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________________ सन्देश (डॉ० वीरेन्द्र स्वरूप भटनागर) प्रोफेसर एव अध्यक्ष इतिहास विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर पूर्व मध्यकाल मे मुलतान उत्तर-पश्चिमी भारत का प्रमुख नगर था। जैन ग्रन्थो मे इसे मूलत्राण अथवा मूलस्थान कहा गया है। इस नगर पर अरवो का अधिकार 8 वी शताब्दी मे ही हो गया था । तत्पश्चात् वहा सतत मुस्लिम शासन रहा। मलतान की सैनिक व व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थिति थी। मुगलकाल मे यह मुलतान सूबे की राजधानी रहा। यहा आगरा व लाहौर से बडी मात्रा मे सूती कपड़ा, वगाल के बने सूती वस्त्र, पगडिया, छीट, बुरहानपुर से सालू व थोडी मात्रा मे मसाले आते थे जिनका फारस को निर्यात किया जाता था। फारस आसपास के क्षेत्र से बडी मात्रा मे यहा से शक्कर लाहौर व थट्टा भेजी जाती थी और थोडी बहुत अफीम भी। यहा के बने धनष सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे । नगर का व्यापार मुख्य रूप से हिन्दू व जैन साहूकारो के हाथ मे था । प्रारम्भ से ही मुलतान का धार्मिक महत्व भी रहा है। यहा का सूर्य मन्दिर सम्पर्ण भारत मे प्रसिद्ध था । कुवलयमाला मे इसका उल्लेख है। यह भी विश्वास प्रचलित था कि यहा आकर कुष्ट रोग निवारण हो सकता है। कालान्तर मे मुलतान दिगम्बर जैन सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र बन गया। 13 वी शताब्दी से ही मुलतान सूफी सम्प्रदाय के सहरावर्दी सिलसिले का केन्द्र भी बन गया था। 17 वी शताब्दी मे महाकवि बनारसी दास के समयसार नाटक की बढती हुई लोकप्रियता के साथ ही यहा जैन समुदाय मे अध्यात्म का प्रभाव स्थापित हुआ। यह उल्लेखनीय है कि आगरा, मुलतान, डेरागाजीखान व लाहौर आदि, जहा जैन मतावलम्बियो मे अध्यात्म अधिक लोकप्रिय हुआ वे स्थान सूफी विचारधारा के भी केन्द्र थे और साथ ही समृद्ध ओसवाल जैन की व्यापारिक गतिविधियो तथा निवास स्थल भी थे। यहा स्वतत्र चिन्तन की परम्परा स्थापित हो चुकी थी। महाकवि वनारसीदास का अध्यात्म मूलरूप मे विभिन्न दर्शनग्राही, उदार, सुधारवादी विचारधारा थी जिसके पल्लवित होने के लिए मुलतान का धार्मिक वातावरण अनुकूल था। मुलतान, डेरागाजीखान आदि के ओसवाल जैन समाज का इस क्षेत्र मे तथा पजाव में वरावर प्रभाव बना रहा और उन्होने साहित्यिक, धार्मिक व सास्कृतिक क्षेत्र मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रस्तुत पुस्तक मे डा० कासलीवाल ने विविध प्रकार की सामग्री सकलित कर इन्ही वाता पर प्रकाश डाला है और सामाजिक एव ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाते हुये मुलतान क दिगम्बर जैन समाज का इतिहास प्रकाश मे लाने मे अत्यधिक प्रशसनीय कार्य किया है। भी मिलेगी। यत्न से इतिहास के विद्वानो को इस दिशा मे और अधिक गवेषणा करने की प्रेरणा उनका मुलतान दिगम्बर जैन समाज जयपूर ने प्रस्तुत पुस्तक प्रकाशित कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है और इसके लिए सारा समाज धन्यवाद का पात्र हैं। डॉ० वीरेन्द्र स्वरूप भटनागर
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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