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प्राचार्यकल्प पं. टोडरमलजी एवं मुलतान दि. जैन समाज
डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल
सम्पादक,
'आत्म धर्म' जयपुर। मुलतान दिगम्बर जैन समाज शताब्दियो से तत्वाभ्यासी एव अध्यात्म प्रेमी समाज रहा है। आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी की 225 वर्ष पूर्व लिखित महत्वपूर्ण कृति "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" काप्रेरणास्रोत मुलतान निवासी भाई खानचन्दजी, गंगाधरजी, श्रीपालजी और सिद्धारथदासजी का वह पत्र है , जिसमे उन्होने कुछ सैद्धान्तिक और अनुभवजन्य प्रश्नो के उत्तर जानना चाहे थे और जिसके उत्तर मे यह "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" लिखी गई थी।
यद्यपि आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी की यह प्रथम कृति है तथापि उसमे जो प्रौढता दिखाई देती है, वह उनके गम्भीर अध्ययन एव आत्मानुभव को स्पष्ट कर देती है। आज ऐसा कौन दिगम्बर जैन होगा जो प० टोडरमलजी के नाम से परिचित न हो। उनका "मोक्षमार्ग प्रकागक" आज घर-घर पहुच चुका है और जन-जन की वस्तु बना हुआ हैं।
___ "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" मे चचित विषय से जहा एक ओर पण्डित टोडरमलजी को विद्वता की छाप हमारे हृदयपटल पर अकित होती है, वही दूसरी ओर उसमे समागत प्रश्नो को देखकर तत्कालीन मुलतान दिगम्बर जैन समाज की रुचि, जिज्ञासा और अध्ययन के स्तर का भी सहज ज्ञान हो जाता हैं ।
यातायात की सुविधाओ के अभाव मे भी इतनी दूर तक प्रश्नो को भेजना और उनसे समाधान प्राप्त करने का प्रयत्न करना उनकी तीव्रतम रुचि और जिज्ञासा को तो प्रगट करता ही है, साथ ही प्रश्नो का उच्च स्तर देखकर उनके अध्ययन का स्तर भी ध्यान मे आये बिना नही रहता।
___ इस प्रकार हम देखते हैं कि जयपुर और मूलतान दिगम्बर जैन समाज का आध्यात्मिक सम्बन्ध उतना ही पुराना है जितना पुराना जयपुर नगर है।
जव सन् 1947 मे इस पावन देश के भारत और पाकिस्तान के रूप मे दो टुकडे हुए और मुलतान नगर पाकिस्तान मे चला गया तो मुलतान दिगम्बर जैन समाज को भा अपनी प्रिय मातृभूमि मुलतान नगर को छोडना पडा।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में