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________________ श्री चुन्नीभाईजी देसाई का जयपुर मे चातुर्मास हुआ था । ब्रह्मचारी जी का कहना था कि यदि जैन सस्कृति को कायम रखना है तो इन बडे-बडे मन्दिरो मे बच्चो को धार्मिक ज्ञान कराने की नियमित व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए । प्रयोग स्वरूप उन्होने छोटे-छोटे विद्यार्थियो को बडे सुन्दर तरीके से जैन तत्वज्ञान कराया और समाज के समक्ष प्रश्नोत्तरो द्वारा उसका परिचय कराया तो सब लोग दग रह गये । फलस्वरूप समाज की एक आमसभा आमन्त्रित की गई । ब्रह्मचारीजी ने अपने प्रवचन मे धार्मिक शिक्षा के लिये समाज से बडो मार्मिक अपील को । सभी उपस्थित सज्जनो पर इसका काफी प्रभाव पडा । विशेषत मुलतान जैन समाज के उत्साही वन्धुओ ने यह दृढ निश्चय प्रगट किया कि ब्रह्मचारीजो ने जो ज्ञानगगा समाज के बच्चो मे प्रवाहित की है वह निरन्तर चालू रहेगी। इससे समाज मे चेतना जागृत हुई और उसी समय मुलतान जैन बन्धु एव स्थानीय लोगो ने इकमुश्त एव मासिक चन्दा लिखकर व्यवस्था के लिए प्रबन्ध समिति का निर्माण किया और जैन दर्शन विद्यालय की स्थापना कर दी गई, इस तरह तबसे आज तक तन, मन, धन से इनका सहयोग विद्यालय को मिलता जा रहा है । फलस्वरूप विद्यालय चाल है । आज तक इस विद्यालय के द्वारा सकडा स्त्री, पुरुष, वच्चे “धर्म विशारद", "धर्मरत्न" एव "धर्मालकार" उपाधि परीक्षाएँ पास कर चुके हैं और समाज की धार्मिक प्रवृत्तियो मे निरन्तर सहयोग कर रहे है । मुलतान जैन समाज पुरुषार्थी व्यापारी समाज है । जब देश का विभाजन हुआ और मुलतान नगर पाकिस्तान मे चला गया तो इन बन्धुओ पर विपत्ति का पहाड टा पर ये भयभीत नही हए । यहा वे शरणार्थी बनकर जरूर आये पर आकर किसी पर भार स्वरूप नही बने और न नौकरी पेशा ही अगीकार किया। जिसके पास जो कुछ साधन था उसके अनुसार व्यापार चाल किया और अधिक परिश्रम करक चय वर्षों में ही इतने सुव्यवस्थित एव सफल व्यवसाई हो गये । आश्चर्य होता है । मुलतान से आये हुए बन्धुओ मे से कुछ वन्धु तो ऐसे मिल सकते हैं जिनकी आथि परिस्थिति साधारण हो वरना प्राय करके तो सब लक्षाधिपति हैं। यह सव इनका पुरुषाय प्रियता का ही प्रतिफल है। ___ काल दोप कहिये या स्वेच्छाचारिता, जिसके कारण यवा पीढी प्रौढ वग का अनुसरण नहीं कर रही है । वे दिन प्रति दिन जैनो के दैनिक मुख्य कर्तव्यो से भी विचालत होते जा रहे है । मैं युवावर्ग से पुरजोर अपील करू गा कि वह अपने भूतकाल को स्मरण करते हए वुजुर्गों की धार्मिक एव नैतिक परम्पराओ का समादर करेंगे एव चारित्रक समुन्नति को जीवन मे स्थान देंगे । [ 96 ० मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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