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समाज का बहुत बड़ा योगदान था। शास्त्रार्थ मे वक्ता स्वय मे और श्रोता रूप में भाग लेने वालो मे जोश, उत्साह और लगन काफी होती थी । मुलतान मे हिन्दू मुस्लिम दगे भी चाहे जव हो जाते थे । फलत सतर्क रहना पडता था । मुलतान के इन बन्धुओ मे जोश, कार्यकुशलता, निर्भीकता और अपने कर्तव्य पर आस्था शायद इस ही कारण आई हो । जब पाकिस्तान बना, देश का विभाजन हुआ तो कितनी मुसीवते वहा के बधुओ पर आई-यह हम सभी जानते हैं । पर वाहरे मुलतान के जैन बन्धुओ जिनने अपनी आराध्य जिन प्रतिमाओ को, शास्त्रो को और अपने परिवार को कठिन परिश्रम, अदम्य साहस-उत्साह से सुरक्षित जयपुर मे लाकर स्थापित किया । यह एक अपने आपमे प्रेरणादायक कहानी है जो इतिहास के पृष्ठो मे स्वर्णाक्षरो से अकित रहेगी । जयपुरवासियो ने पलक पावडे विछा दिये आपके स्वागत मे । श्रद्धेय गुरुवय प० चैनसुखदासजी का सम्बल मिला और आज जयपुर जैन समाज मे अच्छा स्थान प्राप्त कर लिया। इन वन्धुओ मे धार्मिकता, देवशास्त्र, गुरुभक्ति, साधुओ एव विद्वानो का सम्मान और आतिथ्य जन सेवा आदि कार्यो मे इनकी प्रवृत्ति जन्मजात हैअनुकरणीय है । धार्मिक आस्था, दानशीलता और पुरुषार्थ का ही यह प्रतिफल है कि इतना सुन्दर विशाल मन्दिर जयपुर मे वना लिया और महावीर कीर्तिस्तम्भ जो जयपुर मे अन्यत्र कही नही बन पाया आज इनने अपने मदिर के प्रागण मे बनवा लिया । यह एक गौरव की बात है । इतना ही नही सार्वजनिक रूप से जनसेवा के कार्यों मे ये पीछे नहीं हैं । जयपुर के प्रसिद्ध सेवा भावी चिकित्सक भाई सुशील कुमार जी वैद्य के सम्पर्क में आकर परमार्थ औषधालय मन्दिर के पीछे भवन में चला रहे है और प्रतिदिन वैद्यजी के साथ साथ स्वय भी अपना समय दे रहे है-वैद्यजी तो नि स्वार्थ सेवा रूप से कार्य करते ही हैं । जयपुर के लिये वैद्यजी भी गौरव स्वरूप हैं । इन मुलतानी वधुओ के हृदय मे सचमुच कार्य समाया हुआ है जो आदर्शनगर के नाम को सचमुच चरितार्थ करते है ।
जयपुर के उपनगर आदर्शनगर स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर की रजत जयती महोत्सव के अवसर पर मै सभी मुलतान वाले दिगम्बर जैन वन्धुओ का अभिनन्दन करता है और कामना करता हूं कि इनमे और आने वाली पीढी में इसी प्रकार धार्मिक आस्था, सेवाभाव और कर्तव्यपरायणता बनी रहे।
भंवरलाल न्यायतीर्थ
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. मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे