बार मूर्ति के सामने घन्टे बजते एव जयजयकार के शब्द सुनाई देते थे। यह अतिशय देव कृत कहा जाता है तथा उसी कमरे की दीवार मे एक छोटी सी वेदी बनी हुई थी जिसमे तीन स्फटिक मणि की एव कई छोटी-छोटी सर्वधातु एव पाषाण की प्रतिमाए विराजमान थी।
भगवान पार्श्वनाथ की सबसे अधिक मान्यता थी। इसलिये मतिया भी मन्दिर मे सबसे अधिक भ० पार्श्वनाथ की थी। मन्दिर मे सबसे प्राचीन मूर्ति भगवान पाश्वनाथ की सवत् 1481 की थी जो धातु की पद्मासन है और 2-3 इच साइज की है । उस पर निम्न प्रकार लेख है
"सवत् 1481 काष्ठा सा० चम्पा सा० लूनि ।"
इसी मन्दिर मे एक खड्गासन प्रतिमा है जो धातु की है तथा सवत् 1502 बैसाख सुदी 3 शनिवार के दिन की प्रतिष्ठित है। भट्टारक जिनचन्द्र इसके प्रतिष्ठाकारक थे तथा सा० डाल गोधा ने अपने पत्नी एव परिवार के साथ इसकी प्रतिष्ठा करवायी थी।
मूर्ति का लेख निम्न प्रकार है
"सवत् 1502 वर्षे वैशाख सदी 3 शनी श्री मलाघे भ० श्री जिनचन्द्रदेवा खण्डेलवाल गोधा सा डालू भा धनपति डोडा सा ल्हालो माला करायिता ।"
चौवीस महाराज की एक प्रतिमा सवत् 1638 माघ शुक्ला पचमी सोमवार के दिन की प्रतिष्ठित है। प्रतिमा पद्मासन है तथा 5x3 इच की है। किसी अग्रवाल जैन बन्यु ने इसकी प्रतिष्ठा करवा कर मन्दिर मे विराजमान की थी।
इसी तरह मन्दिर मे सवत् 1561 की भी पार्श्वनाथ की ही मूर्ति है
मवत् 1565 मे प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर वडा लेख है जिसके अनुनार भट्टारक मलय कीति के भ्राता भ० शान्तिदास के उपदेश से प्रस्तुत प्रतिमा प्रतिष्टित की गयी थी।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास ले पालोप में
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- मूल वेदी ।
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॥ श्री दिगम्बर जैन पाठशाला, एव धर्मशाला
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(मुलतान 16-10-1947)
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भगवान महावीर स्वामी
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भगवान पार्श्वनाथ
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- - - - 0 सवत 1883, देहलो मे प्रतिष्ठित
भव्य-मूर्ती
त 1883, देहली मे प्रतिष्ठित
भव्य मूर्ती
चोवीस महाराज की भव्य प्रतिमा
भगवान पार्श्वनाथ
0 श्री दिगम्बर जैन मन्दिर डेरागाजीखान की मूलनायक प्रतिमा
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देवाधिदेव पार्वनाथ की भव्य एवम् चित्तावक पतिमा
मरत 1565
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राजमान
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॥ श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, मुलतान से लाई गई ___ भगवान महावीर स्वामी की खडगासन मूर्ती
भगवान पार्श्वनाथ
भगवान पार्श्वनाथ
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0दुगं से प्राप्त भव्य मूर्ती
(स 1548, येसाख सुदी तीन)
। मुलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर
की मूल नायक प्रतिमा म (1481)
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भगवान पार्श्वनाथ की ही एक धातु की प्रतिमा 5वी शताब्दी के भी पहले की प्रतीत होती है । प्रतिमा की ध्यान मुद्रा अत्यधिक आकर्षक है ।
सवत् 1718 मे प्रतिष्ठित भगवान पार्श्वनाथ की धातु (पीतल) की प्रतिमा भी मनोज्ञ प्रतिमा है ।
जयपुर मे सवत् 1861 मे विशाल प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था जिसमे समस्त देश के श्रावक यहा एकत्रित हुए थे तथा हजारो की सख्या मे जिन बिम्बो की प्रतिष्ठा हुई थी । उस समय मुलतान से भी कितने ही श्रावक जयपुर प्रतिष्ठा मे आये थे और चन्द्रप्रभ स्वामी एव अन्य प्रतिमाओ की प्रतिष्ठा करवायी थी । इसी तरह जब 1883 मे देहली मे प्रतिष्ठा हुई तो वहा भी चन्द्रप्रभु स्वामी की ही मूर्ति प्रतिष्ठापित कराकर मुलतान मन्दिर मे विराजमान की गई ।
उक्त प्रतिमाओ के अतिरिक्त सवत् 1950, 1955, 1960, 1963 आदि सवतो प्रतिष्ठापित प्रतिमाएँ भी मन्दिर मे विराजमान है । सवत् 1955 मे प्रतिष्ठित मूर्तियो मे मुलतान का नाम अकित है ।
मन्दिर मे फिरोजपुर, सोनीपत, रेवासा, सम्मेदशिखर आदि स्थानो मे प्रतिष्ठित मूर्तिया विराजमान हैं। सभी मूर्तियाँ भव्य एव आकर्षक है । ये सभी भव्य, मनोज्ञ एव अतिशययुक्त प्रतिमाएँ दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर मे विराजमान है ।
शास्त्र भण्डार
दिगम्बर जैन मन्दिरो मे शास्त्र भण्डार अथवा सरस्वती भवन का होना मन्दिर का आवश्यक अंग माना जाता है | श्रावक के छह आवश्यक कार्यो मे भी स्वाध्याय को अत्यन्त महत्व दिया गया है इसलिये शास्त्र भण्डारो की स्थापना मे वृद्धि होती रही है । मध्यकाल मे जब भट्टारको का उदय हुआ तो उन्होने अपने-अपने केन्द्र स्थानो पर शास्त्रो का अच्छा संग्रह किया । राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, एव देहली मे जहा पहिले इन भट्टारको की गा दिया थी आज भी हजारो की सख्या मे हस्तलिखित ग्रन्थो का सग्रह मिलता है । मुलतान समाज प्रारम्भ से ही स्वाध्याय प्रेमी रहा है । इसलिये श्रावको के उत्साह एव रचि के कारण मन्दिर एवं शास्त्र भण्डार दोनो मे ही वृद्धि होती रही ।
मुलतान क दिगम्बर जैन मन्दिर में भी शास्त्र भण्डार था जिसमें बहुत से हस्तलिखित ग्रन्थो का संग्रह था । इन ग्रन्थो मे अधिकाण ग्रन्थ हिन्दी
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे
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भाषा के है। इसके अतिरिक्त प्राकृत एव सस्कृत के भी कुछ ग्रन्य उपलब्ध होते है । सबसे वडी बात तो यह है कि भण्डार मे 17वी शताब्दि से पहिले की एक भी पालिपि नहीं मिलती है जिससे यह तो स्पष्ट है कि वर्तमान भण्डार की स्थापना सम्राट अकबर के शासन काल में हुई थी।
शास्त्र भण्डार मे नाटक समयसार की प्राचीनतम पाण्डलिपि है जो सवत् 1745 में आषाढ सुदी 8 सोमवार की लिखी हुई है। इसके पश्चात सवत् 1748 की दो पाण्डुलिपिया है जिनमे यह चतुर्विशति जिनचरण गोत है तथा दूसरी समयसार नाटक एव बनारसी विलास की प्रति है । प्रथम का लिपि काल सवत् 1748 मगसिर की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तथा दूसरे का लिपि काल मगसिर शुक्ला दोज का है । प्रथम प्रति माह भैरवदास राखेचा के पुत्र के पढने के लिये तथा दूसरी स्वय भैरवदाम के पटने के लिये लिखी गयी थी। कमा उत्तम युग था जब पिता पुन के लिये अलग-अलग पाण्डुलिपिया तैयार की जाती थी। भैरवदास बडी आयु के थे। इसलिये उन्होने अपने लिये समयमार की स्वाध्याय करने की इच्छा प्रकट की जवकि अपने पुत्र के लिये चौबीस तीर्थकरो के गीतो के स्वाध्याय को व्यवस्था की गई। पिता ने स्वय के लिये अध्यात्म मार्ग चुना जवकि पुत्र के लिये उसने भक्ति मार्ग को उत्तम समझा।
इसके पश्चात् सवत् 1750 मे धर्म चर्चा ग्रन्थ की प्रतिलिपि म्वय मुलतान मे ही की गयी। इसके प्रतिलिपिकार थे ५० राजसी प्रशस्ति मे मुलतान को मौलित्राण' लिखा है । इसी वर्ष नाटक समयसार की दूसरी प्रतिलिपि की गयी । यह भी मुलतान में हा लिखी गयी। इसमे प० धर्मतिलक का नाम लिपिकार के रूप मे लिखा है । उक्त दोनो प्रतिया के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उस समय मलतान भी साहित्य लेखन का केन्द्र था । वहा एक ओर पाठक थे तो दूसरी ओर ग्रन्थो के लिपिकार भी थे।
सवत 1778 मे समयसार नाटक की फिर प्रति की गयी । शास्त्र भण्डार म 18वी शताब्दि की और भी प्रतिया है जो सभी समयसार नाटक की है। नाटक समयसार की स्वाध्याय का युग अपने चरमोत्कर्प पर था। वैसे विक्रम की 19वी शताव्दि मे भा नाटक समयसार की बरावर लिपिया होती रही। यहा के शास्त्र भण्डार मे नाटक समयसार की 11 पाण्डलिपिया सग्रहीत है जो मलतान जैन समाज के महाकवि बनारसी दास के ग्रन्थो के स्वाध्याय के प्रति आकर्षण का द्योतक है।
विक्रम की 19वी शताब्दि मे शास्त्र भण्डार मे एक के पश्चात् दूनरा ग्रन्थ था तो मुलतान मे ही लिखा गया था फिर आगरा, जयपूर, देहली आदि नगरो मे गन्थोपी प्रतिया करवाकर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की जाने लगी। इस दृष्टि से सवत् 1804 में समयसार नाटक, सवत् 1811 मे क्रियाकोश एव सर्वाय सिद्धि, टीका, तत्वार्थसूत्र श्रुत सागर की भाषा टीका, सवत् 1809 मे धर्मविलास (द्यानतराय), सवत् 1848 मे वतमान
1 प० राजसी लिखते श्री मौलि-त्राण मध्ये लिखतम् ।
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G मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में
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चौवीसी पूजा, सवत् 1830 मे आदिपुराण भाषा, सवत् 1889 मे हरिवश पुराण भाषा जैसे ग्रन्थो की प्रतियो के नाम उल्लेखनीय है । लेकिन सवत् 1811 मे पं० टोडरमलजी द्वारा जो रहस्य पूर्ण चिट्ठी लिखी गयी थी उसकी मूल प्रति सुरक्षित नही रह सकी । पता नही वह कहा चली गयी । किन्तु उसकी एक प्रतिलिपि रखने में अवश्य मुलतान समाज सफल हो गयी । यह प्रतिलिपि सवत् 1971 मे लिखी गई है । जिसकी सही प्रतिलिपि पूर्व पृष्ठो मे आ चुकी है |
सवत् 1900 से यद्यपि छपाई ( मुद्रण ) का युग आ गया था । शास्त्रो का प्रकाशन प्रारम्भ हो गया था तथा बम्बई, सूरत, सागर, जयपुर, वाराणसी, देहली एव कलकत्ता आदि नगरो से कितने ही ग्रन्थ प्रकाशित होने लगे थे । यद्यपि कुछ विद्वानो ने ग्रन्थो को छपाने का प्रारम्भ मे विरोध भी किया लेकिन उनकी एक भो नही चली और हमारे सभी विषयो के ग्रन्थ प्रकाशित होने लगे । फिर भी जैन मुलतान समाज द्वारा शताब्दि के अन्त तक मन्दिर के शास्त्र भण्डार मे हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह पूरे वेग से किया जाता रहा । सवत् 1923 मे अर्थ प्रकाशिका की प्रतिलिपि करवायी गई जो प० सदासुख कासलीवाल जयपुर वालो की बहुत सुन्दर कृति है । इस शताब्दि मे कुछ प्रमुख ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ जो भण्डार मे हैं, ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तम है, वे निम्न प्रकार है
―
1
2
3 कार्तिकेयनुप्रेक्षा
4
5
7
8
9
आचारसार भाषा
उत्तरपुराण भाषा
गोम्मटसार भाषा
चिट्ठी रहस्यपूर्ण जिनदत्तचरित भाषा
तत्वार्थसूत्र वचनिका
दौलत विलास
धर्मविलास
10
नागकुमार चरित भाषा
11 नेमीनाथ पुराण भाषा
12
13
14
15
पद्मपुराण भाषा
पाडवपुराण भाषा
पारस विलास
रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषा
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे
प० पन्नालालजी चौधरी
प० जयचन्द छाबडा प० टोडरमलजी
प० टोडरमलजी
दौलतरामजी
द्यानतरायजी
सवत्
1934
1981
1958
1931
1971
1977
1910
1981
1954
1955
1925
1933
1948
पार्श्वदास निगोत्या पं० सदासुखजी कासलीवाल 1925
दौलतरामजी
[5
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इस प्रकार 100 से भी अधिक ग्रन्थ इसी शताब्दि मे लिपिबद्ध करवा कर ग्रन्य भण्डार मे विराजमान किये गये ।
इन ग्रन्थो को हम निम्न विषयो मे विभाजित कर सकते है .द्रव्यानुयोग (अध्यात्म ग्रन्थ)
मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने प्रारम्भ से ही अध्यात्म ग्रन्थो की स्वाध्याय में विशेष रूचि ली है इसलिये शास्त्र भण्डार मे समयसार एव नाटक समयसार प्रवचनसार भाषा (हेमराज), अष्ट पाहुड भाषा (प० जयचन्द छावडा), परमात्मप्रकाश (योगीन्दुदेव) नियमसार, ज्ञानार्णव, नात्मानुशासन भाषा, जैसे ग्रन्थो का सग्रह किया तथा उनके स्वाध्याय मे रूचि ली। करणानुयोग (सिद्धान्त ग्रन्थ)
सिद्धान्त ग्रन्थो का भी शास्त्रभण्डार मे अच्छा संग्रह है। गोम्मटसार भाषा (प टोडरमल), पचास्तिकाय, तत्वार्थरत्न प्रभाकर, द्रव्य सग्रह, पुरुषार्थ सिद्धयुउपाय, सर्वार्थसिद्धि भाषा, अर्थप्रकाशिका नयचक्र, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, त्रिलोकसार जसे लोकप्रिय एव प्रचलित ग्रन्थो का अच्छा संग्रह मिलता है। चरणानुयोग ग्रन्थ
मुलतान समाज मे शास्त्रानुसार आचरण की विशेष प्रवति एव रूचि थी । इसीका ही परिणाम था कि अभक्ष्य भक्षण (कन्द मूल), रात्रि भोजन, आदि की प्रवृति बिलकुल हो नही थी । पानी छान कर पीना आदि साधारण क्रिया की बात थी। यह सब चारित्न ग्रन्था की स्वाध्याय का ही परिणाम था-इसलिये शास्त्र भण्डार मे सागर धर्मामृत, आचार सार, अमितगति श्रावकाचार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, गुरु उपदेश श्रावकाचार, तिरेपन क्रियाकोष, मूलाचार, अनागारधर्मामृत आदि चरणानुयोग के ग्रन्थो का कई-कई प्रतिया उपलब्ध है । प्रथमानुयोग (पुराण ग्रन्थ)
पुराण विषयक ग्रन्थो की स्वाध्याय मे देश के अन्य भागो की तरह मुलतान समाज ने भी रूचि ली। हिन्दी भाषा मे पुराण ग्रन्थो का लेखन महाकवि दौलतराम कासलीवाल से प्रारम्भ हुआ और आदि पुराण, हरिवश पुराण, पद्मपुराण, पार्श्वपुराण, वर्धमानपुराण, नेमिनाथ पुराण आदि जैसे ग्रन्थो की प्रतियाँ प्राप्त की गई और शास्त्र भण्डार मे रखी गयी। पुराण साहित्य का पठन पाठन विगत 200 वो मे खव रहा तथा प्रत्येक श्रावक एव श्राविकाओ ने उसके स्वाध्याय मे रुचि ली। यही कारण है कि उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक सभी नगरो एव गावो मे पुराण ग्रन्थो का सग्रह मिलता है । वास्तव में इन पगण ग्रन्थो के स्वाध्याय ने जैन समाज की धार्मिक निष्ठा को दृढ करने में अपना पूर्ण योगदान दिया।
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.मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के प्रालोक में
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भक्ति एवं पूजा साहित्य
अर्हद भक्ति एव पूजा साहित्य समाज मे अत्यधिक लोकप्रिय रहा है। भक्ति और पूजा दोनो ही प्रत्येक गृहस्थ के लिये आवश्यक कार्य माना जाता रहा है। इसलिये पूजा, स्रोत्र एव पदसाहित्य पर्याप्त संख्या मे उपलब्ध होता है । मुलतान समाज जिस तन्मयता के साथ भगवान की पूजा करता है तथा पूजा एव भक्ति मे रस लेता है वह देखने योग्य है। इसलिये मुलतान के शास्त्र भण्डारो मे इन विषयो के ग्रन्थो का तथा चौबीस तीर्थंकरो की पूजाओ का अच्छा संग्रह है।
उक्त विषयो के ग्रन्थो के अतिरिक्त भक्ति, आध्यात्मिक एव उपदेशक काव्य रचनाओ के बनारसी विलास, पारस विलास, ब्रह्म विलास, भूधर विलास, दौलत विलास, द्यानत विलास आदि ग्रन्थो का भी अच्छा सग्रह है ।
शास्त्र भण्डार के ग्रन्थो की सुरक्षा एवं उनके रखरखाव की व्यवस्था इतनी सुन्दर है कि मूलतानी भाइयो का जिनवाणी के प्रति बहुमान सहज ही प्रशसनीय बन जाता है, नही तो हमारे मन्दिरो के व्यवस्थापको ने ग्रन्थ भण्डारो की सुव्यवस्था पर बहुत कम ध्यान दिया है । यही कारण है कि सैकडो हजारो ग्रन्थ अनायास ही जीर्णशीर्ण होकर सदाके लिये समाप्त हो गये।
शास्त्र भण्डार मे प दौलतराम ओसवाल की पार्श्वनाथ चरित भाषा की एक पाण्डुलिपि है जो अब तक अज्ञात एव अनुपलब्ध थी। ग्रन्थ का विस्तृत परिचय इससे पूर्व के पृष्ठों मे दिया जा चुका है।
साहित्य प्रकाशन की दृष्टि से यद्यपि हमे अभी तक मुलतान से प्रकाशित कोई वडी रचना नहीं मिल सकी है लेकिन सन 1924-25 मे ही पुस्तको का प्रकाशन प्रारम्भ हो गया था और इसमे सबसे अधिक योग प. अजितकुमारजी शास्त्री का रहा जिन्होने 25 से अधिक पुस्तके लिखकर अथवा सम्पादन करके उन्हे प्रकाशित कराई जिनमे "सत्यार्थ दर्पण", "श्वेताम्बर मत समीक्षा", "दु ढक मत समीक्षा"; "विनाश के सात कारण", व "जैन महिला गायन", आदि के नाम उल्लेखनीय है।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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मुलतान छावनी मुलतान से तीन मील दूर मुलतान छावनी मे भी एक प्राचीन भव्य दिगम्बर जैन मन्दिर था जिसके प्रारम्भिक इतिहास का पता नही चलता कि वह कब बना और किसने बनवाया। सन् 1935 ई मे उसका जीर्णोद्धार करवाकर उसे नया रूप दिया गया जिसमे मुलतान छावनो के समाज के साथ-साथ मुलतान दिगम्बर जैन समाज विशेषकर श्री रगूलालजी बगवाणी का विशेप हाथ था।
मुलतान छावनी मे अधिकाश अग्रवाल दिगम्बर जैन परिवार रहते थे जिनमे कुछ महानुभावों के नाम निम्न प्रकार हैं -
(1) श्री किशोरीलालजी-आप उत्तर-पश्चिम रेल्वे मे मुलतान सभाग कार्यालय मे उच्च पदाधिकारी थे, धर्मज्ञ एव शान्ति प्रिय थे।
(2) श्री भोलानाथजी-पुत्र श्री रामजी विशेषकर विदेशियो को मुलतान में निर्मित कलात्मक वस्तुए जैसे-गलीचे, हाथीदात की वस्तुए, मिट्टी के बर्तनो पर निक्काशी की हुई हस्त शिल्प वस्तुए आदि विक्रय किया करते थे।
(3) श्री पन्नालालजी सरावगी-धर्मात्मा व्यक्ति थे तथा रुपये आदि के लेन-देन का व्यवसाय करते थे।
(4) श्री गिरधरलालजो-सज्जन एव धर्मात्मा व्यक्ति थे। राज के किसी कार्यालय में कार्यरत थे।
(5) श्री मुरारीलालजो-समाज में उत्साही कार्यकर्ता थे और उनका कपडे का व्यवसाय था।
____इस प्रकार ये सब परिवार नित्य देव पूजन, स्वाध्याय आदि किया करते थे और शहर से भी समय-समय पर लोग वहा जाकर दर्शन पूजन आदि किया करते । वर्ष मे दशलक्षण पर्व के बाद एक दिन शहर का पूरा समाज आकर सामूहिक रूप से पूजन पाठ प्रवचन आदि का विशेप आयोजन रख कर उत्सव मनाता था तथा सामूहिक प्रीतिभोज आदि का भी कार्यक्रम रखा जाता था।
मुलतान छावनी में भी समय-समय पर वृती एव त्यागियों का भी आगमन होता रहता था । जिनके विशेप रूप से सार्वजनिक अध्यात्मिक प्रवचनो से महती धर्म प्रभावना होती रहती थी। जिनमे पूज्य ऐलक पन्नालालजी एव व शीतलप्रसादजी का नाम विशेप उल्लेखनीय है।
1947 मे देश विभाजन के समय मुलतान छावनी के भाइयो ने भी वहां से भारत आने का निर्णय लिया और मन्दिरजी की मूर्तियो को मुलतान मन्दिर में विराजमान करके भारत आ गये, जो मुलनान मन्दिर की मूर्तियो के साथ भारत लाई गई, वो अब दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर, जयपुर मे विराजमान है।
•मुल्तान दिमम्बर जैन समाज-इतिहास के बालोग में
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स्वतंत्रता वर्ष सन् 1947
15 अगस्त 1947 को जहां सारे भारतवर्ष मे स्वतंत्रता प्राप्ति के उपलक्ष्य मे मायोजित हो रहे थे प्रत्येक भारतवासी अपने भविष्य के सुनहले स्वप्न देख रहा था पानम्पूर्ण राष्ट्र में नवी चेतना जाग्रत हो रही थी वही पाकिस्तान मे हिन्दू, जैन एवं सिक्ख आदि के विनता एक विचिन समस्या बन कर खडी हो गयी । तत्कालीन अग्र ेज सरकार द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही पाकिस्तान मे साम्प्रदायिक उपद्रव प्रारम्भ हो गये, गनने लगी। रेल यात्रा, बम यात्रा सुरक्षित नही रह सकी । मुलतान एव गाजीवान के दिगम्बर जैन समाज के सामने एक अजीव सकट उपस्थित हो गया । एक और जीवन मृत्यु का प्रश्न दूसरी ओर नैकडो वर्षो से पालन पोषण करने वाली जन्म भूमि का परित्याग | जिन प्रतिमाओ एव शास्त्र भण्डारो की सुरक्षा का प्रश्न, धन दौलत का अपहरण एवं मां वहिन बेटियो की इज्जत का प्रश्न । देश के विभिन्न भागो से भीषण नाम्प्रदायिक दंगो की खबर जब सुनायी देती तो दिल दहल जाता। समाज के प्रमुख व्यक्तियो के सामने केवल एक प्रश्न या किस प्रकार समाज, धर्म एव साहित्य की रक्षा की जाय ?
आखिर समाज की मीटिंग हुई और सवने यही तय किया कि शीघ्रातिशीघ्र उन्हे अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भारत में चले जाना चाहिये इसी मे सबकी सुरक्षा है तथा धर्म की रक्षा है । तत्काल नमाज के तीन चार महानुभाव देहली गये और किसी तरह वाचूयान किराया पर ले चलने की पूरी कोशिश करने लगे । देहली मे उस समय सरकार एव किसी भी हवाई जहाज कम्पनी से व्यवस्था नही हो सकी । आखिर वे चारो महानुभाव हवाई जहाज से बम्बई गये और वहाँ पर वायुयान की एक प्राइवेट कम्पनी को 400/- रुपये प्रति व्यक्ति किराये के हिसाब से हवाई जहाज देने के लिये राजी कर लिया और बम्बई से मुलतान हवाई अड्डे पर पहुच गये ।
उधर नगर मे समरत दिगम्बर जैन परिवारो ने अपना थोडा बहुत सामान जो ले सक्ते थे उसे साथ मे ले लिया और हवाई अड्डे की ओर चल पडे । चलते समय अपने सुन्दर भवनो, पृश्तेनी जायदाद, मामान से भरी हुई दुकानो एव व्यापारिक प्रतिष्ठानो को छोडने से सभी की आँखो मे आसू आ गये क्योकि यह किसको पता था कि उन्हे अपनी प्राणो से भी प्यारी सम्पत्ति को इस प्रकार छोडना पडेगा । लेकिन छोडने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय शेष नहीं रहा था । उन्हें सतोष इसी बात का था कि वे अपने साथ अपना परा परिवार, भगवान की मूर्तियाँ एव शास्त्र भण्डार ले जा रहे है ।
हवाई जहाज मे मूर्तियो एव शास्त्रों की पेटियो को रखा गया तथा जब सवारियो के बैठने का नम्बर आया तो जहाज के चालक ने हवाई जहाज मे बोझ अधिक होने के कारण उडान भरने से मना कर दिया। सभी के चहरे उतर गये और भविष्य की चिन्ता सताने लगी। लेकिन समाज के मुखियाओ ने पाइलेट को समझाया कि इन पेटियो मे भगवान की
मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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मूर्तिया हैं, इनके प्रभाव स कोई भी सकट नही आ सकता है, पूर्ण विश्वास रखे । साथ ही यह भी कहा कि अगर मूर्तियां नही जावेगी तो वे भी नही जावेगे। धर्म के प्रति विश्वास एव दृढता देखकर पायलाट चौधरी ले चलने को तैयार हो गया। उस समय सभी स्त्री पुम्पो ने जहाज मे बैठते ही प्रतिज्ञा की कि जब तक जहाज सकुशल जोधपुर नही पहुंचेगा तव तक उनका अन्न जल का त्याग है । कैसा होगा वह समय और कैसी होगी उनकी मन की स्थिति यह विचारणीय है।
जव हवाई जहाज ने उडान भरी तव सभी ने णमोकार मंत्र का स्मरण किया। कुछ क्षणो मे वायुयान जोधपुर पहुच गया। जैसे ही हवाई अड्डे पर हवाई जहाज उतरा हवाई जहाज से बाहर आते ही पायलट चौधरी ने भावविभोर होकर जिन प्रतिमाओ को नमस्कार किया और कहा कि इन्ही का चमत्कार है कि हवाई जहाज मे इतना अधिक भार होते हुए भी यह जहाज फूल के समान चलता रहा तथा सकुशल यहाँ पहुच गया, अन्यथा जहाज मे इतना वजन लाना विलकुल सम्भव नही था ।
यहाँ एक घटना और उल्लेखनीय है कि कुछ कारणवश तीन चार भाई मुलतान मे रह गये थे और भगवान पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा जो मुलतान किले से प्राप्त
हुई थी, इसके मन्दिर की वेदी खाली न रहे इस अभिप्राय मूर्तियां लाते समय वहाँ विराजमान कर आये थे। वे लोग नित्य दर्शन पूजन आदि करते थे। कुछ दिन पश्चात रात्रि को उनमे से एक भाई श्री भवरचन्दजी सिंघवी को स्वप्न आया कि वे लोग वहाँ से जल्दी चले जावें
और मन्दिर मे जो मति विराजमान है उसके स्थान पर श्री श्रीदासरामजी गोलेछा के घर के नीचे वाले कमरे के आले मे एक अप्रतिष्ठित मूर्ति रखी है उसे मन्दिर की वेदो मे रखकर
भ० पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठित मति को साथ श्री भवरचदजी मिघवी ।
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ले जाव ।
प्रात तोते ही उन्होंने दामूरामजी एव अन्य भाइयो को स्वप्न की बात कही, इम पर दागृगमजी ने कहा कि उन्हे तो मूर्ति के विषय में कोई जानकारी नहीं है, चलो देख लेते
जरामर मोगोर कर देखा तो वास्तव मे उमी आले मे मति रखी हुई मिली, जिम देगासनगमजो आपनयंरित हो गये । उन्होने कहा कि उनकी साठ वर्ष की अवस्था में उसने न तो नभीम मुनि को रगा और न प भी देखा ही, पता नहीं यह कब फैमे और
मेमा माई। उस मनि तो नारर मन्दिरजी की वेदी में रखा गया तथा भगवान
.मुना दिगम्बर जैन समाज-तिहाम के आजा में
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पार्वनाम की पतिमा को जैसे ही मन्दिर से लेकर उस मुहल्ले से बाहर आ रहे थे कि सलमानों के मंड ने ग महल्ले में प्रवेश किया तथा देखते ही देखते सभी मकानो पर अपना साकार किया । वे नागे ही व्यक्ति तत्काल मुलतान से चले आये और भगवान की मूति को भी नाच ले जाये।
इस तन्ह मुलतान दिगम्बर जैन समाज की अपनी धार्मिक निष्ठा, सच्चरित्रता एव जिन प्रतिमाओं तथा जिनवाणी को लाने के प्रयास के शुभ भाव से चल अचल सम्पत्ति के नासान के अतिरिक्त किसी भी परिवार के एक भी व्यक्ति को शारीरिक कष्ट एव जीवन की हानि नहीं हुई।
जोधपुर स्टेगन के पाम. दिगम्बर जैन मन्दिर मे मूतियो एव शास्त्र भण्डार की पेटियो को नक्षित खवा दिया गया।
श्री गमानीनन्दजी, श्री वृद्धसेनजी सुपुत्र श्री छोगमलजी सिंघवी मुलतानी जो पाकिस्तान बनने के पूछ समय पूर्व जोधपुर आकर रहने लगे थे उनके यहाँ समाज एक दिन ठहरने के पश्चात जयपुर के लिये रवाना हो गया।
गाठी के जयपुर पह चते ही जैन समाज के कुछ लोग जो पहिले से ही स्टेशन पर आए हुए थे, मुलतानी जैन भाइयो का आदर सत्कार करते हुए शहर मे ले गये, तथा जहाँ उनके व्हराने आदि की व्यवस्था की थी वहाँ उन्हे पहु चा दिया।
जयपुर मे आवास मिलने मे विशेष कठिनाई नही हुई, किन्तु कहाँ मुलतान के मुख मुविधायुक्त अपने मकान और कहाँ किराये के मिले जैसे तैसे मकान, लेकिन जीवन मे उतार चढाव सुख दु ख अच्छी बुरी परिस्थितियों आती है, उनमे अपने आपको समर्पित करदे तथा विशेष आकुल न हो वही सच्चा मानव है। विपत्तियो से घबराकर अधीर होने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन उनका दृढता पूर्वक सामना करने वाले विरले ही होते है । मुलतान जैन समाज ने तो ऐसी विकट एक कठिन परिस्थिति मे भी धैर्य एव साहस को नही छोडा तथा अपने भविप्य के निर्माण मे दृढतापूर्वक लग गये।
कुछ दिनो पश्चात् जोधपुर से रेलगाडी के एक विशेष डिब्बे मे मतियो एव शास्त्र भण्डार की पेटियो को जयपुर ले आए तथा श्री शान्तीनाथ दिगम्बर जैन बडा मन्दिर तेरह पथियान, घी वालो का रास्ता, जौहरी बाजार मे बडे उत्साह एव उल्लास के साथ मूर्तियो को एक वेदी मे विराजमान कर दिया गया तथा शास्त्र भण्डार को सुव्यवस्थित रूप से आलमारियो मे रख दिया और मुलतान की तरह यहा भी सभी भाई बहिन दर्शन भक्ति एव सामूहिक पूजन बडे ठाठ वाट से करने लगे, इससे शीघ्र ही मुलतान समाज जयपुर जैन समाज के लिये आकर्षण का केन्द्र वन गया।
पाकिस्तान से आने के पश्चात् मुलतान से आए जैन बन्धु दो भागो मे विभक्त हो गये। उसमे लगभग साठ प्रतिशत तो जयपुर बस गये तथा चालीस प्रतिशत दिल्ली जाकर रहने लगे, इसका मुख्य कारण व्यवसाय की व्यवस्था है।
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डेरागाजीखान
डेरागाजीखान का अपना इतिहास है। नगर को किसी गाजी उपाधि वाले मुस्लिम शासक द्वारा वसाये जाने के कारण इस नगर का नाम डेरागाजीखान पड़ा। पजाव (पाकिस्तान) मे डेरागाजीखान दूसरा शहर था जहाँ प्राचीन काल से ओसवाल दिगम्बर जैन समाज रहता था । डेरागाजीखान मुलतान से 60 मील दूर सिन्धु नदी के तटपर बसा हुआ था पजाव मे केवल इन दो स्थानो पर ही ओसवाल दिगम्वर जैन समाज होने के कारण इनका आपस मे भाईचारा एव चोलीदामन का साथ था।
डेरागाजीखान में दिगम्बर जैन मन्दिर
डेरागाजीखान मे एक विशाल एव भव्य दिगम्बर जैन मन्दिर था जिसमे एक कलात्मक वेदी थी। उस वेदी मे कितनी ही आकर्षक एव सु दर प्रतिमाए थी किन्तु एक नीलम की अतिशययुक्त चमत्कारिक प्रतिमा थी जो आठवे तीर्थंकर 1008 भगवान श्री चन्द्रप्रभु की थी, एक दिन किसी अजैन व्यक्ति ने वह प्रतिमा मन्दिर से चुरा ली और उसे अपने घर मे छपाकर रख दी। जव प्रात काल समाज को इस घटना की जानकारी मिली तो सपूर्ण समाज शोक सागर मे डूब गया, तथा पूरे समाज ने अन्न-जल का त्याग कर दिया, यहाँ तक कि कई महानुभावो ने तो मत्ति न मिलने तक अनशन ले लिया ओर मूत्ति ढ ढ निकालने का सकल्प लिया।
दूसरे ही दिन रात्रि को एक भाई को स्वप्न आया कि मत्ति मन्दिर के समीप ही एक अमुक जनेतर भाई के मकान मे अमुक कमरे की छत की कडी मे रखी है । प्रात होते ही उस व्यक्ति ने स्वप्न की बात समाज के प्रमुख महानुभावो को सुनाई तो कुछ व्यक्ति तत्काल ही उस मकान मे गये और वताए हुए स्थान पर देखा तो वह मृत्ति यथावत रखा हुई मिल गई। प्रतिमा पाकर सम्पूर्ण समाज में हर्ष की लहर दौड़ गई । तत्काल ही पूजा पाठ का आयोजन किया गया तथा विधि विधान आदि धार्मिक अनुष्ठान के माथ उल्लास पूर्वक मूत्ति को वेदी मे पुन विराजमान किया गया। इसके पश्चात् ही नमाज के प्रमुख महानुभावो ने अन्न-जल ग्रहण किया ।
वर्तमान मे जो डेगगाजीखान है वह तो नया बसाया गया शहर है। इसके पूर्व रागाजीखान मिन्धु नदी के तट पर वमा हुआ था। सन 1904 मे सिन्धू नदी के कटाव के कारण माग शहर जल मग्न हो गया, किन्तु सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि दिगम्बर जैन मन्दिर चागे और ने अथाह जल में घिरा होने पर भी यथावत खटा हुआ था।
मुलतान दिगम्बर जैन नमाज-इनिहाम के पालोप में
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श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, डेरागाजीखान
शास्त्र - भवन
स्वाध्याय भवन श्री दिगम्बर जैन मन्दिर डेरागाजीखान
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ऐसी विक्ट सकटपूर्ण स्थिति मे समाज के व्यक्तियो को मूर्तियो एव हस्तलिखित शास्त्र भण्डार को मन्दिर से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुचाने की चिन्ता लगी हुई थी।
समाज के कुछ साहसी व्यक्ति मूर्तियाँ एव शास्त्र भण्डार को लाने के लिये नौका द्वारा उस मन्दिर तक पहुँचे तथा मूर्तियो एव शास्त्र भण्डार को मन्दिर मे से निकालकर ज्यो ही नौका मे विराजमान कर उसमे सवार हुए तो उनके देखते ही देखते तत्काल सम्पूर्ण मन्दिर ढहकर जल मग्न हो गया।
तत्पश्चात डेरागाजीखान के सभी जैन परिवार मुलतान जाकर रहने लगे तथा मूर्तियो एव शास्त्र भण्डार को मुलतान शहर के मन्दिर मे विराजमान कर दिया।
___ कुछ समय पश्चात् सिन्धु नदी से दस मील की दूरी पर नया डेरागाजीखान शहर वसाया गया । जैन परिवार भी नये डेरागाजीखान मे जाकर बस गये और वहाँ दिगम्बर जैन मन्दिर बनाया गया। जिन प्रतिमाओ एव शास्त्र भण्डार को पुन मन्दिर मे वेदी प्रतिष्ठा एव विशाल महोत्सव के साथ विराजमान किया गया।
डेरागाजीखान के व्यक्तियों में स्वाध्याय के प्रति रुचि
मुलतान के समान डेरागाजीखान का भी समाज श्रावक के षट कर्मों मे जैसे जिनेन्द्र पूजन, भक्ति, स्वाध्याय, दान आदि मे सदैव तत्पर एव कर्तव्यनिष्ठ था । प्रारम्भ से ही यहां का सपूर्ण समाज अध्यात्म प्रेमी था। समयसार एवं शुद्धात्म तत्व की, सूक्ष्म तलस्पर्शी भेदविज्ञान परक स्वात्मानुभव की चर्चाये परस्पर चलती थी। बनारसीदासजी के नाटक समयसार के प्रति लोगो मे विशेष आकर्षण था, इसके अध्यात्मिक एन सरस पद कुछ लोगो को कठस्थ याद थे। शास्त्र सभा एव गोष्ठियो मे इस अध्यात्म रस की अपूर्व लहर थी, लोगो के मुख से प्राय यह सुनने को मिलता था कि
अनुभव चिन्तामणि रतन, अनुभव ही रसकूप ।
अनुभव मारग मोक्ष का, अनुभव मोक्ष स्वरूप ।।
वर्तमान मे आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर, जयपुर में डेरागाजीखान से लाई गई समयसार आदि की कई हस्तलिखित प्राचीन प्रतिया मौजूद हैं, यह उनकी आध्यात्मिक रूचि का ज्वलत उदाहरण है। सवत् 1766 की हस्तलिखित सर्व प्राचीन नाटक समयसार की प्रति जो यहा मौजूद है इससे सिद्ध होता है कि डेरागाजीखान समाज प्रारम्भ से
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ही अध्यात्म रुचि वाली रही है। उक्त नाटक समयसार की प्रतिलिपि खरतरगच्छ के श्वेताम्बर खेमजी के गुरु भाई रूपचन्दजी से कराई गई। यह प्रतिलिपि डेरागाजीखान मे ही की गई थी। इसकी प्रतिलिपि कराने वाले नयनानन्द श्रावक थे।
श्रीमती अमोलका वाई मूलतान की कवियत्री, भक्त एव विदूपी महिला थी। उन्होंने वैराग्य आध्यात्मिक एव अर्हद भक्ति के अनेक पद लिखे हैं, उनका डेरागाजीखान से भी अच्छा सम्बन्ध था, इसलिये उन्होने अपने पदो मे "सखी डेरे दिगम्बर सैली मे मगल" लिखा है।
इससे ज्ञात होता है कि डेरागाजीखान मे भी सैली थी जो आध्यात्मिक चर्चा भक्ति गीत एव नृत्य आदि के कार्यक्रमो से धर्म प्रभावना करती रहती थी। अमोलका वाई का समय करीब 200 वर्ष पूर्ण का है जिनका विस्तृत परिचय पहिले दिया जा चुका है।
इसी प्रकार सवत् 1897 की लिखी गई पदस्तोत्र सग्रह की एक पाण्डुलिपि शास्त्र भण्डार में भी उपलब्ध है। इसकी प्रतिलिपि डेरागाजीखान मे हई थी। पहिले इसकी प्रति श्रावक मोतीलाल के सुपुत्र रूपचन्द एव उसके छोटे भाई प्रेमा के पटनार्थ लिखी गई थी। इसके पश्चात् श्रीमती रूपा बगवाणी ने अपने वाचन के लिये डेरागाजीखान मे उसकी प्रतिलिपि कराई थी।
संवत रस खंड मुलि रासि माग कसन सुखकार । तिथि वारसि रविवार सुभ मूल नख्यत्र उदार । ता दिन सम्पूरण लिख्यो नाटक शास्त्र नवीन । बाचत ही सूख सपजै समूझे जिके प्रवीन ॥ खरतरगच्छ खिति मे प्रसिद्ध, भट्टारक भल सामि । श्वेताम्बर श्री खेमजी, निरमल वारणी भाख । तसु गुरु भाई रूपचन्द विनै घर अभिधान । प्रीतिधरी पोथी लिखी दिन दिन बघतै वान । नगर नित्य बधती सदा गढ गढ मोलि पवित्र । चहल पहल नित चौपटे देख्या हरष चित । डेरागाजीखान है सुवस सजल सुख धान । चातुर्मास करी चाह सौ दिन प्रति वधतै वान । संवत 1897 मिती माह सुद 12 दिने सागर चन्द सरझारवाय वाचनाचार्य श्री श्री भवन विशालगणि पं. प्रवरगणि श्री सुखहेमजी गाठी पं. प्र. 108 श्री हरचन्दजी गाठी तत् शिष्य पं. श्री कुशालदत्तजी तत् शिष्य लघु पं. गिरधारी लिखतु । श्रावक मोतीलाल तत्पुत्र रूपचन्द लघु मेमा पठनार्थ शुभ भवतु । रूपा वेगवानी वाचनार्थ लिखवाई पोथी श्री देहरागाजीखा मध्ये ।
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डेरागाजीखान मे सवत् 1909 मे श्री बालचन्द सिगवी थे जिन्हे स्वाध्याय के प्रति विशेष अनुराग था इसलिये उन्होने वहा के मन्दिर मे त्रिलोकसार की प्रति श्रावको के स्वाध्याय हेतु भेट की थी। इसी तरह सवत 1909 मे ही शाह सोभराज पारख नामक श्रावक हए जिन्होने भद्रवाह चारित्र की एक प्रति मन्दिर में विराजमान की । प्रस्तुत प्रति दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर मे मौजूद है ।
सवत 1909 मे ही श्रावकाचार भाषा की एक प्रति श्री होवणमल पारख की धर्मपत्नि ज्ञाननन्दी ने स्वाध्याय वास्ते डेरागाजीखान मन्दिर मे भेट की थी।
विक्रम की 19वी शताब्दी मे जयपुर और डेरागाजीखान मे गहरा सम्बन्ध हो गया था। ग्रन्थो की प्रतिलिपि कराने का काम भी जयपुर मे ही सम्पन्न होता था । आचार्य कल्प पडित श्री टोडरमलजी, पडित श्री द्यानतरायजी तथा पडित श्री सदासुखदासजी कासलीवाल आदि की ख्याति डेरागाजीखान में भी पह च गई थी तथा उनके ग्रन्थो का स्वाध्याय, शास्त्रसभा, गोष्ठियो एव व्यक्तिगत तौर पर होता रहता था। इस तरह डेरागाजीखान की समाज मे धर्म के प्रति बहत अधिक उत्साह था । यहा नित्य प्रति प्रात - काल साजवाज के साथ मधुर स्वर लहरी मे जिनेन्द्र पूजन होती थी, तत्पश्चात् परम्परागत शास्त्र सभा चलती थी, जिसमे वृद्ध, प्रौढ युवक एव महिलाऐ आदि सभी अनिवार्य रूप से भाग लेते थे इसीलिये वहा के प्राय सभी वर्गों को चारो अनुयोगो के शास्त्रो की अच्छी जानकारी थी। सायकाल भक्ति गीत आरती के पश्चात् सामूहिक तात्विक गोष्ठी चलती थी, तदुपरात आध्यात्मिक एव वैराग पोषक भजनो से सभा विसर्जित होती। इस प्रकार वहा के लोगो की दैनिक जीवनचर्या का काफी समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत होता था।
वर्ष मे आने वाले प्रत्येक पर्न विशेष तौर पर दशलक्षण पर्ण, बड़े उत्साह एन उल्लास के साथ मनाया जाता था। अधिकाश पुरुष एन महिलावर्ग व्रत सयम आदि का पालन विशेष तौर पर करते थे और अधिकाश समय धार्मिक कार्यों में व्यतीत होता
1. त्रिलोकसार जीको पूजा जी का पाठ समति बालचन्द सिंगवी विराजमान कीता
श्री मन्दिर जो डेरागाजीखान विच अहारि सुदी 2 संवत् 1909 श्री भद्रबाह चरित्र जी री भाषा सा० सोबरा पारख विराजमान कीता श्री डेरा
गाजीखान के मन्दिर प्रहारि सुदी 9 संवत् 1909 3. वैशाख कृष्णा 12 सं0 1909 श्रावकाचार भाषा ज्ञानानन्दी सा० होवणमल पारख
की वध विराजमान कीता आषाढ सुदी 6 सं0 1909
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था-जैसे, प्रात काल 7 से 11 बजे तक सामूहिक पूजन, एक बजे तक शास्त्र प्रवचन, सायकाल आरती भक्ति आदि तथा बाहर से पधारे हुए विद्वानो द्वारा सार्वजनिक सभा में व्याख्यान एव सास्कृतिक कार्यक्रम । इस प्रकार प्रात 7 से रात्रि 11 बजे तक क्रमश: कार्यक्रम चलते थे।
युवको को भी धार्मिक कार्यों में विशेष लगन एव उत्साह था। उनकी सगीत मण्डली बहुत अधिक विख्यात थी। रात्रि को सास्कृतिक कार्यक्रमो से एव धार्मिक जैन कथाओं के आधार पर नाटक आदि खेलकर अच्छी धार्मिक प्रभावना करते थे। तथा दशलक्षण पर्व के अन्त मे-नगर कीर्तन (शोभायात्रा) बडे उत्साह एव धूमधाम के साथ निकाली जाती थी, जिसमें विशालकाय कृत्रिम हाथी एव तीन मजिला विशाल एव मनोरम रथ अन्य लवाजमा आदि जो जलस के विशेष आवर्पण के केन्द्र होते थे जिससे जलस की विशेष शोभा बढती थी तथा भजन मण्डलियो द्वारा सगीत के माध्यम से जन धर्म का अच्छा प्रचार होता था। प्रत्येक वर्ष दशलक्षण पर्व पर वाहर से किसी न किसी प्रतिष्ठित विद्वान को अवश्य बुलाया जाता था, जिनकेप्र वचनो एव उपदेशो द्वारा महती धर्म प्रभावना होती थी।
डरागाजीखान की भजन मण्डली ने अपने सुन्दर कार्यक्रमो से अन्य शहरो मे भी अच्छी ख्याति प्राप्त करली थी, फलस्वरूप आमन्त्रण मिलने पर फिरोजपुर, लाहौर, शिमला, देहली, सहारनपुर आदि नगरो मे समय-समय पर जाकर अपने सास्कृतिक कार्यक्रमो के माध्यम से अच्छी धर्म प्रभावना करती थी। डेरागाजीखान की दिगम्बर जैन समाज
पजाब, सिन्ध, बलचिस्तान एवं सीमाप्रात जैसे प्रदेशो मे मुलतान, डेरागाजीखान, लाहौर एन रावलपिंडी को छोडकर अन्यत्र कही भी दिगम्बर जैन समाज एका दिगम्बर जैन मन्दिर नहीं थे। सभी प्रदेशो मे मुसलमानो का वहमत था तथा हिन्दू भाई भी अल्पमत मे थे, फिर भी डेरागाजीखान के दिगम्बर जैन भाइयों के खानपान एक रहन सहन पर उन लोगो का कोई प्रभाव नही पड़ा तथा उनका जीवन विशुद्ध जैन धर्म के अनुरूप था। समाज मे रात्रि भोजन का बिलकुल भी प्रचलन नही था तथा वडे तो क्या वच्चे तक भी रात्रि भोजन नही करते थे। कन्दमल आदि अभक्ष्य भक्षण से वे कोसो दूर रहते थे, तथा धूम्रपान आदि नशीली चीजो के सेवन की कोई भी प्रवृति नहीं थी।
डेरागाजीखान मे लगभग 40 ओसवाल दिगम्बर जैन परिवार थे, वे प्राय सभी व्यापारी वर्ग के थे, तथा वहा उनका अच्छा व्यवसाय था । उन परिवारो में श्री मोतीरामजी सिंगवी, श्री भोजारामजो पारख, श्री शानरामजी सिंगवी, श्री जस्सूरामजी सिंगवी, श्री रेमलदासजी गोलेछा, श्री उदयकरणजी, श्री कर्मचन्दजी सिंगवी, श्री गेला. रामजी गोलेछा, श्री रामचन्द्रजी सिगवी, श्री सन्तोरामजी सिंगवी आदि परिवार प्रमुख थे।
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डेरागाजीखान में पाठशाला
डेगगाजोखान मे एक धार्मिक पाठशाला चलती थी जिसमे सन 1947 के 20 वर्ण पूर्व एक युवक पडित श्री सूर्यपालजी शास्त्री धार्मिक शिक्षा दिया करते थे। गान्त्री जी अलीगढ के रहने वाले थे। आपने डेरागाजीखान मे आकर समाज मे धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त युवको मे सगठन एव चारित्र निर्माण का भी महत्वपूर्ण कार्य किया। धार्मिक शिक्षा में वे परिपद् परीक्षा बोर्ड एव दिगम्बर जैन महासभा की परीक्षाये दिलाते थे। पडितजी ने यूवको का सगठन बनाया और सबमे सेवा, कर्तव्यपरायणता तथा धार्मिक जीवन पालन के भाव भरे । वे पाकिस्तान बनने तक डेरागाजीखान मे रहे तथा 20 वर्ष से भी अधिक समय तक समाज के मार्ग दर्शक बने रहे। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप हिसार मे रहने लगे और वहां आपका असामयिक निधन हो गया।
__ इस प्रकार डेरागाजीखान पजाब प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर रहा जह, दिगम्बर जैन सस्कृति पल्लवित एव पुष्पित हुई तथा सैकडो वर्षो तक सारे देश मे अपनी विशेषता बनाये रखी। 15 अगस्त सन् 1947
___ 15 अगस्त 1947 को जैसे ही भारत स्वतत्र हुआ, स्वतन्त्रता के साथ साथ भारत का विभाजन भी हआ, पजाव का पश्चिमी भाग सिंध, वलचिस्तान एन सीमा प्रात को मिलाकर पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हुआ। पाकिस्तान वनते ही वहाँ से हिन्दू, जैन, सिक्ख आदि गैर मुसलिमो को निकालने की योजना स्वरूप हिन्दू मुसलिम दगे शुरू हो गरे, मारकाट मचने लगी और वहाँ से गैर मुसलिम लोग जान वचाकर पाक्स्तिान से भारत जाने का प्रयत्न करने लगे, तो डेरागाजीखान के लोगो को भी जान बचाकर भारत आने के लिये विवश होना पडा, किन्तु रास्ते मे सिन्धु नदी पडने के कारण अथवा रेल मार्ग न होने के कारण सारा रास्ता असुरक्षित होने से विशेष चिन्ता का विषय बना हुआ था।
ऐसे विकट सकटग्रस्त समय मे श्रीमान आसानन्दजी (सुपुत्र श्री कवरभानजी सिंगवी) एव श्री दीवानचन्दजी (सुपुत्र श्री गेलारामजी सिंगवी) ने बड़े साहस, धैर्य एव सूझबूझ के साथ वहाँ से जिन प्रतिमाओ एव हस्त लिखित शास्त्र भण्डार आदि तथा पूरी समाज को सडक मार्ग से ट्क द्वारा भारत की सीमा मे ले आये और वहां से भारत के ट्रक द्वारा सकुशल दिल्ली पहुंचे जहाँ मास मे सॉस आई तथा सब लोग अपने को सुरक्षित अनुभव करने लगे।
मूर्तियो एन शास्त भण्डार को श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर दिल्ली में विराजमान करवा दिया । सव अपने पुनर्स्थापना एव व्यवसाय की ओर अग्रसर होते हुए कुछ लोग तो दिल्ली बस गये, अन्य लोग जयपुर आकर रहने लगे व अपना घरवार एन व्यवसाय जमाने में जुट गये ।
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दिल्ली तथा जयपुर मे मुलतान एव डेरागाजीखान से आये हुए दिगम्बर जैन वन्धु सगठित होकर रहने लगे और मुलतान दिगम्बर जैन समाज के नाम से पूरे देश मे विख्यात हो गये।
पाकिस्तान से आये हए विस्थापितो को वसाने हेतु जयपर मे आदर्शनगर बसाया गया जिसमे जैन बन्धुओ को भी प्लाट आवटित किए गये तथा दिगम्बर जैन मन्दिर को भी जमीन प्राप्त हुई, जहाँ सम्पूर्ण मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने अथक परिश्रम से अपने साधनो द्वारा विशाल एवं भव्य कलात्मक दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण कराया।
सन् 1962 ई में इस मन्दिर की वेदी प्रतिष्ठा बडे उत्साह एव उल्लास के साथ हुई इसके कुछ समय पश्चात् डेरागाजीखान से लाई गई प्रतिमाओ मे से चौवीस सनधातु की प्रतिमाओ को दिल्ली मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने दिगम्बर जन लाल मन्दिर दिल्ली मे विराजमान रहने दिया, शेष को दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर में विराजमान करने हेतु जयपुर भिजवा दिया जिन्हे विधि विधान एवं उल्लासपर्वक विराजमान कर दिया गया।
इस प्रकार दिगम्बर जैन समाज डेरागाजीखान ने भी देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्धा भक्ति एव धर्म के प्रति कर्तव्यपरायणता को निभाते हुए ऐसी विषम परिस्थितियो में अपने पुनर्स्थापन के साथ-साथ आदर्शनगर जयपर का मन्दिर निमाण कराने मे पूर्ण सहयोग देकर वहाँ से लाई गई मूर्तियो एव शास्त्र भण्डार आदि को भक्ति एव बहुमान के साथ विराजमान कराकर अपनी धर्मनिष्ठा का परिचय दिया।
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न दिगम्बर जैन समाज
जयपुर मे आ जाने के पश्चात् समाज के सभी बन्धु अपनी-अपनी स्थिति अनुसार जिन्हे जैसे-जैसे भी मकान किराये पर मिल सके रहने लगे और अपने जीवन निर्वाह के लिए व्यवसाय आदि पुनर्स्थापन करने मे लग गये। सभी भाई व्यापारी तो थे ही पुरुपार्थ इन लोगो की जीवनचर्या मे ही है इसलिए प्राय. सभी बन्धुओ ने दुकाने आदि लेली उनमे से बहुत से तो बडी चौपड के पास कटला पुरोहितजी, जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू वाजार, चाँदपोल बाजार आदि मे दुकाने लेकर अपना-अपना व्यवसाय करने लगे और अपने पुरुषार्थ से व्यवसाय को इतना बढाया कि अब जयपुर मे जनरल मर्चेन्ट्स, कलर एण्ड केमिकल्स आदि व्यापार मे इन लोगो का एकाधिकार है।
जयपुर में विस्थापितो के लिए आवासीय योजनाएं
कुछ समय बाद भारत सरकार ने विस्थापितो के पुनर्वास हेतु कई योजनाए बसाई , जिसके अन्तर्गत राजस्थान सरकार ने भी सन् 1949 मे जयपुर मे आदर्शनगर बसाने की योजना तैयार की, जिसमे विभिन्न गृह निर्माण सहकारी समितियो द्वारा मकान बनाकर देने की योजना बनी।
पजाव रिहीविलीटेशन कोआपरेटिव सोसाइटी जिसके उपाध्यक्ष श्रीमान कवरभानजी थे, उन्होने मुलतान डेरागाजीखान से आये जैन बन्धुओ को भी आग्रह पूर्वक प्लाल लेने को कहा और कई साधर्मी भाईयो को प्लाट दिलवाये भी।
___ सन् 1951 मे आदर्शनगर मे श्रीमान कवरभान जी, श्री खडाराम जी, श्री राजारामजी आदि कई जैन बन्धुओ के मकान तैयार हो गये किन्तु समस्या थी वहाँ जाकर रहने से नित्य धर्म साधन की, अस्तु श्री कवरभानजी ने अपने प्लाट के एक कमरे मे चैत्यालय की स्थापना की, जिसमे मुलतान से लायी गई जिन प्रतिमाओ मे से श्री 1008 भगवान चन्द्रप्रभु एव श्री नेमीनाथ की दो मूर्तिया बडे मन्दिर से लाकर विराजमान की गई जिससे आदर्शनगर मे आकर बसने वाले साधर्मी भाइयो के देव दर्शन आदि समस्या का तत्कालीन समाधान हो गया और कई महानुभाव आदर्शनगर मे आकर रहने लगे।
मन्दिर निर्माण हेतु भूमि की मांग
सरकार के सामने माग रखी गई कि बडे दुस्तर प्रयास पूर्वक पाकिस्तान से लाये गये अपने आराध्य देव (प्रतिमाए। एव बहुमूल्य प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियो को सुव्यवस्थित एव सुरक्षित विराजमान करने तथा नित्य धर्म साधन हेतु मन्दिर बनाने के लिये भमि दी जावे ।
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सरकार ने उक्त माग स्वीकार करते हुए सन् 1953 मे अनुमानतया 2000 वर्गगज भूमि मन्दिर निर्माण हेतु आवंटित कर दी ।
मन्दिर निर्माण की ओर
मन्दिर के लिए जमीन आवंटित होते ही श्रीमान कवरभानजी, दासूरामजी, खडारामजी घनश्यामदासजी, निहालचन्दजी, राजारामजी, न्यामतरामजी व माधोदासजी आदि समाज के प्रमुख महानुभावो ने मन्दिर निर्माण की योजना बनाई, फलस्वरूप सर्वप्रथम सोलह हजार रुपयो की स्वीकृतिया प्राप्त हुई और ज्येष्ठ सुदी पचमी (श्रत पचमी) सन् 1954 के शुभ दिन जयपुर के प्रसिद्ध जौहरी श्रीमान सेठ गोपीचन्दजी ठोलिया के कर कमलो द्वारा पंडित श्री चैनसुखदासजी़ न्यायतीर्थ के सान्निध्य मे बडे उत्साह उल्लास के साथ पडित गुलावचन्दजी शास्त्री के द्वारा विधि विधान पूर्वक मन्दिर का शिलान्यास किया गया ।
श्रीमान कवरभानजी की देखरेख मे निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ, नीव भरी गई, चुनाई प्लथ लेवल तक आ पाई थी कि लगभग 11000/- रुपया खर्च हो गये अत आर्थिक कठिनाई सामने आने लगी, इसके अतिरिक्त और भी कई बाधाए दिखाई देने लगी । इन सव कठिनाईयो को ध्यान मे,रखते हुए, समाज के कार्यकर्ताओ ने पूरी मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर एव दिल्ली का ध्यान इस ओर आकर्षित करने, आर्थिक सहयोग प्राप्त करने तथा निर्माण कार्य सुचारु रूप से चलाने के लिये श्रीमान आसानन्दजी बगवानी दिल्ली को निर्माण कार्य का सचालक मनोनीत किया जिसे उन्होने समाज के पूर्ण महयोग के आश्वासन पर सहर्ष स्वीकार करते हुए निर्माण कार्य को आगे बढाने की योजना बनाने हेतु श्री घनश्याम दासजी, श्री न्यामंतरामजी व मत्री श्री जयकुमारजी को पूर्ण सहयोगी के रूप मे साथ लिया । निर्माण कार्य पुन प्रारम्भ हुआ, साथ ही धनराशि एकत्रित करने के लिये कई योजनाए बनाई गई, फलस्वरूप आवश्यकतानुसार क्रमश रुपया भी आने लगा और निर्माण कार्य छत-लेवल तक पहुच गया ।
हाल की चौडाई अधिक होने, बीच मे कोई पिलर नही होने एव छत को नीचे की ओर प्लेन रखने की इच्छा के कारण यहा के वास्तुकारो ने छत डालने मे असमर्थता व्यक्त की, तब श्री आसानन्दजी दिल्ली से श्रीमान पलसिहजी जैन आर्चीटेक्ट को जयपुर लाए और उन्होने छत का डिजाइन तैयार किया। थोडे दिन वाद अपनी देखरेख मे छत डलवाई, इस तरह मन्दिर निर्माण कार्य का एक चरण पूरा हुआ ।
छत पड जाने के पश्चात् यह सुझाव आया कि सबसे पहिले मन्दिर मे वेदी बनवा कर जिन - प्रतिमाओ को विराजमान किया जाय, जिससे कि साधर्मी भाई मन्दिर मे आकर दर्शन पूजन 'आदि कार्य करेंगे तथा मन्दिर के अधूरे निर्माण कार्य को दृष्टिगत रखते हुए इसे शीघ्र ही पूरा करने मे सक्रिय योगदान देंगे । यह बात समाज को उचित प्रतीत हुई तथा सभी ओर से वेदी बनवाने की चर्चाएं होने लगी जिस पर श्री श्रीनिवासजी शकरलालजी के
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श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, आदर्श नगर, जयपुर
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कलात्मक बाह्य भाग
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मूल वेदी श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, आदर्शनगर, जयपुर
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भगवान महावीर स्वामी
जयपुर मे प्रतिष्ठित मूलनायक प्रतिमा
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परिवार वालो ने अपनी ओर से वेदी वनवा देने की इच्छा व्यक्त की, जिसे समाज ने स्वीकार कर वेदी बनवाने की स्वीकृति दे दी। थोडे समय मे वेदी तैयार कराली गई।
इसी बीच त्र पडित श्री पन्नालालजी प्रतिष्ठाचार्य जयपुर आये हुए थे, समाज ने उनसे वेदी प्रतिष्ठा करा देने का आग्रह किया, तव उन्होने जेठ कृष्णा सप्तमी वि० सवत 2019 दिनांक 26 मई सन् 1962 के दिन का शुभ मुहुर्त निकालकर उस दिन वेदी प्रतिष्ठा का कार्यक्रम निधि पूर्वक करा देना सहर्ष स्वीकार किया जिससे समाज मे उल्लास एव उत्साह की नई लहर दौड गई ।
वेदी की विशालता को देखते हए कुछ महानुभावो के मन मे विचार आया कि मुलतान से लाई गई प्रतिमाओ मे कोई बडी मूर्ति नहीं है यदि इस वेदी के मध्य एक वडी प्रतिमा विराजमान हो जाये तो वेदी की अपूर्व शोभा बढ जायेगी। यह चर्चा जब समाज मे हुई तो बिहारीलालजी के सूपुत्र श्री घनश्यामदासजी सिगवी, दिल्ली ने बडी प्रतिमा विराजमान करने की अपनी इच्छा व्यक्त की, जिसे समाज ने सहर्ष स्वीकार कर अनुमति दे दी।
भाग्योदय से उन्ही दिनो भीलवाडा (राजस्थान) मे पच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव होने जा रहा था। घनश्यामदासजी ने तत्काल साढे चार फुट पद्मासन गुलावी पाषाण की विशाल प्रतिमा भपालगज-भीलवाडा से वैसाख सुदी 11 वीर निर्वाण सवत् 2488, विक्रम सवत् 2019 सोमवार दिनाक 15 मई सन 1962 को प्रतिष्ठित कराकर आदर्शनगर मन्दिर मे ले आए।
__ सम्पूर्ण मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली जयपुर आदि ने मिलकर जेठ कृष्णा 7 वीर निर्वाण सवत 2488 विक्रम सवत 2019 दिनाक 26 मई सन् 1962 को बडे धूमधाम, होल्लास एव विधि विधान पूर्वक, धर्मालकार ब्र पडित पन्नालालजी प्रतिष्ठाचार्य से वेदी प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई।
प्रतिष्ठा सवधी विधि विधान सास्कृतिक कार्यक्रम बाहर से पधारे एव स्थानीय विद्वानो के प्रवचनो आदि के साथ साथ मुलतान से लाई गई प्रतिमाए जो शान्तिनाथ दिगम्बर जैन वडा मन्दिर तेरापथियान मे विराजमान थी, को विशाल-शोभा यात्रा सहित धूमधाम से लाकर बडी प्रतिमा सहित दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर की वेदी मे विधि पूर्वक-विराजमान किया । यह वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव श्री दासूरामजी तथा उनके पुत्र श्री रोशनलालजी गोलछा एव उनके लघुभ्राता स्वर्गीय श्री सुखानन्दजी गोलेछा के सुपुत्र श्री श्रीनिवास शकरलालजी तथा श्री प्रेमकुमारजी आदि के आर्थिक सहयोग से सम्पन्न हुआ।
श्रीमान कवरभानजी के भी मकान मे जो चैत्यालय था वेदी प्रतिष्ठा के समय उन मूतियो को भी उत्साह पूर्वक शोभायात्रा सहित मन्दिर मे लाकर विराजमान कर दिया गया।
___ इस तरह से आदर्शनगर मन्दिर मे सभी साधर्मी जन मिल जुलकर उत्साह पूर्वक नित्य दर्शन पूजन शास्त्र स्वाध्याय आदि करने लगे।
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मन्दिर मे चहल-पहल शुरू हुई तथा राजापार्क, तिलव नगर, जनता कालोनी आदि आसपास रहने वाले धर्म वन्धु भी आकर दर्शन पूजन एव स्वाध्याय आदि करने लगे।
प्रतिष्ठा के समय अच्छा अर्थ-सग्रह होने से एव उसी समय व्यक्तिगत रूप स विभिन्न निर्माण कायो की स्वीकृतियाँ मिल जाने से निर्माण कार्य भी तेजी से आगे बढा ।
__सवसे पहिले मन्दिर मे 60x44 फुट के विशाल सभाभवन को पूरा किया गया, जिसका फर्श श्रीमान शिवनाथमलजी कोठारी दिल्ली वालो ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती गणेशीवाई की स्मृति मे वनवाया। सभाभवन मे प्रवेश क ते ही सामने 6x4 फुट काच मे उत्कीर्ण किया हुआ विशाल एव मनोज्ञ भगवान ऋषभदेव के चित्र के दर्शन होते हैं । इस वेदी को चारो ओर से रगविरगे काच के छोटे-छोटे टुकडो से कलात्मक ढग से सुसज्जित किया गया है, जिसकी शोभा विजली की आन्तरिक रोशनी से देखते ही बनती है, ऐसा अद्भुत चित्र शायद ही अन्यत्र कही देखने को मिले। यह अनुपम दृश्य श्रीमान ताराचन्दजी सुपुत्र श्री भोलारामजी सिंगवी के आर्थिक सहयोग से बना है।
इसी सभा भवन मे पूर्व दिशा की ओर शास्त्र भण्डार रखने के लिये विशेष व्यवस्था की गई है, जहा हस्तलिखित ग्रन्थो को सुव्यवस्थित ढग से वेप्ठन आदि लगाकर तथा नामाकित करके रखवाये गये हैं।
पश्चिम की ओर मुद्रित ग्रन्थो को विशेष रूप से रखने की व्यवस्था की गई है, जिनको जिल्द आदि सवार कर क्रमानुसार सुनियोजित ढग से रखा गया है जिससे कि स्वाध्याय प्रेमियो को वाछित ग्रन्थ शीघ्रता एव सुविधा पूर्वक दिया जा सके ।
सभा भवन की उत्तीरी दीवार पर देव-पूजन के महातम्य का द्योतक दृश्य जिसके साथ भगवान महावीर के समवसरण का चित्र दिखाया गया है, यह भावभीनी रचना काच के रगविरगे टुकडो से निर्मित है, जिसमे कला, सौदर्य एव भक्ति के महातम्य का दिग्दर्शन होता है । यह चित्र श्री किशोरीलालजी सुपुत्र श्री ताराचन्दजी ननगाणी द्वारा निर्मित कराया गया है।
सभा भवन मे गैलरी के चारो ओर पुस्तकाकार बने पन्नो पर कलात्मक ढग से रंगबिरगी स्याही मे अति शिक्षा-प्रद ससार, देह एव भोगो से वैराग्य दिलाने वाले, छदो में हृदय स्पर्गी वाक्य लिखे हैं।
सभा भवन के ऊपर दक्षिण की ओर उत्तर देखता हआ वेदी मण्डप है, जिसमें अति सुन्दर एव विशाल वेदी बनी हुई है। इस वेदी मे मुलतान एव डेरागाजीखान से लाई गई लगभग 101 मतिया विराजमान है, तथा समय-समय पर राजस्थान मे हई पचकल्याणक प्रतिष्ठाओ मे प्रतिष्ठित कराई गई कई प्रतिमाएं भी लाकर विराजमान की गई हैं । स्वाध्याय मन्दिर
___ ऊपर उत्तर की ओर 20x40 फुट का अति सुन्दर वारादरी के समान स्वाध्याय
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श्री मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर, आदर्श नगर, जयपुर के सभा-भवन मे शीशे पर उत्कीर्ण कलात्मक एवं मनमोहक चित्र की एक झलक ।
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पूजा के भाव मात्र से जाते मेढक का राजा श्रेणक के हाथी के पग तले दब कर मर जाने पर देव गति को प्राप्त कर भगवान श्री 1008 महावीर के समवशरण मे पूजा करते हुए रंग-बिरंगे काच के टुकडो से बना कलापूर्ण चित्र
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भवन बना है, जिसमे तीन ओर हरे कांच की खिडकिया ही खिडकिया है, जिससे शीतल एव सुहावनी पवन हर समय आती रहती है इसलिये पखे आदि कृत्रिम हवा की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। यहा नित्य नियमित रूप से प्रात शास्त्र सभा होती है, जिसमे स्थानीय एव बाहर से पधारे हए विद्वानो के प्रवचन होते है । फलस्वरूप महिलाए एव पुरुष वर्ग सदैव तत्व ज्ञान अजित करते हैं। यह स्वाध्याय मन्दिर श्रीमान स्वर्गीय श्री आसानन्दजी सिंगवी की इच्छानुसार उनके भाई श्री खशीरामजी आदि (फर्म मोतीराम कवरभान) ने बनवाया है तथा मन्दिर की दीवार के बाहर की ओर सगमरमर श्री पवनकुमारजी सुपुत्र श्री रिखबदामजी वगवाणी दिल्ली के आर्थिक सहयोग से लगाया गया है, और मन्दिर की बाउ ड्री का विशाल सगमरमर का दरवाजा (गेट) श्री माधोदासजी एव उनके लघु भ्राता श्री बलभद्र कुमारजी सिगवी ने बनवाया है। इस प्रकार इस विशाल मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पूर्ण मुलतान दिगम्बर जैन समाज के सयुक्त आर्थिक सहयोग से अथवा मन्दिर मे विभिन्न स्थानो के लिये विभिन्न व्यक्तियो द्वारा दिये गये आर्थिक सहयोग से हो सका है।
वेदी मण्डप के दोनो ओर निजी रूप मे स्वाध्याय करने के दो कमरे हैं जिनमे पश्चिम की ओर के कमरे मे महिलाऐ एव पूर्व की ओर के कमरे मे पुरुष वर्ग बैठ कर स्वाध्याय, सामायिक व जाप आदि करते है।
इन्ही कमरो के ऊपर दो कमरे और बने है जिनमे कि समय समय पर आये हुए त्यागियो एव वैरागियो के ठहराने की समुचित व्यवस्था है ।
नांचे सभा भवन के बाहर उत्तर मे 20x40 फुट का एक सु दर बरामदा है, जिसके ऊपर स्वाध्याय मन्दिर वना है।
इस मन्दिर का बाहरी सामने का भाग अति कलात्मक एव आकर्षक है, जिसके पर स्वाध्याय मन्दिर वना है। उसमे बने तीन शिखर मानो रत्नत्रय (सम्यकदर्शन, सम्यान एव सम्यक चारित्र) प्राप्ति का स्थान जिन मन्दिर को दर्शाने के द्योतक हैं।
यह मन्दिर वाह्य एव अन्दर (दोनो ओर) एवं समस्त फर्श सीढिया आदि सम्पूर्ण संगमरमर के पत्थर से निर्मित, अति संदर एक आकर्षक है। पैसे तो जयपुर मे अति प्राचीन एक सुन्दर बडे वडे जिन मन्दिर है किन्तु यह मन्दिर नवीनतम आधुनिक वस्तु कला से निर्मित अपने ढग का एक ही विशाल भव्य एव अद्वितीय दर्शनीय जिन मन्दिर है ।
__ अपनी सुंदरता के कारण यह मन्दिर अल्पकाल मे ही इतना प्रख्यात हो गया है कि जयपुर आने वाले तीर्थयात्री इसके दर्शन करने अवश्य ही आते है, तथा दर्शन करके अपनी जयपुर यात्रा को सफल मानते हैं ।
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मन्दिर के पीछे की जमीन मे मन्दिर को आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनाने हेतु दो मंजिला भवन बनवाकर स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर को किराये पर दिया गया है जिससे मन्दिर का दैनिक खर्च सहज रूप से चलता है। भगवान महावीर 2500वॉ निर्माण महोत्सव वर्ष
नवम्बर सन् 1974 ई मे सारे भारतवर्ष मे भगवान महावीर 2500वा परिनिर्वाण महोत्सव बडे पैमाने पर मनाया गया, जिसके अन्तर्गत पूरे भारतवर्ष एव विदेशो मे भगवान महावीर के सिद्धान्तो का प्रचार प्रसार हुआ और कई जनोपयोगी एव कल्याणकारी योजनाएं बनाई गई अथवा कार्यान्वित की गई। इसी के अन्तर्गत राजस्थान प्रान्त मे भी भगवान महावीर 2500 वा निर्वाण महोत्सव समिति राजस्थान द्वारा प्रान्तीय स्तर पर कई योजनाए कार्यान्वित की गई। जयपुर मे भी महावीर विकलाग केन्द्र जैसी कई मानव कल्याणकारी महत्वपूर्ण योजनाऐं प्रारम्भ हुई, इस अवसर पर मुलतान दिगम्बर जैन समाज भी पीछ नही रहा अपितु मुलतान समाज ने भी निम्न दो विशाल महत्वपूर्ण योजनाओ को मूर्त रूप दिया.
1 महावीर कीति स्तभ
2 महावीर कल्याण केन्द्र महावीर कीति स्तभ
भगवान महावीर 2500वा निर्वाण महोत्सव जयपूर साभाग समिति ने योजना वनाई कि राजस्थान की राजधानी जयपुर मे श्री महावीर कीर्ति स्तभ का निर्माण कराया जावे। कई बैठको मे विचार विमर्श हुआ किन्तु समस्या थी अर्थ एव स्थान की।
मुलतान दिगम्बर समाज ने प्रस्ताव रखा कि वे दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर के प्रागण मे अपने व्यय से महावीर कीर्ति स्तभ निर्माण कराने को तैयार हैं।
यह प्रस्ताव सुनकर निर्वाण महोत्सव समिति के सदस्यो मे हर्ष की लहर दौड गई। जयपुर सभाग समिति ने प्रान्तीय समिति को इस प्रस्ताव से अवगत कराया जिससे उन्हें भी अत्यत प्रसन्नता हुई और उन्होने शीघ्र निर्माण कराने का आग्रह किया।
____ अब महावीर कोति स्तभ के निर्वाण का दायित्व मुलतान दिगम्बर जैन समाज पर आने से, समाज मे इसकी चर्चा होने लगी फलस्वरूप श्री रग्रलाल सूपत्र श्री भोलारामजा वगवाणी एव बिहारीलालजी के सुपुत्र स्व० श्री घनश्यामदासजी सिंगवी की धर्मपत्नी श्रीमती विशनीदेवी ने निर्माण कराने हेतु आर्थिक सहयोग दिया ।
अखिल भारतीय भगवान महावीर 2500 वा निर्वाण महोत्सव समिति दिल्ली के स्वीकृत डिजाइन के अनुसार (राकेट के आकर का) आधुनिक डिजाइन महावीर कीर्ति स्तभ अर्थात मानस्तभ का श्रीमान रगुलालजी एव स्वर्गीय श्री घनश्यामदासजी के सुपुत्र श्री इन्द्रकुमार एव वीरकुमारजी के करकमलो द्वारा सन् 1976 ई० मे शिलान्यास कराया गया।
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श्री महावीर कल्याण केन्द्र
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महावीर कीर्ति स्तंभ 51 फुट ऊंचा सफेद संगमरमर के पत्थर से बना है । मूल मे 5 खण्ड का आधार 6 फुट ऊ चा मूल भाग है, उस पर पंचकोण तीन भाग में स्तभ बना है ।
सबसे ऊपर के खण्ड के प्रथम भाग मे अनादि निधन महामत ( णमोकार मंत्र ), दूसरे भाग मे चार मंगल अर्थात् ( चत्तारि मंगल), तीसरे भाग मे ससार मे चार उत्तम ( चत्तारि लोगुत्तमा), चौथे भाग मे ससार मे चार ही शरण पव्वज्जामि, तथा पाचवे भाग मे वदना (मोक्ष मार्गस्य नेतार भेतार' कर्म भूभृताम्, ज्ञातार विश्व तत्वाना वदे तद्गुण लब्धये) ये सब पूरे वाक्यो मे लिखे गये है ।
दूसरे खण्ड के प्रथम भाग मे "परमानन्द सिन्धु देव" (परमेष्ठी परम ज्योति ) अर्थात् देव का स्वरूप, दूसरे भाग मे, "ज्ञानदीप" अर्थात् शास्त्र का स्वरूप, तीसरे भाग मे समता के साधक गुरु का स्वरूप, चौथे भाग मे वस्तु स्वभाव धर्म अर्थात् आत्मा के शुद्ध स्वभाव का तथा पाचवे भाग मे गुणप्रधान स्तुति उत्कीर्ण कराई गई है | नीचे के खण्ड एव आधार खण्ड पर इतिहास एव अध्यात्म के विषय के लेख लिखा जाना शेष है ।
इस स्तभ मे तीन खण्डों के ऊपर चारो ओर चार गुलाबी पापाण के धर्म च वनवाकर लगाये गये है । उसके ऊपर वेदी है जिसमे पूर्व दिशा में, विदेह क्षेत्र मे विराजमान श्री अरहत परमात्मा 1008 श्री सीमधर भगवान तथा पश्चिम मे भरतक्षेत्र के धर्मतीर्थं प्रवर्तक प्रथम तीर्थकर भगवान श्री ऋषभदेव, उत्तर व दक्षिण दिशामे अन्तिम तीर्थकर भगवान श्री महावीर की स्मृतिया विराजमान है । इस प्रकार मानस्तभ की वेदी के चारो ओर चार प्रतिमाएं सुशोभित है ।
यह विशाल एव सुन्दर महावीर कीर्ति स्तम्भ श्रीमान नेठ गुलाजी बनवानी एव श्रीमान स्वर्गीय सेठ श्री घनश्यामदासजी सिंगवी की धर्मपत्नि श्रीमती बिनदेवी के आर्थिक सहयोग से निर्माण हुआ तथा मुलतान दिगम्बर समाज के मन्त्री श्री जागरण जैन के ही अथक परिश्रम एवं कुशल देखरेख मे निर्मित हुआ ।
इस प्रकार यह आधुनिक डिजाइन का अति मनोज्ञ एवं आ स्तम्भ भगवान महावीर के पच्चीसीचे निर्वाण वर्ष मे जहा जी महान उपलब्धि है वहा दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर के अपूर्व शोभा बढ़ गई है था यह महान पवित्र मुलतान दिगम्बर जैन समाज के लिये गांव का विषय है।
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चलाने हेतु नीचे के भवन का निर्माण श्रीमान कंवरभानजी के सुपुत्र स्व० श्री खशीरामजी की स्मृति मे उनकी धर्मपत्नि श्रीमती पदमो देवी एव सुपुत्र श्री शीतल कुमारजी ने कराया।
ऊपर की मजिल मे विद्यालय भवन का निर्माण रमेश कुमारजी मुलतानी एव श्री वन्सीलालजी के आर्थिक सहयोग से कराया गया। अतिथि गृह का निर्माण दूसरी मजिल में, श्रीमान स्व० श्री आसानन्दजी सुपुत्र श्री कवरभानजी की स्मति में उनकी धर्मपत्नि श्रीमती रामादेवी के आर्थिक सहयोग से हुआ।
मन्दिर आदि निर्माण कार्य के साथ-साथ समाज की अन्य गतिविधियाँ
___ स्वतन्त्रता के बाद मुलतान से आये हुये दिगम्बर जैन वन्धु जहा अपने आपको पुनर्स्थापन मे कटिबद्ध थे वहाँ धार्मिक कार्यो मे भी उनकी रुचि पूर्ववत बनी हुई थी। श्री शान्तीनाथ दिगम्बर जैन बडा मन्दिर तेरापथियान मे जहाँ मुलतान से लाई गई प्रतिमाए विराजमान थी नित्य सामूहिक पूजन, शास्त्रसभा मे प्रवचन आदि का कार्यक्रम तो चलता ही था विशेष तौर पर दश लक्षण आदि पर्न मे मुलतान की तन्ह यहाँ प्रात साजवाज के साथ सामूहिक पूजन, तत्पश्चात शास्त्र प्रवचन, सायकाल भक्ति आरती, रात्रि मे सगीत मण्डली द्वारा सास्कृतिक कार्यक्रम किये जाते थे। इससे थोडे ही समय मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज की संगीत मण्डली जयपुर मे विशेष प्रख्यात हो गई।
सन 1950 में शान्तोनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर तेरापथियान मे सिद्ध चक्र विधान का आयोजन विशाल रूपसे बडे उत्साह के साथ किया गया।
सन 1962 में दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्श नगर मे वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव वडे घूमधाम के साथ कराया गया जिसमे दिल्ली आदि से सम्पूर्ण मुलतान दिगम्बर जैन समाज के लोग तो आये ही साथ ही वाहर के अन्य स्थानो से भी बहुत बड़ी संख्या मे धर्मप्रेमी वधु, विद्वत्गण एन सगीतज आदि भी एकत्रित हुए। इसी अवसर पर शान्तीनाथ दिगम्बर जैन वडा मन्दिर तेरापथियान घी वालो का रास्ता जौहरी वाजार से विशाल रूप मे रथ यात्रा निकाली गई, जिसमे मुलतान से लाई गई प्रतिमाओ मे से केवल चार-पाच प्रतिमाए शहर में रहने वाले मुलतानी जैन वधुओ के आग्रह पर वही छोडकर वाकी सव जिन प्रतिमाए लाकर आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर मे विराजमान की गई।
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___ सन् 1964 मे 103 मुनि श्री विद्यानंदजी महाराज, आचार्य श्री देशभूपणजी महाराज के सघ के साथ जयपुर पधारे, उस समय श्री दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर में मुनि श्री विद्यानदजी महाराज का श्रीमान् पडित शिरोमणी श्री चैनसुखदासजी के साथ समागम हुआ, तथा आपस मे धार्मिक चर्चा वार्ता हुई । फलस्वरूप दशलक्षण पर्व के अवसर पर मुनि श्री विद्यानन्दजी के दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर के प्रांगण मे प्रवचनो के आयोजन सर्वप्रथम सार्वजनिक रूप से किए गये, जिसमे हजारो की संख्या में जैन अजैन, सभी वधुओ ने धर्म लाभ उठाया।
सन् 1964 मे श्री टोडरमल स्मारक भवन के शिलान्यास हेतु श्री पूरनचन्दजी गोदीका आदि सघ के रूप मे पूज्य श्री कानजी स्वामी को जयपुर पधारने के लिये
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श्री 108 मुनि विद्यानन्दजी महाराज (आदर्शनगर मन्दिर मे श्रीमान् प० चैनसुखदासजी एव मुलतान दि० जैन
समाज के सदस्य श्री आसानन्दजी आदि से विचार-विमर्श करते हुए) निवेदन करने सोनगढ गये, उस समय मुलतान दिगम्बर जैन समाज के महानुभाव भी एक पूरा बस लेकर उनके साथ गये तथा आध्यात्मिक सत पूज्य श्री कानजी स्वामी जव जयपुर पचार तो उस समय आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर के प्रागण मे विशाल पाडाल बनाकर उनके प्रवचनो का आयोजन किया गया, इससे वहुत बडी संख्या मे लोगो ने उनकी अध्यात्म सस परिपूर्ण अमृत वाणी (धारा) का रसास्वादन किया।
इस प्रकार सन् 1971 मे जब श्री टोडरमल स्मारक भवन वापू नगर जयपुर में
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वीतराग विज्ञान आध्यात्मिक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया था उस समय भी आध्यात्मिक सत पूज्य श्री कानजी स्वामी का जयपुर मे स्मारक भवन के अतिरिक्त केवल श्री दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर मे दूसरी वार प्रवचन का आयोजन विशाल पैमाने पर किया गया, जिसमे भारी जन समूह ने उनकी तात्विक एवं अध्यात्मपूर्ण अमृत वाणी का रसपान किया।
___तथा इसी प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर श्री टोडरमल स्मारक भवन मे बडी सख्या मे बाहर से पधारे हुए महानुभावो की भोजन आदि की व्यवस्था मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज के युवको ने 21 दिन तक पूर्ण सहयोग दिया।
___ आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर मे प्रत्येक वर्ष दशलक्षणी पर्व बडे धूमधाम एव विविध आयोजनो के साथ बड़े उत्साह पूर्वक मनाया जाता है और प्रत्येक वर्ष बाहर से उच्चकोटि के विद्वानो को आमन्त्रित किया जाता है। प्रात 7 बजे से 9-30 बजे तक सामूहिक पूजन, तत्पश्चात् 9-30 बजे से 10-30 वजे तक वाहर से बुलाये गये विद्वानो के प्रवचन, दोपहर को तत्वगोष्ठी, सायकाल भक्ति एव आरती, रात्रि मे 11 बजे तक दशो दिन विभिन्न प्रकार के सास्कृतिक एन धार्मिक आयोजनो द्वारा महती धर्म प्रभावना होती रहती है । तथा दश लक्षण पर्व के मध्य होने वाले रविवार को विशेष रूप से सार्वजनिक उत्सव मनाया जाता है जिसमे वाहर से पधारे हुए एन स्थानीय प्रमुख विद्वानो के प्रवचन, आध्यात्मिक एन उपदेशक गीत, पूजन, एन कलपाभिषेक, शोभायात्रा आदि का आयोजन किया जाता है जिसमें शहर तथा आसपास के उपनगरो के लोग बडी संख्या में भाग लेकर धर्म लाभ लेते हैं।
इम तरह वर्प मे आने वाले दीपावली भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव आष्टानिकाए, अक्षय तृतिया, श्रुत पचमी, रक्षा बन्धन आदि पर्व भी वडे उत्साह के साथ अनेक कार्य नमो के साथ मनाये जाते हैं।
समय समय पर सिह चक्र विधान, भक्तामर स्तोत्र विधान एव ऋषि मण्डल आदि विधान व्यक्तिगत एव नामूहिक रूप से बहुत उत्साह के साथ कराये जाते रहे हैं, जंगा कि विगैप कर सन् 1976 का सिद्ध चक्र विधान का वृहत् आयोजन उल्लेखनीय है ।
माध-मन त्यागी-प्रती आदि को भी ठहराने की आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर मे सानिन व्यवस्था है ।
मन 1979 में दिल्ली में श्रवणवे गोला को ओर विहार करते हुए एलाचार्य 108 श्री विद्यानन्दजी महाराज जय जयपुर पधारे तो इस अवसर पर 13-1-79 से 21-1-19 गा महागज दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर मे विगजे तथा उनके प्रात 8 बजे न
ना मार्गनिर नप में विशाल जन समूह की उपस्थिति मे मागभित प्रवचन --
आगगनी बन्धुजी ने धर्म लाभ चिया।
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एलाचार्य 108 श्री विद्यानन्दजी महाराज अपने सघ के साथ श्री मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर, आदर्शनगर, जयपुर मे। महाराज के पीछे खडे है सुलतान दिगम्बर जैन समाज की कार्यकारिणी के पदाधिकारी एव सदस्य-गण ।
(चिन सन् 1979)
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पीछे खड़े हैं :-वांए से दांए :-श्री नाथूलाल जी सोगानी, (उपमत्री) श्री महेन्द्र कुमार जी, श्री शान्तीलाल जी, श्री ज्ञानचन्द जी, श्री जयकुमार जी (मत्री), श्री मुलतानी चन्द जी, श्रा न्यामतराम जी (अध्यक्ष), श्री अर्जुन लाल जी (उपाध्यक्ष), श्री बलभद्र कुमार जी (कोषाध्यक्ष), श्रीपोखर दास जी, श्री भद्रकुमार जी, श्री ईश्वरलाल जी, श्री गिरधारी लाल जी।
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को भनाश्री विकामागन्जी महाराज जव सघ सहित जयपुर मी
दिगम्बर जैन मन्दिर मे पदार्पण हुआ। छ दिन
म क परम आध्यात्मिक प्रवचन हुए, जिससे सभी साधर्मी मा
105 की महजानन्दजी महाराज (श्री मनोहरलालजी कर्णी) : पधारे तो आननगर दिगम्बर जैन मन्दिर मे उनके प्रवचनो का मआयोजन गिनिने नमाज को उनके आध्यात्मिक प्रवचन सुनने का अपूर्ण का।ि
मोर: 1980 मे बालब्रह्मचारिणी कौशल बहिनजी (पानीपत वाली) नीरा
:तीने नम आदर्गनगर दिगम्बर जैन मन्दिर मे धर्मामत की वर्षा । उपनाम देते हैं कि माध-मत त्यागीगण, विद्वत वर्ग आदि महानुभाव मायनमय पर आननगर मन्दिर मे पधारते रहते है, जिससे यहाँ तथा आस पास के माधी जन मी जान गगा ने धर्मामत का रसपान किया करते है।
नमय कर पर जयपुर के विभिन्न मन्दिरो मे होने वाले उत्सवो रथ यात्राओ तना अन्य कार्यक्रमों में मुलतान दिगम्बर जैन समाज अपनी सगीत मण्डली सहित बड़े
पाल्लान के गार भाग लेनी रहती है । फलस्वरूप जयपुर मे कोई भी उत्सव होता है तो उन मण्टली को कार्यक्रम प्रस्तुत करने हेतु अवश्य ही आमन्त्रित किया जाता है तथा सामूहिक उन्मत्रो जैसे महावीन्जयती आदि की शोभा यात्रा मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज की मण्डली को विशेष रूप से बुलाया जाता है । जिसमे मुलतान जैन समाज प्रत्येक वप नवीन प्रकार की आधुनिक कलात्मक झाकियो के साथ अपनी सगीत मण्डली द्वारा सवात्कृष्ट कार्यक्रम प्रस्तुत करती है, इसी कारण वह सम्पूर्ण जुलूस मे पूरे जन समूह के विशेष आकर्षण का केन्द्र होती है।
उसी प्रकार भावान महावीर के 2500वाँ निर्वाण महोत्सव वर्ष मे शोभा भावार, गाठियो, मास्कृतिक कार्यक्रमो मे मूलतान दिगम्बर जैन समाज को सगीत मण्डली न सामूहिक रूप से अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करके अथवा समाज के कुछ महानुभावो ने व्यक्तिगत रूप से सक्रिय सहयोग देकर निर्वाण महोत्सव को सफल बनाने मे पूर्ण योगदान दिया। फलस्वरूप उसके समापन समारोह मे मन्त्री श्री जयकुमारजी एव श्री वलभद्र मारणा को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया।
इस प्रकार जहाँ मुलतान दिगम्बर जैन समाज धार्मिक गतिविधियो को बडे उल्लास एव उत्साह के साथ कार्यान्वित करता रहा है वहाँ लोकोपकारिक कार्यो मे भी
छ नही रहा । समय-समय पर देश एव राज्य में आने वाली विपत्तियो जैसे कि अतिवप्टि, वाह, सूखाग्रस्त, पीडित व्यक्तियो को यथाशक्ति सहायता देकर जयपुर समाज के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलता रहा है।
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उसी प्रकार दिगम्बर जैन मन्दिर के प्रांगण मे ही भगवान महावीर 2500वां परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष मे निर्माण किए गये महावीर कल्याण केन्द्र भवन मे महावीर कल्याण केन्द्र आयुर्वेदिक औपधालय की स्थापना करके लोकोपकारीय महान कार्य किया।
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महावीर कल्याण केन्द्र आयुर्वेदिक-औषधालय
___ इस औषधालय का भव्य उद्घाटन दिनाक 7 जुलाई सन् 1977 ई० को श्रीमान माननीय सुप्रसिद्ध वैद्यरत्न श्री सुशील कुमारजी जैन के करकमलो द्वारा किया गया। तथा श्रीमान वैद्य श्री सुशील कुमारजी ने ही इसका कार्यभार मुख्य चिकित्सक के रूप मे सभाल कर इसका सचालन किया जिसका ही परिणाम है कि इसे प्रारम्भ होते ही इसकी धवल कीर्ति अल्प अवधि मे ही सम्पूर्ण जयपुर एव दूर दूर तक के महानगरो तक फैल गई, तथा काफी सख्या मे साधारण एव असाध्य रोगी उपचार हेतु आने लगे, तथा वैद्धराजजी की नि स्वार्थ सेवा से लाभान्वित होकर स्वास्थ्य लाभ करने लगे । तया उनके प्रमुख शिष्य आयुर्वेदाचार्य आयुर्वेद वाचस्पति श्री अशोककुमार जी गोधा भी यहा कार्यरत हैं, तया इनके योग्य उपचार से नोटो गेगी प्रति दिन लाभान्वित होते है।
नयोग्य निदान पद्धति के कारण इनकी न्याति योटे ही समय में चारो ओर फैल गई।
इनके अतिरिक्त काई मेवाभावी महानुभाव पर महिला प्रतिदिन अपना अमूल्य समय देकर निगा मेवा प्रदान करती है।
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वैद्य श्री सुशील कुमार जैन
हा-
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वैद्य श्री अशोक कुमार गोधा
.मुनगान दिगम्बर जैन नमाज-निदाम में प्रानोप में
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इस औपधालय से प्रति वर्प निम्न लिखित संख्या मे रोगियो ने लाभ उठाया :वर्प
रोगी सख्या 1977-78
18,673 1978-79
24,723 1979-80
27,048 इस प्रकार प्रति वर्ष अधिक से अधिक लोग इस औपधालय से लाभान्वित होकर स्वास्थ्य प्राप्त कर रहे है।
इस औषधालय भवन मे चार कक्ष हैं, सर्व प्रथम कक्ष मे रोगियो का प्रतीक्षालय आधुनिक सुविधाओ से सुसज्जित है जिसमे रोगियो को बैठने के लिये कुर्सिया लगी हुई है तथा कमरे के मध्य मे एक बडी टेविल लगी हई है जिस पर दैनिक पत्र पत्रिकाए, धार्मिक साहित्य एव आरोग्य सम्बन्धी पत्रिकाए तथा पुस्तिकाए रखी हुई हैं, जिससे रोगी वहा वठकर प्रतीक्षा की अवधि मे उपलब्ध साहित्य का अवलोकन करके अपने समय का सदुपयोग करते है।
दूसरे कक्ष मे श्री वैद्यराजजी बैठते हैं जहा रोगियो का निदान करके औषधि पत्र बनाया जाता है। इसी कमरे मे औषधि वितरण कक्ष भी है, जहा से रोगी औषधि प्राप्त करते हैं।
तीसरे कक्ष मे शैय्याये लगी हई है जहां रोगियो को बिठाकर पेट आदि की आंतों का शालिकरण द्वारा असाध्य रोगो का उपचार किया जाता है, तथा इसी कमरे मे एक अलग रक्त मल मत्र कक्ष आदि का मशीनो द्वारा परीक्षण किया जाता है, तथा लेबोरेटरी के रूप मे यह कक्ष एलोपैथिक पद्धति पर आधुनिक मशीनो आदि से सुसज्जित किया हुआ है। . महावीर कल्याण केन्द्र की विशेष बात यह है कि यहा केवल रोगियो का उपचार हा नहीं होता बल्कि यहा आरोग्य एन आध्यात्म विषय पर व्याख्यानमालाओ के आयोजन भी किए जाते है । यह कार्यक्रम मास मे एक बार तो अवश्य ही रखा जाता है तथा आने वाले पवा पर विशेष आयोजन किए जाते है, जिसमे प्रमुख विद्वानो एन विशेपज्ञो को समय-2 पर नामन्त्रित कर उनके व्याख्यान कराये जाते है, तथा ध्यान आदि का भी अभ्यास कराया जाता है । इसके अतिरिक्त आध्यात्मिक उपदेश गीत एन प्रार्थनाए आदि से शान्ति प्रप्ति हेतु साधना की जाती है।
__ इन सभी गतिविधियो के मुख्य सूत्रधार वैद्य रत्न श्री सुशील कुमारजी है, जो समय-समय पर नये नये विद्वतगण विशेषज्ञो से एव विशिष्ट महानुभावो को लाकर इन सारे कार्यक्रमो को सफल बनाते हैं।
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इस आयुर्वेदिक औषधालय के शुभारम्भ कराने का श्रेय श्रीमान वलभ्रद्र कुमारजी को है, जिनकी प्रेरणा से समाज ने इसे मूर्तरूप दिया ।
इसका संचालन मुलतान दिगम्बर जैन समाज महावीर कल्याण केन्द्र उप समिति द्वारा किया जाता है तथा इसको दो विभागो मे विभक्त किया गया है। प्रथम सामान्य प्रवन्ध विभाग, एन द्वितीय औषधि क्रय एव निर्माण विभाग । प्रथम विभाग के सचालक श्रीमान वलभद्र कुमारजी हैं जो प्रारम्भ से ही अपना अमूल्य समय देकर, इसकी व्यवस्था करने में अपना पूरा योगदान दे रहे हैं । द्वितीय औषधि विभाग के सचालक श्री शभु कुमारजी हैं, जो ओषधिक्रय करने तथा उसको वितरण प्रणालो की देखरेख करने मे अपना काफी बहुमूल्य समय देकर इसे सुचारु रूप से क्रियान्वित कर रहे हैं।
इस तरह मुलतान दिगम्बर जैन समाज द्वारा सचालित श्री महावीर कल्याणकेन्द्र की स्थापना एक महान उपलब्धि है, जिससे समाज, जनकल्याणोपयोगी कार्य करके अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता है।
इस प्रकार स्वतत्रता के बाद पाकिस्तान से आये मुलतान दिगम्बर जैन समाज के महानुभावो ने पिछले 32 वर्षों मे जहाँ अपने आपको भली भाति पुनर्स्थापित करके अच्छी आर्थिक प्रगति की वहाँ अपनी अट धार्मिक श्रद्धा एव निष्ठा होने के कारण आदर्शनगर मे विशाल एव भव्य जिन मन्दिर का निर्माण कराया तथा जयपुर नगर मे समय समय पर होने वाले सभी धार्मिक एघ सामाजिक कार्यक्रमो मे अग्रणी होकर उत्साहपूर्वक अविरल रूप से दिगम्बर जैन समाज जयपुर के साथ कधे से कधा मिलाकर भाग लेता रहा, इसीलिये अल्प काल मे ही जयपुर तथा भारतवर्षीय दिगम्बर जैन समाज मे मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने अपना विशेष स्थान बना लिया है।
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श्री महावीर जीव कल्याण समिति
समाज मे लोकोपकारक कार्य होते हुए भी एक कमी का अनुभव किया जा रहा था कि समाज मे कोई ऐसी सुविधा नही है जिसके माध्यम से अपेक्षित व्यक्तियो की गुप्त सहायता आदि करके व्यथा का निवारण किया जा सके ।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु श्री महावीर जीव कल्याण समिति की स्थापना की योजना विचारार्थं आई कि एक ऐसा ध्रुव कोष बनाया जाय जिसके मूलधन को सदा सुरक्षित रखते हुए उसकी व्याज की आय से उद्देश्यपूर्ति हो । इसको साकार रूप दिया श्री गुलाल जी जैन देहली, श्री नियामतराम जी, श्री पोखरदास जी, श्री जयकुमार जी, श्री रमेश मुलतानी, श्री शीतल कुमार जी जयपुर ने ।
इसकी रूपरेखा बनाई गई, प्रारूप तैयार हुआ कि इस कोष मे प्रारम्भ मे 5 लाख रुपये एकत्रित करने का लक्ष्य रखा जाय ।
प्रसन्नता की बात है कि इस कोष मे अनुमानत. 1,75,000 ( पौने दो लाख रुपये) के वचन तो उसी समय मिल गये । करीब 55,000 ) रुपये मिलते ही कार्य प्रारम्भ कर दिया गया ।
यह कोष पूरी मुलतान दि० जैन समाज का चिरकाल तक एकता का सूत्र एव प्रतीक बना रहेगा । जिसका प्रमाण है कि इसके प्रारम्भिक सदस्य श्री गुलाल जी, श्री गुमानीचन्द जी, श्री प्रेमचन्द जी, श्री तोलाराम जी आदि देहली एव श्री नियामतराम जी, श्री पोखरदास जी, श्री माधोदास जी, श्री जयकुमार जी, श्री अर्जुनलाल जी, श्री जवाहरलाल जी, श्री रमेश मुलतानी, श्री शीतलकुमार जी आदि जयपुर ।
विश्वास है कि पूरा समाज इसमे तन-मन-धन से सहयोग देते हुए इसके उद्देश्यो की पूर्ति में भागीदार बनता रहेगा ।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के झालोक मे
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दिल्ली में मुलतान दिगम्बर जैन समाज
मुलतान एव डेरागाजीखान से आये हुए ओसवाल दिगम्बर जैन वन्धु व्यवसाय की दृष्टि से दिल्ली मे रहने लगे, और वहाँ अपने को पुनर्स्थापन हेतु विभिन्न प्रकार के व्यवसाय में दिन रात एक करके कठिन परिश्रम से उसको आगे बढाने मे जुट गये । तथा उसमे सभी ने अच्छी प्रगति की और अपने जीवन स्तर को काफी ऊँचा ले गये ।
व्यवसाय मे इतनी उन्नति की कि वह अपने-अपने व्यवसाइयो मे अग्रणी के रूप मे माने जाने लगे । जैसे-जैसे समय आगे बढा निवास के लिए भी लोगो ने अपने मकान आदि बनाने मे सफलता प्राप्त की और अव प्राय समाज के सभी परिवारो ने अपने-अपने स्तर के अनुसार बहुत अच्छे-अच्छे सभी आधुनिक सुविधा से परिपूर्ण निवास स्थान वना लिए है और सुख शान्ति से सभी बन्धु जीवन यापन कर रहे हैं, उनमे से कई परिवार तो बहुत आगे बढ गये हैं ।
जहाँ भौतिकता मे वे बहुत आगे वढे वहाँ अपने पूर्वजो से मिले संस्कारो से धार्मिक प्रवृत्तियो मे भी सदैव उल्लास एवं उत्साह के साथ तत्पर रहे ।
मी का परिणाम है कि दिल्ली मे रहते हुए भी जैसा कि पूर्व पृष्ठो मे बताया गया है मुलतान दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर के निर्माण मे जयपुर मुलतान दिगम्बर जैन समाज के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली ने पूरा तन-मन-धन से सहयोग देकर मन्दिर को विशाल, भव्य एव मुन्दर रूप देने मे सहयोग दिया और इसकी वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव तथा समय-समय पर होने वाले सिद्ध चक्र विधान महोत्सव एव अन्य उत्सवो आदि के समयो पर सामूहिक रूप से जयपुर आकर उन सभी कार्यक्रम को सफल बनाने मे अपना हर सम्भव योग दिया ।
श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर चाँदनी चौक लाल किले के सामने डेगगाजीखान मे लाई हुई चोवीस तीर्थकरो की 24 सर्व धातु की एवं अन्य कुछ मूर्तियां विराजमान है । प्रतिवर्ष आनेवाले पर्वाधिराज दशलक्षण पर्व को बडे उत्साह एवं उल्लाम से माथ मनाया जाता है जहाँ अलग वेदी बनाकर प्रात: 8 बजे से 103 बजे तक बड़ी भक्तिभाव व सुर ताल के साथ सामूहिक पूजन होती है जो सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाती है, और बाहर से कोई न कोई विद्वान बुलाया जाना है जो 12 बजे तक शास्त्र प्रवचनते है । जिनमें पूरी नमाज के छोटे-बडे स्त्री- पुम्प बच्चे आदि सभी तन्मयता मे भाग के तत्वज्ञान से धर्मोपाजन कर आत्मिक शान्ति प्राप्त करते है |
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• नान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के बाली में
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इसी प्रकार भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव दीपावली के दिन भी इनी मन्दिर मे सामूहिक रूप से एकत्रित होकर भगवान महावीर की पूजन. भक्ति आदि के माय लड चढाने का कार्यक्रम बडे हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न किया जाता है ।
प्रति वर्ष महावीर जयन्ती के दिन शोभायात्रा मे मुलतान दिगम्बर जैन नमाज की ओर से भजन मडली वडे उत्साह के साथ भाग लेती है और अपने आध्यात्मिक उपदेश । भक्ति आदि गीतो से शोभायात्रा मे आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है।
__ इस तरह से दिल्ली मे समय-समय पर होने वाले उत्सवो मे जमा कि भगवान महावीर का 2500वा निर्वाण वर्ष महोत्सव के उपलक्ष मे निकाली गई महान शोभायात्रा में मुलतान दि० जैन समाज ने विशेष उत्साह एव उल्लास के साथ भाग लिया और उनमें आकर्षक झाकी एव भजन मडली के माध्यम से महती धर्म प्रभावना की तथा गलाचायं मुनि विद्यानन्द जी के दिल्ली प्रवास के समय उनके सानिध्य में होने वाले कार्य प्रमो मे मलनान समाज के युवको एव महिलाओ ने सगीत-कविताए आदि देकर अच्छी धर्म प्रभावना मे योग दिया तथा अच्छी ख्याति प्राप्त की।
व्यक्तिगत रूप से भी कई बार कई महानुभाव रात्रि जागरण. मनीत, उसन आदि कराकर अपनी धार्मिक प्रवृत्ति का परिचय देकर बच्चो मे धार्मिक नस्सार बनाने को प्रेरित करते रहते हैं । धार्मिक गतिविधियो के साथ-साथ लोकोपकारक कायों में भी नमाउ पछि नहीं । कई प्रकार से गुप्तदान मुलतान सेवा समिति के माध्यम से दीन दुनियोनी मेवा, नेत्र चिकित्सा शिविरो मे आर्थिक योग व विद्यार्थियो को पारितोपिन, सहायता माटिका भिन्न-भिन्न लोकोपकारक कार्यो मे भी मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिली; " रहता है।
यहा के युवको मे भी उत्साह कम नहीं है उनमे भी नगटिन मेरा कामना है । इसी से प्रेरित होकर उन्होने "मुलतान जैन परिपद" नाम : :बनाया जिसके माध्यम से वे आने वाले प्रत्येक धामिर एवनामााि की . उल्लासपूर्वक भाग लेकर कार्यान्वित करने मे तत्पर रहते हैं । इनके प्रेरक है श्री बद्धमेन मिगवी, साक्ष श्री जी
" - .. कुमार एव निहालचन्द जैन, महामन्त्री बावपालन. मणी ..: :; अशोककुमार जैन, कोषाध्यक्ष इन्द्रकुमार जैन आयो
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श्री मुलतान दि० जैन समाज मारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वानों की दृष्टि में
मुलतान का आदर्श जैन समाज
प० कैलाशचन्द्र शास्त्री
सिद्धान्ताचार्य । वाराणसी
सन् 1942 मे मुझे दस लक्षण पर्व के लिये मुलतान की दिगम्बर जैन 'माज का निमन्त्रण मिला और मैंने उसे स्वीकार तो कर लिया, किन्तु हृदय में यह शका बनी रही कि सुदुर पजाब प्रदेश मे न जाने जैन समाज का रहन-सहन, खान-पान कैसा होगा और व्रत्तादि कैसे पाले जा सकेगे। किन्तु वहा पहच कर मेरी सभी शकाये दूर हो गई और जैन आखिर जैन ही है वे कही भी रहे किन्तु जैनत्व की सुवास नही जा सकती।
यह बतला देना भी उचित होगा कि मुलतान मे दिगम्बर जैन प्रारम्भ से ही अधिकाश ओसवाल दि० जैन थे। कुछ बाद मे भी श्वेताम्बर से दिगम्बर बने थे। में उस समय के बुजुर्गों के नाम भूल गया है कि किस तरह उन्होने परीक्षा करके सत्यमार्ग का पहचान कर आत्महित की दृष्टि से दिगम्बर बने थे। इसके लिए दोनो सम्प्रदायों में शास्त्रार्थ भी हुआ था। दिगम्बरो की ओर से न्याय दिवाकर पण्डित पन्नालालजी वुलार्य गये थे। जव मै मुलतान गया उस समय मुलतान डेरागाजीखान मे अधिकाश ओसवाल दि० जैन ही थे। कुछ अग्रवाल एव अन्य जाति के परिवार भी रहते थे । मेरी याददास्त के अनुसार डेरागाजीखान मे 40 घर और मुलतान मे 60 घर ओसवाल दिगम्बर जैनो के थे। मन्दिर मे पूजन, भजन, शास्त्रसभा बडे ठाट से होती थी। रात्रि को वालक अकलक निषकलक आदि के कई ड्रामे करते थे।
मुलतान की जैन समाज ने प० अजितकुमार जी को अपने यहां बुलाकर वसा लिया था और प्रेस खुलवा दिया था। आर्य समाज मे शास्त्रार्थ करने मे सवको वडा रस था। रात्रि के व्याख्यानो मे भी ईश्वर कर्तव्य खण्डन आदि विषय रखे जाते थे । मन्दिर बड़ा विशाल था।
एक दिन मुझसे बातचीत मे वहा के बुजुर्ग बोले-पण्डितजी हमारी आम्नाय विगडती जाती है, लडके बच्चे बाजार मे खाने लगे हैं। पहले हमारे यहा दूज, पचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी को हरी शाक सब्जी नहीं खाई जाती थी। अब तो केवल अष्टमी चतुर्दशी को नही खाते । मुझे यह सव सुनकर वडा अचरज हुआ। मैने कहा आपके यहा अभी भी धर्म है। हमारे यहा तो अष्टमी, चतुर्दशी का विचार ही समाप्त है। वे मेरा मुह देखने लगे।
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मैने उनसे उनकी पुरानी प्रथाओ के सम्बन्ध मे जिज्ञासा प्रकट की। तब बोलेपहले हमारे या समाज की आज्ञा के बिना बच्चे न मदिर मे चवर ढोर सकते थे और न स्वय गन्धोदक ले सकते थे। इसके लिए समाज से आज्ञा लेनी पडती थी कि हमारा वालक अब इस योग्य हो गया है, समाज आज्ञा प्रदान करे । कितना बडा सामाजिक अनुगासन था और विनय अविनय का कितना ध्यान था।
वाहर से आने वाले जैनो के लिए यह स्थायी व्यवस्था थी कि नम्बर वार सबके घर बन्धे हुए थे । मन्दिर के मालिक को यह हिदायत थी कि मन्दिर मे जो नवीन व्यक्ति आवे उसे जिस घर का नम्बर हो उसे भोजन के लिए स्वय पहुचा आवे । मै पर्व मे जितने दिन रहा उतने दिन मेरा भोजन उन्ही घरो मे हो सका जिनके नम्बर थे। इसमे वडे छोटे का प्रश्न नही था । आशानन्द रगूराम की दुकान बडी विशाल थी, बडा कारोबार था । सुखानन्दजी, चोथूरामजी, जिनदासमलजी, बिहारीलालजी आदि बुजुर्ग थे। वडा ही सुन्दर सगठन बना हुआ था।
___ वही से मैं डेरागाजीखान गया। लाला कवरभान मुखिया थे । पर्व के बाद एक दिन नगर कीर्तन था । पूरा स्टेज बन्धा हआ साथ-साथ चलता था। भजन और ड्रामा होता जाता था। शराब व जए आदि की बराइया आदि विषय होते थे। जनता की भीड वढती जाती थी और अन्त मे अपने स्थान पर पहुच कर वही भीड जलसे के रूप में बदल जाती थी। वक्ताओ के भाषण होते थे। प्रचार का ऐसा सफल आयोजन मैने कही नही देखा । पजावी प्रदेश, जैनो के सिर्फ 38 घर और यह रग देखकर मै दग रह गया था। मैं आज भी उन सब दृश्यो को नही भूला हूँ । दशलक्षणजी मे जहा जाता ह तो मुलतान और डेरागाजीखान की चर्चा अवश्य करता हू ।
पुराने सब उठ गये, मुलतान और डेरागाजीखान छूट गये । किन्तु दूसरी पीढी में भी धर्म-प्रेम वही है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जयपुर के आदर्शनगर मे बना मुलतानवासियो का जैन मन्दिर जिसकी रजत जयन्ती मनाई जा रही है । यह पुरुषार्थी समाज की सफलता का जीता जागता उदाहरण है जिन्हे देश विभाजन के समय अपना सवस्व छोडकर भागना पडा । उन्होने अपने पुरुषार्थ से इस आदर्शनगर को एक आदर्श के रूप में विश्व के सामने रखा है और आदर्शनगर का यह जैन मन्दिर भी एक आदर्श रूप हा है । आशा है मुलतान की दिगम्बर जैन समाज अपने पुरातन आदर्श को जिसकी मैने ऊपर चर्चा की है, नही भूलेगी और उसे ही अपना आदर्श सदा बनाये रखेगी । आचार्यो न ठीक ही कहा है "जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।"
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प्राचार्यकल्प पं. टोडरमलजी एवं मुलतान दि. जैन समाज
डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल
सम्पादक,
'आत्म धर्म' जयपुर। मुलतान दिगम्बर जैन समाज शताब्दियो से तत्वाभ्यासी एव अध्यात्म प्रेमी समाज रहा है। आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी की 225 वर्ष पूर्व लिखित महत्वपूर्ण कृति "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" काप्रेरणास्रोत मुलतान निवासी भाई खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी और सिद्धारथदासजी का वह पत्र है , जिसमे उन्होने कुछ सैद्धान्तिक और अनुभवजन्य प्रश्नो के उत्तर जानना चाहे थे और जिसके उत्तर मे यह "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" लिखी गई थी।
यद्यपि आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी की यह प्रथम कृति है तथापि उसमे जो प्रौढता दिखाई देती है, वह उनके गम्भीर अध्ययन एव आत्मानुभव को स्पष्ट कर देती है। आज ऐसा कौन दिगम्बर जैन होगा जो प० टोडरमलजी के नाम से परिचित न हो। उनका "मोक्षमार्ग प्रकागक" आज घर-घर पहुच चुका है और जन-जन की वस्तु बना हुआ हैं।
___ "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" मे चचित विषय से जहा एक ओर पण्डित टोडरमलजी को विद्वता की छाप हमारे हृदयपटल पर अकित होती है, वही दूसरी ओर उसमे समागत प्रश्नो को देखकर तत्कालीन मुलतान दिगम्बर जैन समाज की रुचि, जिज्ञासा और अध्ययन के स्तर का भी सहज ज्ञान हो जाता हैं ।
यातायात की सुविधाओ के अभाव मे भी इतनी दूर तक प्रश्नो को भेजना और उनसे समाधान प्राप्त करने का प्रयत्न करना उनकी तीव्रतम रुचि और जिज्ञासा को तो प्रगट करता ही है, साथ ही प्रश्नो का उच्च स्तर देखकर उनके अध्ययन का स्तर भी ध्यान मे आये बिना नही रहता।
___ इस प्रकार हम देखते हैं कि जयपुर और मूलतान दिगम्बर जैन समाज का आध्यात्मिक सम्बन्ध उतना ही पुराना है जितना पुराना जयपुर नगर है।
जव सन् 1947 मे इस पावन देश के भारत और पाकिस्तान के रूप मे दो टुकडे हुए और मुलतान नगर पाकिस्तान मे चला गया तो मुलतान दिगम्बर जैन समाज को भा अपनी प्रिय मातृभूमि मुलतान नगर को छोडना पडा।
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वे भारत के किसी भी नगर मे बस सकते है, पर उन्होंने जयपुर को ही क्यो चुना इसमे कोई सदेह नही कि जयपुर और मुलतान का वह पुराना आध्यात्मिक सम्बन्ध इसमे प्रेरक रहा है ।
मुलतान
।
किया है
।
जयपुर के उपनगर आदर्शनगर मे बसे बन्धुओ से मेरा गत तेरह वर्षों से निकट सम्पर्क रहा है आध्यात्मिक रुचि ने मुझे अन्तर से प्रभावित अत्यन्त विशाल जैन मन्दिर बनवाया है जिसमे मुलतान से व हस्तलिखित शास्त्र विराजमान हैं । उक्त मन्दिर मे उन लोगो द्वारा प्रतिदिन अत्यन्त भक्ति-भाव पूर्वक की जाने वाली सामूहिक पूजन देखने योग्य होती है । किसी भी प्रकार की आचरण शिथिलता उनके जीवन मे अभी तक नही आ पाई है । इस भौतिकवादी युग मे यह उनकी धार्मिक निष्ठा का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
दिगम्बर जैन समाज के उनकी धार्मिक प्रवृत्ति,
उन्होने बहुत ही सुन्दर, आये सैकडो जिन विम्व
उक्त जिन मन्दिर की रजत जयन्ती महोत्सव एवं उसी मन्दिर के प्रागण मे नवनिर्मित महावीर कीर्तिस्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव आगामी 26-27 अप्रेल को होने जा रहा है ।
उनके उज्ज्वल आध्यात्मिक भविष्य की मगलकामनाओ के साथ ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज
पं. खुशालचन्द गोरावाला, वाराणसी
प्राकृत का “मूलठाण” संस्कृत युग मे " मूलस्थान" हुआ और सिन्ध पर इस्लामिकी आक्रमण हो जाने के बाद मुलतान होकर आज तक इसी रूप मे है । अनायास ही यह शब्द अपने अतीत की ओर आकृष्ट करता है क्योकि "मोहनजोदडो" और "हरप्पा" भी मूलठाण के ही चक्र मे थे । प्राक्वैदिक अर्थात् द्रविड या श्रमण संस्कृति का मूलस्थान आधुनिक मुलतान आज भी गर्द, गर्मा-गदा "गोरिस्तान तोफा से मुलतान" के रूप में प्रचलित किंवदन्ती द्वारा श्रमणो, ब्राह्मणो और मुस्लिमो का गोरिस्तान है । भले ही पाकिस्तान मे पड कर तथोक्त इस्लामिक राज्य की मुख्यनगरी रूप से जाना जाता है । किन्तु इसमे खाली पडे या मकतब बने जैन मन्दिर वैष्णव देवालय, आर्य समाज
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और गुरुद्वारे इसे अर्वाचीन मोहनजोदडो की श्रणी मे बैठाये हैं। अतीत मे यदि श्रमणो की नागरिक सस्कृति को प्रकृति के प्रकोप ने भूतल मे छिपा लिया था, तो आज धार्मिक उन्माद मे साम्प्रदायिक राज्य के थपेडो मे पड़ कर मूलस्थान, अपनी विपाण मुद्रा मे ही अपनी बीती सारी करुण कथा कह रहा है। भारत-विभाजन के समय
मुलतान से आये श्रमण (जैन) ब्राह्मण (वैदिक) संस्कृति के पालक भारतीय आज हमे उस हजारो वर्ष पुराने जन-अर्जन (माइग्रेशन) का जीताजागता उदाहरण दिखाते हैं जो 5-7 हजार वर्ष पहिले श्रमणो (द्रविडो) ने सिन्ध के प्रवल धार मे पडकर किया होगा अथवा डेढ हजार वर्ष पूर्व विध्वसक एवं वर्वर मुस्लिम आक्रमण के बाद ही इसे दिया होगा। इतना ही नहीं गगा-क्षेत्र के हरिद्वार, कान्यकुब्ज, प्रयाग और वाराणसी के समान सिन्धु क्षेत्र का मुलतान भी भारत की उन नगरियो मे रहा है जिन्होने भारतीय इतिहास के प्रत्येक युग मे सवल-कर्म भूमिका निभायी है । श्रमण या जैन संस्कृति की दृष्टि से मुलतान की मौलिकता अद्वितीय है।
जातियो की दृष्टि से ओसवाल जाति के अधिकतम लोग सारे भारत मे जिनसम्प्रदायी (श्वेताम्बर) ही हैं । मुलतान और आसपास का जैन समाज राजाश्रय प्राप्त श्वेताम्बरत्व की वाढ से भी अछूता रहा था। जिन सम्प्रदाय रूपी मरुस्थल मे भी मुलतान और उसका अचल दिगम्बरत्व की शस्यस्थली (ओइसिस) या जिनधर्मी (दिगम्वर) ही था और हजारो वर्ष बीत जाने पर भी विशुद्ध दिगम्बर रहा । अल्पसत्यक होने से जहा जहां अनेक हीनताये या हानिया होती हैं वही एक वडा लाभ भी होता है। बहुसख्यको का अनागत भय अल्पसख्यकों को सुसगठित और पुरुषार्थी बनाये रखता है तथा बहुसंख्यक भी अपवाद-भीरुता के कारण अल्पसंख्यको का अधिक ख्याल रखते हैं । पंजाव तथा सीमान्त प्रदेश मे गैरमुस्लिमो को भी न्यूनाधिक वे सुविधायें सुलभ थी जो आज के भारत मे मुसलमानो को अतिसुलभ हैं । यही कारण था कि मुलतान-डेरागाजीखान, आदि के दिगम्बर ओसवालो को अपनी विरादरी मे विशेष मान था तथा इनके जिनकल्पी (दिगम्बर) रूप को श्वेताम्बर जैन भी सम्मान से देखते और उत्कृष्ट मानते थे। साधर्मी वात्सल्य
मलतान डेरागाजीखान आदि के जैनियो मे ऐसा माधर्मी प्रेम था जिसकी दसरी मिसाल खोजना कठिन है । यहा पर रक और राजा, धनी-निर्धन, सबल-दुबल और शिक्षित-अशिक्षित साधर्मी परस्पर मे ऐसा व्यवहार रखते थे कि हीन को कभी अपनी हीनता का आभास भी नहीं होता था । लक्षाधीश क्या कोटयाधीश भी अपनी वेटी अपने ही मुनीम के बच्चे को ब्याह देता था । अर्थात् "रोटी" की समता के सिवा "वेटी" के व्यवहार मे भी उत्कृष्ट समता थी । साधर्मी का सामाजिक, धार्मिक, आथिक स्थितिकरण समता आदि तो मुलतान अचल के दिगम्बरो के लिये रोजमर्रा के कार्य थे।
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___ सहिष्णुता
यद्यपि मुलतान अचल के जैन समाज मे बहुभाग एव प्रमुख ओसवाल लोग ही थे किन्तु उन्हें जातिनद छू भी नही गया था । विविध जातिया एक परिवार की तरह गुथी तथा बाहर से आये किसी भी जाति के व्यक्ति या परिवार को ऐसा अपनाते थे कि वह भी दिगम्बर या मुलतानी जैसा ही हो जाता था। इतना ही नही उनका साधर्मी (प्रेम) श्वेताम्बरो को भी प्राप्त था। रोटी के समान बेटो व्यवहार भी उनके साथ चलता था। इसका परिणाम यह था कि श्वेताम्बर बन्धु अपनी साम्प्रदायिक मान्यताओ मे बधे रह कर भी मूलधर्म (जिनकल्प) को ही उपादेय मानते थे और स्वीकार करते थे कि हमारी मूर्तियां राज-अवस्था की ही हैं । केवली या वीतरागी रूप तो दिगम्बर मतियो का ही है। वही उपादेय एव श्रेष्ठ है।
अग्नि परीक्षा
अन्तरग और बहिरग जिनधर्म के पालन तथा मानने मे लीन मुलतान-अचल - साधमियो को यह कल्पना भी नही थी कि देश के टुकडे होगे और उन्हे अपनी पतृभूमि छोड़कर जाना पडेगा । इस अग्नि परीक्षा की भयानक घडी मे भी मुलतान
गाजखिान के इन जिनमियो को अपनी विपूल सम्पत्ति की इतनी चिन्ता नही थी, जतना कि अपने शास्त्र की थी। देवालय तो जगम नही बनाये जा सकते थे किन्तु ५१ शास्त की मात्रा तो लौकिक सम्पत्ति के लवाश भी नही थी। हा देव-शास्त्र का रुप निश्चित ही अनन्त गणा था। घर-द्वार-धन-धान्यादिक को छोड़कर जाने को
र थ। ये हमारे धर्मवीर आर्य देव-शास्त्र को प्राण देकर भी छोड़ने को तैयार नही । मुलतान अचल के जैनियो ने अन्न-जल का त्याग करके घोषणा करदी कि वे तव हवाई जहाज पर नही चढेगे जब तक उन्हे परे देव-शास्त्रो के साथ जाने की अन
भार व्यवस्था नही की जायेगी । अन्त मे हमारे ये साधर्मी अपनी अग्नि परीक्षा मे सफल हुए तथा अपने देव-शास्त्री के साथ ही भारत आये ।
करणीय
तये
समना
। कायर
जयपुर, दिल्ली, वम्बई आदि मे बसे हमारे ये साधर्मी यद्यपि अपने पुरुषार्थ के फिर सम्पन्न भारतीय बन गये है और इन्होने जितना सम्भव था उतना अपने शासयो के रगरूप मे ढलने का भी प्रयत्न किया है। किन्तु उनकी सादगी, '' साधी वात्सल्य आदि तदवस्थ है तथा इन्होने अपनी मुलतानी पहिचान भी
खा है । इसका ही ये सुफल है कि जयपुर ही नही जहा-जहा ये जाकर बसे है इनके अस्तित्व को मान्यता मिली है। क्योकि देवपूजा, गुस्पास्ति, स्वाध्याय, 'तप और दान इन छहो गहस्थो के नित्य कृत्यो का वे सावधानी से पालन है तथा प्रवासी और स्थानीय सामियो के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करते है ।
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एक आदर्श जैन समाज
प० प्रकाश हितैषी शास्त्री
सम्पादक सन्मति सन्देश, दिल्ली 37
सुलतान दिगम्बर जैन समाज की धर्मरुचि का परिचय इससे मिलता है कि आज से करीब, 220 वर्ष पूर्व मुलतान जैन समाज ने उस समय के महान दार्शनिक विद्वान पर प्रवर टोडरमलजी से आत्मानुभव सम्बन्धी सूक्ष्म प्रश्न किये थे । पाकिस्तान बनने के बाद वही मुलतात दिगम्बर जैन समाज प० टोडरमलजी की धर्मभूमि जयपुर मे और कुछ बन्धु दिल्ली मे आकर बस गये हैं ।
इस समाज से मेरा सम्बन्ध सन् 1960 से है । जब मैंने उनके विशेष आग्रह पर दशलक्षण पर्व मे लाल मन्दिर मे इसी समाज के समक्ष लगातार 3 वर्ष तक धर्म-प्रवचन किये थे । कुछ वर्षों तक प्रति रविवार को डिप्टीगज के दिगम्बर जैन मन्दिर मे मुलतान समाज मे शास्त्र प्रवचन भी करता रहा हूँ। जयपुर मे वसी मुलतान जैन समाज मे दशलक्षण पर्व मे शास्त्र-प्रवचन करने का भी सुअवसर मिला है। जिससे उनकी रुचि और आचार विचार को बहुत निकट से जानने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
। ये सभी जहा अपने स्वतन्त्र व्यवसायो मे निष्ठात है, वहीं पर इनकी धर्मरुचि, एकता, व उदारता भी प्रशसनीय है । आदर्शनगर जयपुर का बनाया गया इनका दिगम्बर जैन मन्दिर इतना विशाल और आकर्षक है कि निकट भविष्य में इसकी गणना सास्कृतिक धरोहर के अतिरिक्त दर्शनीय स्थल के रूप मे हो जायगी । कई लाख का लागत से निर्माणित यह जैन मन्दिर एव कीर्तिस्तम्भ इनकी उदारता एन तीव्र धर्मरुचि का ही परिचायक है।
इनमे परस्पर मे इतनी एकता और प्रेम है कि थोडे से इशारे से ही ये सब एक स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं तथा जब ये पूजा भक्ति मे तन्मय होते हैं तब भक्तिरस की ऐसी पावन गगा बह उठतो है जिसमे प्रत्येक भक्त उस गगा मे स्नान कर कृत्कृत्य हो उठता है । एक लय एक स्वर मे साज वाज के साथ जब ये पूजन भक्ति करते है तो कोई भी व्यक्ति इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । इनकी तत्व की रुचि भी प्रेरणादायक है । प्रतिदिन की पूजन के बाद इनकी नियमित शास्त्र सभा होती है, उसमे गहरो तत्वचर्चा चलती है । त्यागी, व्रती और विद्वानो का ये समुचित सम्मान करते हैं। इनकी विशेषता यह भी है कि आज के किसी गुट विशेष मे बटे हुए नही हैं । सबकी सुनते हैं और जो उचित समझते है, उसे ग्रहण करते हैं।
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समाज मेवा में भी ये सदा अगणी रहते है । औषधालय आदि एव स्वयसेवक दल के रूप में सेवा कार्यों में दत्तचित्त रहते है ।
पं० अजितकुमार जी गान्त्री इनके विद्यागुरु थे, अतः उनके वियोग मे इस समाज ने पत्नी के परिवार को अच्छा आर्थिक सहयोग प्रदान किया था । अत सर्व नाधारण से इनका जीवन कुछ विशेष आदर्शपूर्ण देखा जाता है। यदि सम्पूर्ण जैन समाज इनक जीवन ने प्रेरणा लेकर अपने जीवन को इस प्रकार ढालने का प्रयत्न करे ". पर जन समाज अपने को आदर्श के रूप मे स्थापित कर सकता है। यह समाज
म समाज मेवा एव धर्म-क्षेत्र मे इससे भी अधिक प्रगति के पथ पर निरन्तर आरोहण करती रहे यही मगल कामना है ।
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उदय
बनती है । मन्दिरजी म. होती है तो हृदय गद्गद् ह पोने मे सुगध का धार्मिक ज्ञान कराने क कार्य है । मन्दिरजो के पृष्ठ । पी समूचित व्यवस्था ह कडो रोगी लाभान्वित हा
धार्मिक समाज
पं० मिलापचन्द शास्त्री
जयपुर। मुलतान दिगम्बर जैन समाज परम धार्मिक समाज है। इसका जीता जागता
भादर्शनगर का विशालकाय सुन्दर जिनालय है जिसकी भव्यता देखते ही ९ । मान्दरजी मे प्रात.काल जब ठाठ-बाट से सगीत के साथ सामूहिक पूजा
हृदय गद्गद् हो उठता है । पूजा के बाद नियमित शास्त्र सभा का चलना उगध की कहावत को चरितार्थ करता है । रात्रि में समाज के बच्चो को न कराने के लिए नियमित कक्षाये लगती हैं जो कि अपने आप मे अभूतपूर्व ग्दरजी के पृष्ठ भाग मे पूज्य मुनिराजों, त्यागी व्रतियो के आवास की व्यवस्था है और वही पर औषधालय भवन बना हआ है जहा से प्रतिदिन लाभान्वित होते हैं । इस तरह धर्मायतन से चारो दानो की प्रवृति की
रम्परा अक्षण्ण रूप से चल रही है ।
धार्मिकता एव समाजसेवा उद्यालय की स्थापना है । ३ हसपूर्ण सहयोग से ही सम्भ सेठ वैजनाथजी सरावगी एक
ir एव समाजसेवा का दूसरा ज्वलन्त उदाहरण जयपुर मे जैन दर्शन स्थापना हैं । इस सस्था का जन्म मुलतान दिगम्बर जैन वन्धुओ के वा स ही सम्भव हआ है। मुझे अच्छी तरह याद है कि सन् 1951 ना सरावगी एव मुलतान जैन वन्धुओ की प्रेरणा से आदरणीय ब्रह्मचारी
गुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक म
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श्री चुन्नीभाईजी देसाई का जयपुर मे चातुर्मास हुआ था । ब्रह्मचारी जी का कहना था कि यदि जैन सस्कृति को कायम रखना है तो इन बडे-बडे मन्दिरो मे बच्चो को धार्मिक ज्ञान कराने की नियमित व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए । प्रयोग स्वरूप उन्होने छोटे-छोटे विद्यार्थियो को बडे सुन्दर तरीके से जैन तत्वज्ञान कराया और समाज के समक्ष प्रश्नोत्तरो द्वारा उसका परिचय कराया तो सब लोग दग रह गये । फलस्वरूप समाज की एक आमसभा आमन्त्रित की गई । ब्रह्मचारीजी ने अपने प्रवचन मे धार्मिक शिक्षा के लिये समाज से बडो मार्मिक अपील को । सभी उपस्थित सज्जनो पर इसका काफी प्रभाव पडा । विशेषत मुलतान जैन समाज के उत्साही वन्धुओ ने यह दृढ निश्चय प्रगट किया कि ब्रह्मचारीजो ने जो ज्ञानगगा समाज के बच्चो मे प्रवाहित की है वह निरन्तर चालू रहेगी। इससे समाज मे चेतना जागृत हुई और उसी समय मुलतान जैन बन्धु एव स्थानीय लोगो ने इकमुश्त एव मासिक चन्दा लिखकर व्यवस्था के लिए प्रबन्ध समिति का निर्माण किया और जैन दर्शन विद्यालय की स्थापना कर दी गई, इस तरह तबसे आज तक तन, मन, धन से इनका सहयोग विद्यालय को मिलता जा रहा है । फलस्वरूप विद्यालय चाल है । आज तक इस विद्यालय के द्वारा सकडा स्त्री, पुरुष, वच्चे “धर्म विशारद", "धर्मरत्न" एव "धर्मालकार" उपाधि परीक्षाएँ पास कर चुके हैं और समाज की धार्मिक प्रवृत्तियो मे निरन्तर सहयोग कर रहे है ।
मुलतान जैन समाज पुरुषार्थी व्यापारी समाज है । जब देश का विभाजन हुआ और मुलतान नगर पाकिस्तान मे चला गया तो इन बन्धुओ पर विपत्ति का पहाड टा पर ये भयभीत नही हए । यहा वे शरणार्थी बनकर जरूर आये पर आकर किसी पर भार स्वरूप नही बने और न नौकरी पेशा ही अगीकार किया। जिसके पास जो कुछ साधन था उसके अनुसार व्यापार चाल किया और अधिक परिश्रम करक चय वर्षों में ही इतने सुव्यवस्थित एव सफल व्यवसाई हो गये । आश्चर्य होता है । मुलतान से आये हुए बन्धुओ मे से कुछ वन्धु तो ऐसे मिल सकते हैं जिनकी आथि परिस्थिति साधारण हो वरना प्राय करके तो सब लक्षाधिपति हैं। यह सव इनका पुरुषाय प्रियता का ही प्रतिफल है।
___ काल दोप कहिये या स्वेच्छाचारिता, जिसके कारण यवा पीढी प्रौढ वग का अनुसरण नहीं कर रही है । वे दिन प्रति दिन जैनो के दैनिक मुख्य कर्तव्यो से भी विचालत होते जा रहे है । मैं युवावर्ग से पुरजोर अपील करू गा कि वह अपने भूतकाल को स्मरण करते हए वुजुर्गों की धार्मिक एव नैतिक परम्पराओ का समादर करेंगे एव चारित्रक समुन्नति को जीवन मे स्थान देंगे ।
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धार्मिक आस्थावान - मुलतान का दिगम्बर जैन समाज
पं. भवरलाल न्यायतीर्थ सम्पादक 'वीरवाणी' जयपुर ।
मुलतान के दिगम्बर जैन बन्धु सदा से धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं । वहां तन्तुवमनीपी, तत्वजिज्ञासु और धार्मिक आस्थावालो का बाहुल्य रहा है । दो सौ वर्ष पूर्व भी वहां सिद्धान्तमर्मज्ञ थे और तत्व चर्चा के लिये दूर दूर से सम्पर्क रखते थे । प० टोडरमलजी के समय मे आयोजित विशाल इन्द्रध्वज विधान का निमंत्रण पत्र दूरस्थ कुछ विशिष्ट स्थानो को ही भेजा गया था जिनमे मुलतान भी था ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज की गतिविधियो से उनकी धार्मिक लगन, जैन धर्म मे प्रगाढ भक्ति, व्रत-नियम - पूजा आदि के सबध मे जयपुर मे उनके आ जाने के बाद तो प्रत्यक्ष स्वयं से पूर्व रूप से जानकारी है ही किन्तु थोड़ी बहुत जानकारी आज से करीब 50 वर्ष पूर्व से भी है ।
अकलक प्रेस के मालिक एव पुरानी पीढी के विद्वान प० अजितकुमार जी शास्त्री मुलतान मे रहते थे और उनसे मेरा काफी परिचय था । उन दिनो दि० जैन शास्त्रार्थ सघ का कार्यक्षेत्र अधिकतर उधर ही था । अम्बाला मुख्य कार्यालय था जहा प० राजेन्द्र कुमार जी रहते थे । शास्त्रार्थ सघ के विद्वानो का वहा जमघट रहता था । मुलतान के बन्धु उनके सम्पर्क मे आते रहते थे । शास्त्रार्थ सघ की ओर से एक पत्र भी चालू हुआ था - जिसका नाम 'जैन दर्शन' था । उसके सम्पादक थे श्रद्धय गुरुवर्य प० चैनसुखदासजी, प० अजित कुमार जी, प० कैलाश चन्द जी । उसका प्रकाशन मुलतान से होता था और सम्पादन का कार्य जयपुर मे पडित चैनसुखदासजी साहव करते थे । उनके सम्पर्क मे मेटर जुटाना, भेजना और तत्सबधी लिखापढी करने का सौभाग्य मुझे आया था । मैने यही से कुछ लिखना सीखा । इससे प० अजितकुमारजी के सम्पर्क मे मे आया व मुलतान दि० जैन समाज की गतिविधियो से परिचित हुआ । पडितजी के पत्रो मे और यदा कदा जब मिलते मुलतान के जैन बन्धुओ की चर्चा वे करते रहते थे । भूकम्प के समय एक पत्र मे उन्होने लिखा था कि पडित जी के नेतृत्व मे मुलतान जैन युवको के स्वयसेवको के रूप मे भूकम्प पीडितो की मुलतान स्टेशन पर बडी सेवा सुश्रुपा की । एक रुदन भरा पत्र था उनका । एक अकलक स्वयसेवक दल भी उधर बना था जिसके माध्यम से सेवा के कार्य होते थे ।
उन दिनो आर्य समाज के साथ शास्त्रार्थ उधर बहुत होते थे | आर्य समाज के प्रबल समर्थक स्वामी कर्मानन्दजी को जैन धर्म में दीक्षित करने आदि कार्यों मे मुलतान
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समाज का बहुत बड़ा योगदान था। शास्त्रार्थ मे वक्ता स्वय मे और श्रोता रूप में भाग लेने वालो मे जोश, उत्साह और लगन काफी होती थी । मुलतान मे हिन्दू मुस्लिम दगे भी चाहे जव हो जाते थे । फलत सतर्क रहना पडता था । मुलतान के इन बन्धुओ मे जोश, कार्यकुशलता, निर्भीकता और अपने कर्तव्य पर आस्था शायद इस ही कारण आई हो । जब पाकिस्तान बना, देश का विभाजन हुआ तो कितनी मुसीवते वहा के बधुओ पर आई-यह हम सभी जानते हैं । पर वाहरे मुलतान के जैन बन्धुओ जिनने अपनी आराध्य जिन प्रतिमाओ को, शास्त्रो को और अपने परिवार को कठिन परिश्रम, अदम्य साहस-उत्साह से सुरक्षित जयपुर मे लाकर स्थापित किया । यह एक अपने आपमे प्रेरणादायक कहानी है जो इतिहास के पृष्ठो मे स्वर्णाक्षरो से अकित रहेगी । जयपुरवासियो ने पलक पावडे विछा दिये आपके स्वागत मे । श्रद्धेय गुरुवय प० चैनसुखदासजी का सम्बल मिला और आज जयपुर जैन समाज मे अच्छा स्थान प्राप्त कर लिया। इन वन्धुओ मे धार्मिकता, देवशास्त्र, गुरुभक्ति, साधुओ एव विद्वानो का सम्मान और आतिथ्य जन सेवा आदि कार्यो मे इनकी प्रवृत्ति जन्मजात हैअनुकरणीय है । धार्मिक आस्था, दानशीलता और पुरुषार्थ का ही यह प्रतिफल है कि इतना सुन्दर विशाल मन्दिर जयपुर मे वना लिया और महावीर कीर्तिस्तम्भ जो जयपुर मे अन्यत्र कही नही बन पाया आज इनने अपने मदिर के प्रागण मे बनवा लिया । यह एक गौरव की बात है । इतना ही नही सार्वजनिक रूप से जनसेवा के कार्यों मे ये पीछे नहीं हैं । जयपुर के प्रसिद्ध सेवा भावी चिकित्सक भाई सुशील कुमार जी वैद्य के सम्पर्क में आकर परमार्थ औषधालय मन्दिर के पीछे भवन में चला रहे है और प्रतिदिन वैद्यजी के साथ साथ स्वय भी अपना समय दे रहे है-वैद्यजी तो नि स्वार्थ सेवा रूप से कार्य करते ही हैं । जयपुर के लिये वैद्यजी भी गौरव स्वरूप हैं । इन मुलतानी वधुओ के हृदय मे सचमुच कार्य समाया हुआ है जो आदर्शनगर के नाम को सचमुच चरितार्थ करते है ।
जयपुर के उपनगर आदर्शनगर स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर की रजत जयती महोत्सव के अवसर पर मै सभी मुलतान वाले दिगम्बर जैन वन्धुओ का अभिनन्दन करता है और कामना करता हूं कि इनमे और आने वाली पीढी में इसी प्रकार धार्मिक आस्था, सेवाभाव और कर्तव्यपरायणता बनी रहे।
भंवरलाल न्यायतीर्थ
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. मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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संस्मरण एवं कामना
गुलाब चन्द जैन प्राचार्य
मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के पालोक मे
श्री दि० जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय,
जयपुर ।
सन् 1947 के बाद मुलतान समाज के जयपुर आ जाने पर उनका प्रतिनिधि मंडल स्व० प० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ से मिला । उस समय में उनके पास बैठा अध्ययन कर रहा था । पण्डित साहब मुझे पढाना छोड़कर उनकी मुलतान से आने की कहानी सुनने लगे । कहानी के साथ वातावरण इतना दर्द भरा वन गया कि स्वयं पण्डित साहब गद्गद् हो गये । उन्होने मुलतान प्रतिनिधि मण्डल को अपना पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया और उनके सुखद भविष्य की कामना की ।
1952 में पूज्य चुन्नीभाई ब्रह्मचारी के करकमलो से जैन दर्शन विद्यालय की स्थापना हुई । इस विद्यालय मे मुलतान जैन समाज ने तन, मन, धन से योगदान दिया और उनके छोटे बड़े बच्चो ने ही नही किन्तु बडी बडी महिलाओ ने भी जैन धर्म पढ़ने मे पर्याप्त रुचि दिखाई और 'धर्म विशारद', 'धर्म रत्न' और धर्मालकार की ऊची कक्षाओ मे अच्छे अकों से उतीर्ण हुई ।
आदर्शनगर मे जाकर बसने पर समाज के भाई बहिनो को जब जिनदर्शन मे कठिनाई होने लगी तो सन् 1952 में श्री मोतीराम कवरभान के प्लाट मे चैत्यालय की स्थापना की गयी । उस समय भी सभी धार्मिक क्रियाओ को सम्पन्न कराने का कार्य मैने ही किया और मुझे समाज को पास से देखने का अवसर प्राप्त हुआ । इसी तरह सन् 1954 मे जब आदर्शनगर में मन्दिर की नीव लगी तब भी मैंने ही शिलान्यास का कार्यं कराया था । इस तरह कितनी ही बार मुझे मुलतान समाज को देखने का अवसर मिला और उनकी धर्मनिष्ठा, सेवापरायणता, विनीत स्वभाव एव कार्य करने की लगन को देखकर मुझे बडा आश्चर्य होता है ।
आदर्शनगर मे जैन पाठशाला की स्थापना हुई । मुझे यह देखकर बडी प्रमन्नना हुई कि समाज के छोटे बडे, बालक, युवक-युवतिया सभी विद्यालय मे पढने चले आ रहे है और पढते भी है बड़े ध्यान से । मन्दिर निर्माण के पश्चात् इसकी वेदी प्रतिष्ठा के अवसर पर बच्चो ने मैनासुन्दरी नाटक दिखाया था । बच्चो ने वडे कलापूर्ण ढंग से नाटक को इतनी सुन्दरता से प्रदर्शित किया कि उपस्थित समाज खुशी से गद्गद् हो गया ।
इस प्रकार गत 30 वर्षो से मै मुलतान समाज के नपर्क में हूँ और मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि इस समाज मे कितना धार्मिक वात्सल्य एवं कर्तव्य के प्रति निष्ठा है जो हम सबके लिये अनुकरणीय है ।
गुलावचंद जैन प्राचार्य
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आदर्शों का ध्वज फहरायेंगे
आदर्श नगर के दिगम्बर जैन मन्दिर की
उन्हें शत शत वंदन करता हू । भारत पाक विभाजन में
रजत जयंती समारोह एवं
सब कुछ खोया हुआ पुन. पा लिया,
महावीर कीर्तिस्तम्भ के प्रतिष्ठा महोत्सव पर आपसी सहयोग एव सद्भाव से
कुछ ही समय में
मुलतान के जैन वन्धुओ का हार्दिक अभिनन्दन करता हू जिनने अपने अथक परिश्रम और सच्ची लगन से धर्म और सस्कृति के प्रतीक भव्य और विशाल जिनालय की स्थापना की ।
आदर्शनगर में, एक आदर्श जिनालय बना लिया विद्वज्जन प्रिय, जिनवाणी के भक्तो ने सरस्वती भडार भी बढाया है ।
इन पर महान विपत्ति आयी, धन-दौलत घर-बार लुटे, बिछुडे माता पिता वहिन और भाई, ऐसे समय में, धैर्य धारण कर जिनबिम्बो और जिनवाणी को भारत में सुरक्षित लाये अपने धर्म ईमान में दृट
चिट्टी याद ही स्वयमेोग
अनूपचंद न्यायतीर्थ जयपुर
"'T
सुनी अपने f:71
गिये।
इनका जीवन बदल गया
इस व्यवसाय प्रेमी समाज ने
मनुष्य सब कुछ भूल कर स्वय को पा सकता है । इतना ही क्यो
निर्वाण वर्ष मे जनोपयोगी औषधालय सत्य और अहिंसा का प्रतीक महावीर कीर्तिस्तम्भ भी लगाया है और उसी की प्रतिष्ठा हेतु
परणार्थी बनकर आये किन्तु पुरुषार्थी कहो। यह मंगलमय महोत्सव मनाया है उनकी इच्छा और देव ने इनकी दैव शास्त्र गुरु मे
दिल्ली और जयपुर मे बनाया हा समाज ने
गले लगाया और अपनाया ये भी पनि टोडरमलजी को भूमि पर आप हो गये ।
तत्व चर्चा के प्रेमी जिज्ञासु वन्धुओ ने स्वाध्याय की परम्परा को निभाया है । इनकी सामूहिक पूजा
एव भक्ति को देखकर हृदय गद्गद् हो जाता है
आस्था अनुकरणीय है
इनका मामाजिक संगठन और सद्भाव पारस्परिक प्रेम और लगाव अविस्मरणीय है इन से आशा है, आगे भी
नमाज और राष्ट्र का गौरव बटायेगे अपनी कर्तव्यनिष्ठा से
विश्वनाति में योग देकर
भगवान महावीर के सिद्धात एव आदर्शों का ध्वज फहरायेंगे ।
अनूपचन्द न्यायतीर्थ
प्रिती में
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Wide oth
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विशिष्ट परिचय
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पाकिस्तान से आने के पश्चात् जहाँ सारे देश मे विस्थापित अपने अपने को पुनर्स्थापन करने मे लगे थे वहाँ मुलतान दिगम्बर जैन समाज ने अपने व्यवसाय एवं आवास आदि का पुनर्व्यवस्थित करने के साथ साथ पूर्व परम्परा से आये धार्मिक संस्कारो के कारण मन्दिर के निर्माण का कार्य भी तुरन्त हाथ मे ले लिया। इसी का परिणाम है कि यह विशाल निर्माण कार्य जिसको पूर्ण होने मे लगभग पच्चीस वर्ष लगे हैं, केवल मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपुर एव दिल्ली के आर्थिक सहयोग से ही यह योजना पूर्ण की गई।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मात्र आर्थिक सहयोग ही पर्याप्त नहीं होता उसके साथ साथ मानपिक एन शारीरिक परिश्रम की भी अनिवार्य रूप से अत्यन्त आवश्यकता होती है।
जयपुर मे यह कार्य होने के नाते जयपुर समाज का तो विशेप कर्तव्य था ही, किन्तु दिल्ली समाज ने जो तन, मन, धन से पहयोग दिया वह विशेष सराहनीय है।
श्री घनश्यामदासजी जब तक जयपुर मे रहे मन्दिर निर्माण कार्य मे उनका हर प्रकार से पूर्ण सहयोग रहा। जयपर से दिल्ली निवास कर लेने पर भी इस मन्दिर के निरणि मे उनकी रुचि कम नही हई। समय समय पर निर्माण कार्य, अर्थ सग्रह आदि की योजनाओ मे परामर्ग देकर उसे कार्यान्वित कराने मे पूर्ण सहयोग देते रहे ।
उसी प्रकार श्रीमान आगानन्दजी बगवार्णी ने भी सन् 1956 से निर्माण कार्य का नेतृत्व सभालकर कार्य को विशेप गति प्रदान की तथा मन्दिर की विशाल छत आदि डलवाते समय श्री पलसिहजी जैन आम्टेक्ट को समय समय पर जयपुर लाकर निर्माण काय सम्बन्धी परामर्श लेकर उसे कराया, जिसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।
श्रीमान पलसिहजी जैन आर्चीटेक्ट (दिल्ली वाले) धर्मपुग दरीवाक ला, दिल्ली म रहते हैं उनसे श्री आगानन्दजी ने इस मन्दिर की छत डलने मे आने वाली कटिनाइयो कविषय मे वात की तो उन्होने अति उत्साह के साथ जयपुर चलकर इन समस्या को हल करने में रुचि दिखाई और वे इसके लिए कई वार नि शुल्क विना किसी स्वार्थ के जयपुर आय और छत का डिजाइन आदि तैयार करके उन्होने अपने सामने इस छत को डलवाया. जा विशेष प्रशसनीय है। श्रीमान सेठ गुमानीचन्दजी सिगवी एव तोलारामजी गोले छाको मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली के प्राण है, उन्होने भी मन्दिर निर्माण कार्य में दिल्ली समाज से आर्थिक सहयोग दिलाने में कोई कसर वाकी नहीं उठा रखो। पच्चीन वर्प ने जब जव भी जयपुर से समाज के प्रतिनिधि दिल्ली गये इन्होने अपना सब काम छोडार पूर्ण " दत हुए आर्थिक एन निर्माण सम्बन्धी हर समस्याओ का समाधान कराया।
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. मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इपिहान के आलोक में
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इस प्रकार समस्त मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपर एव दिल्ली के पुरुष एक महिला समाज ने सामूहिक एव व्यक्तिगत रूप से आर्थिक सहयोग देकर इस मन्दिर के निर्माण मे पूर्ण सहयोग दिया है तथा विशेष रूप से सहयोग देकर जो मन्दिर निर्माण मे योग दिया वह तो सराहनीय है ही किन्तु जिन महानुभावो ने इस मन्दिर के निर्माण मे अपने जीवन के बहुमूल्य भाग का अधिक समय देकर इस मन्दिर निर्माण के विषय सम्बन्धी सभी कार्यो को पूरा करते हुए तथा सभी कठिनाइयो को पार करते हुए इसको सुन्दर रूप देकर तैयार कराकर समाज को समर्पित किया उनका विशेष जोवन परिचय देना मै यहाँ उचित समझता हू ।
अत इन विशेष महानुभावो मे थे सर्व प्रथम श्री कवरभानजी एव उनके सुपुत्र श्री आशानन्दजी सिंगवी जिन्होने इस मन्दिर हेतु अथक प्रयत्न करके सरकार से जमीन आवटित कराई, तथा आज से 26 वर्ष पहले इस मन्दिर का शिलान्यास कराके निर्माण कार्य का शुभारम्भ कराया।
__दूसरे महानुभाव है श्री न्यामतरामजी जिन्होने प्रारम्भ से आज तक इतने लम्बे समय तक अपने व्यवसाय, घर वार आदि की ओर अधिक ध्यान न देते हए मन्दिर निर्माण सम्बन्धी योजनाओ को कार्यान्वित कराने तथा आने वाली सब कठिनाइयो को अपने कुशल नेतृत्व से पार कराने मे पूर्ण सहयोग देकर इस योजना को सफलीभूत किया ।
तीसरे व्यक्ति है श्री जयकमा रजी जिन्होने अपनी युवावस्था से ही अपने काम धन्धे की परवाह न करके अपने परिवार की इच्छाओ को एक तरफ रखते हुए 26 वर्ष तक इस मन्दिर निर्माण के सदर्भ कार्यो मे सबसे अधिक समय देकर, धन एकत्रित करने, निर्माण कार्य करवाने मे इस विशाल एन कठिन कार्य को पूर्ण कराया । यह उनकी कुशल दक्षता का ही परिणाम है।
चौथे महानुभाव है श्री वलभद्र कुमारजी जो अपनी युवावस्था से ही धार्मिक एन सामाजिक कार्यो मे रुचि लेते हुए मन्दिर निर्माण कार्य मे अपने साथियो के साथ पूर्ण सहयोग देकर अपनी कुशाग्र बुद्धि एन विशेष कार्य मे तन, मन, धन से सहयोग देकर इसे मूर्त रूप देने मे सहयोग दिया।
अत इन चारो महानुभावो के त्याग एव तपस्या को देखते हुए इनका जोवन परिचय यहाँ दिया जा रहा है ।
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• मुजान दिगम्बर जैन ममाज-इतिहास के आलोक मे
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स्वर्गीय श्री कवरभानजी का जन्म सिगवी परिवार मे श्री जेठानदजी के सुपुत्र श्री मोतीरामजी के घर डेरागाजीखान मे हआ था। बचपन से ही इनकी धार्मिक कार्यों मे विशेप रुचि थी, जैसाकि भजन मण्डली आदि बनाकर न केवल-डेरागाजीखान मे ही वल्कि पंजाव आदि के नगरो मे जाकर नगीत के माध्यम से धर्म प्रचार किया करते थे। आप स्वभाव से विनीत, मधुर एव कोमल थे। स्वय ही शास्त्राभ्यास से इतना ज्ञानार्जन किया कि शास्त्र सभा मे प्रवचन करने लगे। समाज के अन्य कार्यो मे भी बढ चढकर भाग लेने के कारण युवावस्था मे समाज के अध्यक्ष मनोनीत हुए और पाकिस्तान बनने तक उसी पद पर आसीन रहते
हए समाज का सचालन करते रहे। श्री कवरमानजी कुमात्र वृद्धि होने के कारण आपने अपने व्यवसाय मे भी विशेष प्रगति की तथा शहर म अवमायियो में आपका नाम गिना जाने लगा।
सन् 1947 में पाकिस्तान मे जयपर आकर रहने के पश्चात, सरकार ने जव परवमाने की योजना बनाई और सहकारी समितियो के माध्यम से मकान बनाने 2 भावटित की तो आप भी प जाव रिहीविलीटेशन कोआपरेटिव सोसायटी के
नवाचित हुए, और समाज के बहत से व्यक्तियो को आग्रह पूर्वक मकान दिलवाये ..२ मा मकान बनाकर आदर्शनगर में बसने के समय आसपास कोई दि जैन मदिर
+ कारण अपने घर में एक अस्थाई चैत्यालय की स्थापना करके आदर्शनगर में निष्ठा का यह प्रत्यक्ष प्रमाण है ।।
सभा साधर्मी भाइयो को धर्म दाधन की सुविधा उपलब्ध कराई, धर्म के प्रति 3 समय वाद अथक प्रयास करके मदिर निर्माण हेतु राज्य सरकार से जमीन 15 तथा समाज के प्रमुख महानुभावो को एकत्रित करके मदिर निर्माण की योजना
उस समय उसमें सर्वप्रथम सबसे अधिक आर्थिक सहयोग देकर ऐसा बीजाशेपण सके परिणामस्वरूप आज यह विशाल भव्य जैन मदिर प्रस्फुटित हुआ है, जिससे 'म सदव चिरस्मरणीय रहेगा। आप जीवन पर्यंत मुलतान दि० जैन समाज ॐ अव्यक्ष पद पर आसीन रहते हए समाज का कुशल नेतृत्व करते रहे।
जयपुर मे भी आपने अपने व्यवसाय मे विशेष सफलता प्राप्त की।
मचन्ट के व्यवसाय मे आपकी फर्म मोतीराम कवर भान जौहरी वाजार जयपुर का नाम सर्वप्रथम है।
था आसानन्दजी, श्री खुशीरामजी, श्री अर्जुनलालजी एव श्री शभकुमारजी आपके पुत्र ह एव श्रीमती रतन देवी एक पत्री है । इन सबको छोडकर दिनाक 31 जनवरी, 02 को आपका समाधि पूर्वक स्वर्गवास हो गया। - मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के पालोक मे
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आदर्गनगर बमाने की योजना बन हेतु जमीन आवटित की तो आप
नहीं होने के कारण अपने घर रहने वाले सभी साधमा
आवटित कराई तथा समाज क बनाई, तथा उस समय उसम किया जिसके परिणामस्वरूप आपका
जनरल
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Arr.
श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज के वर्तमान अध्यक्ष श्री न्यामतरामजी का जन्म मुलतान मे सन् 1904 को श्री मूलचन्दजी सुपुत्र श्री विहारी लाल नौलखा के घर हुआ। आप सामान्य शिक्षा प्राप्त कर अपने व्यवसाय मे लग गये। प्रारम्भ से ही सामाजिक कार्यों में आपकी सर्वाधिक रुचि थी, समाज के किसी भी व्यक्ति पर कोई भी सकट आने पर आप उसे निवारण करने में सबसे आगे रहते थे।
MahimamimaARASys
:
"
आप धर्म के प्रति विशेष श्रद्धावान आचरण के प्रति निष्ठावान, स्वाध्यायमे तत्पर, सेवा भावी व कर्मठ कार्यकर्ता रहे हैं। इसीका परिणाम था कि आपकी मित्रता एव घनिष्ठता अन्य मतावलम्बियो के माथ होने पर भी, सद्गृहस्थानुसार खानपान
श्री न्यामतरामजी एव आचरण मे हमेशा दृढ रहे।
_ समाज मे एकता स्थापित कर सगठित रूप से धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों को करने मे आपकी विशेप रुचि रही है।
सन् 1947 ई० मे भारत विभाजन के समय जब पूरे पाकिस्तान मे मारकाट मची हुई थी उस समय अपने परिवार की चिन्ता न करते हए पूरे समाज को वहा से भारत लाने के लिये मुलतान से दिल्ली आये, तथा कुछ अन्य साथियो के साथ कठिन परिश्रम से वायुयानो का प्रबंध करके पूरे ममाज को मुलतान से सुरक्षित एव सकुशल भारत लाने मे आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है।
आदर्श नगर मे दिगम्बर जैन मन्दिर के निर्माण मे प्रारम्भ से ही आपका विशेष योगदान रहा । मदिर निर्माण हे धन एकत्रित करने. निर्माण कार्य को कार्यान्वित कराने आदि मे आपका पूर्ण सहयोग रहा है, जिसका ही परिणाम है कि आज हमारे समक्ष इतना विशाल भव्य एव दर्शनीय जिन मदिर तैयार हो सका है।
समाज के सचालन हेतु आपमे नेतृत्व की विशेष क्षमता है, फलस्वरूप आप पिछले 20 वर्षो से प्राय अध्यक्ष पद पर आसीन रहकर समाज का कुशल सचालन करते आ रहे है, और हमेशा प्रतिवर्ष निविरोध अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होते रहे हैं।
आप लौकिक क्षेत्र मे नोतिवान, व्यावसायिक क्षेत्र मे कुशल, वद्धिमान एव लोकप्रिय है, तदर्थ जनरल मर्चेट एसोसियेशन के वर्षों तक अध्यक्ष पद पर आसीन रहे हैं।
आपके श्री प्रकाशचदजो, श्री वमीलालजी, व श्री शीलकुमारजी तीन पुत्र एव चार पत्रिया है। प्रकाश जनरल स्टोर कटला पुरोहित आपका व्यावसायिक सस्थान है।
दिगम्बर जैन मदिर आदर्शनगर के सामने वाली लाइन मे प्लाट न० 612 आपका निवास स्थान है।
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० मुलतान दिगम्बर जैन समाज-दतिहास के आलोक मे
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज के मत्री श्री जयकुमार जैन समाज के नहीं अपितु सम्पूर्ण जयपुर जैन समाज मे जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता है । आपका जन्म श्री प्रेमचदजी सिगवी सुपुत्र श्री कर्मचदजी एव पौत्र श्री मोतीरामजी सिंगवी के यहा विक्रम संवत् 1981 सन् 1924 ई० मे डेगगाजीखान (पश्चिमी पाकिस्तान ) मे हुआ।
कितु इनके नाना श्री चौथरामजी के कोई पुत्र नही होने के कारण इन्हे बचपन से ही अपने पास रखा और बाद मे दत्तक पुत्र वना लिया। जिससे जयकुमार के जीवन पर उनके धार्मिक विचारो का विशेष प्रभाव पड़ा।
सन् 1939 मे स्कूल की शिक्षा समाप्त
कर आप व्यवसाय मे लग गये तो भी आप मे श्री जयकुमार जैन
धार्मिक कार्यो की अभिरुचि का विकास उत्तरोत्तर होता रहा और युवावस्था मे ही जैन सिद्धात का भी अच्छा ज्ञानार्जन कर या तथा जैन युवक नगठन में भी आप अधिक सक्रिय रहे।
....
पाकिस्तान बनने के पश्चात् भारत आने पर सर्वप्रथम आप दिल्ली रहे, किन्तु व्यवसाय मे विशेप सफलता न मिलने पर सन 1951 मे सपरिवार जयपुर आकर व्यवसाय करने लगे।
विम परिस्थितियो मे भी आपकी अभिरुचि धार्मिक कार्यो मे विशेष रही।
आदर्शनगर मे दिगम्बर जैन मदिर के शिलान्यास के पश्चात् इसके निर्माण में सप रुचि लेने एव सहयोग देने तथा सामाजिक समस्याओ को सुचारु रूप से दिशा
किरा
पा, तभी से एक दो वर्ष छोडकर प्राय निरतर मत्री पद पर मनोनीत होते हुए समाज काया में अधिक से अधिक समय देकर समस्त कार्यों को सुचारु रूप से कार्यान्वित करते
आ रहे हैं।
विना किसी विशेषज्ञ से पूर्व प्रारूप तैयार कराये विशाल भव्य एव कलापूर्ण जिन मादर आदि भवनो का निर्माण कार्य अपने साथियो के सहयोग से पूर्ण कराना आपकी कुशल दक्षता का हो प्रतीक है।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के मालोक मे
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इस प्रकार यह विशाल एवं नवीनतम डिजाइन का मानस्तंभ (महावीर कीर्ति स्तंभ) केवल आपने ही बहुमूल्य समय देकर निर्माण कराया।
पाकिस्तान में सब कुछ खो जाने पर सब लोग यहां अपने पुनर्निमाण में लगे हुए थे । ऐमी विषम संकट की घडी मे जयकुमार अपने व्यवसाय एवम् परिवार के पुनर्स्थापन की परवाह न करते हुए अपने जीवन का वहमूल्य भाग मंदिर निर्माण हेतु, अर्थ संग्रह करने, निर्माण कार्य कराने में जुटे रहे।
समय-समय पर होने वाले धार्मिक आयोजनो एवम् सामाजिक गतिविधियों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने मे पूर्ण योगदान देकर मंत्री पद के दायित्व को पूरा करते हुए समाज मे एक आदर्श स्थापित किया है।
इसी प्रकार भगवान माहावीर 2500 ; निर्वाण महोत्सव वर्ष के आयोजनो में. सक्रिय योग दान देने के फलस्वरूप आपको भगवान महावीर 2500 वा निवार्ण महोत्सव द्धारा जयपुर संभाग में सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया।
धार्मिक कार्यक्षेत्र में सक्रिय योगदान के साथ साथ व्यावसायिक क्षेत्र में भी आपने अपनी कुशाग्र बुद्धि से सर्वागीण सफलता प्राप्त की, जिसका परिणाम है कि चौथूराम जयकुमार जैन जौहरी बाजार, कर्मचद्र प्रेमचंद्र जैन कटला प रोहित जो, महावीर जनरल जनरल स्टोर त्रिपोलिया वाजार जयपर आपके तीन तीन संस्थान चल रहे हैं । व स्टोव पैट्रोमेक्स, गैस लालटेन आदि का राजस्थान मे आपका एकाधिकृत व्यवसाय है।
व्यावसायिक क्षेत्र में आप राजस्थान व्यापार उद्योग मण्डल में कार्यकारिणी के सदस्य, देवस्थान किरायेदार सघ राजस्थान के अध्यक्ष आदि अनेक सस्थाओ के आप सत्रिय कार्यकर्ता हैं।
___ आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कृष्णा देवी हैं। सुरेश कुमार एवं रमेश कुमार आपके दो पत्र हैं, जो आपके भाइयो के साथ उपरोक्त सस्थानो को सुचारु रूप से चला रहे हैं
आपका निवास स्थान-जे-238 प्रेम निवास, आचार्य कृपलानी मार्ग, आदर्शनगर, जयप र-4 मे हैं।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री बलभद्र कुमार जी का जन्म मुलतान नगर मे फतत्वद जी के पुत्र श्री दामूरामजी जिनदासमलजी, सिंगवी के घर मे हुआ । वचपन से ही आप मेधावी एव कुशाग्र बुद्धि छात्र थे, विनम्रता, सहनशीलता, धर्मनिष्ठता
--- एव समाज सेवा मे आपके पिताजी का प्रभाव आप पर विशेष तौर पर पड़ा है । भारत विभाजन के पश्चात् जयपुर आकर आपने बी ए, हिन्दी मे "रत्न"-आदि कई परीक्षाए उत्तीर्ण की उमके साथ साथ ही आप अपने व्यवसाय को भी ! उन्नति के शिखर पर ले गये, पलस्वरूप रग के वहुत वडे व्यवसायी के रूप में उभर कर सामने आये।
उसी प्रकार सामाजिक कार्यो मे भी आपने पूरी निष्ठा एन लगन के साथ कार्य किया व मदिर निर्माण कार्य मे आपने अपने साथियो के साथ वीस वर्ष तक तन, मन, धन से पूर्ण सहयोग देते हुए निर्माण कार्य को सम्पन्न कराया, साथ ही धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियो मे भी आप ... . . सर्वागीण अग्रणी रहे।
__ श्री बलभद्र कुमारजी आप मुलतान दि० जैन समाज के मत्री पद पर रह चके हैं तथा कोपाध्यक्ष के १५पर तो लगभग वीस वर्ष तक रहे है तथा वर्तमान मे समाज के संगठन मन्त्री है।
___ महावीर कल्याण केन्द्र के औषधालय विभाग मे सचालक पद पर कार्य कन्ते हा
सका उन्नति हुई है तथा औषधालय ने अच्छी ख्याति प्राप्त की हे यह सब आपके अथक परिश्रम का ही परिणाम है ।
जयपुर दि० जैन समाज मे राज जैन सभा, दि० जैन सस्कृत कालेज महावीर जन उ० मा० विद्यालय जैसी प्रख्यात कितनी ही सस्थाओ के आप सक्रिय सदस्य है।
जा भी पद दिया जाता है उसे आप वडे सदर ढग ने सफलता पूर्वक निभाते है। ___ भगवान महावीर 2500 वा निर्वाण महोत्सव वर्ष के कार्यक्रमो मे ननिय योगदान
कारण भगवान महावीर 2500 वा निर्वाण वर्ष महोत्सव समिनि जसपरभाग द्वारा आपको सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया है ।
इस प्रकार मलतान दिगम्बर जैन समाज आदर्शनगर जयप र एक ननम्न विगत समाज जयपुर के आप सफल उदीयमान ज्योतिर्मय नक्षत्र हैं । आपती धर्मपत्नी में श्रीमती निर्मला देवी है। आपके एक पत्र एब दो पत्रिया हैं।
पिका व्यावसायिक संस्थान श्री फतवद दासूगम वन्दनमचंट बारहवेली, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर मे है ।
नगर आपका निवास मकान न0 593, गली नम्बर-5
UH
आपको
जैन समाज जयप
मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के जालोर में
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श्री० दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर, जयपुर का रजत जयन्ती समारोह
श्री महावीर कीतिस्तम्भ वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव
दिनांक 26-27 अप्रैल, 1980 ई० मन्दिर निर्माण आदि कार्यों एव तत् सम्बन्धी सामाजिक गतिविधियो का समापन हुआ, महावीर कीर्तिस्तम्भ वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव एव दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर के रजत जयन्ती समारोह से ।।
यह समारोह 26-27 अप्रैल को मनाया गया। प्रात सामहिक वेदी प्रतिष्ठा विधान पूजन, जलयात्रा, महावीर कीर्तिस्तम्भ की वेदी शुद्धि, विद्वत सम्मेलन एव रात्रि सास्कृतिक कार्यक्रम । दूसरे दिन शोभा यात्रा वेदी मे श्रीजी विराजमान एव रजत जयन्ती समारोह आदि से सम्पन्न हुआ।
जिसमें वाहर से पधारे श्रीमान् पण्डित कैलाशचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, वाराणसी, पण्डित खुशहालचन्द जी गोरावाला, वाराणसी आदि तथा भाग लिया जयपुर से डा० हुक्मचन्द भारिल्ल सपादक आत्मधर्म, जयपुर, पण्डित भवरलाल जी न्यायतीर्थ सपादक वीरवाणी, जयपुर, पण्डित रतनचन्द जी भारिल्ल, पण्डित मिलापचन्द जी शास्त्री, पण्डित वशीधर जी शास्त्री, जयपुर, गुलाबचन्द जी दर्शनाचार्य, डा० कस्तूरचन्द जी, कासलीवाल ने आर अपने ओजस्वी एव धार्मिक प्रवचनो से लाभान्वित किया, जयपुर समाज को।
शोभा बढाई प्रसिद्ध उद्योगपति साहू श्रेयासप्रसाद जी, वम्बई, लाला प्रेमचन्द जी जैना वाच कम्पनो, दिल्लो, युवा उद्योगपति श्री रमेशचन्द जी दिल्ली तथा ताराचन्द जी प्रेमी आदि ने पधार कर । ___ . विमोचन कराया डा० कस्तुर चन्द जी कासलीवाल ने "मलतान दि० जैन समाज इतिहास के आलोक मे" ग्रन्थ की प्रेस कापी का श्री अक्षय कुमार जैन भूतपूर्व सपादक नवभारत टाइम्स दिल्ली से ।।
सभी गणमान्य महानुभावो के पधारने से अपार शोभा बढी, खामी धर्म वृद्धि हुई एवं सफल रहा यह महोत्सव ।
मुलतान दि० जैन समाज ने इस अवसर पर वाहर के एवं स्थानीय विद्वाना तथा गणमान्य महानुभावो का हार्दिक आभार प्रगट करते हुए श्रीमान साहू श्रेयामप्रसाद जी की सेवा मे अभिनन्दन पत्र सादर समर्पित किया।
यह समारोह समस्त मुलतान दि० जैन समाज जयपुर, दिल्ली एव बम्बई आदि ने बडे हर्मोल्लास एव उत्साह ने मनाया, जिसमे उपरोक्त सभी स्थानो से समाज के प्राय सभी परिवार सम्मिलित हुए ।
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पारिबार परिचय
__श्री मुलतान दिगम्बर जैन समाज
जयपुर
श्री मुक्तान विश्व जन समाज
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सिंगवी परिवार जयपुर एवं दिल्ली मे जितने भी वर्तमान सिंगवी परिवार है वह प्राय लुणिदामल के ही वगज है । उनका परिचय, वशावली पृष्ठ 33 से 35 पर दी गई है।
__ जेठानन्द लीलाराम के पत्र एव लणिदामल के पौत्र थे। जेठानन्द के मोतीराम हीरानन्द दो पन थे । मोतीराम के करमचन्द, रामचन्द, कवरभान तीन पुत्र हुए । करमचन्द एव रामचन्द्र के परिवारो का विवरण जयपुर एव दिल्ली परिशिप्ट मे आगे देंगे। श्री कवरभान जी के परिवार का परिचय निम्न प्रकार है -
श्री कंवरभान जी सिंगवी के परिवार का परिचय श्रीमान कवरभान जी का परिचय पूर्व पृष्ठो मे दिया जा चुका है अब उनके परिवार का परिचय दिया जा रहा है। आपके श्री आसानन्द जी, श्री खुशीराम जी, श्री अर्जुनलाल जी, श्री शम्भ कुमार जी चार पुत्र है । उनका एवं उनके परिवार का परिचय निम्न प्रकार है -
श्री आसानन्द जी
श्रीमान कवरभान जी सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे सन् 1904 को आपका जन्म हुआ। आप प्रारम्भ से ही अपने पूर्वजों की तरह धर्मात्मा एव निष्ठावान व्यक्ति थे । युवावस्था से ही समाज की सभी गतिविधियो मे उत्साह पूर्वक भाग लेते थे।
शास्त्राभ्यास मे आपको विशेष रुचि थी। फलस्वरूप अल्पवय मे ही आपने आध्यात्मिक शास्त्रो का अण्छा अभ्यास कर लिया था। बद्धिजीवी होने के नाते आपने अपने व्यवसाय मे विशेष प्रगति की । पेट्रोल, मिट्टी का तेल तथा जनरल मर्चेन्ट्स आदि की कई प्रमुख एजेन्सियाँ लेकर आपने अपने व्यवसाय को डेरागाजीखान मे बडे पैमाने पर वढाया जिससे आपके सस्थान मोतीराम कवरभान जैन की गणना शहर के प्रमुख व्यवसाथियो मे होने लगी।
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पाकिस्तान वनने पर जव मारकाट होने लगी व देहातो से भाग भाग कर लोग डरागाजीखान मे आने लगे तो आपने अपने मुहल्ले मे कैम्प लगा कर काफी लोगो को आश्रय दिया तथा जैन समाज की ओर से सैकडो व्यक्तियो को भोजनादि की कई दिनो तक व्यवस्था की तथा दि० जैन समाज के कई परिवार जो अपनी दुकाने आदि बद करके भारत चले गये थे, अथवा जो परिवार वहा मौजूद भी थे उस विपत्ति की घडी मे अपनी जान की परवाह न करते हुए उनकी दुकाने खुलवाकर अथवा उनका माल आदि विकवाकर जो भी धनराशि एकत्रित हो.सकी उसे.इकट्ठा करके सवधित व्यक्तियो को दिलवा दी अथवा भिजवा दी।
उस कठिन समय मे जव सब लोग अपने अपने परिवारो को सुरक्षित भारत पहुँचाने की चिंता मे ग्रस्त थे उस समय आपने तथा दीवानचन्द जी सिंगवी ने अथक प्रयत्न करके पूरी समाज, जिन प्रतिमाओ एव हस्तलिखित शास्त्र भण्डार को सुरक्षित भारत ले आने का साहसिक कार्य किया।
डेरागाजीखान से आने के पश्चात् आप जयपुर मे बस गये और वहा भी अपने परिवार के साथ उसी सस्थान के नाम से अपना व्यवसाय करने लगे।
जयपुर आकर आपने रुचि लेकर दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया तथा आप सन् 1965 मे मुलतान दि० जैन समाज के अध्यक्ष पद पर आसीन होकर समाज के कई प्रमुख कार्यो को सम्पन्न कराया।
दिनाक 19 जनवरी 1969 को थोडे समय की बीमारी मे आपका असामयिक निधन हो गया।
__ आपकी स्मृति मे आपकी धर्मपत्नी श्रीमती रामोदेवी एवम् तीनो सुपुत्रो ने महावीर कल्याण केन्द्र भवन मे एक अतिथि गृह वनवाकर समाज को अपूर्व सहयोग दिया है । श्री कैलाशचन्द जो, श्री नेमीचन्द जो, श्री ओम प्रकाश जी, आपके तीन सुपुत्र है जो अपने पैतृक मोतीराम कवर भान जैन सस्थान में कार्यरत हैं । आपका निवास स्थान मकान नम्बर 586, गलो नम्बर 3, आदर्शनगर जयपुर, मे है।
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श्री खशीराम जी श्री खुशीराम जी का जन्म श्रीमान कंवरभान जी के घर 70 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हुआ था । आप प्रारम्भ से ही ओजस्वी, शातिप्रिय एव व्यवसाय में निपुण व्यक्ति थे । पाकिस्तान बनने के पश्चात् जयपुर मे आकर आपने अपने व्यवसाय को बढाने मे अपने परिवार को सक्रिय सहयोग दिया।
आप धामिक नित्य क्रियाओं के पालन मे भी सदैव तत्पर रहते थे । आपने अपने पिता स्वर्गीय कवरभान जी एवं बडे भाई स्वर्गीय श्री आशानन्द जो की भावना के अनुरूप दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर मे स्वाध्याय भवन का निर्माण अपने संस्थान श्री मोतीराम कंवरभान जैन द्वारा करवा
दिया।
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श्री शीतलकुमार आपके एक मात्र पत्र है। 64 वर्ष की आयु मे हृदय गति १० जाने के कारण दिनाक 1-6-73 को आपका आकस्मिक निधन हो गया । आपका नवास मकान नम्बर 587, गली नम्बर 3, आदर्शनगर जयपुर, में हैं।
__ आपको स्मति मे आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पदमावती एवं सुपत्र श्री शीतल मार ने महावीर कल्याण केन्द्र आदर्शनगर जयपुर मे जनोपयोगी लोपधालय भवन का माण कराके सदा के लिये आपकी स्मति चिरस्थाई बना दी।
___ आप अपने सस्थान श्री मोतीराम कवरभान जैन, जाहरी बाजार में प्राय संचालक थे।
आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पदमावती सहनशील. धर्मज, दवाव परोपकारी एवं विदुपी महिला हैं ।
आपके पुत्र श्री शीतल कुमार भी आपके पद चिन्हों पर चलते हा उनी
भागीदार के रूप में कुशल व्यवसायी हैं तथा अप स्वभाव में कोमल " गा, सहृदय एव उदीयमान नवयवक कार्यकता है।
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श्री अर्जुन लाल जी श्री अर्जुनलाल जी का जन्म श्री कवरभान जी के घर दिनाक 21-4-1925 ई. को डेरागाजोखान मे हुआ था । आप अपने पिता के तीसरे पुत्र है । आपने डेरागाजीखान मे मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की। फिर उच्च शिक्षा प्राप्त हेतु वाराणसी गये ।
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वहा से आने के पश्चात् डेरागाजीखान मे ही आप अपने पैतृक व्यवसाय मे लग गये। पाकिस्तान बनने के पश्चात् जयपुर में आकर अपने पिता एव बडे भाइयो के साथ अपने सस्थान मोतीराम कवरभान जैन जौहरी बाजार मे कार्यरत हुए और अपने परिवार सहित अपने सस्थान के कार्य मे काफी प्रगति की ।
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पिता एवं अपने दो बड़े भाइयों के देहावसान के बाद, परिवार के मुख्य कार्यकर्ता के रूप मे अपने सस्थान का सचालन सुचारु रूप से कर रहे हैं ।
आप स्वभाव से धमज्ञ एवं अध्यात्म प्रेमी हैं ।
आप 10 वर्ष से समाज के उपाध्यक्ष पद पर मनोनीत होकर सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियो मे पूर्ण सहयोग दे रहे है ।
आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती शीला देवी है । श्री तेजकुमार जी आपके मात्र एक सुयोग्य पुत्र हैं तथा आपकी तीन पुत्रिया है।
आपका निवास स्थान मकान नम्बर 588, गली नम्बर 3, आदर्शनगर जयपुर मे है । फोन नम्बर 63727 है ।
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श्री शंभुकुमार जी
श्री शभुकुमार जी श्री कवरभान जी सिंगवी के चौथे सुपुत्र है । आपका जन्म डेरागाजीखान मे सन् 1929 को हुआ था । आपने डेरागाजीखान एव देहली हिन्दू कालेज मे उच्च शिक्षा प्राप्त की । पाकिस्तान से आने के पश्चात् जयपुर मे आपने अपने परिवार के साथ अपनी फम मोतीराम कवरभान जैन मे कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया । वुद्धिजीवी एव कर्तव्य - निष्ठ होने के कारण आपने अपने व्यावसायिक कार्य मे आशातीत सफलता प्राप्त की एवम् अपने सस्थान की उन्नति में आपका सक्रिय योग है । आप धार्मिक एवम् सामाजिक गतिविधियो मे रुचिपूर्वक भाग लेते है ।
सेवाभावी होने के नाते श्री महावीर कल्याण केन्द्र मे औषधि क्रय एव उसके निर्माण विभाग का सचालन अपना बहुमूल्य समय देते हुए विशेष कुशलता पूर्वका विधिवत कर रहे है ।
आपकी धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी है । आपके सजय एव रोहित दो पुत्र एव एक पुत्री है ।
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आपका निवास मकान नम्बर 589, गली नम्बर 3, आदर्शनगर जयपुर - 4 है । फोन नम्बर निवास - 63727 दुकान - 72769
श्री आसानंद जी के तीन पुत्र श्री नेमीचदजी
आप श्री आसानन्दजी के नवने बड़े पुत्र है। स्कूली शिक्षा के बाद आप अपनी पैतृक फर्म मोतीराम कवरभान जैन मे कार्यरत हैं । आपकी पत्नी का नाम नगीना जैन है । आपके दो पुत्र व एक पुत्री हैं।
निवास मकान न० 586. गली नं 3 आ नगर जयपुर - 4 मे है ।
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श्री कैलाशचन्द जी
श्री कैलाशचन्द जी का जन्म भी डेरागाजीखान मे आशानन्द जी के घर हुआ था। स्कूली शिक्षा के वाद आप भी अपनी फर्म मोतीराम कँवरभान जैन में कार्य कर रहे हैं । आपकी पत्नी का नाम चन्द्रा जैन है । आपके मात्र एक पुत्र अजय एव एक पुत्नी है । निवास मकान नम्बर 586, गली नम्बर 3, आदर्शनगर, जयपुर -4 है। फोन नम्बर 78464 है [
श्री ओमप्रकाश जो
आपका जन्म भी श्री आणानन्दजी के घर हुआ था । शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप भी अपनी फर्म मोतीराम कॅवरभान जैन मे कार्यरत हुए। आपकी पत्नी का नाम इन्द्रा जैन है । आपकी सतान राजीव पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । आपका निवास प्लाट नम्बर 586 आदर्श नगर जयपुर-4 मे अपने भाइयो के साथ है ।
श्री खुशीराम जी के पुत्र श्री शीतलकुमार जी
श्री शीतलकुमार जी खुशीराम जी के एक मात्र पुत्र है । इनका जन्म सन् 1946 डेरागाजीखान में हुआ था । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपनी फर्म मोतीराम कँवरभान जैन मे अपने विभाग का वडी कुशलता से सचालन कर रहे है । आप धर्मज्ञ, वुद्धिजीवी, सहनशील, होनहार युवक हैं । धार्मिक एव समय-समय पर होने वाले सामाजिक कार्यो मे आप रुचिपूर्वक भाग लेते है । इसी का परिणाम है कि कई वर्षो से आप आदर्श जैन मिशन के अध्यक्ष चले आ रहे है। गुप्त दान आदि में भी आपकी उल्लासपूर्वक रुचि रहती है । इसी भावना से आपने महावीर जीव कल्याण समिति के कोष मे अच्छी अर्थ सहायता देकर
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समाज को एक अच्छी संस्था की स्थापना मे योग दिया है । आपकी पत्नी का नाम सुदेश कुमारी है । आपके शरद नाम का पुन एव एक पुत्री है। निवास मकान नम्बर 587, गलो नम्बर 3, आदर्श नगर, जयपुर मे है।
श्री तेजकुमार जी श्री अर्जुनलाल जी के पुत्र
आप श्री अर्जुनलाल जी के एक मात्र पुत्र हैं। आपका जन्म दिनाक 15 नवम्बर 1946 को डेरागाजीखान मे हुआ था। जयपुर मे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् विशेष अध्ययन के लिए आप अमेरिका गये और वहाँ से पी एच. डी. की डिग्री प्राप्त कर भारत वापिस आये। अब आप राजस्थान विश्वविद्यालय मे प्रवक्ता के पद पर कार्यरत है ।
आपकी पत्नी का नाम मनता जैन है तथा आपकी मात्र तीन पुत्रिया हैं। आप अपने पिता के साथ मकान नम्बर 586, आदर्शनगर, जयपुर में निवास करते है ।
श्री संजयकुमार जी श्री शम्भुकुमार जी के पुत्र
आपका जन्म श्री शभूकमार जी के घर सन् 1961 जयपुर मे हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट की शिक्षा देहली मे प्राप्त कर रहे हैं । आपके छोटे भाई रोहित जैन मात्र अभी
7 वर्ष के हैं।
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श्री करमचन्द जो सिंगवी
श्री करमचन्द जी श्री मोतीराम जी के पुत्र थे । आपके श्री प्रेमचन्द जी एवं श्री गिरधारीलाल जी दो पुत्र थे, जिनके परिवारो का परिचय निम्न प्रकार है - श्री प्रेमचन्द जी सिंगवी एव उनका परिवार
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श्री प्रेमचन्द जी सिंगवी का जन्म श्रीमान करमचन्द जी के घर डेरागाजीखान मे वि० सवत् 1949 मे हुआ था। आप स्वभाव से सरल परिणामी एवं धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे । आपके श्री जयकुमार, सत्तकुमार, जम्बूकुमार, दिवेशकुमार, अशोककुमार पाँच पुत्र एव दो पुत्रिया है । आपकी धर्मपत्नी का नाम टिकाई वाई है । निवास- प्रेम निवास जे-238 आचार्य कृपलानी मार्ग, आदर्शनगर, जयपुर-4 मे है ।
आपका आकस्मिक स्वर्गवास विक्रम संवत् 2023 हृदयगति रुक जाने से 74 वर्ष की आयु मे जयपुर मे हो गया ।
श्री जयकुमार जी
आप श्री प्रेमचन्द जी के सबसे बडे पुत्र हैं, आपके नाना के कोई पुत्र नहीं होने से आप उनके गोद चले गये । आपका विस्तृत विवरण समाज के मंत्री के रूप मे दिया जा चुका है। आपके सुरेशकुमार एव रमेश कुमार दो पुत्र है ।
श्री संतकुमार जी
श्री सतकुमार प्रेमचन्द जी के दूसरे पुत्र हैं । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय मे लग गये । आप उत्साही कर्मठ कार्यकर्ता है | अपने परिवार को बनाने मे आपका अच्छा योगदान है | आपकी पत्नी का नाम पुष्पादेवी है । आपके श्री रविकर एव सजयकुमार दो पुत्र एव तीन पुत्रिया है । अपने सस्थान कर्मचन्द प्रेमचन्द जैन कटला पुरोहित जी जयपुर मे कार्यरत है । आप अपने भाइयो के साथ प्रेम निवास मे रहते है |
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श्री जम्बूकुमार जी आप श्री प्रेमचन्द जी के तीसरे पुत्र हैं । आपका जन्म सन् 1933 मे मुलतान मे हुआ था। स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे। कुशाग्र बुद्धि, मिलनसार एव उत्साही कार्यकर्ता होने के नाते आपने अपने व्यवसाय मे अच्छी प्रगति की है। आपकी पत्नी उर्मिला देवी है। आपके एक पुत्र दीपक एवं तीन पुत्रिया हैं। फर्म चौथूराम जयकुमार जौहरी बाजार जयपुर मे आप पार्टनर है । प्रेमनिवास मे आप रहते है।
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__ श्री दिवेशकुमार जी
आपका जन्म प्रेमचन्द जी के घर सन् 1939 म मुलतान मे हुआ। स्नातक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप व्यवसाय व र रहे है । आप अपने व्यवसाय म कठिन परिश्रमी व कर्मठ कार्यकर्ता है। आपकी पत्नी का नाम चेलना देवी है।
आपके केवल तीन पुत्रिया है। आप भी प्रमनिवास मे अपने भाइयो के साथ रहते हैं ।
श्री अशोककुमार जी अशोक कुमार का जन्म भी मुलतान मे सवत् 2001 मे प्रेमचन्द जी के घर हआ था। आप उनके सवसे छोटे पुत्र हैं। स्नातक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने व्यवसाय मे कार्यरत हुए। बुद्धिजीवी होने के नाते आपने अपने व्यवसाय मे अच्छी तरक्की का है। धर्मात्मा एव सदगहस्थ के संयमरूप रात्रि भोजन भक्ष अभक्ष त्याग रूप अपना जीवनयापन कर रहे है । आप चौथूराम जयकुमार जौहरी बाजार जयपुर मे पार्टनर है । फोन नम्बर 76104 है। आपके अजय व अरुण दो पुत्र एव एक पुत्री है। आपकी पत्नी का नाम श्रीमती सविता जैन है । आप प्रेम निवास मे ही रहते है।
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श्री जयकुमारजी के पुत्र
श्री मुरेशकुमारजी
आपका जन्म जयकुमारजी के घर पर वित्रम सवत् 2001 मे मुलपान नगर मे हुआ था । स्नातक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने व्यवसाय मे कार्य करने लगे । आप अपने पिता की तरह ही धार्मिक एव सामाजिक गतिविधियो मे रुचि पूर्वक भाग लेते है । नित्य देव पूजन आदि वडे उत्साह एव लगन से करते है | इस समय आप अपनी फर्म कर्मचन्द प्रेमचन्द जैन कटला पुरोहितजी, जयपुर मे कार्यरत है । आपकी पत्नी का नाम शमा जैन है और आपके विशाल, विकाश एव अनुज तीन पुत्र है । आप अपने पिता के साथ प्रेम निवास मे रहते हैं ।
श्री रमेशकुमारजी
आपका जन्म दिल्ली मे विक्रम संवत 2005 मे जयकुमारजी के घर पर हुआ था | वचपन से ही आपको वालीवाल आदि खेलो मे भाग लेने का अच्छा गौक है । आज तक आप उन्ही मे भाग लेते रहे है। आपने एम ए एल एल वी करने की उच्च शिक्षा प्राप्त 'कर अपना व्यवसाय करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम मधु जैन है । आपकी मात्र दो पुत्रिया है ।
निवास - 675 आदर्शनगर, जयपुर ।
व्यवसाय - महावीर जनरल स्टोर, त्रिपोलिया वाजार । जयपुर - 302004, फोन 75694 ।
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श्री गिरधारीलालजी सिंगवी एवं उनका परिवार
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श्री गिरधारीलालजी का जन्म श्री करमचन्दजी सुपुत्र श्री मोतीरामजी सिंगवी के घर पर डेरागाजीखान मे हुआ था । आप जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय करते थे । पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जयपुर आये, क्षयरोग के कारण अपका स्वर्गवास अल्प आयु मे ही हो गया । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कस्तूरी देवी है । आपके श्री महेन्द्र कुमार, श्री वीरकुमार व श्री सुरेन्द्र कुमार तीन पुत्र हैं ।
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श्री महेन्द्र कुमारजी आपका जन्म डेरागाजीखान मे सन् 1939 मे हुआ । जयपुर में स्कूली शिक्षा के पश्चात् आप स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर मे कैशियर के पद पर कार्यरत है । आपकी पत्नी का नाम विमला देवी है । आप उत्साही कार्यकर्ता हे और मुलतान दिगम्बर जैन समाज के कई वर्षो से कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आपके ससुर के कोई पत्र नही होने के कारण उनका व्यवसाय भी आपको मिला।
उनका सस्थान ताराचन्द आशानन्द जैन नेहरू बाजार, जयपुर मे है। सस्थान __ का फोन नम्बर 72943 है। आपने अभी आदर्शननर जयपुर मे अपना भवन श्यामाप्रसाद मुकर्जी मार्ग, प्लाट नम्बर बी-10 ए मे बनाया है । आपके सजय व पीयूप दो पुत्र है।
श्री वीर कुमारजी ___ श्री वीर कुमार का जन्म भी डेरागाजीखान मे हुआ था। स्कूली शिक्षा के वाद मोटर मैकेनिक का कार्य सीख कर स्कूटर व रिपेयरिग एव पार्टस का व्यवसाय करने लगे । आपकी सस्थान जैन ऑटोरिपेयरिंग का पुलिस मैमोरियल जयपुर मे है । जिसका फोन नम्बर 68123 है । आपकी धर्मपत्नी का नाम र जना हे । आपके अचिन एक पुत्र है।
सुरेन्द्र कुमार श्री सुरेन्द्र कुमार गिरधारी लालजी के तीसरे पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम अनाता है । आप ताराचन्द आशानन्द जैन, नेहरू बाजार, जयपुर सस्थान मे __ कार्यरत है। आपके चिन्नू एक पुत्र है।
श्री हीरानदजी पुत्र श्री जेठानदजी के परिवार का परिचय श्री हीरानन्दजी के दो पुत्र है श्री दयालचन्दजी, व श्री पोखरदामजी है ।
श्री दयालचदजी श्री दयालचन्दजी सुपुत्र श्री हीगनब्जी का जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था । गप डेरागाजीखान एव मुलतान मे व्यवसाय करते थे। पाकिस्तान काने के पश्चात् आप जबर मार लगे। स्वभाव से आप तीक्ष्ण बुद्धि, समान। शास्त्र सभा मे तत्वचर्चा प्रेमी योना । तीन पुत्र है।
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श्री दयालचंदजो के पुत्रं
श्री भगवानदासजी श्री भगवानदासजी दयालचन्दजी के प्रथम पुत्र है । पाकिस्तान से आकर जयपुर मे वस गये । आपके दिलीप, अगोक, व राजेन्द्र तीन पुत्र हैं । आप चाकसू का चीक घी वालो का रास्ता, जौहरी वाजार, जयपुर मे रहते थे। दिनाक 12-6-81 का योडे समय की बीमारी के कारण आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी धर्मपत्नी का नाम लक्ष्मी देवी है।
श्री चिमनलालजी श्री चिमनलालजी दयालचदजी के द्वितीय पुत्र हैं। मुलतान मे आप व्यवसाय करते थे । कुशाग्न बुद्धि होने से व्यवसाय मे अच्छी उन्नति की थी । पाकिस्तान बनने पर समाज को भारत मे लाने के लिये वायुयानो का प्रवन्ध करने मे आपका भी बहुत बडा योग था । आपकी धर्मपत्नी. का नाम शकुन्तला देवी है। आपकी दो पुत्रिया हैं। सन् 1948 मे थोडे समय की बीमारी से 45 वर्ष की अल्प आयु मे ही आपका
स्वर्गवास हो गया। श्री शांतिलालजी श्री शातिलालजी दयालचन्दजी के तीसरे पुत्र है । आपका जन्म मुलतान मे हुआ था । हाई स्कूल की' शिक्षा प्राप्त कर आप जयपुर में व्यवसाय करने लगे। तीक्ष्ण बुद्धि होने से आपने व्यवसाय मे अच्छी प्रगति की। आप समाज की कार्यकारिणी के कई वर्षों मे सदस्य है । आपकी धमपत्नी का नाम प्रकाग देवी है । आपके चन्द्रशेखर, रविकुमार, व मजयकुमार तीन पुत्र हैं । जेठानन्द चिमनलाल के नाम मे कटला पुरोहितजी मे आपका व्यवमाय है । मकान नम्बर 577 गली नं02 आदर्शनगर जयपुर में निवास है ।
श्री चन्द्रेश कुमार श्री चन्द्रेशकुमार की धर्मपत्नी पिवी जैन है। इनका एक पुत्र व्यवमायी एव निवास पिता के साथ
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. मुलतान दिगम्बर जैन ममात्र-इनिहाम के माजोक मे
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श्री पोखरदासजी सिगवी
आपका जन्म हीरानन्दजी के सुपुत्र श्री जेठानन्दजी सिंगवी के घर पर डेरागाजीखान मे हुआ । थोडे समय पश्चात् आप मुलतान आकर व्यवसाय करने लगे ।
प्रारम्भ मे साधारण परिस्थिति मे होते हुए भी अथक परिश्रम से आपने मुलतान मे अच्छी आर्थिक उन्नति कर ली थी और अर्हद भक्ति आदि दैनिक धार्मिक कृत्यों का पालन करते हुए जीवन यापन करने लगे ।
पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर आकर बस गये । भाग्य ने आपका साथ दया, व्यवसाय मे आप निरन्तर प्रगति करने लगे, आपकी गणना समाज के अच्छे व्यवसायियो मे होने लगी ।
स्वाध्याय मे आपकी अच्छी रुचि है, आध्यात्मिक तत्व चर्चा से आपको विशेष लगाव है इसलिये कई बार आप सोनगढ़ भी जाते रहे है ।
स्वभाव से आप विनम्र, दयालु, परोपकारी एव धर्मनिष्ठ है । असहायो को सहायता गुप्त रूप से करते एव कराते रहते हैं ।
आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती किशनी देवी है । श्री भागचन्दजी [ कुंतीलाल ] व श्री वीर कुमार आपके दो पुत्र है जो स्नात्कोत्तर शिक्षा प्राप्त करने पर भी आपके साथ व्यवसाय मे कार्यरत है, उसमे उन्होने उन्नति की है ।
आपके निम्न सस्थान है
1. हीरानन्द पोखरदास जैन, होजरी मर्चेन्ट, कटला पुरोहितजी, जयपुर । फोन नम्बर 76822
2 वीरेन्द्रा होजरी फैक्ट्री 440 आदर्शनगर जयपुर-302004 निवास : प्लाट नम्बर 440, गली नम्बर 2, आदर्शनगर जयपुर -4 में है ।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के झालोक में
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श्री पोखरदासजी के पुत्र श्री भागचदजी [कु तीलाल]
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श्री भागचन्द का जन्म मुलतान नगर मे दिनाक 15-8-35 को हुआ था । आप वी ए तक शिक्षा प्राप्त कर अपने व्यवसाय मे लग गये। वृद्धि जीवी होने के नाते अपने व्यवसाय मे काफी उन्नति की है। आप समाज की कार्यकारिणी के सदस्य है । कटला पुरोहितजी जनरल मचेंट ऐमोसियेशन के मन्त्री एव कई व्यवसायिक सस्थाओ के पदाधिकारी तथा सक्रिय कार्यकर्ता है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती चन्द्र प्रभा जैन है। आपके राजीव व मनीप दो पुत्र तया एक पुत्री है । आप अपने पिता के साथ उपरोक्त फर्मो मे कार्यरत है और पिता के साथ रहते है ।
श्री वीरकुमारजी ___ श्री वीरकुमारजी श्री पोखरदासजी के दूसरे पुत्र हैं। आपका जन्म भी मुलतान मे दिनाक 12-9-39 को हुआ था। बी कॉम तक शिक्षा प्राप्त कर आप अपने पैतक व्यवसाय मे सयुक्त परिवार के साथ कार्यरत हैं। कठिन परिश्रमी होने से आपने अपने व्यवसाय मे अच्छो प्रगति की है और आप मे धर्मवद्धि भी है । आपकी पत्नी का नाम श्रीमती कौशल देवी है । आपकी मात्र तीन पुत्रिया है। अपने परिवार के साथ उपरोक्त मकान मे निवास करते है।
श्री दासरामजी सिंगवी का परिवार
श्री दासूराम जी जो समाज मे जिनदासमल जी के नाम से अधिक प्रख्यात थे लुणिंदामल के वशज है। जिनकी वशावली पृष्ठ 35 पर है तथा दासूराम जी का परिचय भी विशिष्ट व्यक्ति परिचय परिच्छेद पृष्ठ 77 मे दिया जा चुका है । आपके तीन पुत्र हैं -श्री चादारामजी, श्रीमाधोदासजी व श्री बलभद्रकुमारजी । जिनमे श्री चादारामजी व श्री माधोदासजी के परिवारो का परिचय आगे दिया जा रहा है, श्री वलभद्रकुमार का परिचय पहिले पृष्ठ 107 मे आ चुका है।
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पो दानुगगजी
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समायो भी थे। mer : ::
:ति उत्साह था। Ar:-:-:- :नामी उन कोटि मेगा. ..
मापनी पत्नी मनोकामेही वर्गवारा हो नमामिने पत्नी का नाम
नाम बाद दुर्घटना से युवावया मे मा गंवानो गया । आपके एक मात्र पुत्र श्री ठाकुरदास थे निकगीदिनी मे ही ग्वर्गवास हो गया। उनकी धर्मपत्नी का नाम पुष्पा देवी
नजर है तथा दो पुत्रिया है।
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श्री माधोदासजी श्री माधोदासजी भी श्री दासूरामजी [जिनदासमल] निगवी के सुपत्र है। आपका जन्म मुलतान में हुआ था । आप बहुत अच्छे व्यवसायी एव धर्मज्ञ, जिनेन्द्र भक्त व्यक्ति हे व देव पूजन मे आपकी बहुत अभिरूचि है। नमान मे कोई भी पूजन विधान आदि हो आपका उगमे प्रमुख योगदान रहता है और नित्य पूजन करना दिनचर्या में प्रथम कार्य है। पाकिस्तान बनने के पश्चात्
आप जयपर मे आकर रहने लगे और फतहचन्द दासूराम हवेली,
जैन कलर एण्ड केमिकल मर्चेन्टस्, नवाब सहाब की विपालिया बाजार मे व्यवसाय कर रहे है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सोहन सापक श्री निहालचन्द एक पत्र एव एक पुत्री है। मस्थान--फतहचन्द दामूराम, नवाव सहाव की हवेली, त्रिपोलिया बाजार
जयपुर निवास---593 गली नम्बर 3, आदर्शनगर, जयपुर-4
श्री निहालचन्दजी श्रा निहालचन्दजी जैन श्री माधोदास के एक मात्र पुत्र है । आप होनहार एव पाप्त है । अल्पावस्था मे ही आप आर ए एस की परीक्षा पास कर राज्य सेवा मे पदा पर कार्यरत रहे और कई बार दिल्ली आदि मे उच्च पदो पर राजस्थान से
मोजस्वी व्यक्ति हे । अल्पा कई उच्च पदो पर काय
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बलाये गये और राज्य की ओर से उच्च प्रशिक्षण हेतु विदेश भी गये। कुशाग्र वृद्धि एव कुशल प्रशासक होने के नाते थोडे समय मे ही आप आई ए एस [भारतीय प्रशासनिक सेवा] में पदोन्नत होकर राजस्थान में कई स्थानो पर कलेक्टर के पदो को गौरवान्वित करते रहे । वर्तमान मे आप दिल्ली नगरपालिका के उप प्रशासक के पद पर कार्य कर रहे हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती निर्मला देवी है, आपके नीरज नाम का पुत्र एव एक पुत्री है । आपका स्थाई निवास पिताजी के साथ है।
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5
. श्री जस्सूरामजी सुपुत्र श्री नोतनदासजी श्रीलीलाराम प्रपौत्र श्रीलुणिंदामल सिंगवी के वोसाराम, भोलाराम, गेलाराम, गेगनदास चार पुत्र थे। जिसमे वोसाराम के एक मात्र पुत्र उत्तम चन्द थे। जिनका अल्प आयु मे ही स्वर्गवास हो गया था। बाकी तीनो का परिचय आगे दिया जा रहा है ।
श्रीमान् भोलाराम जी सिंगवी
श्री भोलारामजी सिंगवी पुत्र श्री जस्सूरामजी पौत्र श्री नोतनदासजी के घर देरागाजीखान मे जन्म हुआ। कुछ समय वाद आपने मुलतान मे आकर अपना व्यवसाय भोलाराम ताराचन्द जैन के नाम से प्रारम्भ किया और आप थोडे समय मे ही एक अच्छे व्यवसायी के रूप मे प्रख्यात हो गये । आप स्वभाव से ही कोमल एव धर्मनिष्ठ तथा सादगी से जीवन व्यतीत करने वाले थे । आपका समाज मे प्रमुख व्यक्तियो मे स्थान था ।
आप समाज के कार्यों मे बहुत रुचि लेते थे । धार्मिक
उत्सवो मे आप उत्साह पूर्वक : भाग लेकर धर्म प्रभावना मे अच्छा योग
दान देते थे। पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली जाकर रहने लगे। आपने प्रारम्भ मे मन्दिर निर्माण कार्य मे हर्ष पूर्वक अच्छा आर्थिक योगदान दिया। थोडे समय बाद आपका स्वर्गवास हो गया। आपक श्री ताराचन्दजी, ईश्वरदासजी, द्वारकादासजी, नरेन्द्रकुमारजी एव श्री नियामतरामजा पांच लडके हैं । जो अपने-अपने व्यवसाय मे निपुणता के साथ लगे हुए हैं।
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श्री ताराचन्दजी
श्री ताराचन्दजी अपने पिता के साथ मुलतान मे व्यवसाय करते थे। पाकिमान बनने के पश्चात् कुछ दिन दिल्ली अहमदगढ एवं जयपुर में अपने सयुक्त पग्विार में मार व्यापार किया। उसके बाद आप अहमदगढ (लुधियाना पजाब) मे अलग व्यवसाय वनलो। आप स्वभाव से कोमल एव श्रद्धाल व्यक्ति हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम मनोनी है, जो काफी धर्मज्ञ एवं धार्मिक गीत बोलने में रुचि रखती हैं एवं स्वाध्याय प्रेगो । आपके श्री ठाकरदास एक मात्र पुत्र एवं दो पुत्रिया है।
श्री ताराचंदजी के पुत्र श्री ठाकरदासजी श्री ठाकरदास का जन्म मुलतान मे ताराचन्दजी के घर हुआ था। पाकिस्तान बनने वा आप दिल्ली आगये व उच्च शिक्षा प्राप्त कर आप अलग व्यवमाय करने लगे। अथक परिश्रमी होने से अकेले होते हए भी आपने अपने व्यवसाय में अन्य जानि की। आपकी वर्मपत्नी का नाम श्रीमती संतोष जैन है जो वो ए, बी टी उप जिला प्रात्र, आपके संजीव, राजीव एव कपिल तीन पुत्र हैं आप एजूकेगनल प्रोसस (c ) 50: कूचापातोराम देहलो प्लास्टिक कारखाना संस्थान के मालिक है। 455 गावी
मे रहते हैं।
श्री ईश्वरचन्दनी
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श्री द्वारकादास जी
श्री द्वारकादास जी जैन का जन्म दिनाक 9-4--35 मे श्री भोलाराम जी के घर हुआ । शिक्षा प्राप्त करने के वाद आप व्यवसाय करने लंगे । आप अपने व्यवसाय मे कर्मठ कार्यकर्त्ता एक स्पष्टवादी है । अपने व्यवसाय मे आपने अच्छी प्रगति की है और समाज के धनी व्यक्तियो मे माने जाते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुमित्रा देवी है । आपके एक पुत्र उमेश कुमार एव एक पुत्री है । आपका निवास स्थान 438 आदर्श नगर मे है और फर्म का नाम मैसर्स 'भोलाराम द्वारकादास जैन, स्टेशन रोड जयपुर है व फोन नम्बर 76689 है |
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श्री ईश्वरचन्द जी के पुत्र दिनेशकुमार जी
श्री दिनेशकुमार श्री ईश्वरचन्दजी सिंगवी के सुपुत्र है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप जयपुर नावल्टी 21 नेहरू बाजार मे व्यवसाय कर रहे हैं । आप अपने पिता श्री ईश्वरचन्दजी के साथ आदर्शनगर मे रहते है । 'आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मीनाकुमारी जैन है आपके दो पुत्रिया हैं ।
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श्री द्वारकादास जी के सुपुत्र उमेशकुमार जी श्री उमेशकुमार सुपुत्र श्री द्वारकादास जैन का जन्म दिनाक 9-9-1955 को हुआ । आपने वी ए तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपना व्यवसाय वेबी टायज सेन्टर नेहरू बाजार मे शुरू किया । आप अपने पिता के साथ आदर्श नगर मे रहते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती अन्जु जैन है ।
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श्री राजेन्द्रकुमार जी (गुल्लू)
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श्री राजेन्द्र कुमार जी के सुपुत्र है । स्कूली शिक्षा के व्यवसाय मे अपने भाइयो के साथ फर्म भोलाराम ईश्वरचन्द के साथ कार्यरत रहे । कुछ समय पश्चात् अलग हो जाने पर आपने बहुत उतार चढाव देखा । अब आपने अपना अलग व्यवसाय मोबिल ऑयल का प्रारम्भ किया जो अब बहुत अच्छी तरह से चल रहा है । आपकी धर्मपत्नी का नाम मन्जु जैन है तथा आपके पुत्र मनीष, विनीश तथा एक पुत्री है । आपका निवास विडला भवन, ठोलिया धर्मशाला के पास, घी वालो का रास्ता, जोहरी वाजार, जयपुर मे है ।
भोलाराम जी पश्चात् आप
श्री न्यामतराम
श्री न्यामतराम (डोगरा ) भोलाराम जी के पाँचवे पुत्र हैं । आप अपने भाई द्वारिकादास के साथ कार्यरत हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम सविता जैन है । आपके एक पुत्र नीरज जैन एव एक पुत्री है । आप अपने भाई श्री राजेन्द्र कुमार के साथ घी वालो के रास्ते मे
रहते है ।
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श्री गेलाराम जी सिंगवी श्री नौतनदासजी के पौत्र, श्री जस्सूराम जी के पुत्र श्री गेलारामजी सिंगवी का जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था। आप सरल स्वभावी, परोपकारी धर्मज्ञ एव कर्मठ कार्यकर्ता थे। आप धार्मिक कार्यों जैसे कि उत्सव जूलसो आदि के प्रबध मे विशेष रुचि लेते थे। ज्लस आदि निकलवाने तथा उसके लिये सरकार से स्वीकृति आदि लेने मे आपका सर्वाधिक योगदान रहता था । आप श्रावक की दैनिक धार्मिक क्रियाओ मे सदैव तत्पर रहते थे।
अपने व्यवसाय मे आप काफी प्रवीण थे इसलिये डेरागाजीखान मे अपने व्यवसाय मे काफी उन्नति को। फलस्वरूप शहर के बडे बडे व्यापारियो मे आपकी गणना होती थी।
आपका देहावसान मुलतान नगर पाकिस्तान मे हआ था। श्री दीवानचदजी, श्री निहालचन्द जी, श्री शुभचन्दजी, श्री रतन लाल जी, श्री विसनदास जी तथा श्री देवीदास जी आपके छ पुत्र हैं जिनमे श्री दीवान चद जी, एव श्री शुभचदजी इस समय वर्तमान मे दिल्ली रहते हैं, तथा श्री रतनलालजी कोटा (राजस्थान) में व्यवसायरत हैं एव श्री निहालचन्दजी विसनदासजी व देवीदासजी जयपुर मे ही निवास करते है।
श्री निहालचन्द जी सिंगवी श्री निहालचन्द जी का जन्म गेलाराम जी सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा प्राप्त करके आप अपने व्यवसाय मे लग गये और वहाँ पर आपने कपडे का काम भी अच्छे स्तर पर किया । पाकिस्तान बनने के बाद जयपुर आ गये और यहां अपने भाइयो के साथ व्यवसाय करने लगे । आप सेक्टर नम्बर 7, मकान नम्बर 255 जवाहर नगर जयपुर मे रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सुमित्रादेवी है । आपके दो पुनिया है।
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श्री रतनलाल जी श्रीमान रतनलाल जी का जन्म भी गेलाराम जी सिगवो सुपुत्र श्री जस्सूराम जी सिगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद कुछ समय तक आपने वाराणसी मे भी शिक्षा प्राप्त की। भारत विभाजन के बाद आप जयपुर आ गये। थोड़े दिन तक आपने अपने भाइयो के साथ व्यवसाय भी किया, वाद मे आप कोटा (राजस्थान) मे जाकर अपना अलग व्यवसाय करने लगे और वहाँ बस गये है। आप उत्साही कार्यकर्ता है व धर्म मे भी आपकी अच्छी रुचि है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती तुलसी देवी है। आपके खुशहालचन्द, भोजराज एव किशोर कुमार तीन पुत्र एव एक पुत्री है । व्यवसाय-रतन जनरल स्टोर बापू वाजार कोटा मे है । निवास फ-5 दादाबाडी कालोनी कोटा (राज) मे है । व्यसावाय फोन नम्बर 5360 तथा निवास फोन नम्बर 5896 है ।
श्री रतनलाल जी के पुत्र
श्री खुशहालचन्द श्री खुशहालचन्द का जन्म 12-8-1948 को श्री रतनलाल जी के घर मे हुआ था। आप स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर अपने पिताजी के साथ व्यवसाय मे लग गये। आपकी धर्मपत्नी का नाम सुनीता जैन है तथा आपके सोन एव मोहन दो पुत्र हैं । आप सयुक्त परिवार के साथ निवास करते हैं।
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श्री भोजराज श्री भोजराज का जन्म 1952 मे जयपुर मे श्री रतनलाल जी के घर हुआ। उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर व्यवसाय मे लग गये। आपकी धर्मपत्नी का नाम गलशन जैन है और आपके विक्की जैन एक मात्र पुत्र है । आप रतन एजेन्सी सब्जी मण्डी मे स्टेशनरी का व्यवसाय अपने सयुक्त परिवार के साथ करते है और अपने पिता के साथ दादाबाड़ी कालोनी में रहते है।
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श्री किशोर कुमार श्री किशोर कुमार का जन्म सन् 1955 मे श्री रतनलाल जी के घर जयपुर मे हुआ था । आप स्नात्कोत्तर शिक्षा प्राप्त कर अपने सयुक्त परिवार के साथ व्यवसाय करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम रेणु जैन है । आप रतन जनरल स्टोर पर व्यवसाय करते है और अपने सयुक्त परिवार के साथ रहते है।
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श्री बिशनलाल जी श्री बिशनलाल जी का जन्म भी श्री भोलराम जी सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। भारत विभाजन के बाद आप जयपुर आकर रहने लगे। कुछ समय तक भाइयो के साथ सयुक्त व्यवसाय के बाद अब आपने कटला पुरोहित जी में अपना स्वय का व्यवसाय कर रहे हैं । आपके राजेन्द्र प्रसाद व अनिल दो पुत्र है जो आपके साथ व्यवसाय करते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती चन्द्रकान्ता है। व्यवसाय राजेन्द्र जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी जयपुर मे है । निवास स्थान घी वालो का रास्ता, सूरजमल टोगिया के मकान मे है ।
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श्री देवीदास जी श्री देवीदास जी मिंगवी का जन्म आज से 51 वर्ष पूर्व श्री गेलाराम जी सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर में आकर बस गये और गेलाराम देवीदास जैन के नाम से चाकसू का चौक, हल्दियो का रास्ता, जयपुर में व्यापार करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कला देवी जैन है और विनोदकुमार जैन मात्र एक पुत्र है । निवास 818 ए-आदर्श नगर, जयपुर में है।
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श्री गोगनदास श्री गोगनदास जी श्री जस्सूराम जी के सुपुत्र है । उनके दो पुत्र थे खुशीराम एवं प्रेमचन्द है ।
श्री खुशीराम श्री खगोराम एक कलाकार व्यक्ति है। आपको चित्रकला एव सगीत विद्या का अच्छा अभ्यास है । आप हारमोनियम के बहत अच्छे मास्टरा है और धार्मिक गीत बनाने मे भी निपुण है । आपका जन्म मुलतान मे हुआ था। मुलतान मे ही आप रेल्वे विभाग मे कार्यरत हो गये । पाकिस्तान बनने के बाद आप भारत की पश्चिम रेल्वे मे कार्य करने लगे। अव आप सेवा निवृत्त हो गये है। स्वाध्याय में आपकी अच्छी रुचि है, जिससे गोमटसार गास्त्र का आपको अच्छा अभ्यास है । आपने विवाह नहीं किया, इस समय आपकी अनुमानत 80 वर्ष की आयु है ।
श्री प्रेमचन्द जी आप गोगनदास जी के द्वितीय पुत्र थे । विवाह के 6 माह के पश्चात् अल्पावस्था मे प्लग (महामारी) मे आपकी मत्य हो गई थी। आप की धर्मपत्नी का नाम सीतादेवी (सुपुत्री श्री चौथूराम जी) जैन है । वे ज्ञानाभ्यास के लिए गुहाना चली गई । अच्छा शानाजन कर अब देहली रहती है । कोई सतान न होने के कारण आपने श्रीपाल को गोद लेकर अपना पुत्र वना लिया है जो अच्छे व्यवसायी एव योग्य सम्पन्न होते हुए भी आपकी सेवा मे हर समय तत्पर रहते है ।
श्रीमान् देवीदास जी सिंगवी का परिवार श्रीमान देवीदास जी का जन्म श्रीमान सेवाराम जी के घर मूलतान मे हुआ ना। आपके श्रीमान तोलाराम, श्री मुलतानीचन्द जी, श्रीमान् रोशनलाल, श्रीमान जयकुमार एव श्रीमान आदीश्वर लाल पाँच पुत्र थे । धर्मपत्नी का नाम श्रीमती फूलोदेवी है । श्री सालाराम जी की यवावस्था मे जयपुर मे मृत्यु हो गई थी ।उनके श्री चन्द्रकुमार व श्री निर्मल उमार दो पुत्र है । जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है । श्री रोशनलाल की भी युवावस्था मे ही जयपुर मे मत्य हो गई। उनके कोई सन्तान नही थी । जय कुमार एक आदीश्वर लाल के परिवार का विवरण आगे दिया जा रहा है ।
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श्री जयकुमार जी सिंगवी ( रंगवाले) श्रीमान देवीदास जी सिंगवी के सुपुत्र श्री जयकुमार जी सिंगवी का जन्म मुलतान मे हुआ था । बचपन मे ही माता पिता का निधन हो जाने पर आप अपने बडे भाई तोला राम जी के साथ सयुक्त परिवार मे रहते थे । आपके श्री तोलाराम, श्री मुलतानीचन्द, श्री आदीश्वर लाल तीन भाई है । मुलतान मे आपका देवीदास तोलाराम जैन के नाम से जनरल मर्चेन्ट की दुकान थी अब जयपुर मे तोलाराम जयकुमार जैन कलर मर्चेन्ट, कटला पुरोहित जी व देवीदास एण्ड सस जनरल मर्चेन्टस, त्रिपोलिया बाजार मे दुकाने है । आपके दोनो लडके अरुण जैन व प्रदीप जैन एवं एक पुत्री है । दो लडके इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की कानपुर मे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं । श्री आदीश्वरलाल जो
श्री आदीश्वर लाल जी देवीदास जी सिगवी के सुपुत्र का जन्म मुलतान मे ही हुआ था । छोटी अवस्था मे आपके माता पिता का स्वर्गवास हो जाने से आप अपने तोलाराम आदि भाइयो के साथ संयुक्त परिवार मे रहते थे । स्कूली शिक्षा प्राप्त कर आप व्यवसाय मे लग गये । पाकिस्तान बनने के बाद जयपुर मे आप तोलाराम जयकुमार जैन कलर मर्चेन्ट्स कटला पुरोहितजी मे व्यवसाय करते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती भगवती देवी एव आपके दो पुत्र अनिल जैन, व आशु जैन तथा दो पुत्रिया हैं ।
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श्री तोलाराम जी के पुत्र श्री चन्द्र कुमार जी
श्री चन्द्रकुमार जी स्व श्री तोलाराम जी सिंगवी के सुपुत्र हैं। छोटी अवस्था मे पिताजी का निधन हो जाने पर भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर व्यवसाय मे लग गये । आपको सामाजिक कार्यों मे भी रुचि है । आप अपनी फर्म तोलाराम जयकुमार जैन मे कार्यरत है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कुसुम जैन है । आप आदर्शनगर मे मकान नम्बर 822 मे अपने सयुक्त परिवार के साथ रहते है ।
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श्री निर्मलकुमार जी श्री निर्मलकुमार जो श्री तोलाराम जी सिगवी के सुपुत्र है । कमं को विनित्रता देखो जयपुर मे जिस दिन आपका जन्म हआ उसी दिन ही आपके पिताश्री का निधन हआ। गिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने अपने पारिवारिक व्यवसाय में प्रवेश किया। फर्म तोलाराम जयकुमार देवीदास एण्ड सस मे आप भी कार्य करते है और संयुक्त परिवार के साथ आदर्शनगर मे रहते हैं । लापकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मजू जैन है तथा आपके दो पुत्रिया है। निवास 822 आदर्शनगर, जयपुर-4 मे है।
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श्री मुलतानी चन्द जी श्री मुलतानीचन्द जी का जन्म श्री देवीदास जी सिगवी के घर आज से 71 वर्ष पूर्व मुलतान मे हुआ था। आप वचपन से ही क्रान्तिकारी विचारधारा के युवक थे। स्वतन्त्रता आन्दोलन मे भी कुछ समय भाग लिया और उसके बाद व्यवसाय करने लगे। पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर मे आकर रहने लगे और यहाँ आप आभूषणो का व्यवसाय करने लगे। आपकी अब स्वाध्याय मे अच्छी रुचि हो गई है और घर गृहस्थी एव
व्यापार से उदास होकर तत्व समझने मे आप अपना 4 का निरन्तर उपयोग कर रहे है। आपके दो पुत्र श्री ओमप्रकाश व श्री चन्द्रप्रकाश है क ही साथ व्यवसाय कर रहे है तथा सयुक्त परिवार के रूप मे रह रहे है।
श्री ओमप्रकाश जी मुलतानीचन्द जी के बड़े पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम सरला देवी है । आपके चचल व विकास दो पुत्र एवं एक पुत्री है।
श्री चन्द्रप्रकाश जी आप श्री मुलतानी चन्द जी के द्वितीय पुत्र है। आपकी धर्मपत्नी का नाम सुनीता
समय
__ है, आपके दो पुत्रिया है।
यवसाय-ज्वैलर्स-चंचल एण्ड कम्पनी, घी वालो का रास्ता, जयपुर । निवास-279-ए भगतसिंह पार्क के पीछे, राजापार्क, जयपुर ।
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श्री ताराचन्द जी सुपुत्र श्री सेवाराम जी के दो पुत्र थे। श्री उत्तमचन्द जी, श्री आशानन्द जी जिनका परिचय निम्न प्रकार है
श्री उत्तमचन्द जी सिंगवी श्री उत्तमचन्द जी सिंगवी सुपुत्र श्री ताराचन्द जी का जन्म मुलतान मे हुआ था। आप सरल स्वभावी और जिनेन्द्र भक्ति के विशेष रसिक थे, आप गायन विद्या मे निपुण थे। प्रत्येक उत्सव, जुलूस, सभा आदि मे आपके भक्ति एव उपदेशक भजनो आदि से विशेष शोभा बढती तथा अच्छी धर्म-प्रभावना होती थी । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती ठाकरी बाई है । आपके श्री शम्भुलाल जी एव भद्रकुमार जी दो पुत्र हैं। आपका
निवास गोदीका भवन, घी वालो का रास्ता, जयपुर मे है । व्यवसाय उत्तमचन्द शम्भुलाल जैन, कलर मर्चेन्ट, कटला पुरोहित जी, जयपुर। आपका निधन दिनांक 7-10-78 को जयपुर में हुआ।
श्री शम्भुकुमार जी __ आप श्री उत्तमचन्द जी के बडे पुत्र है । आप राजनैतिक कार्यकर्ता हैं, नगर परिषद जयपुर के सदस्य भी रह चुके है । आपकी धर्मपत्नी का नाम शीला देवी है । आपके राजेश व अशोक दो पुत्र हैं । आप अपने परिवार के साथ उपरोक्त संस्थान मे काम करते एव उसी मकान मे रहते है।
श्री भद्रकुमार जी आप श्री उत्तमचन्द जी के द्वितीय पुत्र है। आप भी पिताजी की तरह गायन विद्या मे प्रवीण एव धर्मज्ञ व्यक्ति है । सामाजिक कार्य मे अच्छी रुचि है। हर धार्मिक उत्सवो । मे आपका प्रमुख भाग रहता है । समाज की कार्यकारिणी के सदस्य भी है । आपकी धर्मपत्नी
का नाम प्रेमलता हैं, तीन पुत्रिया है। आप भी अपने परिवार के साथ रहते एव व्यवसाय करते हैं । निवास-भवरलाल गोदीका भवन, घी वालो का रास्ता, जयपुर।
श्री आशानन्द जी सिंगवी - श्री आशानन्द जी श्री ताराचन्द जी के दूसरे पुत्र थे । इनका जन्म भी मुलतान मे हुआ था, पाकिस्तान ' बनने के बाद जयपुर आकर बस गये और अपना व्यवसाय करने लगे। आपकी धर्मपत्नी चॉदोवाई थी जिनका छोटी अवस्था मे ही मुलतान मे निधन हो गया था। आपकी एक मात्र पुत्री विमला देवी है । आपका सस्थान ताराचन्द आशानन्द जैन नेहरू वाजार, जयपुर मे है जिसको अब विमला देवी धर्मपत्नी श्री महेन्द्रकुमार जी
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चला रही है । आपकी स्मृति में आपकी पुत्री श्रीमती विमला देवी धर्मपत्नी श्री महेन्द्र कुमार जी ने मन्दिर के आगे के गण का फर्ग वनवाया । हृदय गति रुक जाने के कारण आपका निधन हो गया। फोन नम्बर 72943 हे ।
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श्री विनोकचन्द जी सिगवी व० श्री बिलोकनन्द जी का जन्म श्री सेवाराम जी सिंगवी के घर गलनान में हुआ था। आप सरल स्वभावी और जिनेन्द्र भक्त थे । आप सेवाराम त्रिलोकचन्द जैन जनरल मर्चेन्ट, चूटी सराय मुलतान मे व्यवसाय करते थे। आपके श्री दुनीचन्द, श्री गिरधारी लाल व श्री प्रेमचन्द तीन पुत्र थे जो उपरोक्त फर्म मे व्यवसाय करते हैं।
श्री दुनीचन्द जी श्री दुनीचन्द जी आपके प्रथम पुत्र थे जो मुलतान मे सेवाराम त्रिलोकचन्द के नाम सयुक्त परिवार के साथ व्यवसाय करते थे, उसके बाद जयपुर मे त्रिलोकचन्द गिरधारी लाल के नाम से कटला पुरोहित जी मे अपने भाइयो के साथ व्यवसाय करते रहे, कुछ वर्ष पूर्व आपकी जयपुर मे बीमारी से मृत्यु हो गई ।
श्री गिरधारीलाल जी श्री गिरधारीलाल जी भी मुलतान से आने के पश्चात् जयपुर मे रहने लगे और कटला पुरोहित जी मे त्रिलोकचन्द गिरधारी लाल के नाम से जनरल मर्चेन्ट्स का व्यवसाय कर रहे हैं। आपके कोई पुत्र नही है, मात्र तीन लड़किया हैं ।
श्री प्रेमचन्द जी श्री प्रेमचन्द जी सिंगवी का श्री त्रिलोकचन्दजी के घर मुलतान मे जन्म हुआ था। 'स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे, पाकिस्तान बनने के वाद आप
जयपुर मे आकर अपने भाइयो के साथ व्यवसाय मे ', सलग्न हए। आपकी धर्म मे अच्छी रुचि थी, तत्व को
समझने के लिए आप स्वाध्याय मे अधिक समय देते थे तथा परस्पर तत्व चर्चा मे आपको बहुत आनन्द आता था। हृदयगति रुक जाने से भाद्रपद 1980 मे 65 वर्ष की आयु मे आपका असामयिक निधन हो गया। आपकी धर्मपत्नी का नाम विद्यावती है।
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आपके श्री जगदीशलाल जी, रमेश कुमार, बालकिशन, भारतभूषण, अनिलकुमार व विनोदकुमार छ पुत्र एव दो पुत्रिया है । जो बहुत ही होनहार और भाग्यशाली है ।
आपका व्यवसाय सेवाराम त्रिलोकचन्द जनरल मर्चेन्ट्स, कटला पुरोहित जी जयपुर मे था।
श्री प्रेमचंद जी के पुत्र
श्री जगदीशलाल जी आप श्री प्रेमचन्द जी के बडे पत्र है, सरल-स्वभावी एव धर्मज्ञ है। दिल्ली में रहते हैं और अपने परिवार के साथ दिल्ली कार्यालय में कार्यरत है । आपकी धर्मपत्नी का नाम त्रिशला देवो है । राजेश एक मात्र पुत्र है।
श्री रमेशकुमार जी आप श्री प्रेमचन्द जी के द्वितीय पुन्न है, विशेष होनहार, बुद्धिजीवी एव कर्मठ कार्यकर्ता है जिन्होने साधारण परिस्थिति मे असीम पुरुषार्थ करके स्वय रत्नो,का व्यवसाय प्रारम्भ किया और अपने ही बल पर विदेश यात्राए की और वहाँ पर आपने स्थाई व्यवसाय प्रारम्भ किया तथा आज एक उच्चकोटि के जौहरी है एव समाज मे धार्मिक आस्था मे बहुत रुचि है। विदेश मे रहते हुए भी रात्रि भोजन एव सप्त व्यसनादिक त्यागी अष्ट मूलगुण का भलीभाति पालन करते है । आपकी परोपकार, दान आदि मे भी अच्छी रुचि है । आपन महावीर कल्याण केन्द्र के ऊपर की मजिल मे पाठशाला के लिए भवन बनाने मे अच्छा आर्थिक योगदान दिया है, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियो मे भाग लेते हुए समाज में आदर्श जैन मिशन की स्थापना मे प्रमुख भाग लिया है तथा राजनीति मे भी आपकी काफी रुचि है और उसमे भी कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहते है। आप अपने सब भाइयो को साथ लेकर अपने पद चिन्हो पर चलने की प्रेरणा देते रहते है, तथा उन्हे भी अपने काम का अच्छा व्यवसायी साथी बना लिया है । आपकी धर्मपत्नी का नाम किरण जैन है व रितेश पुत्र एव एक पुत्री है । निवास 579 आदर्शनगर जयपुर मे है ।
श्रीबालकिशन जी आप प्रेमचन्द जी के तीसरे पत्र है आप अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते हुए पश्चिमी जर्मनी कार्यालय में कार्यरत है। आपकी धर्मपत्नी का नाम चित्रा जैन है व अपने परिवार के साथ सयुक्त रूप से रहते है।
श्री प्रेमचन्द जी के बाकी तीन पत्र भारतभषण, अनिल कुमार एव विनोद कुमार अभी अविवाहित है जो विद्या अध्ययन कर रहै हैं तथा अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते है।
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मुसतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के मासोक मे .
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श्री सन्तीरामजी सिंगवी
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श्री सन्तीरामजी का जन्म श्रीमान घनश्यामदासजी सिंगवी के घर पर डेरागाजीखान मे हुआ था । आप स्वभाव से ही भद्र परिणामी एवं सज्जन पुरुष थे । आप डेरागाजी खान मे व्यवसाय करते थे । आपके श्री भवरचन्द श्री बल्लभदास, श्री गणेशदाराजी, तीन पुत्र एव गणेशी वाई एक पुत्री थी | आपना मुलतान मे 75 वर्ष की आयु मे निधन हुआ ।
श्री भंवरचन्दजी सिंगवी
स्व श्री भंवरचन्दजी का जन्म स्व. श्री सन्तीराम सिंगवी के घर पर डेरागाजीखान मे हुआ था । प्रारम्भ से ही उत्साही कार्यकर्ता एव सामाजिक प्राणी थे । आपको धर्म मे प्रति प्रगाढ श्रद्धा एवं भक्ति थी । छोटी अवस्था
ही आप डेरागाजी खान से मुलतान व्यवसाय के लिये आ गये और मुलतान मे भवरचन्द ज्ञानचन्द जैन चूडी सराफ मे चूडियो का व्यवसाय करने लगे और मुलतान मे भी आप सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अग्रणी थे ।
पाकिस्तान बनने के समय जब सब लोग मुलतान छोड़कर भारत आ गये तब आप कुछ अन्य साधर्मी जनों के साथ वहां रह रहे थे तो एक दिन आपको पिछली रात मे स्वप्न आया कि मंदिर की वेदी मे मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी की एक मात्र मूर्ति विराजमान है उसे लेकर आप तुरन्त यहा से चले जाये । आप प्रात होते ही अपने साथियो को स्वप्न बताकर मन्दिर से वह मूर्ति लेकर वहाँ से आ गये । यह भंवरचन्दजी का ही पुरुषार्थ था कि महान अतिशय युक्त मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्राचीन मूर्ति आज श्री दि० जैन मंदिर आदर्शनगर मे विराजमान है ।
जयपुर मे भी आपने भंवरचन्द ज्ञानचन्द जैन जनरल मर्चेन्ट के नाम से कटला पुरोहितजी जयपुर मे अपना व्यवसाय किया । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती नन्दीबाई है और ज्ञानचन्द, बोधराज, लाजपतराय और बालकिशन चार लड़के जो अपने-अपने बहुत अच्छे व्यवसायो में कार्यरत है और पुत्री सुश्री कुमारी पुष्पा जो अच्छी राजनीतिज्ञ हैं
मुसतान दिगम्बर जैन समाज इतिहांस के आलोक मे
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वी ए एल-एल वी की शिक्षा प्राप्त कर राजनीति मे कार्य कर रही है व वर्तमान मे राजस्थान विधान सभा को सदस्या भी है। मकान नम्बर 846 ए, सिंगवी सदन आदर्शनगर मे सयुक्त परिवार के रूप मे रहते है ।
श्री भंवरलालजी के पुत्र
श्री ज्ञानचन्दजी श्री ज्ञानचन्दजी स्व श्री भवरचन्दजी के सुपुत्र का जन्म मुलतान मे हुआ था।
स्कूली शिक्षा के पश्चात् आप अपने पिता के साथ व्यवसाय मे सलग्न हए। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जयपुर मे आकर रहने लगे । आप सरल स्वभावी धर्मात्मा एव तत्व रुचिक हैं । सामाजिक कार्यों मे भी आपकी अच्छी रुचि है जिसका परिणाम है कि आप मुलतान दि० जैन समाज की कार्यकारिणी के सदस्य हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती राजकुमारी जैन है और आपके वडे पुत्र श्री वीरेन्द्रकुमार, वीरेन्द्र जनरल स्टोर, कटला पुरोहितजी मे आपकी
दुकान पर बैठते है और आपके दूसरे लडके श्री अनिल कुमार जैन वस्तु कला विशेष की उपाधि प्राप्त कर पी डब्लु डी मे इजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं । आप अपनी दुकान ज्ञान जनरल स्टोर, चादपोल मे कार्य करते हैं तथा आदर्शनगर मे मकान नम्बर 846 ए, मे अपने सयुक्त परिवार के साथ रहते हैं ।
श्री बोधराजजी __आप श्री भवरचन्दजी के द्वितीय पुत्र है। शान्तिप्रिय और एकान्तवास आपको अच्छा लगता है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती शल्लो देवी है, आपके विजय कुमार मात्र एक पुत्र है । आप अपने भाइयो के साथ सिंगवी सदन आदर्शनगर मे रहते हैं। वी राज एण्ड कम्पनी दडा घी वालो का रास्ता मे आपकी दुकान हैं।
श्री लाजपतरायजी श्री भवरचन्दजी के तृतीय पुत्र हैं। सामाजिक कार्यों मे आपकी अच्छी रुचि है। समाज के हर उत्सवो, प्रीतिभोज आदि मे अग्रणी होकर कार्य करते रहते हैं । आप की धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या देवी हैं आपके राजेश एक पुत्र एव दो पुत्रियां हैं । राजेश एण्ड कम्पनी, वुलियन विल्डिग, हल्दियो के रास्ते मे आपकी दुकान है ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे,
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श्री वालकिशनजी
श्री भंवरचन्दजी के चतुर्थ पुत्र है । आपकी धार्मिक गीतो आदि के बोलने मे काफी रुचि है । नित्य पूजन में बडे उल्लास से भाग लेते है । समाज मे होने वाले सभी उत्सवो आदि को अपने धार्मिक गीतो से मफल करने मे आपका प्रमुख योग रहता है | आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा देवी है । आपके सजय मात्र एक पुत्र एवं एक पुत्री है | आप अपने भाईयो के साथ सिंगवी सदन में रहते हैं । भवरचन्द, ज्ञानचन्द कटला पुरोहितजी मे व्यवसाय करते हैं ।
श्री वल्लभदासजी श्री
बहुत
श्री वल्लभदासजी सन्तीरामजी के दूसरे सुपुत्र थे । आपका जन्म आज से 63 वर्ष पूर्व डेरागाजी खान मे हुआ था। आपको प्रारम्भ से ही भगवत भक्ति मे लगन थी । पहले आपने डेरागाजीखान मे व्यवसाय किया इसके पश्चात् पजाव की कई मण्डियो मे व्यवसाय हेतु रहे । वाद मे आपने मुलतान मे आकर अपने बड़े भाई श्री भवरचन्दजी के साथ व्यवसाय किया । पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जयपुर में आकर अपना अलग जगदीश जनरल स्टोर, कटला पुरोहितजी मे जनरल मर्चेन्टस का व्यवसाय करने लगे । आपको जिनेन्द्र पूजन मे अति उत्साह था। आप जीवन पर्यन्त नित्य देव पूजन करते रहे । आपने जीवन मे संयम का भी भली प्रकार पालन किया । अग्रेजी दवाई आदि का आपने कभी प्रयोग नहीं किया और अन्त समय तक घोर वेदना होने पर भी शान्ति से पानी बादि के त्याग का भली भाति पालन करते हुए सन् 1980 मार्च मे आपने शरीर छोडा । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पूरण देवी है और श्री प्रभाचन्द, श्री मनोहरलाल, श्री भीमसेन' श्री जगदीशकुमारजी, व श्री अर्जुनलालजी पाच पुत्र है जो अपने-अपने व्यवसाय मे भली प्रकार कार्यरत है। ये आपके निवास स्थान 143 गुरुनानक पुरा परनामी मन्दिर मादर्शनगर में सयुक्त रूप से रह रहे है ।
श्री बल्लभदासजी के पुत्र
श्री प्रभाचन्दजी
बल्लभदासजी के प्रथम पुत्र है स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय मे लग गये । उत्साही कर्मठ कार्यकर्ता है। आपकी जिनेन्द्र भक्ति आदि मे विशेष रुचि है । आपकी धर्मपत्नी का नाम कुसुमलता जैन है । आपके राजकुमार और आसीम दो पुत्र एवं एक पुत्री है | परिवार के साथ परनामी ब्लाक आदर्शनगर मे रहते है ।
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व्यवसाय — प्रभा जनरल स्टोर, घी वालो का रास्ता मे जनरल मर्चेन्टस का व्यापार है ।
● मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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श्री मनोहरलालजी श्री वल्लभदासजी के द्वितीय पुत्र हैं। संगीत विद्या मे आपकी बहत रचि है, आपने अपनी भजन मडली भी बना रखी है। समय-समय पर होने वाले उत्सवो व शोभा यात्राओ आदि मे भजन मडली द्वारा कार्यक्रम देकर उनकी शोभा बढाते एव उसे सफल बनाते हैं। आप सगीत रचना भी करते है। आपकी धर्मपत्नी सुलोचना देवी एक विदुषी महिला हैं । यह सेन्ट्रल स्कूल में अध्यापिका है एवं आप महारानी गायत्री देवी स्कूल में कार्यरत हैं । आपके राकेश, दिनेश मात्र दो पुत्र हैं। आप अपने सयुक्त परिवार के साथ 143 परनामी व्लाक मे रहते है।
श्री भीमसेनजी श्री वल्लभदासजी के तीसरे पुत्र हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती निर्मला देवी हैं । आपके शरद जैन एक पुत्र एव एक पुत्री है। अपने परिवार के साथ रहते हैं, जगदीश जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी मे अपने भाइयो के साथ कार्य करते हैं ।
श्री जगदीशकुमाजी श्री वल्लभदासजी के चौथे पुत्र हैं। अच्छे उत्साही और कर्मठ कार्यकर्ता है। आपने अपने परिवार को ऊँचा उठाने मे पूर्ण योग दिया है आपकी धर्मपत्नी का नाम भुवनेश है । आपके अमित व टिकू दो पुत्र है । आप अपने भाइयो के साथ रहते और जगदीश जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी मे जनरल मर्चेन्टस का कार्य करते हैं ।
श्री अर्जुनलालजी श्री वल्लभदासजी के पाचवे पुत्र है। कर्मठ एव उत्साही नवयुवक है। स्कूली शिक्षा के वाद बम्बई की किसी उच्च सस्थान मे एजेन्ट का कार्य करते हैं । अपने परिवार के साथ 143 परनामी ब्लाक मे रहते है । आप अभी अविवाहित हैं।
श्री गणेशदासजी
श्री गणेशदासजी श्री सन्तीरामजी के तृतीय पुत्र है । पाकिस्तान बनने से पहले आप डेरागाजीखान मे श्री घनश्यामदास गणेशदास के नाम से चूडी आदि का व्यवसाय करते थे। आज आप जयपुर में रहते है एव भावो से शाति प्रिय एवं भद्र परिणामी है अर्हत भक्ति मे आपकी विशेप रुचि है। 75 वर्ष की आय मे भी आप नित्य पूजन आदि करते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम प्यारीवाई है। आपके इन्द्रभान, पदमकुमार, प्रकाशचन्द, जवाहरलाल एव सुभापकुमार पाच पुत्र
एव दो पुत्रिया हैं । प्यवनाय - वनश्यामदाम, गणेणदास कटला पुरोहितजी जयपुर तथा निवास 141 फ्रान्टियर कालोनी, आदर्शनगर, जयपुर-4 मे है
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के बालोक में
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श्री गणेशदासजी के पुत्र
श्री इन्द्रभानजी श्री गणेशदासजी के प्रथम पत्र धर्मज्ञ एव सहनशील व्यक्ति है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती टालोदेवी है। आपके शेखर मात्र एक पत्र एव दोपत्री है व घी लो वा रास्ता जौहरी बाजार में आपका निवास है । व्यवसाय - एम्पीरियल जनरल स्टोर त्रिपोलिया बाजार ।
श्री पदमकुमारजी आप गणेशदासजी के द्वितीय पत्र शान्ति प्रिय व्यक्ति है। आपकी धर्मपत्नी कान्तादेवी जैन है । आपके अनिलकुमार मात्र एक पत्र है । हल्दियो के रास्ते मे आप रहते है। व्यवसाय-अनिल पलास्टिक इन्डस्ट्रीज ठाकुर पचेवर का रास्ता जयपुर ।
श्री प्रकाशचन्दजी गणेशदासजी के तृतीय पत्र हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती शशीदेवी है। ___ आपके सदीप एक पत्र एवं एक पत्नी है। आप 141 फ्रान्टियर कालोनी आदर्शनगर मे रहते है।
श्री जवाहरलालजी
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जवाहर लालजी श्री गणेशदासजी के चतुर्थ पुत्र है। आप प्रतिभाशाली; वुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ एव सामाजिक कार्यकर्ता है। आपको शिक्षा काल मे ही रजनीति मे प्रवेश का शौक लगा और आप जयपुर शहर युवक कांग्रेस के सदस्य तथा पदाधिकारी रहे । आप उन्ही दिनो साइकिल पर भारत भ्रमण भी किया जहा काफी स्थानो पर आपका स्वागत हआ। शिक्षा के बाद आप अपने व्यवसाय में कार्यरत हुए। साथ ही सामाजिक गतिविधियो
एव सगीत कला आदि में भाग लेने लगे । फलस्वरूप आप मशन के उत्साही कार्यकर्ता रहे एवं वर्तमान मे मन्त्री है। महावीर कल्याण केन्द्र की
पसमिति के आप सदस्य है और मूलतान दिगम्बर जैन समाज की प्रायः सभी पाधया जलसे दशलक्षणी के कार्यक्रमो, शोभा यात्राओ, भजन मडलियो आदि मे वडे ९ क साथ प्रमुखता से भाग लेकर सफल बनाने मे हमेशा योग देते रहते है। इस तर पसमाज के ज्योतिर्मय होनहार नवयुवक है। आपकी धर्मपत्नी का नाम बीना देवी है
यूष मात्र एक पुत्र एव तीन पुत्रिया हैं । आप 141 फ्रान्टियर कालोनी
औषधालय समिति के आप सदर
आदर्शनगर मे रहते है।
व्यवसाय-घनश्यामदास, गणेशदास कटला पुरोहितजी, जयपुर मे आप अपने परिवार
के साथ व्यवसाय करते है ।
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श्री सुभाषकुमारजी
श्री गणेशदासजी के पाचवे पुत्र हैं । बहुत प्रतिभाशाली एवं कर्मठ कार्यकर्ता हैं । अपने व्यवसाय को बढाने मे आपका बहुत योग रहा है जिससे आप प्लास्टिक के व्यवसाय मे जयपुर के अग्रणी व्यापारी माने जाने लगे है । आपकी धर्मपत्नी स्नेह जैन है । आपके अतुल, शैलेश दो पुत्र है । आप अजमेरा भवन मोतीसिंह भोमियो के रास्ते मे रहते हैं ।
व्यवसाय - घनश्यामदास गणेशदास कटला पुरोहितजी मे आप अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते हैं ।
श्री हीरानन्द सिंगवी
श्री हीरानन्द जी शानूराम जी सिंगवी के सुपुत्र है । आपका जन्म मुलतान मे हुआ था । आप ज्यादा पढे लिखे न होने पर भी स्वाध्याय में रुचि होने से आपको अच्छा तत्व ज्ञान हो गया और आप अच्छे शास्त्राभ्यासी हो गये । मुलतान मे आपकी जनरल मर्चेन्ट्स की दुकान थी । अल्पावस्था मे ही आपकी धर्मपत्नी का निधन हो गया । आपके एकमात्र पुत्र श्री सुभाषचन्द जी और एक पुत्री है | आपकी सुभाष जनरल स्टोर कटला पुरोहित जी जयपुर मे हौजरी की दुकान है। श्री हीरानंद के पुत्र श्री सुभाषकुमार जी
आपका जन्म श्री हीरानन्द जी के घर मुलतान मे हुआ था । पाकिस्तान बनने के वाद आपके पिताजी जयपुर आकर बस गये और आप स्कूली शिक्षा प्राप्त कर व्यवसाय मे लग गये । कर्मठ एव पुरुषार्थी होने से अपने व्यवसाय मे अच्छी प्रगति की । आपकी पत्नी का नाम शमा देवी है । आपके सजय एक पुत्र एव तीन पुत्रिया है । आप अपने पिता के साथ रहते है एव व्यवसाय करते हैं । निवास 2 ज 11 जवाहर नगर, जयपुर ।
श्री ठाकरदासजी सिंगवी
श्री आशानन्द जी सिंगवी के जमनीदास व ठाकरदास दो पुत्र थे । जमनीदास के परिवार का परिचय दिल्ली खण्ड मे दिया गया है | ठाकरदास जी के परिवार का परिचय निम्न प्रकार है |
आप डेरागाजीखान मे रहते थे और धर्मज्ञ व्यक्ति थे, आपके श्री हुकुमचन्द एव श्री महावीर दो पुत्र हैं ।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के' श्रालोक में
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श्री ठाकरदास के पुत्र
श्री हुकमचन्द
श्री हुकमचन्द का जन्म डेरागाजीखान मे हुआ | आपके पिता आपको छोटी अवस्था मे ही छोड़कर स्वर्ग सिधार गये । पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर आकर बसे और यहा आपने अपने ही पुरुषार्थ से कपडे का काम प्रारम्भ किया और उसमे बहुत उन्नति की । आपकी धर्मपत्नी का नाम प्रकाश देवी है । आपके पवनकुमार व अमित जैन दो पुत्र एव दो पुत्रिया है । सस्थान - फैन्सी क्लॉथ स्टोर, घी वालो का रास्ता, जयपुर एव निवास घी वालो का रास्ता जयपुर मे है ।
श्री महावीर
आप घी वालो के रास्ते, चाकसू का चौक मे रहते है तथा व्यवसाय करते हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम माया देवी है । आपके सजय व मनोज दो पुत्र तथा एक पुत्री है ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के मालोक
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गोलछा परिवार
श्री देवीदास जी का परिवार ओसवाल दि० जैन के प्राचीन परिवारो मे से है। इनके पूर्वजो का पता नही चल सका। इनके दासूरामजी, शम्भुराम और सुखानन्द तीन पुत्र थे जिनमे श्री सुखानन्दजी का परिचय दिल्ली खण्ड मे दिया गया है।
श्री शम्भुराम जी शम्भुरामजी की लगन धार्मिक कार्यों में विशेष थी तथा वे सामाजिक एव धार्मिक कार्यों मे कर्मठ कार्य-कर्ता के रूप मे प्रस्यात थे। आपकी युवावस्था मे ही मृत्यु हो गई। इनकी मात्र एक पुत्री कस्तूरी बाई है जिनका विवाह श्री गिरधारीलाल सुपुत्र श्री करमचन्द सिंगवी के साथ डेरागाजीखान मे हुआ।
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श्री दासूराम जी श्री दासूरामजी गोलेछा का जन्म मुलतान नगर मे दिगम्बर जैन मोसवाल श्री देवीदासजी गोलेछा के यहाँ हुआ। आप पैतृक सम्पन्न परिवार में उत्पन्न होने के कारण सम्पन्नता आपको विरासत मे मिली । आप स्वभाव से ही सरल एव मृदु थे। आपको जिनेन्द्र भक्ति के प्रति अति अनुराग था । सभाओ मे भक्ति गायन बडी लगन एव उत्साह से बोलने का चाव था। कोमल हदय होने के कारण दुखी असहायो की सदा सेवा करने को तत्पर रहते थे। धार्मिक अनुष्ठानो मे भी आप सदैव दिल खोल कर सहज भाव से दान देते थे।
मुलतान मे आपके सयुक्त परिवार का बगीचे के नाम से एक फार्म था जिसमे आपने भवन एव चैत्यालय बनवा रखा था जहां समय-समय पर ब्रह्मचारी-त्यागी गण आदि आकर रहते और लोग धर्म साधन के लिए जाते एव मनोरजन के लिए प्रीतिभोज आदि करते रहते थे।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
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श्री दासूराम जी के समान उनकी धर्मपत्नी भी सरल स्वभावी धर्मज्ञ एव लोक व्यवहार में निपुण महिला थी । वे सदैव दया, दान आदि कार्यो मे अग्रणी रहती थी ।
मुलतान नगर मे आपका जनरल मर्चेन्ट का पैतृक एव प्रख्यात व्यवसाय था । आपके श्री रोशनलाल जी मात्र एक पुत्र तथा चार लडकिया जो कि समाज के सम्पन्न घरो में ब्याही हुई हैं, वे भी अपनी माता की तरह सरल स्वभावी, धर्मज्ञ है व दान आदि धार्मिक कार्यों मे उत्साहपूर्वक भाग लेती है ।
मुलतान मे देवीदास, दासूराम जैन के नाम से दुकान थी। अब जयपुर मे रोगनलाल विजयकुमार के नाम से कटला पुरोहित जी मे रग के व्यापारी है ।
श्री रोशनलाल जी
दासूराम जी के एक मात्र पुत्र श्री रोशनलाल जी का जन्म मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर मे आकर रहने लगे और यहा कटला पुरोहित जी मे रग का व्यवसाय प्रारम्भ किया। आप कुशाग्र बुद्धि, उत्साही एव परिश्रमी व्यक्ति है । अपने पुरुषार्थ से आपने काफी अचल सम्पत्ति अर्जित की। आपकी - पत्नी श्रीमती शान्तादेवी का छोटी अवस्था मे निधन
हो गया जिसके श्री कमलकुमार एवं विजयकुमार दो पुत्र
एवं एक पुत्री है । आपने दूसरी शादी की । उनसे एक पुत्र अनिलकुमार एव तीन पत्रि आपकी दूसरी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती आशा जैन है ।
श्री रोशनलाल जी के पुत्र
जी
श्री कमलकुमार
श्री कमलकुमार का जन्म मुलतान मे सवत् 1947 को हुआ । स्नातक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आप अपने पैतृक व्यवसाय मे लग गये । आगकी धर्मपत्नी का नाम अरुणा जैन है तथा आपकी एक पुत्री है। निवास दूसरी गली, वीस दुकान, 570 आदर्शनगर मे है ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के सालोक में
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श्री विजयकुमार जी श्री विजयकुमार का जन्म 1954 को जयपुर मे हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिता के साथ व्यवसाय मे लग गये और अपने धधे मे विशेष प्रगति की तथा आप राजनैतिक कार्यकर्ता भी है। राजनीति मे आप सक्रिय भाग ले रहे हैं । युवा काग्रेस सगठन के पदाधिकारी भी हैं । धार्मिक कार्यो मे भी आपकी अच्छी रुचि है। समय-समय पर होने वाले धार्मिक उत्सवो आदि मे सक्रिय भाग लेकर उसे सफल बनाने मे आपका अच्छा योग रहता है। आपकी धर्मपत्नी का नाम
श्रीमती अनिता जैन है। आप सब का रोशनलाल विजयकुमार कलर मर्चेन्ट, कटला पुरोहित जी मे सस्थान है तथा आपकी मालविया इण्डस्ट्रीयल एरिया जयपुर मे फैक्ट्री है। निवास मकान नम्बर 570, गली नम्बर 2, बीस दुकान, आदर्शनगर जयपुर मे है ।
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श्री होतूराम जी श्री होतूराम जी गोलेछा का जन्म मुलतान मे रेमलदास जी के घर मे हुआ था । आप परिश्रमी व्यक्ति थे और व्यवसाय हेतु आपने देश के कई भागो मे भ्रमण किया। आपको वैद्यक का भी बहुत शोक था और औपधि देकर नि शुल्क लोगो की सेवा किया करते थे । आपके एक मात्र पुत्र श्री भगवानदास जी है जो जयपुर मे व्यवसाय करते हैं ।
___ श्री भगवानदास जी श्री भगवानदास जी की धर्मपत्नी का नाम फलोदेवी है और आपके कोई सन्तान नही है । आप पहले मुलतान मे व्यवसाय करते थे, बाद मे जयपुर मे आकर टोपिया बनाने का कार्य करते थे। अव कटला पुरोहित जी मे अपने सालो के साथ प्लास्टिक का कार्य करते है।
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पारख परिवार
पारख परिवार में मंसाराम, भोजाराम व तीरथदास तीन भाई थे। इनके पिता के नाम का पता नही चल सका। मसाराम के कोई पुत्र न होने से उन्होने उदयकरण को गोद लिया । तीरथदास के परिवार का विवरण दिल्ली खण्ड मे दिया गया है।
श्री भोजाराम जी डेरागाजीखान मे रहते थे । उनके श्री खण्डाराम जी, श्री निहालचन्द जी व श्री राजाराम जी तीन पत्र थे जिनके परिवारो का विवरण निम्न प्रकार है -
श्री खण्डाराम जी श्री खण्डाराम जी का जन्म श्री भोजाराम जी पारख के घर डेरागाजीखान मे हआ था । आप सरल स्वभावी धर्मज्ञ व्यक्ति थे। आपका डेरागाजीखान मे खण्डाराम गिरधारी लाल के नाम से जनरल मर्चन्ट्स का अपने भाइयो के साथ सयुक्त व्यापार था । आपके श्री गिरधारी लाल एवं श्री हरीशचन्द्र दो पुत्र है । जयपुर मे भी आपके दोनो लडको ने उपरोक्त नाम से कटला पुरोहित जी मे जनरल मर्चेन्टस का ही व्यवसाय
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FIRHA
कर रखा है।
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श्री गिरधारीलाल जी श्री गिरधारीलाल जो श्री खण्डाराम जी के सुपुत्र है । आपका जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था । युवावस्था तक आपको गाने बजाने का अच्छा शौक था, हारमोनियम बजाने के आप अच्छे मास्टर है जिससे डेरागाजाधान में आपने अपने समाज मे एक बहत अच्छी धामिक
मण्डला बना रखी थी जो दर-दर तक विख्यात । पाकिस्तान बनने के पश्चात् जयपुर मे खण्डाराम रधारीलाल जैन जनरल मर्चेन्टस कटला पुराह अपने भाई श्री हरीशचन्द्र के साथ व्यवसाय करते हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम ईश्वरी देवी है । आपका पुत्र
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दिनेशकुमार है।
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Mountainment
श्री गिरधारीलाल जी के पुत्र
श्री दिनेशकुमार जो श्री दिनेशकुमार जी श्री गिरधारीलाल जी पारख के सुपुत्र हैं। आपका जन्म जयपुर मे हुआ। शिक्षा प्राप्ति के बाद आप अपने पिता के साथ व्यवसाय मे कार्य करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मधु जैन है। आप अपने पिता के साथ रहते हैं। निवास 592, आदर्शनगर, जयपुर मे है।
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श्री हरीशचन्द्रजी श्री हरीशचन्द्रजी स्व श्री खण्डारामजी पारख के द्वितीय पुत्र हैं । आपका जन्म आज से 53 वर्ष पहले डेरागाजीखान मे हुआ था। स्कूली शिक्षा के बाद आप अपने भाई श्री गिरधारीलाल के साथ व्यवसाय करने लगे। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पद्मा देवी है और आपके तीन पुत्र राकेश जैन, अशोक जैन एव सजीव जैन है । आप अपनेभाई के साथ मकान नम्बर 592 वीस दुकान आदर्श नगर मे रहते हैं और खण्डाराम गिरधारीलाल सस्थान मे ही अपने भाई के साथ कार्यरत हैं।
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श्री निहालचन्दजी __ श्री निहालचन्दजी श्री भोजाराम जी पारख के द्वितीय पुत्र हैं। आपका जन्म भी डेरागाजीखान मे हुआ था । अपने सयुक्त परिवार के साथ खण्डाराम निहालचन्द जैन के नाम से व्यवसाय करते थे। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जयपुर आकर बस गये और यहाँ भोजराज निहालचन्द जैन के काम से कटला पुरोहित जी मे जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय करने लगे । आप स्वभाव से सरल, दयालु एव धर्मज्ञ व्यक्ति थे। आपकी पत्नी का नाम श्रीमतो पोखरोबाई था । आपके श्री खेमचन्द, शातीलाल, मनोषकुमार, भगवानदास, चन्द्रकुमार, धर्मपाल, निरजनलाल एव सुरेशकुमार पत्र एव एक पुत्री है । आप दर्शनार्थ श्री महावीरजी गये हुए थे जहा हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक आपका निधन हो गया ।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री निहालचन्दजी के पुत्र
श्री खेमचन्दजी __श्री निहालचन्दजी के प्रथम पुत्र है। डेरागाजी खान मे आज से 58 वर्ष पूर्व आपका जन्म हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद अपने पिता के साथ व्यवसाय मे लग गये। पाकिस्तान बनने के बाद आप सपरिवार जयपर आ गये । आप धर्मज्ञ एव शान्ति प्रिय व्यक्ति है। धार्मिक कार्यो एव सामाजिक व्यवस्था करने में आपकी काफी रुचि है । पहले आप अपने संयुक्त परिवार के साथ भोजाराम निहालचन्द जनरल मर्चेन्टस कटला पुरोहित जी मे कार्यरत थे। अब आप अपना अलग व्यवसाय करते है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पदमा देवी हैं । आप के हसकूमार, कैलाशकुमार दो पत्र एव एक पुत्री है। घी वालो का रास्ता जौहरी बाजार जयपुर मे आप रहते है।
श्री खेमचन्दजी के पुत्र श्री हंसकुमार श्री हस कुमार जी उच्च शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद बैक मे कार्यरत है। आप सरल स्वभावा एव धर्मज्ञ तथाउत्साही व्यक्ति है। आदर्श जैन मिशन के आप कोषाध्यक्ष है। आपकी पत्ता श्रीमती निर्मला जैन है, आपके अनुज एक पुत्र एव एक पुत्री है। आप राजा पाके गली न. 6 मे रहते है।
श्री कैलाश कुमार . आप श्री खेमचन्दजी के द्वितीय पत्र है। आपके अर्पण, दर्पण दो पुत्र है। देवनगर दिल्ली मे रहते है। आपकी धर्मपत्नी कमला जैन है।
श्री शान्तिलालजी आपका जन्म डेरागाजीखान मे हआ था। स्कूली शिक्षा के बाद व्यवसाय करने जयपुर आ जाने के पश्चात् पहले आप अपने भाइयो के साथ भोजाराम निहालचन्द कटला "पा में कार्य करते थे। अब आप अपना निजी व्यवसाय करते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती विमला देवी है। आपके राजू मात्र एक पुत्र एव 3 पुत्रिया ह।
निवास-हल्दियो का रास्ता, जब मनीषकुमारजी
व्यवसा
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श्रा निहाल चन्दजी के तीसरे पत्र है। कर्मठ कार्यकर्ता एव समाज सेवी व्यक्ति है। त्य में अपने पुरुषार्थ से बहत उन्नति की है। सामाजिक कार्यों मे आपकी अच्छी रुचि है।
आपकी धर्मपत्नी का नाम-लाजकूमारी है। आपके राजकुमार एक पुत्र एवं चार पुत्रिया हैं । निवास-435 आदर्शनगर जयपुर-4
श्री भगवानदासजी श्रा निहालचन्दजी के चतुर्थ पत्र है । उत्साही कार्यकर्ता, समाजसेवी एव धार्मिक क्रिया
सच रखने वाले कर्मठ व्यक्ति है। आप की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सुमिमा दवा है । राकेश एवं विनोद मात्र दो पुत्र है।
यवसाय-विनोद जनरल स्टोर, वलियन वल्डिंग, घी वालो का रास्ता । निवास-मकान न0 638 आदर्शनगर मे रहते हैं।
'कलापो मे रुचि रखने वाल
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श्री चन्द्रकुमारजी श्री निहालचन्दजी के पाचवे पुत्र है। आप अपना अलग व्यवसाय करते हैं एवं अलग रहते हैं।
श्री धर्मपालजी श्री निहालचन्दजी के छठे पुत्र है। स्कूली शिक्षा के बाद आप अपनी फर्म भोजाराम निहालचन्द कटला पुरोहितजी मे कार्यरत है। आपकी धर्मपत्नी का नाम निर्मला देवी है। आपके तीन पुत्रियाँ है। निवास--अपने भाइयो के साथ 435 आदर्शनगर जयपुर-4 मे रहते है ।
श्री निरंजनलालजी श्री निहालचन्दजी के सातवे पुत्र हैं। शिक्षा प्राप्ति के बाद भाइयो के साथ भोजाराम निहालचन्द सस्थान में कार्यरत है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सन्तोप है। आपके आशु एक पुत्र है । निवास-भाइयो के साथ ।
श्री सुरेशकुमारजी श्री निहालचन्दजी के आठवें पुत्र हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम शशी देवी है तथा दो पुत्रियाँ हैं । व्यवसायी एव कर्मठ कार्यकर्ता हैं।
निवास एव व्यवसाय--उपरोक्त भाइयो के साथ । श्री भोजाराम निहालचन्द कटला पुरोहितजी, जयपुर ।
4.
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श्री राजारामजी श्री राजारामजी का जन्म भोजाराम पारख के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। बचपन से ही आप स्वाध्याय प्रिय थे । स्वाध्याय के बल पर ही आपको जैन सिद्धान्त का वहुत अच्छा ज्ञान था और जीवन पर्यन्त आपने शास्त्र सभा मे शास्त्र प्रवचन किया जिससे समाज मे शास्त्र सभा भी निरन्तर चलती रही तथा आप समाज मे सभी सहधर्मी भाइयो को स्वाध्याय के लिये निरन्तर प्रेरणा देते रहते थे तथा आप गृहस्थ जीवन मे रहते हुये
सयम का भी भली भाति पालन करते थे। मरण पर्यन्त आपने अग्रेजी दवाई, रात्रि भोजन, वर्फ आदि के त्याग का पालन किया । जून 1970 मे त्याग पूर्वक समता से आपकी हृदय गति रुक जाने से अमामयिक निधन हो गया । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती उत्तम देवी है । आपके श्री फूलचन्द, श्री पन्नालाल, श्री मोहन लाल, श्री अशोक कुमार चार पुत्र हैं।
निवास--मकान नम्बर 591 आदर्शनगर, जयपुर ।
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श्री राजारामजी के पुत्र
श्री फुलचन्दजी श्री गजानमजी के प्रथम पत्र है । आपका जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था। शिक्षा के बाद आप अपने व्यवसाय में लग गये। कठोर परिश्रमी होने से आपने अपने समान में अच्छी प्रगति को। आप सरल स्वभावी एव धर्मज्ञ है। सामाजिक कार्यों मे भी उत्साहपूर्वक भाग लेते है। बच्चो को धार्मिक शिक्षा दिलाने में आपकी विशेष रुचि है।
मन धामिक पाठशाला चलवाने एव बच्चो को पाठशाला जाने के लिए घर-घर जाकर प्रेन्नि करते रहते हैं । सामाजिक वरतन भडार आदि की व्यवस्था आपने भली भाति नाखो है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कौशल्या देवी है । आपके अनिल, अरुण अजय पन एव एक पुनी है ।
__ श्री पन्नालालजी श्री राजारामजी के द्वितीय पुत्र है। आप गम्भीर एव धार्मिक रुचि के व्यक्ति है। आप ताम्मोनियम के मास्टर एव अच्छे सगीतज्ञ है, धार्मिक गीतो की रचना भी करते है लोन बननो पो भी सिखाते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पदमा देवी है । आपने नरेग, मनीष, पुनीत, उपेन्द्र चार पुत्र है ।
श्री अशोक कुमारजी श्री राजारामजी के तीसरे पुत्र है, जो अपना अलग व्यवसाय करते एव रहते है।
श्री मोहनलालजी श्री गजागमजी के चतुर्थ पुत्र है । शिक्षा के बाद आप भी अपने पैतृक व्यवसाय मे लग गये । उन्हें भी संगीत विद्या में रुचि है, गला अच्छा है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती जय श्री है। आपके आसीन एक पुत्र एव एक पुत्री है।
आ। गव मयुक्त परिवार के स्प मे श्री भोजाराम पन्नालाल जनरल मर्चेन्टस मटला पुरोहितजी में कार्यरत है तथा 591 आदर्शनगर मे रहते है।
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नौलखा परिवार
श्री बिहारीलालजी के श्री मूलचन्द एव श्री देवीदास दो पुत्र थे । जिनमे श्री मूलचन्दजी के पदमचन्द, न्यामतराम एव सुखानन्द तीन पुत्र थे । सुखानन्दजी का परिचय दिल्ली खण्ड मे दिया है । देवीदास के उत्तम चन्द, जोधाराम दो पुत्र थे जिनके परिवारो का परिचय नीचे दिया जा रहा है ।
पदमचन्द
पदमचन्द का परिचय पहले विशिष्ट व्यक्ति परिच्छेद मे दिया जा चुका है । उनके दो पुत्र है
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1. मानकचन्द - जिनका परिचय निम्न प्रकार है ।
2 जयकुमार -- जिनका परिचय खण्ड दो (दिल्ली ) मे दिया जावेगा ।
श्री माणकचन्दजी
श्री माणकचन्दजी श्री पदमचन्द नौलखा के पुत्र है । आपका जन्म मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के वाद आप व्यवसाय करने लगे । व्यवसाय के प्रारम्भ के कुछ ही दिनो बाद आप अपने पिता श्री के साथ कोटा बिलोचिस्तान, वर्तमान पाकिस्तान मे व्यवसाय हेतु चले गये । सन् 1932 मे बहुत वडे भूकम्प से जब कोयटा विध्वस हुआ तो वहा आपके पिता श्री की मृत्यु हो गई, बाकी सारे परिवार को लेकर वापस मुलतान आ गये और वहा आकर व्यवसाय करने
लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर मे आकर रहने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम कस्तूरी देवी तथा आपके वीरकुमार, जसपाल, किशनचन्द तीन पुत्र एव चार लड़किया है ।
आपकी फर्म का नाम -- नौलखा प्लास्टिक इन्डस्ट्री है ।
निवास -- हल्दियो का रास्ता, जयपुर ।
श्री माणकचन्जी के पुत्र
श्री वीरकुमारजी
माणकचन्दजी के प्रथम पुत्र है । आजकल दिल्ली मे व्यवसाय करते एव रहते हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम उर्मिला देवी है । आपके तीन पुत्र एव दो पुत्रिया हैं ।
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श्री यशपालजी
माणकचन्दजी के द्वितीय पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम पुष्पा जैन है । आपके पप्पी एक मात्र पुत्र है । पिता के साथ रहते एव व्यवसाय करते है ।
श्री किशनकुमारजी
माणकचन्दजी के तृतीय पुत्र है । उत्साही एव क्रियाशील नवयुवक है । आपकी धर्मपत्नी का नाम उषा देवी है । आपके मात्र एक पुत्री है । आप अपने पिता के साथ व्यवसाय करते हैं ।
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श्री न्यामतरामजी नौलखा का परिवार
श्री न्यामतराम पुत्र श्री मूलचन्द नोलखा (अध्यक्ष मुलतान दिगम्बर जैन समाज) का विवरण पहले दिया जा चुका है । आपके तीन पुत्र है ।
श्री न्यामतरामजी के पुत्र
श्री प्रकाशचंदजी
श्री प्रकाशचन्द जी का जन्म दिनाक--16-11-1948 ई० को दिल्ली मे हुआ । स्कूली शिक्षा प्राप्त कर आप अपने पिताजी के साथ व्यवसाय करने लग गये ।' आपकी धर्मपत्नी का नाम रिशमारानी है । आपके मात्र तीन पुत्रियां है |
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श्री वंशीलाल जी
श्री वशीलाल जी का जन्म जयपुर सन् 1951 मे हुआ था । आपने भी माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर अपने पिताजी के साथ व्यवसाय मे लग गये । आपकी पत्नी का नाम श्रीमती ईना देवी है । आपके प्रवीण पुत्र एव रीनू एक पुत्री है ।
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Syrigal
श्री शीतलकुमारजी __ श्री शीतलकुमार जी का जन्म सन् 1954 को जयपुर मे हुआ । शिक्षा प्राप्त कर आप भी अपने परिवार के साथ उसी व्यवसाय मे कार्यरत हो गये । आपकी धर्म पत्नी का नाम श्रीमती रेखा जैन है । आपकी एक मात्र पुत्री अनकीता है ।
आप सब प्रकाश जनरल स्टोर, कटला पुरोहित जी वडी चौपड, जयपुर अपने सस्थान में कार्यरत हैं सस्थान
___ का फोन नंबर 66149 निवास-मकान नवर 612 दिगबर जैन मदिर के पास, आदर्शनगर जयपुर मे हैं ।
Earahni
श्री उत्तमचन्द जी नौलखा का परिवार परिचय
श्री उत्तमचंद जी __ श्री उत्तमचन्दजी के गुलावचन्द व राजकुमार दो पुत्र है। आपका मुलतान मे ही स्वर्गवास हो गया था।
श्री गुलाबचंद जी ___ श्री गुलाबचन्द जी मुलतान मे जन्मे, स्कूली शिक्षा के बाद डाक्टरी (मरहम पट्टी) का कार्य करने लगे। पाकिस्तान से आने के पश्चात् जयपुर में भी आप यही कार्य कर रहे हैं । अव आपको स्वाध्याय में काफी रुचि हो गई है और आप अपने व्यवसाय से प्रायः मुक्त हो गये हैं और काफी समय तत्व चर्चा में लगाते है। आपकी धर्मपत्नी का नाम लोका देवी है, आपके वीर कुमार, चन्द्रसेन व सूरज तीन पुत्र एवं दो लडकिया हैं। पुत्र आपके ही व्यवसाय में कार्यरत हैं। सस्थान का नाम जैन वीर फार्मेसी, घी वालो का रास्ता, जौहरी वाज़ार, जयपुर है। निवास-मकान नम्बर 489, गली 5, राजापार्क, आदर्शनगर, जयपुर में है।
श्री गुलाबचन्द जी के पुत्र
श्री वीरकुमार जी श्री वीरकुमार जी गुलाबचन्द जी के प्रथम पुत्र शान्तिप्रिय एव मूक है । अपने व्यवसाय में निपुण व्यक्ति है। आपकी धर्मपत्नी का नाम शीला देवी है। आपके विशाल एक पुत्र एव दो पुत्रिया है। अपने पैतृक व्यवसाय डाक्टरी में कार्यरत है। पिता के साथ रहते हैं।
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श्री चंद्रसेन जी श्री चन्द्रसेन जी गुलाबचन्द जी के द्वितीय पत्र "डाक्टर" के नाम से प्रख्यात है। माही, नर्मठ कार्यकर्ता, समाज सेवी, कुशाग्र बुद्धि युवक है। धार्मिक कार्यों में सत्रिय योग देते है और अपने व्यवसाय में निपुण है। आपकी धर्मपत्नी का नाम ललिता जैन है, आपके पराज. नीरज एवं पणू तीन पुत्र है ।
श्री सूरज जैन जी श्री सूरज जैन कुशल परिश्रमी एव उत्साही युवक है। अपने कार्यों मे अच्छी म्याति प्राप्त की है। मिलनसार व्यक्ति है। जौहरी एवं सप्लाई का कार्य करते है। अभी अविवाहित है, पिता के साथ रहते है।
श्री राजकुमार जी जैन श्री राजकुमार जैन उत्तमचन्द जी नौलखा के द्वितीय पुत्र है। अथक परिश्रमी व्यक्ति हैं। आप अपना अलग व्यवसाय करते हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुदर्शना देवी है, आपने प्रान्ति व राकेश दो पुत्र एव 2 पुत्रिया है। पदमावती कन्यापाठशाला के सामने, घी बालोदेरास्ते में रहते है । क्रान्ति एक होनहार उदीयमान युवक है।
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वगवाणी परिवार
श्री राजाराम जी वगवाणी जिनका परिचय पूर्व मे दिया जा चुका है के दो पुत्र थे, श्री किशनचन्द जी और श्री नेमीचन्द जी।
श्री किशनचंद जी आप मुलतान मे जनरल मर्चेन्ट्स का व्यवसाय करते थे, पाकिस्तान बनने के बाद जयपुर आकर रहने लगे। थोडे दिन पश्चात् आपका स्वर्गवास हो गया । आपकी धर्मपत्नी का नाम मेघीबाई था । आपके महावीर प्रसाद एव ज्ञानचन्द दो पुत्र थे ।
श्री महावीरप्रसाद जी श्री महावीर प्रसाद जयपुर मे फोटोग्राफी का कार्य करते थे। मुलतान फोटो स्टूडियो हल्दियो के रास्ते मे प्रसिद्ध सस्थान था। प्रौढावस्था मे आपकी मृत्यु हो गई। आपकी धर्मपत्नी का नाम रतन देवी है । आपके सुभाषचन्द्र, सुरेन्द्र जैन व राजबाबू तीन पुत्र हैं ।
श्री महावीर जी के पुत्र
श्री सुभाषचंद्र जी आप महावीर प्रसाद जी के प्रथम पुत्र है, वर्तमान मे दिल्ली में रहते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम रेखा जैन है, आपके बबलू एक लडका है ।
श्री सुरेन्द्र जैन जी आप महावीर प्रसाद जी के द्वितीय पुत्र है । आपको गायन विद्या का अच्छा शौक है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उमिला है, आपके सोनू एक पुत्र है । व्यवसाय रिफ्लेक्स फोटू स्टूडियो, घी वालो का रास्ता । निवास-साभर फीनी वाले के मकान मे।
श्री राजबाबू जी आप महावीर प्रसाद जी के तृतीय पुत्र है। आप भी फोटोग्राफी का कार्य करते है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती आशा है, आपके दो लडकिया हैं । निवास एवं व्यवसाय मुलतान फोटो स्टूडियो, हल्दियो का रास्ता ।
श्री ज्ञानचंद जी श्री ज्ञानचन्द जी का विवरण खण्ड-2 दिल्ली में दिया जावेगा ।
...
श्री नेमीचंद जी श्री नेमीचन्द जी का भी विवरण विशिष्ट व्यक्ति परिच्छेद में दिया जा चुका है । उनके कन्हैया लाल मात्र एक पुत्र थे जिनका परिचय निम्न प्रकार है ।
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-~~~ श्री कन्हैयालाल जी
श्री कन्हैयालाल जी पुत्र श्री नेमीचन्द जी पौत्र श्री राजराम जी प्रपौत्र श्री प्रेमचन्दजी का जन्म मलतान मे हआ था। आप धर्मज्ञ एव सरल स्वभावी प्राणी थे । आप व्यवसाय करते थे, शास्त्र स्वाध्याय मे आपकी अच्छी रुचि थी । पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपर आकर बस गये। आपकी धर्मपत्नी का नाम शीला देवी है और आपके हरीशचन्द्र, जसवन्त राय व इन्द्रकुमार तीन पुत्र है ।
श्री कन्हैयालाल जी के पुत्र
__ श्री हरीशचंद्र जी आप श्री कन्हैयालाल जी के प्रथम पुत्र हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उषा देवी है । विजयकुमार व नीरज दो पुत्र एव दो पुत्रिया हैं । आपने कसेरा वाजार सवाई माधोपुर मे होटल खोल रखी है।
श्री जसवंतराय जी आप श्री कन्हैयालाल जी के द्वितीय पुत्र है । सीकर जिला म किसी सिनेमा हाल मे मैनेजर के पद पर है । आपकी धर्मपत्नी सविता देवी है। आपके 3 पुत्र एव एक पुत्री है ।
श्री इन्द्रकुमार जी आप श्री कन्हैयालाल जी के तृतीय पुत्र है । आप अभी अविवाहित है । पदमावती स्कूल के सामने, घी वालो के रास्ते मे रहते हैं ।
श्री आसानंद जी वगवाणी श्री आसानन्द जी के पिता के नाम का पता नहीं चल सका । आप राजाराम जी के भाई थे । आपके कोई सन्तान नही थी । आपने श्री सिद्दूराम जी के पुत्र श्री खेमचन्द जी को गोद लिया ।
श्री खेमचद जी आपका जन्म मुलतान में हुआ था । आपके पिता श्री सिद्दूराम जी थे । आप मुलतान मे जनरल मर्चेन्ट्स का व्यापार करते थे। आपकी धर्मपत्नी यशोदा देवी (जेसी वाई) है । आपके श्रीपाल मात्र एक पुत्र थे । पाकिस्तान से जयपुर आ जाने के पश्चात् थोडे दिन के बाद ही आपका स्वर्गवास हो गया ।
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श्री खेमचन्द जी के पुत्र श्रीपाल जी
आपका जन्म 25 मार्च 1939 को मुलतान मे श्री खेमचन्द जी के घर हुआ । बी ए तक शिक्षा प्राप्त कर श्रीपाल जी अपने पैरो पर खडे हुए और कटला पुरोहित जी मे होजरी का व्यवसाय करने लगे । जिसमे इन्होने अच्छी प्रगति की । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला जैन है और आपके पुत्र आसीस एव दो पुत्रिया है । सस्थान खेमचन्द श्रीपाल कटला पुरोहित जी जयपुर । निवास 7 झ 8 जवाहर नगर, जयपुर । दूरभाष न० 852482
श्री भोलाराम जी श्री थारगामल जी वगवाणी के पुत्र थे । भोलाराम जी के रिखबदास जी, आसानन्द व रंगूलाल तीन पुत्र जिनमे श्री रिखवदास के श्री मनोहर लाल, प्रेमचन्द व पवनकुमार तीन पुत्र हैं, पूरे परिवार के लोग दिल्ली रहते हैं । इसलिए उन सबका परिचय दिल्ली खण्ड मे दिया गया है । केवल मनोहरलाल जी जयपुर में रहते है, उनके परिवार का परिचय निम्न प्रकार है ।
श्री मनोहरलाल जी वगवाणी
आप श्री रिखवदास जी के पुत्र एव भोलाराम जी वगवाणी के पौत्र है । आपके पिता श्री रिखवदास जी का युवावस्था में ही देहावसान हो गया और आप मुलतान मे अपने फर्म भोलाराम रिखवदास जैन मे कार्यरत रहे । आपको प्रारम्भ से ही स्वाध्यान में अति रुचि थी तथा घण्टो स्वाध्याय एव सामायिक आदि किया करते थे । पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जनपुर आकर बस गये और उसी तरह स्वाध्याय आदि का क्रम वनाये रखा | आपकी धर्मपत्नी श्रीमती जाशीवाई का कुछ समय पश्चात् बीमारी के कारण स्वर्गवास हो गया | आपके जिवेन्द्रकुमार एक पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
श्री मनोहरलाल जी के पुत्र श्री जिवेंद्र कुमार जी
जिवेन्द्रकुमार का जन्म मुलतान मे श्री मनोहरलाल जी के घर हुआ था । शिक्षा के वाद आप अपने पिता के साथ जयपुर मे कार्य करने लगे । आप स्वभाव से शान्तिप्रिय व्यक्ति है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मन्जु है । आपके अमित व उदित दो पुत्र एव एक पुत्री है । व्यवसाय देहलो जनरल स्टोर, कटला पुरोहित जी, जयपुर | निवास 573 आदर्शनगर, जयपुर मे है ।
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@ मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में
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श्री नेभराज जी के भी पिताजी के नाम का पता नहीं चल सका। आपके श्री उत्तम चन्द जी एक मात्र पुत्र थे, जो मलतान मे जनरल मर्चेन्ट्स का कार्य करते थे, उनके भी एक मात्र पुत्र श्री राजकुमार जी है। पाकिस्तान बनने के बाद आप जयपुर आकर बस गये और जनरल मर्चेट्स का व्यवसार करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम लवगी वार्ड था। थोडे दिन पश्चात् आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी फर्म का नाम नेभराज उत्तमचन्द था।
श्री राजकुमार जी श्री राजकुमार जी का जन्म श्री उत्तमचन्द जी के घर मुलतान मे हुआ था। स्कूली शिक्षा के बाद आप अपने पिता के साथ व्यवसाय करने लगे। छोटी अवस्था मे ही आपके माता पिता का देहावसान हो गया। पहले कुछ समय आपने फिरोजाबाद (यू पी ) मे जाकर व्यवसाय क्यिा। फिर जयपुर आकर व्यवसाय करने लगे हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम कान्ता देवी था जिनका भी युवावस्था मे स्वर्गवास हो गया । आपके राकेश व अनिल दो पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
श्री राजकुमार जी के पत्र श्री राकेशकुमार जी श्री राकेशकुमार भी पिता के साथ व्यवसाय करते है। उनकी धर्मपत्नी का नाम मन्जु है । आप अपने पिता के साथ 439 आदर्गनगर मे रहते हैं। अनिल अभी अविवाहित है एव शिक्षा प्राप्त कर रहे है ।
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. . ननगांगी परिवार ,
श्री ताराचन्द जी श्री आतूराम जी ननगाणी के पुत्र थे। ताराचन्द जी के श्री किशोरीलाल व श्री श्यामलाल दो पुत्र है । आतूराम तथा उनके पूर्ण परिवार का परिचय दिल्ली खण्ड मे दिया गया है । किशोरीलाल भी दिल्ली रहते है। इनका परिचय भी दिल्ली खण्ड मे है।
_ श्री श्यामलाल जी
श्रीमान श्यामलाल जी ननगाणो सुपुत्र श्री ताराचन्द जी ननगाणी के घर मुलतान मे हुआ था । आपका मुलतान मे जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय था । पाकिस्तान छोडने के पश्चात् कुछ समय तक दिल्ली रहे, उसके बाद जयपुर आकर बस गये, यहा पर भी आपने जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय किया। प्रौढावस्था मे ही गभीर रोग के कारण निधन हो गया। आपकी धर्मपत्नी रतन देवी है तथा आपके तीन पुत्र सुरेन्द्र कुमार, विजनकुमार व राजेश जैन एव तीन पुत्रिया है।
NAUTOMYA
श्री श्यामलाल जी के पुत्र
श्री सुरेन्द्र कुमार जी श्री सुरेन्द्रकुमार का जन्म दिनाक 29 अगस्त 1946 डेरागाजीखान मे हुआ। आपने एम ए, एल एल वी , एम बी उच्च शिक्षा प्राप्त कर टेक्सटाइल मिल में कार्यरत हए । आपकी धर्मपत्नी का नाम मधुवाला जैन है तथा सोनल पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
La.
श्री विजय कुमार जी श्री विजयकुमार का जन्म 1954 मे श्री श्यामलाल जी के घर जयपुर मे हुआ था । आप शिक्षा प्राप्तकर निजी व्यवसाय मे लग गये। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती विजयश्री है। राजेश अभी अविवाहित है एव शिक्षा प्राप्त कर रहे है। आप सब का निवास स्थान मकान न० 590, गली नम्बर 3, आदर्शनगर मे है ।
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दुग्गड़ परिवार
श्री छोगमल जी दुगड
श्री
मल जी दुग्गड श्री नारायणदास दुग्गड के पुत्र है । आप दयालदास दुग्गड के पी है | आपका जन्म मुलतान मे हुआ था।
पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप जयपुर आकर रहने लगे । आपके सुमति प्रकाश, महेन्द्र कुमार, पवन कुमार, शानु कुमार व खुशहाल चन्द पाच पुत्र एव एक पुत्री है, जो अपने अपने व्यवसाय को बहुत कुगलता से कर रहे हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम आगीवाई है ।
संस्थान - पिकी जनरल स्टोर, पवन जनरल स्टोर व मुलतान जैन सेल्स एजेन्सी । निवास - तीसरा चौराहा, हल्दियो का रास्ता, जयपुर ।
श्री छोगमल जी के पुत्र श्री सुमति प्रकाश जी
श्री सुमति प्रकाश जी श्री छोगमल जी दुग्गड के सुपुत्र है । आपका जन्म आज से 51 वर्ष पूर्व मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय मे में लग गये । पाकिस्तान बनने के वाद आप जयपुर मुलतान जैन जनरल स्टोर, 124 बापू बाजार मे जनरल मर्चेन्ट्स का व्यवसाय करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कान्ता देवी है, आपके सुनल जैन मात्र एक पुत्र है नगर, जयपुर है 1
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निवास - 437 आदर्श
श्री महेन्द्र कुमार जी
श्री छोगमल के द्वितीय पुत्र है । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे । कठिन परिश्रम से आपने अपने व्यवसाय मे बहुत उन्नति की । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला देवी है, आपके राजकुमार एक पुत्र है ।
निवास - घोपियो का चौक, रामगज बाजार, जवपुर ।
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श्री पवन कुमार जी
श्री छोगमल के तीसरे पुत्र है, व्यवसाय करते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम शिमला जैन है, आपके दो पुत्र है । निवास – घोषियों का चौक, रामगज बाजार, जयपुर ।
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श्री शानु कुमार जी श्री छोगमल जी के चतुर्थ पुत्र है, आप भी व्यवसाय करते है । आपक धर्मपत्नी मरोज देवी है, आपके मोनू व रवि दा पुत्र ह ।
निवास-गोधो का चौक, हल्दियो का रास्ता, जयपुर ।
श्री खुशहाल चन्द जी
श्री छोगमल जी के पचम पुत्र है, आप भो व्यवसाय करते है । आपको धर्मपत्नी श्रीमती स्नेहलता है, आपके तीन लडक्यिा है ।
निवास-घोपियो का चौक, रामगज बाजार, जयपुर ।
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० मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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तातेड़ परिवार श्री जिनवर लालजी
श्री डालचन्द जी के श्री जिनवर लाल मोती लाल दो पुत्र थे जो पहले नवगावो अलवर स्टेट मे रहते थे उनकी बहिन मुलतान मे व्याही गयी थी । इस कारण दोनो भाई भी मलतान मे आकर रहने लगे। जिनवर लाल की शादी डेरागाजीखान मे गिरधारी लाल की पुत्री के साथ हो गई और कुछ समय पश्चात् आप दोनो भाई हरुनावाद ( भावलपुर स्टेट वर्तमान पाकिस्तान) मे जाकर व्यवसाय करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद वे जयपुर आ गये और श्री जिनवर लाल ने अपना व्यवसाय शशी जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी में प्रारम्भ कर दिया जिसमे इन्होने अच्छी उन्नति की । आपकी धर्म पत्नी का नाम श्रीमती देवी है और आपके सुरेशकुमार, तेजकुमार, अरुणकुमार तीन पुत्र है जो आपके साथ कार्यरत है । और चार पुत्रिया है ।
संस्थान - रागि जनरल स्टोर । निवास-रामगज वाजार |
श्री सुरेशकुम रजी
आप श्री जिनवरलालजी के प्रथम पुत्र है । आपकी धर्म पत्नी इन्द्रा जैन है । आपके मात्र दो पुत्र है । आप अपने पिता के साथ रहते है एव व्यवसाय करते हैं । 000
श्री मोती लाल जी
पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप भी जयपुर आ गये और अपना अलग व्यवसाय करने लगे । आपका विवाह भगवती देवी सुपुत्री गिरधारीलाल पुत्र श्री त्रिलोकीचन्द के साथ हो गया । क्षय रोग हो जाने के कारण प्रोावस्था मे आपका स्वर्गवास हो गया । आपके सृजय एक मात्र पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
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अन्य परिवार श्री बशीलालजी
वशीलालजी मुल्खराज जी के पुत्र पहले जम्मू (कश्मीर) मे रहते थे । आपका विवाह श्रीमती प्रकाश देवी (सुपुत्री श्री माधोदासजी) के साथ हुआ । थोडे समय पश्चात् आप जयपुर आकर रहने लगे । आपका रत्नो का व्यवसाय है । अधिकतर विदेशो को नियान करते है इसलिए आप अधिक समय विदेशो मे रहते है । आपके पुत्र अनिल एव सुनील है ।
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श्री राजीव जैन
आपके पिता का नाम चिमन लाल है । आप जम्मू में रहते थे । बाल्यावस्था से ही आपकी माता का देहावसान हो गया और आप अपने नानी श्री माधोदास जी के पान रहने लगे । शिक्षा के पश्चात् आप भी अपने माँसा श्री वशीलालजी के साथ रत्नो ना व्यवसाय करते है 1
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श्री मोहन लाल जी बाफना किशनगढ़ श्री मोहन लाल जी बाफना सुपत्र श्री गनपति सिह पौत्र श्री मनोहरमल वाफना का जन्म किशनगढ (अजमेर) मे हुआ। शिक्षा प्राप्त कर आप भारतीय पश्चिमी रेलवे मे एकाउन्टेन्ट के पद पर कार्यरत है। आपका विवाह श्रीमती शीलादेवी पत्री श्री प्रेमचन्दजी सिघवी के साथ मुलतान में हुआ था। आपके नरेश कुमार एव राकेश कुमार दो पुत्र है।
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श्री नथमलजी सोगानी श्री नथमलजी सोगानी सुपुत्र सेठ श्री कालूरामजी का जन्म 6 मार्च सन् 1919 को जयपुर में हुआ। आपने वी ए तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भारत सरकार । महालेखापाल राजस्थान ) के कार्यालय सीनियर आडिटर के पद पर कार्य त रहे।
आपका विवाह श्रीमती फूल देवी सुत्री श्री खेमचन्दजी जैन के साथ सन् 1948 मे हुआ था । आपके एक पुत्र अशोक कुमार एव चार पुत्रिया है ।
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निवास स्थान-बी० 5, ध्रुव मार्ग, तिलक नगर, जयपुर ।
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वगवाणी परिवार मुलतान मे वगवाणी परिवार मुख्यतया श्री भोलाराम सुपुत्र श्री थारयामलजी, श्री राजारामजी, एव नेभराज के थे जिनके पूर्वजो एव उनके आपसी सम्बन्ध का पता नहीं चल सका । जिनके परिवारो वा अलग-अलग परिचय दिया गया है।
__ श्री भोलारामजी का परिवार । भोलारामजी का परिचय पूर्व विशिष्ट व्यक्ति परिचय मे दिया जा चुका है। आपके तीन पुत्र थे, श्री रिषभदास, आशानन्द एव रगूलाल ।
(1) रिषभदास का 33 वर्ष की युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया । उनके श्री मनोहरलाल, प्रेमचन्द एव पवनकुमार तीन पुत्र हैं । जिनके परिवार का आगे परिचय दिया जा रहा है ।
(2) श्री आसानन्दजी
श्री आसानन्द जी का जन्म 27 जनवरी 1898 ई० मे मुलतान मे हुआ था । आप स्कूली शिक्षा प्राप्त कर 13 वर्ष की उम्र मे ही पिता के साथ व्यवसाय मे लग गये। थोडे समय पश्चात् पिता का व्यवसाय करने का त्याग कर देने एव वडे भाई श्री रिख वदासजी के स्वर्गवास हो जाने के कारण व्यवसाय का बडा बोझ आप पर आ जाने से आपने उसे बडी कुशलता से इतना बढाया कि पजाव मे आपकी फर्म का नाम गिना जाने लगा।
जहा आप व्यापार मे कुशल थे। वहा धार्मिक कार्यो मे भी रुचि आपकी कम न थी। 1930 मे मुलतान मन्दिर के जीर्णोद्धार मे आपका बहुत वडा योगदान रहा है। 1937 मे मुलतान दि. जैन समाज के अध्यक्ष मनोनीत
हुए जो आजन्म रहे । आपकी तीर्थ यात्राओ मे भी अच्छी रुचि थी। आप कई बार यात्रा करने भी गये और एक बार वहत वर्ड तीर्थ यात्रा पर जा रहे सघ के सघपति भी बने ।
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सन् 1947 मे पाकिस्तान बनने के पश्चात् मुलतान से मूर्तिया एत्र शास्त्र भण्डार आदि को भारत ले जाने मे आपने बहुत योग दिया और अपने परिवार सहित दिल्ली आ गये, जहा आपने अपनी होजरी का व्यवसाय प्रारम्भ किया और उसमे अच्छी
उन्नति की ।
आदर्शनगर जयपुर मे वन रहे श्री दि० जैन मन्दिर निर्माण कमेटी के 1956 ई मे सचालक मनोनीत हुए और उस कार्य को आपने बहुत योग्यता से पूरा किया और उसके लिए जयपुर खुद गये और वास्तुकला विशेषज्ञ पल्टु सिंह जैन को साथ लेकर मन्दिर की बहुत बडी छत आदि का कार्य सम्पन्न कराया। 27 मई, 1962 को दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर की वेदी प्रतिष्ठा के समय आपका बहुत योगदान रहा ।
आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मुकन्दीवार्ड था जिनका वीमारी के कारण असमय मे ही स्वर्गवास हो गया । आपके श्री वीर कुमार एक पुत्र तथा एक पुत्री है | आप धर्म ध्यान करते-करते इस नश्वर शरीर को छोड स्वर्ग सिधार गये ।
सस्थान - भोलाराम रिखवदास जैन, होजरी मर्चेन्ट, सदर वाजार, दिल्ली ।
श्री वीर कुमार
श्री वीर कुमार जी का जन्म 8 फरवरी 1937 को श्री आसानन्द के घर मुलतान में हुआ था । मुलतान एव दिल्ली मे स्कूली शिक्षा के बाद हिन्दु कालेज दिल्ली में 1959 मे स्नातक की शिक्षा प्राप्त की तथा 1966 में आपने अपनी फर्म भोलाराम रिखवदास का कार्य भार सम्भाल लिया । उसमें बहुत उन्नति की । नवम्बर 1972 मे आप मुलतान जैन परिषद के अध्यक्ष मनोनीत हुए । आप भी शान्तिप्रिय, गम्भीर एव मिलनसार व्यक्ति है । आपकी धर्मपत्नी का नाम कुसुम जैन है | आपके पकज, प्रणय एव प्रशान्त तीन पुत्र हैं ।
सस्थान - भोलाराम रिखवदास जैन, सदर बाजार, दिल्ली | निवास - ए - 2 / 1 सफदरगज डवलपमेन्ट एरिया, नई दिल्ली - 16
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फोन 515313
फोन 665353
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(3) श्री रंगलाल जी
सामाजिक कार्यकर्ता एव अध्यात्मप्रेमी का जन्म सन् 1901 मे 8 जनवरी को श्री भोलाराम जी के घर मलतान मे हुआ था । बाल्यावस्था मे ही आपको व्यवसाय का भार सौप कर आपके पिता व्यवसाय से विरक्त होकर उदासीन वृत्ति से अध्ययन आदि मे लग गये | आपने अपने दो भाइयो के नाथ कठिन परिश्रम से अपने व्यवसाय मे बहुत उन्नति की और आपकी फर्म का नाम मारे पंजाब में प्रसिद्ध हो गया। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप दिल्ली आये और अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया और थोडे ही समय मे नदर बाजार के प्रमुख व्यापारियो मे गिने जाने लगे और समाज के वडे धनिक परिवारो से आपकी गिनती होने लगी । प्रारम्भ से ही आपको धर्म मे अच्छी रुचि थी ।
आत्म कल्याण हेतु वस्तु स्वरूप समझने के लिए अब स्वाध्याय मे आपकी विशेष रुचि है। इन हेतु आप कई वार सोनगढ भी गये और वहा पर अपने रहने के लिए मकान भी बनवाया ताकि समय समय पर वहा जाकर सत् पुन्ष श्री कानजी स्वामी आदि विद्वानो के प्रवचनो का लाभ ले सके । आपने आदर्शनगर मन्दिर मे भी महावीर कीर्ति स्तम्भ बनाने हेतु 25,000 /- रु प्रदान किये है |
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आपके मन मे परोपकार की भी तीव्र भावना है जिससे आप दिल्ली आदि में विधवाओ, अनाथ एव दुखियों को हमेशा गुप्तदान देते रहे है ।
इसी भावना से ओत-प्रोत होकर आपने जयपुर मे मुलतान दि० जैन समाज के कुछ महानुभावो की प्रेरणा से महावीर जीव कल्याण समिति की स्थापना कराई और उसमे परोपकार हेतु सर्वप्रथम बहुत बडा आर्थिक योगदान दिया ।
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इसी प्रकार मसूरी, देहरादून मे भी आपने एक आयुर्वेदिक धर्मार्थ औषधालय की स्थापना कराई । इसी प्रकार अनेकानेक परोपकार के कार्यो मे भी अच्छी रुचि रही है।
__ आपका विवाह श्रीमती कस्तूरी देवी के साथ हुआ था जिनकी युवावस्था में ही मृत्यु हो गई । उनमें से श्री जयकुमार जी एकमात्र पुत्र है । उसके बाद आपकी दूसरी शादी हुई। दूसरी पत्नी का नाम मोहनी देवी है जिनसे श्री अशोक कुमार, सुरेश कुमार, रमेश कुमार एव अनिल कुमार चार पुत्र एव चार पुत्रिया है ।
सस्थान -भोलाराम रगूलाल जैन, सदर बाजार, दिल्ली
निवास -4710 डिप्टोगज, दिल्ली। दूरभाष 512621
श्री रगूलालजी के पुत्र
1 जयकुमार श्री जयकुमार जी का जन्म सन् 1925 को श्री रगूलालजो वगवाणी के घर मुलतान मे हुआ था। मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त कर आप अपने भोलाराम रिखवदास जैन सस्थान मे पिता के साथ कार्य करने लगे । पाकिस्तान बनने के पश्चात् दिल्ली आकर अपने पिताजी के साथ कार्य करते रहे और उसमे बहुत प्रगति की।
थोडे समय पूर्व आपने सयुक्त परिवार से अलग कागज का व्यवसाय कर लिया। आपकी धर्मपत्नी का नाम निर्मला कुमारी है । आपके राजीव कुमार जैन एक पुत्र एव पाँच , पुत्रिया है।
सम्थान -1 जैसन इन्टरनेशनल, 18 मेलाराम मार्केट
चावडी वाजार, दिल्ली-6, फोन 517274 2 भोलाराम रगूलाल जैन, 4714 डिप्टीगज, दिल्ली 3. भोलाराम रगलाल जैन, 7 मिर्ची गली,
वम्बई-2, फोन 324947 निवास --C-4/134 सफदर गज, डवलपमेन्ट, न्यू दिल्ली
फोन न० 668834
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जयकुमार के पुत्र राजीव जैन
आपका जन्म 27 वर्ष पूर्व जयकुमार जी वगवाणी के घर दिल्ली मे हुआ । एम बी ए की उच्च शिक्षा प्राप्त कर आप अपने पिता के साथ व्यवसाय करने लगे और उसमे बहुत उन्नति की । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सगीता रानी जैन है । आप अपने पिता श्री जयकुमार जी के साथ सभी फर्मों का कुशलता से सचालन कर रहे है तथा पिता के साथ रहते है ।
श्री रंगूलालजी के पुत्र
श्री अशोककुमार जैन
आपका जन्म श्री रंगूलाल जी के घर मुलतान मे 38 वर्ष पूर्व हुआ था । उच्च शिक्षा प्राप्त कर आप अपने पिता के साथ संस्थान श्री भोलाराम रगूलाल जैन मे कार्य करने लगे । बवसाय का अच्छा अनुभव है । आपकी धर्मपत्नी का नाम आशा जैन है तथा आपके तीन पुत्रियां है । आपके पिता श्री रगुलाल जी ने अब अपने व्यवसाय से निवृत्ति ले ली है । अब आप उस संस्थान के एक मात्र स्वामी के रूप मे कार्य कर रहे है । संस्थान - भोलाराम रगृलाल जैन, सदर बाजार, दिल्ली निवास -- 4710 डिप्टीगज, दिल्ली-6
श्री सुरेश कुमार जैन
उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई वर्ष पहले अमेरिका चले गये वहाँ आपरेशन रिसर्च मे डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। आजकल वहा विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर है । अमेरिका मे पढने के साथ अनुसंधान मे सलग्न है और बडी-बडी विज्ञान की सभाओ मे भाग लेते है । योगासन व संगीत मे रुचि है |
निवास स्थान - 1442 साऊथ मेन स्ट्रीट, केसीन, विस्कोन्सिन 53403, अमेरिका ।
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__ श्री राकेश कुमार जैन भारतवर्ष मे दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित मे एम ए की उपाधि प्राप्त की । फिर अमेरिका से आपरेशन रिसर्च मे एम ए की उपाधि ली। कई वर्षों में केनेडा मे सफल वैज्ञानिक के रूप में विश्व की सबसे महान अनुसंधान कम्पनी मे मैनेजर है और महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है । पत्नी अलका आपिटेक्ट है और केनेडा मे पढ रही है । निवास स्थान है 625 नए मिल्टन, अपार्टमेन्ट 1002, मॉन्टरियल (पो क्य् ) एच 2 एक्स । डब्ल्यू 7 केनेडा ।
श्री अनिल कुमार जैन आई आई टी कानपुर से इन्जीयिरिग को उपाधि प्राप्त की और अमेरिका अवनिता के लिये चले गये। मियाटल मे वाशिंगटन विश्वविद्यालय से एम एस मी मेरनिगल उन्जीनियरिंग की उपाधि ली और आजकल, मेन फ्रामिरहो केलिफोनिया बडी
म्पनी में काम कर रहे है । अभी अविवाहित हैं । निवास स्थान हे 3081 नार्थ मेन म्दीट, - पाटमेन्ट 10, वारना क्रोक, केलिफोनिया, अमेरिका ।
___ श्री रिपक्षात जी बी पिनाम जी के विषय मे ऊपर हम बता आये है । उनके तीन पुत्र एव की । श्री मनोहर लाल का वर्णन खण्ड/जयपुर में दिया गया है । दमने पुन श्री प्रेमनन्द और नीमरे श्री पवन कुमार है।
श्री प्रेमचन्द जी वगवाणी
आपका जन्म श्री रिख बदास जी सुपत्र ने श्री नोलाराम जो बगवाणी के घर मृलतान में
हुआ पा । आप अच्छे व्यवसायी एव धर्मनिष्ठ दाक्ति । गान स्वभावी अपने व्यबनाय मे निपण मलनान की प्रसिद्ध व्यवमायक फर्म मोलगम खिददाम जैन मुलतान के भागीदार ये। दिल्ली में भी आप इमी फर्म के काफी दिनो ना मार कर अन्छा नाम माया और फिर उसे अलग होकर आना निजी होजरी का व्यवमाय प्रारम्भ किया जिसमें अच्छी उन्नति की।
आपरा आर्गनगर दिगम्बर जैन मन्दिर ने यानी सहयोग रहा है। आपकी धर्मपत्नी का नाम भवानी देवी है। आपके . पुन नही, मात्र पत्रिका | आपकी नन्द जापती
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.77 रन ममाराम में पानी
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पत्नी भी धर्मात्मा एव परोपकारी है । आपने उपकार की दृष्टि से महावीर क्ल्याण केन्द्र जयपुर एव महावीर जीव कल्याण समिति जयपुर मे अच्छा आर्थिक सहयोग दिया है ।
संस्थान - प्रेम ट्रेडिंग कम्पनी, गली प्रेस वाली, सदर बाजार, दिल्ली
निवास - 5337 सदर थाना रोड, दिल्ली-6
श्री पवन कुमार जी
आपका जन्म 52 वर्ष पूर्व श्री रिखवदास जी के घर मुलतान मे हुआ था । शिक्षा प्राप्त कर मुलतान मे ही आप अपने सयुक्त परिवार के साथ व्यवसाय मे लग गये । पाकिस्तान बनने के बाद आप भी दिल्ली आकर रहने लगे और अपने परिवार के साथ फर्म भोलाराम रिखवदास मे कार्यरत रहे । उसके बाद आपने भी अपना अलग व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया । आपने दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर के मन्दिर मे अच्छा आर्थिक योग दिया | स्वभाव से आप शान्तिप्रिय हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम शकुन्तला देवी है । आपके शशि कुमार एक पुत्र एव एक पुत्रो है ।
श्री शशि कुमार ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर आपके साथ व्यवसाय में लग गये। वे 31 वर्ष के है । उनकी धर्मपत्नी का नाम रेखा जैन है । इनके ऋषि जैन एक मात्र पुत्र है जो पिताजी के साथ रहते है ।
संस्थान - रिखवदास एण्ड सस, सदर बाजार, दिल्ली । फोन - 511120 निवास - 2105, देशबन्धु गुप्ता रोड, व रोल बाग, नई दिल्ली । फोन-569293
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सिंगवी परिवार
श्री बिहारी लाल जी सिगवी परिवार श्री सान रामजी भी श्री लुणिन्दा मल के वशज है । सानू राम जी के पुत्र श्री लिहारी लाल जी का जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था। बाद मे आप मुलतान मे आकर रहने लगे, आप धर्मज्ञ एव सिद्धान्त के पक्के थे। आपने धर्म के विषय मे परिस्थितियो से भी सम्झौता नही किया, पूर्व परम्परा के अनुसार अढिग रहे और दूसरो को शुद्ध आम्नाय पर चलने के लिये प्रेरित करते रहे ।
आप सानूराम विहारी लाल के नाम से काले मी मुलतान मे व्यवसाय करते थे । आपके एक मात्र पुत्र श्री घनश्याम दास थे। जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
घनश्यामदास जी सिंगवी आपका जन्म मूलतान नगर मे बिहारी लाल जी के घर हुआ था। बचपन आपका साधारण स्थिति मे व्यतीत हुआ पर जीवन के प्रति आपके उत्साह एव उमग ने आपको आगे वढने के लिये प्रेरणा प्रदान की। युवावस्था मे प्रथम चरण मे आपने लुधियाना मे होजरी निर्माण के सम्बन्ध मे प्रयोगात्मक अनुभव प्राप्त किया और मुलतान । आकर एक इन्द्रा होजरी मिल के नाम से उद्योग स्थापित किया जो कुछ ही समय मे पजाव मे अच्छे व जाने माने प्रसिद्ध उद्योगो की गिनती मे गिना जाने लगा। बुद्धि की तीक्ष्णता एव दूरदर्शिता, से आपने व्यवसाय तथा समाज मे अच्छी सफलता एव प्रतिष्ठा प्राप्त की। यही कारण था कि समाज का साधारण व्यक्ति भी आपसे परामर्श लेता था। भारत विभाजन के बाद आप कुछ समय के लिये जयपुर मे आकर उपरोक्त उद्योग लगाया। आदर्श नगर मे मन्दिर निर्माण की बात आयी तो आपने श्री कवरभान जी आदि के साथ योग देकर इसके निर्माण मे काफी रुचि ली । उस समय समाज के कोषाध्यक्ष के नाते आपने मन्दिर निर्माण के लिये धन एकत्रित करने मे भी पूर्ण योगदान दिया । मन्दिर निर्माण के समय श्री आसानन्दजी वगवाणी को जव मन्दिर निर्माण समिति का अध्यक्ष
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वनाया गया तब दिली समाज की अभिर चि भी इस मन्दिर निर्माण के कार्य हेतु उत्पन्न करने मे आपका प्रमुख हाथ रहा । आपने सन् 1958 मे अपना व्यवसाय दिल्ली मे स्थानान्तर कर लेने पर भी मन्दिर निर्माण मे आपकी रुचि कम नही हुई और आप उसी तरह से पूर्ण सहयोग देकर जीवनपर्यन्त अपने सहयोगियो के साथ कार्य करते रहे। आपका स्वर्गवास असामयिक हो गया । आपके पीछे आपका परिवार भी धार्मिकता से जीवनयापन कर रहा है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती विशनी देवी ने महावीर कीर्तिस्तम्भ निर्माण मे अच्छा आर्थिक योगदान दिया है । आपके सुपुत्र इन्द्रकुमार एव वीर कुमार भी आपकी तरह उत्साही एव बुद्धिजीवी है । आपके द्वारा स्थापित उद्योगो मे बरावर उन्नति कर रहे है । आपकी दो पुत्रिया भी अच्छी सुशिक्षित एव प्रतिभाशाली है।
श्री घनश्यामदासजी के पुत्र
(1) श्री इन्द्र कुमार श्री इन्द्र कुमार घनश्याम दास जी के बड़े पुत्र है । आप अपने पिता की तरह बुद्धिमान एव होनहार युवक है । आपने इन्द्रा होजरी इन्डस्ट्रीज को उन्नति के शिखर पर पहुचाया और उसमे अच्छा धनोपार्जन कर समाज के सम्पन्न परिवारो मे गिने जाने लगे। धर्म मे भी आपकी अच्छी अभिरुचि है। आपने महावीर कीर्तिस्तम्भ बनवाने एवं उसकी प्रतिष्ठा कराने मे समाज को अच्छा आर्थिक योगदान दिया है । आपकी धर्मपत्नी का नाम रेखा जैन है। आपके एक पुत्र एव दो पुत्रिया हैं । व्यवसाय-इन्द्रा होजरी इन्डस्ट्रीज वस्ती हरफूल सिह, सदर थाना रोड, दिल्ली ।
(2) श्री वीर कुमार श्री वीर कुमार, श्री घनश्याम दास जी के द्वितीय पुत्र है । आप भी अपने भाई की तरह सहनशील, बुद्धिजीवी एन उत्साही युवक है । आदर्शनगर मन्दिर मे आपकी अच्छी अभिरुचि रही है। महावीर कीर्तिस्तम्भ के निर्माण एव प्रतिष्ठा मे आपने प्रमुख भाग लिया और अच्छा आर्थिक सहयोग दिलाया । आपकी धर्मपत्नी का नाम-मन्जु जैन है ।आपके एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
व्यवसाय-वी के इन्द्रा होजरी इन्डस्ट्रीज,
विरला मिल के सामने, सब्जी मण्डी घण्टाघर, दिल्ली। फोन 566254
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श्री छोगमलजी सिंगवी का परिवार
श्री छोगमलजी भी श्री लुणिन्दामलजी के वशजो मे से हैं। लुणिन्दामलजी के पुत्र ऋषिराम और उनके पुत्र घनश्यामदास तथा उनके छोगमल हुए । इन सबका परिचय विशिष्ट व्यक्ति परिचय परिशिष्ट मे आ चूका है ।
छोगमल के श्री गुमानीचन्द एव बुद्धसेन दो पुत्र हैं। जिनका परिचय हम यहा दे रहे हैं।
श्री गुमानीचंदजी सिंगवी
श्री गुमानीचन्दजी का जन्म 70 वर्ष पूर्व श्री छोगमलजी पुन श्री घनश्यामदास सिगवी के घर मुलतान मे हुआ था । प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात् आप पिता के साथ व्यवसाय मे कार्यरत हो गये। आप भी अपने पर्वजो। की तरह धर्मात्मा एव समाजसेवी व्यक्ति हैं। पाकिस्तान बनने पर पहले आप जोधपुर मे आकर रहे । कुछ समय बाद आप दिल्ली मे आ गये और यहा व्यवसाय शुरू कर दिया। जयपुर-स्थित आदर्शनगर दिगम्बर जैन मन्दिर के निर्माण कार्य मे आपकी अत्यधिक अभिरुचि रही। इस मन्दिर के निर्माणार्थ जयपुर समाज के सदस्य जबजब दिल्ली आये आपने स्वय अच्छा आर्थिक सहयोग दिया और मुलतान दिगम्बर जैन समाज दिल्ली से हर प्रकार का आर्थिक सहयोग दिलाने मे हमेशा तत्पर रहे तथा आदर्शनगर मन्दिर मे शिखरो की कमी को पूरा करने के लिये तीन शिखरो मे से एक शिखर बनवाने की स्वीकृति देकर मन्दिर की बहुत बडी कमी को पूरा करने का वचन दिया है।
आप दिल्ली मुलतान दिगम्बर जैन समाज के एकाधिकार प्राण हैं। जो आप द्वारा निर्देशित की जाने वाली सर्व गतिविधियो को समाज पूर्ण रूप से स्वीकार करता है। इसके अतिरिक्त आप सामाजिक गतिविधियो मे भी पूर्ण सहयोग देते रहते हैं। आपका शिक्षा के क्षेत्र मे सस्थाओ को सहयोग करने मे विशेष हाथ रहता है । आप दीन दुखियो व असहायो की भी यथाशक्ति सहायता करने मे कृत सकल्प रहते है। समाज के किसी भी
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व्यक्ति को विपत्तिग्रस्त जानकर तुरन्त उसके निराकरणार्थ वहा पहुच कर दुख दूर करने मे तत्पर रहते है । आपने अपने व्यवसाय मे भी बहुत उन्नति की है और अपने परिवार मे सगठन एव व्यवस्था बनाये रखने में आप पूर्ण कुशल है । इसका यह परिणाम है कि आपकी छत्रछाया मे आपका परिवार सगठित रूप मे रह रहा है और अच्छी उन्नति कर रहा है । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती शकलीबाई है और आपके देवकुमार, मनमोहन, चम्पतराय, उग्रसेन एवं विनोदकुमार पाच पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
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निवास - सिंगवी सदन 35 साउथ बस्ती हरफूलसिंह, सदर थाना रोड, दिल्ली - 6 व्यवसाय - डी० के० जैन सूत गोला फैक्ट्री,
21 - एन बस्ती हरफूल सिंह, सदर थाना रोड, दिल्ली - 6 ग्राम - लीसोना, कार्यालय का फोन न० - 529548,511934 घर का फोन न० - 529548513989
श्री गुमानीचन्दजी के पुत्र देवकुमार
आप गुमानोचन्दजी के बडे पुत्र है । आपका पिताजी के साथ व्यवसाय के निर्माण मे बहुत योगदान रहा है । आप कर्मठ कार्यकर्त्ता हैं और बुद्धिजीवी हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती प्रकाश देवी है और आपके अनिलकुमार और सजय दो पुत्र हैं । अनिलकुमार की पत्नी का नाम रीनाकुमारी है । आपका व्यवसाय एव निवास अपने सयुक्त परिवार के साथ है ।
मनमोहन
आप श्री गुमानीचन्दजी के द्वितीय पुत्र हैं । आपकी धार्मिक कार्यों मे अच्छी अभिरुचि है । दिल्ली मे समय-समय पर आप धार्मिक गतिविधियो का आयोजन करने एव उनका प्रबन्ध करने मे तत्पर रहते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम ब्रीजेश है । आपके एक पुत्री है । आप भी अपने पिता एवं सयुक्त परिवार के साथ कार्यरत हैं और अपने सयुक्त परिवार के साथ रहते है ।
चम्पतकुमार
आप श्री गुमानीचन्दजी के तृतीय पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम कुसुम जैन है । आपके मात्र तीन पुत्रिया हैं ।
व्यवसाय — जनरल मर्चेन्ट्स परिवार के साथ ।
निवास - पिता के साथ ।
उग्रसेन
आप श्री गुमानीचन्दजी के चौथे पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुधा जैन है । आपके अमित कुमार एक पुत्र तथा एक पुत्री है व्यवसाय एव निवास - पिता के साथ |
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विनोदकुमार आप श्री गुमानीचन्दजी के पाचवे पुत्र हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम कमला जैन है।
व्यवसाय एव निवास-पिता के साथ ।
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श्री बुद्धसेनजी सिंगवी-दिल्ली बुद्धसेन जी का जन्म छोगमल सिंगवी के घर मुलतान मे हुआ था। स्कूली शिक्षा के बाद आप पैतृक व्यवसाय मे कार्यरत हो गये। पाकिस्तान बनने के बाद आप पहले कुछ समय तक जोधपुर मे रहे । उसके बाद आप दिल्ली आ गये और दिल्ली में अपना सूत गोले का व्यवसाय कर रहे हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम मोहिनी है । आपके संदीप जैन एक पुत्र एव तीन पुत्रिया हैं। ___ व्यवसाय-बस्ती हरफूलसिंह सदर थाना रोड, देहली
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श्री दीवानचन्द सिंगवी
श्री दीवानचन्द जी सिंगवी
आपका जन्म गेलाराम सुपुत्र श्री जस्सुराम सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। आप कर्मठ कार्यकर्ता एवं अच्छे व्यवसायी व्यक्ति थे। पाकिस्तान वनने पर जहा लोग अपने परिवार को सुरक्षित भारत पहुचाने के लिए व्याकुल थे वहाँ आप समाज एव धर्मायतन जिन प्रतिमाये एव शास्त्र भण्डार को भी सुरक्षित अपने साथ भारत लाने के लिए प्रयत्नशील थे । आपके सहयोग का ही यह परिणाम है कि हमारी बहुमूल्य निधि सुरक्षित भारत पहुंच सकी है। कुछ दिन जयपुर मे व्यवसाय करने के पश्चात् आपने दिल्ली जाकर अपना व्यवसाय प्रारम्भ किया। व्यावसायिक उन्नति के साथ साथ आपने धार्मिक
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
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डरागाजा
कार्यकर्ता के रूप में भी मुलतान समाज दिल्ली को नेतृत्व प्रदान कर धर्म के कार्यों को चालू रखा और देहली मे अच्छी ख्याति प्राप्त की।
डेरागाजीखान से लाई गई मूर्तिया दिल्ली के ऐतिहासिक लाल मन्दिर में विराजमान होने से समाज के धर्म साधन का मुख्य केन्द्र लाल मन्दिर ही रहा । लाल मन्दिर मे मुलतान समाज की ओर से कार्यकर्ता होने के नाते वहा की गतिविधियो मे भी अच्छे प्रतिष्ठित कार्यकर्ता रहे तथा समाज की गतिविधियो के संचालन मे आपका बहुत बड़ा योगदान रहा । आपके असामयिक निधन हो जाने के कारण समाज मे आपका अभाव आज भी बहुत खटकता है तथा उसकी क्षतिपूर्ति आज भी असम्भव है ।
आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती प्रेमवती है जो आपकी तरह सहनशील व धर्मात्मा है जो आपके पश्चात् अपना काफी समय स्वाध्याय आदि मे व्यतीत करती है। आपके एक पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
श्री हंस कुमार --श्री हसकुमार भी सहनशील शान्तिप्रिय एव अपने व्यवसाय में कर्मठ व्यक्ति हैं । जिन्होने अपने पिताजी के पश्चात् अपने व्यवसाय का वडी योग्यता ने नभाग ही नही अपितु उसमे काफी उन्नति भी की । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुगमा जैन है तथा आपके पुनीत कुमार, मुनीश, समीर, तीन पुत्र है
निवास-महेश घी के ऊपर खारी बावली दिल्ली मे है। व्यवसाय-हसा मैन्युफैक्चरिग कार्पोरेशन 40-गाधी गली प.तेहपुरी दिली -6
.मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री शिवनाथ मल जी कोठारी परिवार
श्री शिवनाथ मल जी कोठारी
श्री शिवनाथ मल जी कोठारी मूलत जोधपुर वासी है । आपकी बहिन मुलतान मे श्री छोगमल जी सिंगवी को व्याही गई थी। आप भी मुलतान जा कर बहनोई के पास रहने लगे। वाल्यकाल से ही आपके आदर्श एव विनय का वृक्ष आगे पल्लवित एव पुष्पित हो समाज को सुरक्षित करने लगा। आप एक होनहार व्यक्ति के रूप मे समाज के सामने उभर कर आये । अपने बहनोई की फर्म घनश्याम दास छोगमल मे कर्मठ कार्यकर्ता बनकर व्यवसाय को सम्भालने लगे एव उसमे काफी प्रगति की । श्री छोगमलजी का डेरागाजीखान मे आकस्मिक निधन
हो जाने पर उनके व्यवसाय की आप पर काफी जिम्मेदारी आ गई जिसे आपने बडी लगन एव निपुणता से निभाया।
A.
।
आपकी मात्र एक पुत्री श्रीमती शीलादेवी है जिनका विवाह आपने श्री विशम्भर दास के साथ किया और सूत का व्यवसाय कराकर उन्हे अपने पास रख लिया ।
पाकिस्तान बनने के बाद जोधपुर आगये। कुछ समय वहा रहने के पश्चात् आपने दिल्ली आकर व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया और वहा आपने इतनी उन्नति की कि दिल्ली मे सूत आदि के अच्छे व्यापारी माने जाने लगे और आज आपकी ,समाज मे बहुत अच्छे सम्पन्न घरानो मे गिनती है । आपके कोई पुत्र न होने के कारण आपने अपनी लडकी के पुत्र श्री बाबूलाल को गोद लेकर अपना लडका बना लिया और सभी एक सम्मिलित परिवार के रूप मे रह रहे हैं । आप अपनी धर्म पत्नी श्रीमती गणेशीबाई को पटना के पास उपचार हेतु किसी स्थान पर ले गये थे जहा उनका आकस्मिक निधन हो गया ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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आपकी प्रारम्भ से ही धर्म मे काफी रुचि है । आप आदर्शनगर दि०जैन मन्दिर के निर्माणार्थ समय समय पर सहायता देते रहे है तथा अपनी पत्नी श्रीमती गणेशीबाई की स्मृति मे नीचे विशाल प्रवचन हाल मे फर्श लगवा दिया है जिससे कि मन्दिर की एक बड़ी कमी पूरी हुई है ।
व्यवसाय-मगलदास विश्वम्भरदास, वस्ती हरफूल सिंह, सदर थाना रोड, दिल्ली । निवास - वस्ती हरफूल सिंह, सदर थाना रोड, दिल्ली ।
श्री बाबूलाल जी
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बाबूलाल जी का जन्म विश्वम्भरलाल के घर हुआ था । आप अपने नाना श्री शिवनाथ मलजी के गोद आकर पुत्र बन गये । शिक्षा प्राप्ति के बाद अपने पिता एव परिवार के साथ व्यवसाय मे कार्यरत हो गये । आपकी धर्म पत्नी का नाम सुधा जैन है और आपके दो पुत्र है ।
व्यवसाय एव निवास- अपने पिता के साथ बस्ती हरफूल सिंह मे है ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के बालोक में
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गोलेछा परिवार
गोछा परिवार मुलतान डेरागाजीखान मे प्राचीन परिवारो मे से है । परशराम गोलेछा के श्री देवीदास, ढालूराम, रेमलदास, मूलचन्द एव गेलाराम 5 पुल थे 1
गया है ।
1 देवीदासजी शम्भुराम, दासूराम, सुखानन्द तीन पुत्र थे ।
2 ढालूराम कोई सन्तान नही थी अत उन्होने उत्तमचन्द सिगवी को गोद लिया 3 रेमलदास होतूराम, भूराराम दो थे ।
पुत्र
4 मूलचन्द भजनदास एव लालचन्द ।
5 गेलाराम चेतनदास एव धनेन्द्रकुमार
।
इन सबके परिवारो का परिचय जयपुर एव दिल्ली खण्ड मे अलग अलग दिया
(1) शम्भुरामजी
शम्भुरामजी देवीदासजी के प्रथम पुत्र थे । उनकी युवावस्था मे मृत्यु हो गई थी । उनकी मात्र कस्तूरी देवी एक पुत्रो थी जो डेरागाजीखान मे गिरधारी लाल पुत्र श्री करम चन्द सिंगवी को व्याही गई थी । आप समाज के कर्मठ कार्यकर्त्ता थे । धार्मिक कार्यों मे आपकी बहुत रुचि थी ।
(2) दासूरामजी
दासूरामजी के परिवार का विवरण जयपुर खण्ड मे दिया गया है ।
(3) श्री सुखानन्दजी
सुखानन्दजी श्री देवीदासजी के तीसरे पुत्र हैं । आप बहुत बुद्धिमान एव प्रतिभाशाली व्यक्ति थे । आपका जन्म एक समृद्ध परिवार मे हुआ था । आप अपने पिता एव वड़े भाई शम्भुराम की तरह समाज प्रमुख व्यक्तियो मे से थे । समाज की प्रत्येक गतिविधियो मे आपका प्रमुख हाथ रहता था । आप संस्कृत के अच्छे विद्वान थे । मुलतान की गौशाला आदि जैसी कई सस्थाओं के क्रियाशील सदस्य एव पदाधिकारी थे । आप धर्मज्ञ भी थे। शहर से बाहर बगीचे के नाम से एक फार्म बना रखा था जहा पर आपने भवन एव चिकित्सालय भी बनवाया था जिसमे समय-समय पर व्रती आदि भी आकर रहते थे । उस चैत्यालय के लिये
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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आपने सम्मेद शिखर मे हुई पच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर भगवान महावीर की एक मनोज्ञ प्रतिमा प्रतिष्ठित कराकर मुलतान लाये थे । सन् 1935 मे समाज ने सात दिवसीय वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव बडे स्तर पर बगीचे मे कराया था। उस समय फिरोजपुर आदि से विशाल रथ मगवाया था। उस उत्सव को सफल बनाने मे आप अथवा आपके परिवार ने प्रमुख योगदान दिया ।
आपने अपने रग के व्यवसाय मे बहुत उन्नति की । पजाव मे रग के प्रमुख व्यापारियो मे माने जाने लगे और उसमे आपने बहुत द्रव्य उपार्जन भी किया। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती ईश्वरी वाई था। आपके श्रीनिवास, शकरलाल, प्रेमचन्द, पदमकुमार, राजकुमार एव सुभाष कुमार छ पुत्र है।
मुलतान मे आपकी फर्म का नाम-सुखानन्द शंकरलाल जैन था ।
सन् 1945 को मुलतान मे हृदयगति रुक जाने से आपका असामयिक निधन हो गया।
श्री सुखानन्दजी के पुत्र श्री निवासजी गोलेछा-वम्बई आपका जन्म 15 अगस्त 1918, श्री सुखानन्दजी के घर मुलतान मे हुआ था। आप प्रारम्भ से ही कर्मठ कार्यकर्त्ता, अच्छे व्यवसायी और धर्मप्रेमी महानुभाव है । पाकिस्तान बनने के बाद कुछ समय तक दिल्ली रहे, बाद मे बम्बई जाकर व्यवसाय करने लगे । जयपुर से इतनी दूर रहते हुए भी दिगम्बर जैन मन्दिर आदर्शनगर जयपुर के साथ आपका विशेष प्रेम है । आपके उत्साह का ही यह परिणाम है कि आपके परिवार ने मन्दिर मे मुख्य वेदी का निर्माण कराया है और समय-समय पर आप यथा शक्ति तन, मन, धन का सहयोग देकर मन्दिर के निर्माण कार्य को पूरा करने मे सक्रिय भाग
लिया है। मन्दिर मे खटकने वाले शिखरो के अभाव की कमी को पूरा करने के लिये आपने बड़े उत्साह एव उल्लास के साथ तीन शिखरो मे से एक शिखर बनवाने की स्वीकृति देकर मन्दिर की बहुत बडी कमी को पूरा करने मे सहयोग दिया है।
आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती कमला रानी है जो धर्मज्ञा एव विदुपी है । आपके सतीशकुमार, विपिनकुमार दो पुत्र एव तीन पुत्रिया है। व्यवसाय-श्रीनिवास एण्ड कम्पनी एव मयूर ड्राइकेम कार्पोरेशन,
47 दरिया स्थान स्ट्रीट वडगादी, बम्बई-3
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• मुनसान दिशाबर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री शंकरलाल गोलेछा
श्री शकरलालजी का जन्म 56 वर्ष पूर्व श्री सुखानन्दजी गोलेछा के घर मुलतान मे हुआ था । आप प्रारम्भ से ही ओजस्वी, कर्मठ कार्यकर्त्ता नवयुवक थे । स्कूली शिक्षा के पश्चात् उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु लाहौर गये और पजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की । युवावस्था से ही आपको धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियो मे अच्छी रुचि थी । मुलतान मे सर्वप्रथम दि० जैन परिषद् की ब्राच की स्थापना की । पाकिस्तान बनने के वाद आप दिल्ली आ गये, वहा पर आपने राजनीति मे भी अच्छा भाग लिया । फलस्वरूप स्वतन्त्र भारत मे दिल्ली विधान सभा के प्रथम चुनाव मे आप विधायक
निर्वाचित हुए। उसी तरह धार्मिक गतिविधियो मे भी आप अच्छा भाग लेते रहे हैं । आदर्शनगर मन्दिर निर्माण मे आप और आपके परिवार ने बहुत रुचि लेकर मन्दिर जी मे वेदी वनवाई और वेदी प्रतिष्ठा कराने मे प्रमुख सहयोग दिया । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुन्दरी देवी है । आपके नरेन्द्र एव अनिल दो पुत्र एव एक पुत्री है। निवास 16/2 डाक्टर लेन गोल मार्केट, नई दिल्ली ।
व्यवसायः - नरेन्द्र अनिल एण्ड कम्पनी, 2 / 184 तिलक बाजार,
खारी बावली, दिल्ली ।
1
श्री शकरलालजी के पुत्र
1. नरेन्द्र कुमार जैन
आयु 24 वर्ष, धर्मपत्नी का नाम प्रीति जैन है । आपका अभी कुछ दिन पूर्व काला परिवार मे जयपुर विवाह हुआ है ।
2. अनिल जैन
आयु 21 वर्ष, अविवाहित, अपने पिता के साथ रहते है, व्यवसाय एव शिक्षा के अध्ययन में रत हैं ।
श्री सुखानन्दजी के पुत्र 3. श्री प्रेमकुमारजी
सुखानन्दजी के तीसरे पुत्र है । आप शांति प्रिय एव समाजसेवी व्यक्ति हैं । दिल्ली समाज की सभी धार्मिक एव समाजिक गतिविधियों मे प्रमुख भाग लेते हैं । आपकी धर्मपत्नी का नाम उर्मिला देवी है । आपके राजीव, विक्की, आसीस तीन पुत्र एव एक पुत्री है ।
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व्यवसाय - सुखानन्द शकरलाल जैन, तिलक बाजार, खारी बावली, दिल्ली । निवास - कोठी न० 1 पचकुइयां रोड, नई दिल्ली ।
● मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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4. राजकुमार धर्मपत्नी का नाम मन्जु जैन पुत्र राहुल एक पुत्र एव एक पुत्री है । व्यवसाय -सुखानन्द शकरलाल फर्म मे अपने भाइयो के साथ । निवास -अपने भाइयो के साथ ।
5. पदम कुमार धर्मपत्नी का नाम चन्दा देवी और दो पुत्रिया है। व्यवसाय -निवास एव व्यवसाय अपने परिवार के साथ ।
6. सुभाष कुमार धर्मपत्नी का नाम मन्जू जैन आपके दो पुत्र है। व्यवसाय -निवास एव व्यवसाय परिवार के साथ ।
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श्री भंजनदास गोलेछा श्री भजनदासजी गोलेछा सुपुत्र श्री मूलचन्दजी गोलेछा का जन्म मुलतान नगर मे हुआ था। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् आप अपने निजि व्यवसाय मे लग गये । पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप दिल्ली आकर बस गये तथा व्यापार करने लगे । आपका स्वर्गवास दिल्ली मे हुआ । ___आपकी धमपत्नी का नाम श्रीमती छिनको वाई है। श्री उत्तमचन्दजी, आडूरामजी, तोलारामजी,
रोशनलालजी चार पुत्र एव आपकी तीन पुत्रिया है। श्री उत्तमचन्दजी गोलेछा श्री उत्तमचन्दजी गोलेछा सुपुत्र श्री भजनदासजी का जन्म मुलतान मे सन् 1914 मे हुआ। स्कूली शिक्षा के पश्चात् आप अपने निजी व्यवसाय मे लग गये । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली मे बस गये पहले जैन स्कीन्स फैक्ट्री में अपने भाइयो के साथ पार्टनर थे अव मोजा बनाने की फैक्ट्री लगा ली है। आपके सुभाप चन्द्र एव सुरेन्द्र कुमार दो पुत्र तथा दो पुत्रियां है तथा आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती मैना देवी है।
आपका पता निम्न प्रकार है - निवास--5656 बस्ती हरफलसिंह सदर थाना रोड, दिल्ली-6 सस्थान-सुरेन्द्र ट्रडिंग कम्पनी, 5503 बस्ती हरफूलसिंह देहली । दूरभाष-516472
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री सुभाष चन्द्र
आप अपने पिता के साथ व्यवसाय करते हैं एव इनकी धर्मपत्नी का नाम स्वर्णलता है और एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
श्री आडूरामजी गोलेछा- दिल्ली
श्री आडूरामजी का जन्म 60 वर्ष पूर्व श्री भजनदासजी के घर मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप मुलतान मे व्यवसाय करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आकर बस गये । सूत गोले का व्यवसाय करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम दयावन्ती है । आपके अशोककुमार एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
आपके संस्थान का नाम जैन स्कीन्स फैक्ट्री प्रताप मार्केट दिल्ली --6
निवास - 322 खजूर रोड़, करोल बाग, नई दिल्ली । दूरभाष - 513610
अशोककुमार
."
अशोककुमार की पत्नी का नाम रीना देवी जैन है । शोकित जैन पुत्र एव एक पुत्री है । उनके संस्थान का नाम स्टेचको एन्टरप्राइज बैक स्ट्रीट करोल बाग है । निवास - अपने पिता के साथ ।।
श्री तोलारामजी गोलेछा- दिल्ली ।
श्री तोलारामजी का जन्म 56 वर्ष पूर्व भननदासजी के घर मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे । आपको लोगो की सेवा करने मे रुचि थो । पाकिस्तान बनते समय हिन्दूमुस्लिम झगडो मे आपने हिन्दू -- दगल --- के माध्यम से लोगो की बहुत सेवा की ।
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"मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के मालोक मे
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पाकिस्तान बनने के पश्चात आप दिल्ली आकर रहने लगे और अपने भाइयो के साथ व्यवसाय प्रारम्भ किया और उसमे बहुत उन्नति की ।
जहां आपने व्यवसाय मे उन्नति की, वहां परोपकार एव सेवा की भावना अधिकाधिक जागृत हुई और मुलतान सेवा समिति के माध्र म से आपने अथक प्रयास करके जनता की असीम सेवाएं की और मुलतान सेवा समिति के उच्च पदाधिकारी के रूप में अपने सहयोगियों की मदद से मुलतान सेवा समिति के नाम को दिल्ली में चार चांद लगवा दिए ।
मुलतान समाज की सेवा मे भी हर समय आप अयणी रहते है । मुलतान दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर के निर्माण मे आपने समय-समय पर आर्थिक योगदान तो किया ही है। बाकी मुलतान दि० जैन समाज दिल्ली से भी आपने आर्थिक सहायता दिलाने मे भी कोई कसर नही छोडी ।
आपकी धर्मपत्नी का नाम लेखमती है । ओमप्रकाश एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं ।
निवास-7037 गली टकी वाली पहाड़ी धीरज, दिल्ली । फोन न० 527014 व्यवसाय-नेशनल सिल्क इन्डस्ट्रीज 11 अमृत मार्केट, सदर बाजार, दिरली । फोन-513610
श्री तोलाराम जी के पुत्र श्री ओमप्रकाश जी गोलेछा
ओमप्रकाश का जन्म 29 वर्ष पूर्व श्री तोलाराम जी के घर दिल्ली मे हआ था। B A तक शिक्षा प्राप्त कर आपने अपनी प्लास्टिक इन्डस्ट्रीज लगा ली और उसमे अच्छा कार्य करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती सन्तोष जैन है एव आपको मात्र एक पुत्री है।
निवास- आप अपने पिता के साथ पहाडी धीरज पर रहते है ।
व्यवसाय-प्लास्टिक इन्डस्ट्रीज 52, रामा मार्ग नजफगढ, दिल्ली । फोन न० 588209
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के पालोक मे
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श्री रोशनलाल जी गोलेछा श्री रोशनलाल जी भी भजनदास जी के चतुर्थ पुत्र है । आपका जन्म 52 वर्ष पूर्व मुलतान मे हुआ था। पाकिस्तान बनने के बाद आपभी परिवार के साथ दिल्ली में रहने लगे और उन्ही के साथ ही व्यवसाय करने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती आशा रानी गोलेछा है आपके प्रवीण व प्रदीप दो पुत्र एव एक पुत्री है।
व्यवसाय-जैन स्कीनस फैक्ट्री, प्रताप मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली मे आप पार्टनर है ।
निवास-5337, सदर थाना रोड दिल्ली-7 है। फोन घर-518391 दुकान-513610
श्री लालचन्द जी के पुत्र
श्री मदन गोपाल गोलेछा श्री मदन गोपाल गोलेछा पुत्र श्री लालचन्द पौत्र श्री मूलचन्द गोलेछा आयु 50 वर्ष धर्मपत्नी का नाम श्रीमती पुष्पा जैन है, सुनीलकुमार एक पुत्र एव तीन पुत्रिया है । आप अच्छे उत्साही कार्यकर्ता है । आपने अपने परो पर खडे होकर ही अपने जीवन का निर्माण किया है।
निवास-1358 कृष्णा गली, बुलियान, दिल्ली-110006
व्यवसाय-अधीक्षक, जीवन बीमा निगम, नई दिल्ली। फोन-42669
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श्री भूराराम जी गोलेछा स्व० श्री भूराराम जी का जन्म श्री रेमलदास के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। आप वहा जनरल मर्चेन्ट्स का व्यवमाय करते थे। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप दिल्ली आ गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम चेतोबाई है, आपके दो पुत्र आतम प्रकाश एव जगदीश कुमार एव चार पुत्रिया है।
निवास-5476 वस्ती हरफलसिंह, सदर थाना गेड, दिल्ली-6
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री आतमप्रकाश जी सुपुत्र श्री भूराराम जी
आपका जन्म 60 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हआ था। स्कूली शिक्षा के बाद जनरल मर्चेन्ट्स का कार्य करने लगे। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप दिल्ली आकर रहने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुमित्रा देवी है, आपके अशोक व अनिल दो पुत्र एव दो पुत्रियां है।
निवास-5476 बस्ती हरफूलसिंह, दिल्ली ।
व्यवसाय-गोलेछा ट्रेडर्स 5655, गाधी मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली-6
श्री आतमप्रकाश जी के पुत्र
श्री अशोककुमार जी अशोक कुमार आयु 33 वर्ष, आतमप्रकाश जी के पुत्र है। आपकी धर्मपत्नी का नाम कान्ता कुमारी है, राजा व मुन्ना दो पुत्र एव एक पुत्री है । ईस्ट पार्क रोड करोल बाग, नई दिल्ली मे रहते है और जनरल मर्चेन्ट का व्यवसाय करते है ।
श्री अनिलकुमार जी अनिल कुमार की उम्र 25 वर्ष है। आतम प्रकाश जी के पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी का नाम इन्दु जैन है । पिता के साथ रहते है और जनरल मर्चेन्ट्स का कार्य करते है।
श्री भरालाल जी के पुत्र
श्री जगदीशकुमार जी जगदीश कुमार श्री भूरालाल जी के दूसरे पुत्र है । आपकी उम्र 33 वर्ष है । आपकी धर्मपत्नी का नाम कुसुम जैन है, आपके बब्बू एक पुत्र एव दो पुत्रिया है।
निवास-सीताराम वाजार, दिल्ली मे रहते है और किसी कार्यालय मे सेवारत है।
श्री गेलाराम जी गोलेछा का परिवार
श्री चेतनदास जी श्री चेतनदास का जन्म गेलाराम जी गोलेछा के घर डेरागाजीखान मे हुमा था । प्लेग महामारी के कारण आपकी युवावस्था मे मृत्यु हो गई। आपकी धर्मपत्नी का नाम चेतनीवाई था। उनकी भी युवावस्था में मृत्यु हो गई। सुमति देवी आपकी एक मात्र पुत्री थी जो शुभचन्द्र सुपुत्र श्री गेलाराम सिंगवी को व्याही गई।
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श्री धनेन्द्र कुमार जी गोलेछा श्री धनेन्द्र कुमार का जन्म 36 वर्प पूर्व श्री गेलाराम जी गोलेछा के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आपकी पत्नी का नाम विमला देवी जैन है, प्रवीणकुमार एक मात्र पुत्र है । आप दिल्ली राज्य डी० डी० टी० मे सेवारत है।
श्री आसानन्द जी सिंगवी के परिवार का परिचय श्री आसानन्द जी सिंगवी के पूर्वजो का पता नहीं चल सका । आपके जमनीदास एव ठाकरदास दो पुत्र हैं । आप डेरागाजीखान मे रहते थे ।
(1) ठाकरदास जी के परिवार का विवरण जयपुर खण्ड मे दिया जा चुका है।
(2) श्री जमनीदास जी के परिवार का विवरण निम्न प्रकार है । आपके श्री उत्तमचन्द, श्री नेभराज, सोहनलाल एव तीरथदास चार पुत्र थे ।
श्री उत्तमचन्दजी गोलेछा श्री उत्तमचन्द जी का जन्म जमनीदास जी सिंगवी के घर डेरागाजीखान मे हुआ था। श्री ढालराम जी गोलेछा का असमय मे ही निधन हो गया । उनकी धर्मपत्नी अर्थात् उत्तमचन्द जी की बुआ ने उन्हे गोद ले लिया ।
___आपने डेरागाजीखान मे सर्वप्रथम उच्च शिक्षा प्राप्त की और आपकी फिरोजपुर (पजाव) बैक मे उच्च पद पर 1930 मे नियुक्ति हो गई । आप अपने
छोटे भाइयो को साथ लेकर फिरोजपुर में रहने लगे । आपका डेरागाजीखान मे ही श्रीमती कस्तूरी देवी (सुपुत्र श्री प्रेमचन्द जी) के साथ विवाह हो गया। युवावस्था मे ही कुछ बीमारी के कारण सन् 1935 ई० मे निधन हो गया। आपके कोई सन्तान नही है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कस्तुरी देवी अव लक्ष्मीदेवी जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पहाडी धीरज, दिल्ली मे अध्यापिका के कार्य में रत है। जिनका निवास-4974, सरदार बिल्डिग, चौक अहाता, किदारा बाडा, हिन्दुरावा देहली मे है।
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श्री नेभराज जी सिंगवी आपका जन्म डेरागाजीखान मे श्री जमनीदास के घर हुआ था । आप उच्च गिक्षा प्राप्त कर फिरोजपुर (पजाव भारत) मे आ गये। आप पहले से ही बुद्धिजीवी एव धार्मिक विचारधारा के व्यक्ति है । फिरोजपुर मे रहते हुए आपने धर्म कार्य एव मन्दिर जी मे पूजन प्रक्षाल आदि नित्य क्रियाये करते हुए अपने जीवन को सफल बनाते रहे । आपने आदर्गनगर मन्दिर मे जर्मनसिल्वर धातु की एक डेढ फुट की मनोज प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाकर विराजमान की। आपकी धर्म के प्रति काफी अभिरुचि है और धर्म के कार्यो मे सदा ही तत्पर रहते है । आदर्शनगर
मन्दिर मे समय-समय पर आप सहयोग देते ही रहे है। आपने महावीर कीति स्तम्भ के चारो ओर जमीन पर फर्श लगवा कर मन्दिर की शोभा बढाने मे योगदान दिया है। आप दिल्ली रहते है और फिरोजपुर मे रेलवे से सम्बन्धित आपका व्यवसाय है। आपकी धर्मपत्नी का नाम खेमीबाई हे । वीरेन्द्र कुमार एक मात्र पुत्र एव दो पुत्रिया है। वीरेन्द्र कुमार को आपने उच्च शिक्षा हेतु प० जर्मनी भेजा, जहा वह काफी दिनो रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर वापस दिल्ली आये ।
श्री वीरेन्द्रकुमार सुपुत्र श्री नेभराज जी
श्री वीरेन्द्रकुमार का जन्म फिरोजपुर मे 45 वर्ष पूर्व श्री नेभराज जी के घर हुआ था । B A तक शिक्षा प्राप्त कर उच्च शिक्षा हेतु आप प० जर्मनी गये, काफी वर्षों तक वहा अध्ययन किया। उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर आप भारत आ गये और एक विदेशी सस्थान मे वहुत ऊ चे पद पर कार्य कर रहे है। आपकी धर्मपत्नी का नाम आभा जैन था जिनकी विदेश मे ही हृदयगति रुक जाने से असामयिक निधन हो गया। जिससे आपको दूसरी शादी करनी पडी । उनका नाम रेखा जैन है तथा आपके हर्ष एक पुत्र एव दो पुत्रिया हैं ।
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श्री सोहनलाल जी सिंगवी
श्री सोहनलाल जी सिंगवी का जन्म जमनीदास के घर डेरागाजीखान मे हुआ था । आपने भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर पहले फिरोजपुर मे कार्यरत हुए और वाद मे दिल्ली आकर एक संस्थान मे कार्य करने लगे । आप स्वभाव से वडे सन्तोषी एव शान्त प्रिय व्यक्ति थे । पाकिस्तान बनने के समय मुलतान से समाज को लाने के लिए हवाई जहाजो का प्रबन्ध करने मे आपने समाज के महानुभावो को बहुत सहयोग दिया । आपकी धर्मपत्नी का नाम सरला देवी ( पूरण देवी ) है । आपके अखिल जैन एक पुत्र एव दो पुत्रिया है । कुछ समय पूर्व हृदयगति रुक जाने से आपका असमय मे ही निधन हो गया ।
श्री अखिल जैन
अखिल जैन की आयु 28 वर्ष है । उच्च शिक्षा प्राप्त कर आप पोद्दार सिल्क एव सेन्थेटिक लिमिटेड, कटरा नील, चादनी चौक, दिल्ली मे उच्च पद पर कार्यरत है । आपकी धर्मपत्नी का नाम नीरू जैन है । निवास- कोठी न० 1, पच कुइया रोड, नई दिल्ली ।
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श्री तोरथदास जी सिंगवी
श्री तीरथदास जमनीदास के चौथे पुत्र है । आपका जन्म भी 60 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम सरला देवी जैन है । आपके आनन्द कुमार, किशन कुमार एव सुभाषकुमार तीन पुत्र एव एक पुत्री है |
निवास - ए - 48 जगपुरा वी, नई दिल्ली - 14 व्यवसाय - स्टेशनरी के व्यापारी, 5392/23 गुप्ता मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली -6 मे है ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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श्री आनन्दकुमार सिंगवी
आनन्द कुमार सिगवी श्री तीरथदास के पुत्र है । आपका जन्म दिल्ली मे हुआ था । उच्च शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् आप पहिले नोकरी करते थे, ट्रक दुर्घटना मे आपको चोट आ जाने के कारण इस कार्य से मुक्त होना
पडा ।
इनकी धर्मपत्नी का नाम कचन देवी है । आपके विनीत पुत्र एव एक पुत्री है । अब आप कोटा मे अपना व्यवसाय करने लगे है ।
श्री गेलाराम जी पुत्र श्री जस्सुरामजी के छ' पुत्रो मे से पाच पुत्रो के परिवारो का परिचय जयपुर एवं दिल्ली परिशिष्ट मे पहले दिया जा चुका है । श्री शुभचन्दजी के परिवार का विवरण इस प्रकार है ।
श्री शुभचन्द्र जी सिंगवी
गेलाराम जी सिंगवी के तीसरे पुत्र है । आपका जन्म 59 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप व्यवसाय मे लग गये । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आकर रहे और वही व्यवसाय करते रहे है । आपकी धर्मपत्नी का नाम सुमित्रा देवी है और आपके मदनगोपाल एक मात्र पुत्र है ।
श्री मदनगोपाल जी
मदनगोपाल की उम्र 38 वर्ष है । आप भी पिता के साथ रहते हैं, व्यवसाय करते है, श्रीमती कमलेश उनकी धर्मपत्नी है, अमित जैन एक पुत्र एव एक पुत्री है । निवास - 5 / 22 ए, जगपुरा - बी, नई दिल्ली - 14
श्री खेमचन्द जी के पूर्वज एवं परिवार
श्री खेमचन्द जी सिंगवी भी श्री लुणिन्दामल के वशज हैं । लुणिन्दामल के पुत्र लीलाराम, उनके पुत्र जेठानन्द, उनके पुत्र मोतीराम और मोतीराम के पुत्र श्री रामचन्द्र एव के श्री खेमचन्द जी है । पुत्र
रामचन्द्र
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मोतीराम एव बाकी उनके परिवार का परिचय जयपुर खण्ड मे दिया जा चुका है । खेमचन्द जी के परिवार का परिचय इस प्रकार है ।
खेमचन्द का जन्म डेरागाजीखान मे हुआ था । आपके श्री वोधराज, श्री सन्त कुमार, श्री अजीत कुमार एव श्री नेमीचन्द चार पुत्र है । पाकिस्तान बनने के बाद आप सत्र दिल्ली आकर रहने लगे ।
श्री बोधराज जी
श्री वोधराज जी - आयु 62 वर्ष, धर्मपत्नी श्रीमती सुमित्रा देवी | श्री अशोक कुमार एव अनिल कुमार दो पुत्र एव दो पुत्रिया हैं ।
निवास - 2 / 62 जगपुरा, मस्जिद रोड, नई दिल्ली-14
व्यवसाय - व्यापार ।
श्री सन्त कुमार जी
श्री खेमचन्द जी के दूसरे पुत्र हैं । आपका जन्म 46 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हुआ था | पाकिस्तान बनने के बाद दिल्ली मे आकर बस गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम उर्मिला देवी है । आपके राजेश व मयक दो पुत्र एव दो पुत्रिया हैं ।
निवास - 4080, गली मन्दिर वाली, पहाडी धीरज, दिल्ली ।
व्यवसाय - सिंगवी मेटल स्टोर, 2186, वगीची रघुनाथ, सदर बाजार दिल्ली - 6 श्री नेमीचन्द जी
नेमीचन्द का जन्म 43 वर्ष पूर्व खेमचन्द के घर डेरागाजीखान मे हुआ था । पाकिस्तान बनने के बाद आप देहली आ गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम कमला जैन है, सदीप जैन एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास -- 3794, नई वस्ती, सदर बाजार, दिल्ली ।
व्यवसाय -- बिट्टू वक्स फैक्ट्री, 4763 अहाता किदारा वाडा, हिन्दुराव, दिल्ली
श्री अजीत कुमारजी
अजीत कुमार का जन्म 41 वर्ष पूर्व डेरागाजीखान मे हुआ था । आप पाकिस्तान बनने के बाद दिल्ली आकर रहने लगे । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती शान्ति देवी है, आपके एक पुत्र है ।
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निवास - 3794, नई वस्ती, दिल्ली ।
व्यवसाय - बिट्टू वक्स फैक्ट्री 4763, अहाता किदारा वाडा, हिन्दुराव, दिल्ली
मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में
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कनौडिया परिवार
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Suma
मगलदासजी कनौडिया मुलतान मे सम्पन्न एव धर्मात्मा व्यक्ति थे। उन्होने मुलतान मन्दिर मे कई चीजे बनवाई तथा भेट की । उनके श्री सुन्दरदासजी एक पुत्र थे-वे भी सज्जन एव उत्साही व्यक्ति थे। व्यवसाय आदि के लिए ब्रह्मा आदि मुलतान से दूर दराज क्षेत्र में गये थे ।
। उनके श्री ज्ञानचन्द एव श्री विशम्भरलाल दो पुत्र ह जिनका परिचय निम्न प्रकार है।
श्री ज्ञानचदजी कनौडिया ज्ञानचन्द जी कनौडिया सुन्दरदास जी के पुत्र है। आपको इस समय 62 वर्ष की आयु है । मुलतान से आने के पश्चात् आप दिल्ली मे हीजरी का व्यवसाय कर रहे है । आपकी धर्मपत्नी का नाम फूल देवी है, मुदर्शन, जिनेन्द्र, रमेश और सतीश चार पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास--1128 बरतन मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली ।
व्यवसाय-ज्ञानचन्द नवीनकुमार जैन, 5015 नारायण मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली-6 ।
श्री ज्ञानचन्द जी के पुत्र सुदर्शन कुमार सुदर्शनकुमार आपके प्रथम पुत्र है जिनकी आयु 40 वर्प है । धर्मपत्नी उर्मिला देवी जैन, रूपेन्द्र, नवीन और नीरज तीन पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास-346 गली छापाखाना, सदर बाजार, दिल्ली । व्यवसाय-पिता के साथ करते है ।
श्री जैनेन्द्र कुमार जी जैनेन्द्र कुमार ज्ञानचन्द जी के द्वितीय पुत्र हैं। आयु 37 वर्ष है । आपकी धर्मपत्नी का नाम कुसुमलता जैन है, अतुल और विमल दो पुत्र है । सरकारी कार्यालय मे कार्यरत है।
निवास-1014 पान मण्डी, सदर बाजार, दिल्ली ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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श्री रमेश कुमार जी जैन रमेश कुमार जैन ज्ञानचन्द जी के तीसरे पुत्र है, उम्र 35 वर्ष, धर्मपत्नी को __ नाम सरोज कुमारी जैन है, रीतू व शिल्पी दो पुत्रिया है । निवास बडे भाई के साथ __ तथा स्टेट ट्रेडिंग कारपोरेशन आफ इन्डिया, न्यू दिल्ली मे सेवारत है ।
श्री सतीश कुमार जी श्री सतीशकुमार जी आयु 32 वर्ष, ज्ञानचन्द जी के पुत्र, पत्नी का नाम मन्जु ___ कुमारी, अमित एक पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
निवास-1128 बरतन मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली । व्यवसाय-अपने पिता के साथ ।
श्री विश्वम्भर लालजी कनौडिया विश्वम्भर लाल जी का जन्म 58 वर्ष पूर्व सुन्दरलाल जी कनौडिया के घर मुलतान में हुआ था । आप वहा सूत गोले का व्यवसाय करते थे। आपका विवाह श्रीमती शीला देवी (पुत्री श्री शिवनाथमल जी कोठियारी) के साथ मुलतान मे हुआ था। शिवनाथमल जी के मात्र एक पुत्री होने के कारण आप उनके साथ रहने लगे और व्यवसाय करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये और उन्ही के साथ 35-एन वस्ती हरफूलसिंह, सदर थाना रोड, दिल्ली-6 मे रहते है । आपके श्री बाबूलाल एव श्री मोहनलाल दो पुत्र हैं । शिवनाथमल जी के कोई पुन न होने के कारण बाबूलाल जी को उन्होने गोद ले लिया ।
____ व्यवसाय-मगलदास विश्वम्भरदास जैन, वस्ती हरफूलसिह, सदर थाना रोड, दिल्ली मे आप भागीदार हैं ।
श्री मोहनलाल जी मोहनलाल विश्वम्भरदास जी के पुत्र हैं। आयु 34 वर्ष, निवास पिता के साथ । धर्मपत्नी का नाम चन्दा देवी, दीपक जैन एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
व्यवसाय-विकास थेड कारपोरेशन, बस्ती हरफूलसिंह, दिल्ली-6 निवास-पिताजी के साथ ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के पासोक मे
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वगवाणी परिवार
श्री किशनचन्द के श्री महावीर प्रसाद एव ज्ञानचन्द जी दो पुत्र है । जिनमे महावीर प्रसाद के परिवार का परिचय भी जयपुर खण्ड मे दे दिया गया है । ज्ञानचन्द जी का परिचय निम्न प्रकार है ।
श्री ज्ञानचन्दजी वगवाणी श्री ज्ञानचन्द जी का जन्म 55 वर्ष पूर्व किशनचन्द वगवाणी के घर मुलतान मे हुआ था । स्कूली शिक्षा के बाद आप अपने पिताजी के साथ व्यवसाय करते थे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम माला देवी जैन है । आपके विजय एव नीरज दो पुत्र तथा एक पुत्री है । निवास - 50/96 न्यू रोहतक रोड, न्यू दिल्ली ।
फोन 566863 व्यवसाय-विजय इलास्टिक स्टोर, 340 प्रेस स्ट्रीट, सदर बाजार, दिल्ली-6
श्री विजय कुमार जी विजय कुमार आयु 30 वर्ष, धर्मपत्नी का नाम वोना जैन, विपुल जैन एक पुत्र है । नीरज अभी अविवाहित है ।
निवास--पिता के साथ । व्यवसाय-पिता के साथ ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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नौलखा परिवार
नौलखा परिवारो का विस्तृत जानकारी पहले जयपुर खण्ड मे दी जा चुकी हैं । उन परिवारो मे निम्न नौलखा परिवार दिल्ली रहते है उनका परिचय इस प्रकार है ।
श्री जयकुमारजी नौलखा
श्री जयकुमार जी नौलखा पदमचन्द जी के पुत्र मूलचन्द जी के पौत्र है । जयकुमार नौलखा का जन्म 58 वर्ष पूर्व पदमचन्दजी नौलखा के घर मुलतान मे हुआ था । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आप एक कर्मठ कार्यकर्ता एवं मजदूर वर्ग के मददगार एव हितैपी नेता है । आपने अपने जीवन का अधिक समय उनकी सेवा एव उनके हितो की रक्षा में लगा दिया । आपकी धर्मपत्नी का नाम राजकुमारी है । आपके नरेश, सुरेश व राजेश तीन पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास - 8893 शीदीपुरा, फिल्मस्तान, नई दिल्ली ।
फोन - 518942
कार्यरत ।
श्री नरेश कुमारजी
नरेशकुमार 25 वप, धर्मपत्नी ममता जैन, निगम पिता के साथ । व्यवसाय - रिखवदास जैन एण्ड सन्स, सदर बाजार, दिल्ली संस्थान मे
बाकी पुत्र अविवाहित एव निवास आपके साथ ।
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श्री टेकचन्द जी
श्री टेकचन्द जी श्री सुखानन्द जी के पुत्र एव श्री मूलचन्द जी के पौत्र है । श्री टेकचन्द जी का जन्म 52 वर्ष पूर्व श्री सुखानन्द जी के घर मुलतान मे हुआ था । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आकर बस गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम रोशनी देवी है, सुदर्शन कुमार व राजन बाबू दो तुत्र है । आपने होजरी फैक्ट्री का व्यवसाय प्रारम्भ किया ।
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आप तथा आपके पत्रों ने कठिन परिश्रम से उसमे इतनी उन्नति की कि अव समाज में सम्पन्न परिवारों मे माने जाने लगे ।
निवास-11100 शोदीपुरा, डोरीवालान, नई दिल्ली । व्यवसाय-नौलखा स्ट्रिचवीयर, 4974 अहाता किदारा-6
फोन : 520378 नौलखा स्ट्रिचवीयर, 28-23/22 प्रताप मार्केट, दिल्ली-6 फोन : 518293
श्री टेकचन्द जी के पुत्र सुदर्शन कुमार जी सुदर्शन कुमार टेकचन्द जी के प्रथम पुत्र है । आयु 25 वर्ष । धर्मपत्नी का नाम लक्ष्मीदेवी है।
व्यवसाय एव निवास-पिता के साथ ।
श्री राजेन्द्र बाबू अविवाहित है । निवास एव व्यवसाय पिता के साथ ।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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ननगांणी परिवार
ननगाणी परिवार मुलतान के प्राचीन परिवारो मे से है । उनके विषय मे किवदन्ती है कि आतूराम जी के पिता श्री उदयराम जी मुलतान के पास मुजफ्फरगढ मे रहते थे। उनका सोने, चादी एव कपडे का व्यवसाय था और वह मुजफ्फरगढ के नवाव मुजफ्फरशाह के यहा आते-जाते थे और उनसे धार्मिक वार्ताए होती थी। एक बार शाह ने उनके अहिंसा धर्म की परीक्षा लेने के लिए उन्हे एक छोटा शेर का बच्चा दिया और कहा कि अगर आपके अहिंसा धर्म मे ताकत है तो इसे मास के विना पालन-पोषण कर दिखाओ और इसे जैनी बना दो। वह उसे अपने घर ले आये और नित्य उसे हलुआ, रोटी आदि खिलाकर बड़ा करने लगे । जब दो वर्ष के करीव हो गया तो मुजफ्फरशाह के दरबार मे ले गये । जहा उसके सामने मास एव हलमा रखा गया, उसने मास को सूघ कर छोड दिया और हलुआ खाने लगा, तव वहा नवाव ने उन्हे बहुत सम्मान एव इनाम दिया तथा उस पर अहिंसा धर्म की बहुत छाप पडी और उसने सदैव के लिए मास खाना छोड दिया ।
उन्ही के पुत्र श्री आतूराम जी थे, जिनके श्री नत्थूराम, श्री सन्तीराम, श्री ताराचन्द जी तीन पुत्र थे।
श्री नत्थूराम जी श्री नत्थूराम जी के श्री मघाराम जी एक पुत्र है । सवत् 1962 मे उनका जन्म हुआ था। उनके पिता वहा जमीदारी का कार्य करते थे, जिनका प्लेग महामारी मे स्वर्गवास हो गया । मघाराम जी मुलतान आकर रहने लगे। उनका विवाह काक्यावाली (पुत्री श्री उदयकरण जी) के साथ हुआ । किन्तु उनकी अल्पावस्था मे मृत्यु हो गई। मघाराम जी ने दूसरी शादी नही की अत उनके कोई सन्तान नही है । वह विभिन्न स्थानो पर कार्यरत रहे। इनको तीर्थ यात्राए करने का अतिशोक है यह सभी तीर्थ स्थानो की कई-कई बार यात्राए कर आये है ।
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श्री सन्तीराम जी श्री सन्तीराम जी का जन्म श्री आतूराम जी ननगाणी के घर मुलतान मे हुआ था । आपके श्री रूपचन्द एव श्री टीकमचन्द दो पुत्र थे । आपके पूर्वज मुफ्जफरगढ (मुलतान पाकिस्तान) मे रहते थे। आपने भी वहा पर व्यवसाय किया और बाद मे आप अपने परिवार को लाकर मुलतान मे आकर बस गये तथा व्यवसाय करने लगे।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के मालोक मे
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श्री सन्तीराम जी के पुत्र रूपचन्द जी ननगांणी श्री रूपचन्द जी ननगाणी श्री सन्तीराम जी के पुत्र है । आपका जन्म मुलतान मे हआ था । पाकिस्तान से आप दिल्लो आये थोडे समय पश्चात् आपका आकस्मिक देहावसान हो गया । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती जयदेवी था । जिनका भी आपके थोडे समय पश्चात् देहावसान हो गया । विजयकुमार, देशवन्धु दो पुत्र एव एक पुत्री है । जिनका निवास-~-2/58 जगपुरा एक्सटेन्शन, मस्जिद रोड, नई दिल्ली-14
श्री रूपचन्द जी के पुत्र विजय कुमार जी । विजयकुमार 39 वर्षीय आपके प्रथम पुत्र है । धर्मपत्नी का नाम कुसुम जैन, सदीप और अनु दो पुत्र है । निवास उपरोक्त परिवार के साथ । व्यवसाय-सर्विस
श्री देशबन्धु देशबन्धु रूपचन्द जो के 36 वर्षीय द्वितीय पुत्र है। धर्मपत्नी का नाम निर्मला जैन । निवास-परिवार के साथ ।
व्यवसाय-अध्यापन ।
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श्री सन्तीराम जी के पुत्र टीकमचन्द जी
श्री टीकमचन्द जी सन्तीराम जी ननगाणी के दूसरे पुत्र है। आपका जन्म 63 वर्ष पूर्व मुलतान मे हुआ था । वहा आप व्यवसाय करते थे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आप समाज मे कर्मठ एव उत्साही कार्यकर्ता है। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती राजरानी जैन है । आपके प्रेमकुमार महेन्द्रकुमार एव राजू तीन पुत्र एव दो पुत्रिया हैं।
EMPHE श्री टीकमचन्द जी के पुत्र प्रेमकुमार जी प्रेम कुमार की आयु 28 वर्ष है । उनकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती उपा जैन है । बाकी दो पुत्र अविवाहित है ।
आपका निवास-13/4506 पहाडी धीरज सदर बाजार, दिल्ली । व्यवसाय-(1) श्री एस आर हौजरी
(2) जैन ऐजेन्सीज
13/4506 पहाडी धीरज, दिल्ली
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के बालोक मे
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श्री ताराचन्द जी श्री ताराचन्दजी श्री आतूराम जो ननगाणी के तीसरे पुत्र है । इनका जन्म मुजफ्फरगढ मे हुआ था । बाद मे मुलतान आकर रहने लगे जहा वे व्यवसाय करते थे । पाकिस्तान वनने के बाद वे दिल्ली आ गये जहा थोडे समय वाद स्वर्गवास हो गया । उनके श्री किशोरीलाल जी एव श्यामलाल जी दो पुत्र हैं ।
श्री किशोरी लाल जी ननगाणी
श्री किशोरीलालजी ननगाणी का जन्म 70 वर्ष पूर्व श्री ताराचन्द जी ननगाणी के घर मुलतान मे हुआ था । वहा व्यवसाय करते थे । पाकिस्तान बनने के बाद दिल्ली आ गये । । आपकी धर्मपत्नी कस्तूरी देवी है । आपके श्रीमती कमलेश कुमारी मात्र एक पुत्री है ।
निवास - आटो वर्ल्ड इन्डस्ट्री 65 मोडल वस्ती, नई दिल्ली
व्यवसाय - होजरी कारखाना ।
श्रीमती कमलेश कुमारी का विवाह श्री सुरेश कुमार जी के साथ हुआ था । हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक निधन हो गया । आपके विकास, अतुल दो पुत्र है । निवास - आपके पिता के साथ है ।
श्यामलाल जी का परिचय जयपुर खण्ड मे दिया गया है ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
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बांठिया परिवार
श्री अमनलाल जी बाठिया मूल निवासी विशनगढ के थे । उनकी दो बहने डेरागाजीखान मे श्री करमचन्द एव श्री कवरभान को व्याही राने के कारण आप भी डेरागाजीखान मे आकर रहने लगे और आपकी शादी मुपुत्री श्री उदयकरण जी के साथ हो गयी। किन्तु थोडे समय बाद ही कुछ विशेष वीमारी हो जाने के कारण उनका स्वर्गवास हो गया ओर आप भुलतान आकर रहने लगे । आपके श्री रोशनलाल एक मात्र पुत्र हैं।
श्री रोशनलाल जी __ श्री रोगनलाल जी ने मुलतान मे मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की और पाकिस्तान वनने के बाद जयपुर आकर रहने लगे । यहा आपकी स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर मे केसियर के पद पर नियुक्ति हो गई। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती भगवानी देवी का भी असमय मे स्वर्गवास हो गया । आपके सन्तोष व अशोक दो पुत्र एव दो पुत्रियां है । कई जगह स्थानान्तर होते-होते आजकल आपकी दिल्ली ब्राच मे नियुक्ति है ।
श्री रोशनलाल जी के पुत्र श्री सतोषकुमार जी रोशनलाल जी के प्रथम पुत्र है । स्नातक शिक्षा प्राप्त कर स्टेट बैंक आफ वीकानेर एण्ड जयपुर में कार्यरत हो गये । आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती वाली देवी जैन है, आपके दो लडकिया है और आप शाहदरा (दिल्ली) मे रहते है ।
श्री अशोककुमार जी रोशनलाल जी के द्वितीय पुत्र है । आप अभी अविवाहित है ।
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श्री राजेन्द्रकुमार जी फिरोजाबाद
श्री राजेन्द्रकुमार पुत्र श्री जयन्ती प्रसाद पहले फिरोजाबाद मे रहते थे। पण्डित श्री अजीत कुमार (बहनोई) के मुलतान मे आ जाने पर आप भी मुलतान आकर रहने लगे। मुलतान मे कमला देवी (कमोवाई) सुपुत्री श्री भोलाराम जी के साथ आपका विवाह हो गया और वहा व्यवसाय करने लगे । आप उत्साही और धर्मज्ञ नवयुवक थे, समाज के सभी कार्यक्रमो मे अग्रणी होकर भाग लेते थे। पाकिस्तान बनने के बाद आप वापस फिरोजावाद चले गये और वहां आपने व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया । आपके खुशहालचन्द व चन्द्रकुमार दो पुत्र एवं एक पुत्री है । आपका सन् 1957 ई० को स्वर्गवास हो गया ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक
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श्री राजेन्द्रकुमार जी के पुत्र श्री खुशहालचन्द जी श्री खणहालचन्द जी श्री राजेन्द्र कुमार जी के प्रथम पुत्र है । आपकी उम्र 35 वर्ष है । आपकी धर्मपत्नी मोहिनी देवी जैन है, आपके दो पुत्र एव दो पुत्रिया हैं।
व्यवसाय-मुलतान जैन जनरल स्टोर, फिरोजाबाद (आगरा) निवास-खुशहाल चन्द जैन, कम्बोआन मुहल्ला, फिरोजाबाद
श्री चन्द्रकुमार जी आप श्री राजेन्द्र कुमार के द्वितीय पुत्र है । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शकुन्तला देवी है । आपके दो पुत्र एव दो पुत्रिया है ।
व्यवसाय एव निवास-भाई के साथ ।
पारख परिवार
श्री तुलाराम जी पारख श्री तुलाराम जी का जन्म 75 वर्ष पूर्व श्री तीरथदास पारख के घर डेरागाजीखान मे हुआ था । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये आपकी धर्मपत्नी का नाम जमुनावाई है, आपके पदमचन्द, कस्तूरचन्द, शाना कुमार, सत्येन्द्र कुमार एव हसकुमार पाच पुत्र एव पाच पुत्रिया है । निवास-A-3-4 जगपुरा वी नई दिल्ली-14 है ।
श्री तुलाराम जी के पुत्र श्री पदमचन्द जी पदमचन्द जी आपके पुत्र है, उम्र 40 वर्ष पत्नी का नाम कुसुम जैन है । राजकुमार व सजय दो पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास-पिता के साथ । व्यवसाय-नौकरी
श्री कस्तूरचन्द जी कस्तूर चन्द जैन उम्र 35 वर्ष, धर्मपत्नी पुष्पा देवी जैन है। अशोक एक पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास-पिता के साथ । व्यवसाय-नौकरी।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
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श्री शानाकुमार जी
शानाकुमार उम्र 33 वर्ष, धर्मपत्नी सुनीता जैन है, एक पुत्री है ।
निवास - पिता के साथ |
व्यवसाय - नौकरी ।
श्री सत्येन्द्र जी
सत्येन्द्र उम्र 32 वर्ष, धर्मपत्नी का नाम मोहनी देवी है, पुत्र अमित जैन है । निवास - पिता के साथ |
व्यवसाय-
- नौकरी ।
श्री हंसकुमार जी
हसकुमार अविवाहित है । निवास - पिता के साथ ।
श्री हजारीलाल जी
श्री हजारीलाल जी का जन्म 70 वर्ष पूर्व हीरालाल जी जैन के घर सरसा (हरियाणा) में हुआ था । आपकी बहन मुलतान ब्याही गई । इसलिये आप मुलतान जाकर व्यवसाय करने लगे । आपका विवाह मुलतान मे ही कस्तूरी देवी (पुत्री श्री उदयकरण जी) के साथ हो गया । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आ गये । आपके शान्तीलाल व सतीश दो पुत्र एवं एक पुत्री है ।
निवास - 2/63, 64 जंगपुरा एक्सटेन्शन, मस्जिद रोड, नई दिल्ली में है । व्यवसाय -- लाजपत राय मार्केट, चादनी चौक दिल्ली ।
श्री हजारीलाल जी के पुत्र श्री शान्तिलाल जी
शान्तिलाल जी हजारीलाल जी के 38 वर्षीय पुत्र है । धर्मपत्नी का नाम वीना कुमारी है | राजू व दीपू दो पुत्र एव एक पुत्री है ।
निवास - 3808 गली जमादार, पहाडी धीरज, दिल्ली |
व्यवसाय - ज्ञानचन्द हेमराज जैन सदर बाजार दिल्ली के यहा आप कार्य करते है ।
श्री सतीश जैन
सतीश जैन 34 वर्षीय द्वितीय पुत्र है । आशा जैन पत्नी है ।
निवास - पिता के साथ | कार्य - नोकरी |
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के अलोक मे
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11.
श्री लखमीचन्द जी दिल्ली स्व० श्री लखमी चन्द जी स्व० श्री चादीराम जी जैन के पुत्र है । पहले आप उन्नू (सीमा प्रान्त पाकिस्तान) मे रहते थे। आपका विवाह श्रीमती लक्ष्मीबाई सुपत्री श्री उत्तमचन्द जी नौलखा मुलतान के साथ हुआ था, इसलिये आप मुलतान आकर रहने लगे । मुलतान मे वैद्यक का कार्य करने लगे । पाकिस्तान बनने के बाद आप दिल्ली आकर बस गये । आपके प्रेमकुमार, बाबूलाल एव सुग्रीव तीन पुत्र और एक पुत्री है ।
निवास-2/51 जगपुरा एक्सटेन्शन मन्दिर रोड, नई दिल्ली-14
श्री लखमीचन्द जी के पुत्र श्री प्रेमकुमार जी प्रेमकुमार श्री लखमीचन्द जी के प्रथम पुत्र है । उम्र 37 वर्ष है । धर्मपत्नी का नाम जसवन्त जैन है । सुनील एक पुत्र व तीन पुत्रिया है ।
निवास-पिता के साथ। व्यवसाय–व्यापार।
श्री बाबूलाल जी श्री लखमीचन्द जी के दूसरे पुत्र हैं । आयु 34 वर्ष है। पत्नी का नाम सुनीता जैन है।
व्यवसाय-ज्वैलर्स व्यवसाय स्थान एव निवास-बम्बई ।
श्री सुग्रीव जी श्री लखमीचन्द जी के तीसरे पुत्र है । निवास-बम्बई कार्य-ज्वैलर्स
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के माजोक मे
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज, जयपुर संस्थान एवं दूरभाष-सूची
सस्थान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाप न० दुकान घर
श्री पदमकुमार जी जैन श्री अनिलकुमार जी
श्री अरुणकुमार जी
69465 PP
64722
61629 P P.
अनिल प्लास्टिक इन्डस्ट्रीज,
ठाकुर पचेवर का रास्ता,
रामगज बाजार, जयपुर अनिल एजेन्सी
बुलियन बिल्डिंग, हल्दियों का
रास्ता, जयपुर इम्पीरियल जनरल स्टोर,
त्रिपोलिया बाजार, जयपुर उत्तमचन्द शम्भुलाल जैन
कटला पुरोहितजी, जयपुर उमेश बटन स्टोर
कटला पुरोहित जी, जयपुर करमचन्द प्रेमचन्द जैन
कटला पुरोहित जी, जयपुर कान्टीनेन्टल ट्रेडर्स,
घी वालो का रास्ता, जयपुर खण्डाराम गिरधारी लाल जैन ___ कटला पुरोहित जी, जयपुर खेमचन्द श्रीपाल जैन
कटला पुरोहित जी, जयपुर गेलाराम देवीदास जैन
चाकसू का चौक, हल्दियो का रास्ता, जयपुर
66992 PP
श्री इन्द्रभान जी श्री शेखर जी श्री शम्भुकुमार जी श्री भद्रकुमार जी श्री अनिलकुमार जी श्री उमेशकुमार जी श्री सतकुमार जी श्री सुरेशकुमार जी श्री वसीलाल जी श्री राजीवकुमार जी श्री गिरधारी लाल जी श्री हरिश्चन्द्र, दिनेशकुमार जी श्री श्रीपाल जी श्री अगीपकुमार जी श्री देवीदान जी
66885
63500 63748
61805
67358 PP. -
552452
(62849
Page #250
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मस्थान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाप न० दुकान घर
74541
76104
श्री गणेशदास प्रकाशचद जी जवाहरलाल सुभाषकुमार जी श्री जयकुमार जी श्री जम्बुकुमार जी श्री अशोककुमार जी श्री मुलतानीचन्द जी श्री ओमप्रकाश जी श्री चन्द्रप्रकाश जी श्री दिनेशकुमार जी
79327
घनश्यामदास गणेशदास
कटला पुरोहित जी, जयपुर चीधगम जयकुमार जैन
216, जौहरी बाजार,
जयपुर चचल एण्ड कम्पनी
घी वालो का रास्ता,
जयपुर जयपुर नावल्टीज
21, नेहरू वाजार, जयपुर जेठानन्द चिमनलाल
कटला पुगेहित जी, जयपुर जगदीश जनरल स्टोर
पटला पुगेहित जी, जयपुर जैन वीर फार्ममी
घी वालो का रास्ता,
जयपुर जैन आटो रिपेरिंग
पुलिस मेमोरियल, जयपुर नागनन्द आगानन्द जैन ___106, नेहा बाजार, जयपुर गोलागम जयपुमार जैन __टला पुगेरित जी, जयपुर निन्द गिन्धारीलाल पटना पुगेरित जी, जयपुर
माल स्टोर ___ा पुरिन जी, जयपुर मट गन्म Fism पाजार, जयपुर
श्री शान्तिलाल जी
65005 श्री चन्द्रेशकुमार आदि श्री भीमसेन, जगदीशकुमार जी 60073 PP श्री अर्जुनलाल जी श्री गुलाबचन्द जी
77910 श्री वीरकुमार जी श्री चन्द्रसेनजी, सूरज श्री वीरकुमार जी
68123
72943
श्री सुरेन्द्रकुमार जी श्री महेन्द्रकुमार जी श्री आदीश्वरलाल जी श्री चन्द्रकुमार जी श्री गिरधारीलाल जी
61063
77623
श्री जिवेन्द्रयुमार जी
श्री जयकुमार जी श्री निर्मलकुमार जी
61063
77623
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सस्थान का नाम
नौलखा प्लास्टिक इन्डस्ट्रीज
तीसरा चौराहा, मोतीसिह भोमियो श्री किशनचन्द जी
का रास्ता, जयपुर
प्रकाश जनरल स्टोर
कटला पुरोहित जी, जयपुर
प्रभा जनरल स्टोर
घी वालो का रास्ता, जयपुर
फतेहचन्द दामूराम जैन,
नवाब साहब की हवेली, त्रिपोलिया बाजार, जयपुर
फैन्सी क्लोथ स्टोर
61, न्यू मार्केट, घी वालो का
रास्ता, जयपुर
वेवी टायज सेन्टर
143, नेहरू बाजार, जयपुर
भवरचन्द ज्ञानचन्द
कटला पुरोहित जी, जयपुर भोलाराम द्वारकादास जैन
शिव भवन, स्टेशन रोड, जयपुर भोलाराम ईश्वरचन्द जैन
दूनी हाउस, नेहरू वाजार, जयपुर भोजाराम पन्नालाल जैन
कटला पुरोहित जी, जयपुर भोजाराम निहालचन्द
कटला पुरोहित जी, जयपुर
मोतीराम कवरभान जैन
व्यक्ति का नाम
जौहरी बाजार, जयपुर
श्री माणकचन्द, यशपाल जी
श्री न्यामतराम, प्रकाश जी श्री बंशीलाल, शीतलकुमार जी
श्री प्रभाचन्द जी
श्री राजकुमार जी
श्री माधोदास जी
श्री बलभद्र कुमार जी
श्री हुकमचन्द जी श्री पवनकुमार आदि
श्री उमेशकुमार जी
श्री बालकिशन जी
श्री द्वारकादास जी श्री न्यामतराम जी
श्री ईश्वरचन्द जी
श्री फूलचन्द, पन्नालाल जी एव श्री मोहनलाल जी
दूरभाष न० दुकान
श्री अर्जुनलाल जी श्री शम्भुकुमार जी श्री शीतलकुमार, नेमीचन्द जी श्री कैलाशचंद, ओमप्रकाश जी
66149
61643
76689
79327
63438
श्री मनीषकुमार, धर्मपाल जी 76444 श्री निरजनकुमार, सुरेशकुमार
72769
घर
63748
79965
67199
79965
63727
78464
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सन्धान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाष न० दुकान घर
श्री विजयकुमार जी
श्री रमेशकुमार जी
75694 श्री जयकुमार जी श्री सुमतप्रकाश, सुनीलकुमार जी
श्री राजवाबू जी जैन
67840 PP
66102
67402
मैचिग सेन्टर, चिमनी ब्लाक
गजा पार्क, जयपुर महावीर जनरल स्टोर __ त्रिपोलिया बाजार, जयपुर मुलतान जैन जनरल स्टोर
124, वापू वाजार, जयपुर मुलतान फोटो स्टूडियो,
हल्दियो का रास्ता, जयपुर रमेगचद जैन
घी वालो का रास्ता,
धान गडियो का चौक, जयपुर राजेन्द्र जनरल स्टोर ___ कटला पुरोहित जी, जयपुर आर के बटन फैक्ट्री
439, आदर्श नगर, जयपुर राजेन्द्रकुमार एण्ड सस ।
वाइस गोदाम, जयपुर रोशनलाल विजयकुमार जैन
कटला पुरोहित जी, जयपुर
श्री विशनलाल जी श्री राजेन्द्र, अनिल श्री राजकुमार जी श्री राकेश जी श्री राजेन्द्र कुमार जी
79780
श्री रोशनलाल जी श्री कमलकुमार जी श्री विजयकुमार जी श्री लाजपतराय जी श्री राजेशकुमार जो
69465 PP
67199
गजेग एण, कम्पनी
बलियन विल्लिग, हल्दियो का
गम्ता, जयपुर गिरीश फोटो स्टूडियो
मग नांगहा, घी वालो का
राम्ता, जयपुर नागेन्द्र जनम स्टोर
स्टा पुगरिल जी, जयपुर
श्री सुरेन्द्रकुमार जी
65302
श्री वीरेन्द्रकुमार जी
67199
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-
सस्थान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाष संख्या दुकान घर
श्री भगवानदास जी
67199
66608
विनोद जनरल स्टोर
बुलियन बिल्डिग, हल्दियो का
रास्ता, जयपुर वी. राज एण्ड कम्पनी
घी वालो का रास्ता, जयपुर शशि जनरल स्टोर ___ कटला पुरोहित जी, जयपुर सरोज एन्टरप्राइज
हल्दियो का रास्ता, जयपुर सुभाष जनरल स्टोर
कटला पुरोहित जी, जयपुर हीरानन्द पोखरदास जैन
कटला पुरोहित जी, जयपुर
श्री बोधराज जी श्री विजयकुमार जी श्री जिनवरलाल जी श्री सुरेशकुमार जी श्री शानाकुमार जी श्री खुशहालचन्द जी श्री हीरानन्द जी श्री सुभाषकुमार जी श्री पोखरदास जी श्री भागचन्द जी श्री वीरकुमार जी श्री ज्ञानचन्द जी श्री अनिलकुमार जी
76822
66672
67199
ज्ञान जनरल स्टोर
चांदपोल बाजार, जयपुर
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज, दिल्ली संस्थान एवं दूरभाष-सूची
सस्थान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाप न० दुकान घर
श्री अखिल जैन
527180
श्री इन्दकुमार जी
513124 514345
श्री आतम प्रकाश जी श्री अशोककुमार जी श्री अनिलकुमार जी
518942
अखिल जैन, कोठी न 1
पचकुइया रोड, नई दिल्ली इन्द्रा होजरी इण्डस्ट्रीज 314 बस्ती, हरफूलसिंह सदर थाना
रोड, नई दिल्ली गोलेछा ट्रेडर्स
5655, गाँधी मार्केट,
सदर बाजार, दिल्ली जयकुमार जी नौलखा शिदीपुरा
फिल्मिस्तान नई दिल्ली जैसन इन्टरनेशनल 18, मेलाराम मार्केट,
चावडी बाजार, दिल्ली जैन स्कीन्स फैक्ट्री
प्रताप मार्केट, दिल्ली-6 डी के जैन सूत गोला फैक्ट्री 35 वस्ती हरफूलसिंह,
सदर थाना रोड, दिल्ली-6
श्री जयकुमार जी श्री राजीव जैन
517274 668834 267472 272600 513610 518391
श्री आडूराम गोलेछा श्री रोशनलाल जी श्री गुमानीचन्द जी श्री देवकुमार जी श्री मनमोहन जी श्री चम्पतकुमार जी श्री उग्रसेन जी
511934 529548 513989
तीरथ दास जैन स्टेशनरी के
व्यापारी 53/9223, गुप्ता मार्केट
सदर बाजार, दिल्ली-6 नरेन्द्र अनिल एण्ड कम्पनी
2/184 तिलक बाजार, खारी वावडी, दिल्ली
344027
श्री शकरलाल जी श्री नरेन्द्रकुमार जी श्री अनिलकुमार जी
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मस्ताना नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाष न० दुकान घर
भाज जी सिंगवी,
344548 विरेन्द्र कुमार जी मिगवी नीलया स्तिवीयर
श्री टेकचन्द जी 520378 4974 अहाता किदार, दिल्ली-6 नीलमा स्दिनवीयर
श्री टेकचन्द जी 518293 28-23/22 प्रताप मार्केट, दिल्ली-6 श्री सुदर्शनकुमार जी
श्री राजेन्द्रबाबू नेशनल मिल्क उन्डस्ट्रीज
श्री तोलाराम जी 513610 527014 ___11, अमृत मार्केट, सदर बाजार, दिल्ली प्लान्टिक इन्डस्ट्रीज
श्री ओमप्रकाश जी 588209 __52, रामामार्ग, नजफगढ, दिल्ली प्रेम ट्रेडिंग कम्पनी, गली प्रेस वाली, श्री प्रेमचन्द जैन
525357 मदर बाजार, दिल्ली भोलाराम खिवदास जैन
श्री वीरकुमार जी 515313 -665353 मदर बाजार, दिल्ली भोलाराम रगलाल जैन
श्री अशोककुमार जी 513859_512621 मदर बाजार, दिल्ली भोलागम रगलाल जैन
श्री जयकुमार जी 324949 मिर्ची गली वम्बई-2 श्री मदनगोपाल जी 1358
श्री मदनगोपाल जी 42669 कृष्णा गली गुलियान, दिल्ली मगलदास विशम्बरदास, वस्ती श्री शिवनाथमल जी
511972 हरफूलसिंह सदर थाना रोड, श्री विशम्बरलाल जी दिल्ली
श्री बाबूलाल, मोहनलालजी रिखवदास जैन एण्ड सन्स
श्री पवनकुमार जी 511120 569293 सदर बाजार, दिल्ली
श्री शशीकुमार जी वी के इन्द्रा होजरी इन्डस्ट्रीज __ श्री वीरकुमार जी 222772 566254 बिडला मिल के सामने, सब्जी मण्डी, घटाघर, दिल्ली
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सस्थान का नाम
व्यक्ति का नाम
दूरभाष न० दुकान घर
विजय इलास्टिक स्टोर
श्री ज्ञानचन्द जी 566863 340, प्रेस स्ट्रीट सदर बाजार, दिल्ली श्री विजयकुमार जी विट्टबाक्स फैक्ट्री, 4763 अहाता श्री नेमीचन्द जी ।
किदारा बाडा हिन्दूराव, दिल्ली श्री अनिलकुमार जी सुखानन्द शकरलाल, तिलक श्री प्रेमकुमार, राजकुमार जी 255144 523257
बाजार, खारी बावली, दिल्ली श्री पदमकुमार, सुभाषकुमारजी सिंगवी मेटल स्टोर, 2186 वगीची श्री सतकुमार पुत्र
रघनाथ सदर बाजार, दिल्ली श्री खेमचन्द जी सुरेन्द्रा ट्रेडिंग कम्पनी
श्री उत्तमचन्द जी गोलेछा 516472 5503, वस्ती हरफूलसिंह,
श्री सुभाषचन्द एवं
सुरेन्द्रकुमार जी एस आर होजरी जैन एजेन्सीज श्री टीकमचन्द जी
13/4506 पहाडी धीरज, दिल्ली श्री प्रेमकुमार जी हसा मैन्यू फैकचरिंग कारर्पोरेशन श्री हसकुमार जी
40, गांधी गली फतेहपुरी, दिल्ली श्री दीवानचन्द जी ज्ञानचन्द नवीनकुमार, 5015 श्री ज्ञानचद, जैनेन्द्रकुमार जी
नारायण मार्केट सदर बाजार, दिल्ली
देहली
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