________________
भारत के राजा महाराजा वहा जाते और मूर्ति पर बहुमूल्य पदार्थ चढाते थे । इस मन्दिर मे हर समय विभिन्न देशो के लगभग एक हजार यात्री प्रार्थना के लिए मौजूद रहते थे । जैन मत्री वस्तुपाल एव तेजपाल ने विक्रम की 13वी शताब्दी मे इस सूर्य मन्दिर का स्वद्रव्य से जीर्णोद्धार करवाया था । तब भी इसका नाम 'मूलवाण' ही लिखा मिलता है | 5वी शताब्दी के उपलब्ध सिक्को मे सूर्य की प्रतिमा मिलती है तथा उसे परसिमन राजा की वेशभूषा मे चित्रित किया गया है तथा पुरोहितो को जो मुलतान के इस मन्दिर मे सूर्य की पूजा करते थे, बतलाया गया है । भविष्य पुराण के अनुसार इन पुरोहितो को शक द्वीप से लाया गया था । 'मूलस्थान' नाम साम्बपुराण, भविष्यपुराण, बराहपुराण एव स्कन्दगुप्त मे भी मिलता है । मुलतान का पुराना नगर रावी नदी के किनारे बसा हुआ था तथा वर्तमान मुलतान चिनाब नदी के समीप स्थित नगर है ।
उद्योतन सूरि की कुवलयमाला मे 'मूलस्थान' भट्टारक' का उल्लेख है तथा उसे सूर्य उपासना के केन्द्र का स्थान बताया है । मथुरा के 'अनाथ - मण्डल' में कोढियो का जमघट था । उसमे चर्चा चल रही थी कि कोढ रोग नष्ट होने का क्या उपाय है ? एक कोढी ने कहा था “मूलस्थान भट्टारक - लोक मे कोढ के देव है, जो उसे नष्ट कर देते हैं" । " मूलस्थान का यह सूर्य मन्दिर राजस्थान मे प्रसिद्ध था । प्रतिहारो ने सुल्तान पर जब कब्जा करना चाहा तो अरब के शासको ने धमकी दी सूर्य मन्दिर को नष्ट कर दिया जायेगा जिससे प्रतिहारो को पीछे लौटना पडा । क्योकि वे सूर्य के उपासक थे । इस मन्दिर का अलबरूनी को भी पता था । उसका 17वी शताब्दी तक अस्तित्व रहा बाद मे औरगजेब ने इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया । इस सूर्य मन्दिर के बाद भारत मे अनेक सूर्य मन्दिरो का निर्माण कराया गया । जयपुर मे गलता की पहाड़ी के सूर्य मन्दिर को दीवान झूथाराम ने निर्माण करवाया था । झुंथाराम दिगम्बर जैन धर्म का अनुयायी था ।
मुलतान अत्यधिक प्राचीन नगर है । सिकन्दर द्वारा अधिकृत भारत के क्षेत्रो मे इसका भी नाम था । इसके पश्चात प्राय सभी मुस्लिम शासको को मुलतान के लिए लडाई लडनी पडी । सन् 1527 मे बाबर ने इसे मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत कर लिया ओर सवत 1619 ( सन् 1562 ) मे अकबर ने इस पर पुनः कब्जा कर इसे एक सूबा बना दिया । इसमे मोन्टगुमरी से लेकर सक्खर तक का प्रदेश सम्मिलित था। सन् 1868 मे सिक्ख राजा रणजीतसह ने इसे अपने अधिकार मे कर लिया । इसके पश्चात् गुजरावाला के दीवान सावनमल को इसका हाकिम बना दिया गया । इसके पहले सुखदयालसिंह को भी वहा का हाकिम वना कर भेजा गया था । इन दोनो के सुप्रबन्ध से मुलतान की अच्छी उन्नति हुई । रणजीतसिंह ने डेरागाजीखान को भी सूवा मुलतान मे सम्मिलित कर लिया था । मावनमल के पश्चात् उसका लडका मूलराज हाकिम बना । लेकिन अग्रेजो ने मुलतान पर अधिकार कर मूलराज को कैद कर लिया और उसे कलकत्ता भेज दिया जहा उसकी हत्या कर
1. दी जोगराफीकल डिक्शेनरी आफ एनसियन्ट एण्ड मिडाइविल इंडिया पेज -132 2 मूलत्या भंडारउ कोढइ जे देइ उद्दालइज्जे लोयहु क वलयमाला 55.16 3. कुवलयमाला का सांस्कृतिक अध्ययन डा० प्रेमसुमन जैन, पृ० 391
मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के नालोक मे
[ 5