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दी गई तथा 1848 से 1947 तक यह ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत रहा और सन 1947 मे देश के विभाजन के बाद यह पाकिस्तान का अग वन गया ।
मुलतान नगर प्राचीन काल से ही जैन धर्म का केन्द्र रहा है। जैन ग्रन्थो मे इसे मूलनाण एव मूलचन्द्र के नाम से भी सम्बोधित किया गया है। भगवान ऋषभदेव के समय से ही मुलतान होकर पजाव एव सीमान्त के अन्य नगरो मे जैन सन्त धर्म प्रचार करते रहे । जव भगवान ऋषभदेव ने दीक्षा धारण की तो उन्होने अयोध्या के पट्ट पर भरत का राज्याभिषेक किया और बाहुबलि को पोदनपुर-तक्षशिला के पट्ट पर विठलाया। पोदनपुर गान्धार प्रदेश की राजधानी थी। इसलिए ऋषभदेव मुलतान होकर पोदनपुर गये होगे तथा वहा वाहुबलि का राज्याभिषेक किया होगा । भगवान ऋषभदेव की स्मृति मे वाहुवलि ने उनके चरण स्थापित किये थे ।। आदिपुराण मे सौवीर जनपद का उल्लेख आता हे । डा० वासुदेव शरण अग्रवाल ने सिन्धु प्रान्त या सिन्ध नगर के निचले कोठे का पुराना नाम सौवीर माना है । इसकी राजधानी रोद्रव वर्तमान रोडी मानी जाती है । पाणिनी ने सौवीर देश का निर्देश किया है । मूलतान सौवीर जनपद मे था । वाहुवलि के पश्चात् गान्धार प्रदेश भरत के साम्राज्य का अग बन गया ।
भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात इस प्रदेश मे दिगम्बर जैन मुनियो का वरावर विहार होता रहा । जब सिकन्दर वादशाह तक्षशिला मे गया था तो वहा उसने कितने ही जैन मुनियो को देखा था तथा एक कालानस नामक दिगम्बर मुनि को अपने साथ ले गया था इससे यह स्पष्ट है कि वहा दिगम्बर मुनियो का विहार होता रहता था। सम्राट चन्द्रगुप्त, अगोक एव हर्षवर्धन के समय तक जैन मनियो के विहार मे कोई वाधा नही पडी, लेकिन मुस्लिम आक्रमणो के पश्चात् लाहौर से आगे दिगम्बर जैन मुनियो का विहार नहीं हो सका।
मुलतान नगर कई वार उजडा और कई बार वसा । इसलिए इसमे प्राचीनता की दृष्टि से कोई उल्लेखनीय सामग्री नही मिलती । बार वार होने वाले मुसलमानो के वर्वर आक्रमणो से वहा न कोई मन्दिर वचा और न गास्त्र भण्डार सुरक्षित रह सका। प्रारम्भ मे अकबर को भी मूलतान पर अधिकार बनाये रखने के लिये कितने ही युद्ध करने पड़े इसलिये अकवर के पूर्व की जैन सस्कृति के चिन्ह पट बहुत कम रह सके ।
मुलतान नगर उत्तरी पजाब मे दिगम्बर जैन सस्कृति का महान केन्द्र था। यहा का ओसवाल समाज प्रारम्भ से ही दिगम्बर धर्मानुयायी रहा । ऐसा मालुम पडता है कि ओमिया से जव ओसवाल जाति देश के विभिन्न भागो मे कमाने के लिए निकली और पजाव की ओर वसने को आगे बढी तो उसमे दिगम्बर धर्मानुयायी भी थे। उनमे ने अधिकाण मुलतान, डेरागाजीखान, सैय्या एवं उत्तरी पजाव के अन्य नगरो मे बस गये और वही व्यापार करने लगे । अन्य नगरो मे वार वार के आक्रमण के सामने वे टिक नही मके इनलिये या तो वे वहा से और कही जाकर बस गये या फिर 1. पाणिनी कालीन भारत, पृष्ठ 64 2 आदि पुराण मे प्रतिपादित भारत 3 तक्षशिलायां बाहुबलो विनिर्मित धर्मचक्रम · विविध तीर्थ कल्प पृष्ठ 75 6 ]
• मुलतान दिगम्बर जैन ममाज-इतिहास आलोक में