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वे भारत के किसी भी नगर मे बस सकते है, पर उन्होंने जयपुर को ही क्यो चुना इसमे कोई सदेह नही कि जयपुर और मुलतान का वह पुराना आध्यात्मिक सम्बन्ध इसमे प्रेरक रहा है ।
मुलतान
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किया है
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जयपुर के उपनगर आदर्शनगर मे बसे बन्धुओ से मेरा गत तेरह वर्षों से निकट सम्पर्क रहा है आध्यात्मिक रुचि ने मुझे अन्तर से प्रभावित अत्यन्त विशाल जैन मन्दिर बनवाया है जिसमे मुलतान से व हस्तलिखित शास्त्र विराजमान हैं । उक्त मन्दिर मे उन लोगो द्वारा प्रतिदिन अत्यन्त भक्ति-भाव पूर्वक की जाने वाली सामूहिक पूजन देखने योग्य होती है । किसी भी प्रकार की आचरण शिथिलता उनके जीवन मे अभी तक नही आ पाई है । इस भौतिकवादी युग मे यह उनकी धार्मिक निष्ठा का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
दिगम्बर जैन समाज के उनकी धार्मिक प्रवृत्ति,
उन्होने बहुत ही सुन्दर, आये सैकडो जिन विम्व
उक्त जिन मन्दिर की रजत जयन्ती महोत्सव एवं उसी मन्दिर के प्रागण मे नवनिर्मित महावीर कीर्तिस्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव आगामी 26-27 अप्रेल को होने जा रहा है ।
उनके उज्ज्वल आध्यात्मिक भविष्य की मगलकामनाओ के साथ ।
मुलतान दिगम्बर जैन समाज
पं. खुशालचन्द गोरावाला, वाराणसी
प्राकृत का “मूलठाण” संस्कृत युग मे " मूलस्थान" हुआ और सिन्ध पर इस्लामिकी आक्रमण हो जाने के बाद मुलतान होकर आज तक इसी रूप मे है । अनायास ही यह शब्द अपने अतीत की ओर आकृष्ट करता है क्योकि "मोहनजोदडो" और "हरप्पा" भी मूलठाण के ही चक्र मे थे । प्राक्वैदिक अर्थात् द्रविड या श्रमण संस्कृति का मूलस्थान आधुनिक मुलतान आज भी गर्द, गर्मा-गदा "गोरिस्तान तोफा से मुलतान" के रूप में प्रचलित किंवदन्ती द्वारा श्रमणो, ब्राह्मणो और मुस्लिमो का गोरिस्तान है । भले ही पाकिस्तान मे पड कर तथोक्त इस्लामिक राज्य की मुख्यनगरी रूप से जाना जाता है । किन्तु इसमे खाली पडे या मकतब बने जैन मन्दिर वैष्णव देवालय, आर्य समाज
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहान के आलोक में
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