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पंच महाविदेह जिन पूजसां, इह विहरमान वीसूजिनवर पूजूजी भावसू। पंच महाविदेह गुरु वदसां, आचारज उवझाय भावसू ॥३॥
इह पंचदश करम भूमिने वदो, साधु निरग्रन्था जिनवर पूजी भाव सू। वदो साधु निरग्रन्था, जिनवर पूजू जी भाव सू ॥४॥
धन धन जिनवर धर्म वताया, चौवीस तीर्थकर मुक्ति सिधाया।
धन धन जिनवर .. • • • .. पच कल्याणक शत इन्द्र पाया; विनय सूविधि करी जय 2 थाया। धन धन जिनवर ॥१॥ उत्पाद व्यय ध्रौव्य सर्व बताया; द्वादश अग में गणवार गाया। धन धन जिनवर ॥२॥ षट् द्रव्य नोतत्व मेद समझाया, श्रावक मुनिवर लिंग जनाया। धन धन जिनवर ॥३॥ देव धरम गुरुतत्व सुनाया, भव्य जीवां सुन समकित पाया। धन धन जिनवर ॥४॥ सम्यक दर्श ज्ञान चरित कहाया, नेक जानहिय ध्यान लवलाया। धन धन जिनवर ॥५॥ वचन अनक्षर अमत पिलाया, जरा मरन मिटा, सुख सवाया। धन धन जिनवर ॥६॥ चौवीस तीर्थकर मुक्ति सिधाया, धन धन जिनवर धर्म बताया। धन धन जिनवर ॥७॥
(3) मुलतान नगर में चैत्य जिन शोभे, जिसमें अचल बघावन ।
तेवीसमो जिन बिम्ब विराजे, समोसरन सू सावन ।। नर नारी मिल वन्दन पावें, बलि धारो मन भावन ।
तीन प्रदक्षिण भावसू दीजे, आठ अंग भूमि लगावन ।। प्रष्ट प्रकारी सदा होवे पूजा, नित्य होवे पूजा ।।
सदा होवे पूजा, करत महा भविजन प्रारती । प्रारती करतां पाप सब जावें, दोष सब जावें, गीत गाओ भले भावसू।
जिनवर वारणी अर्थ विचारो, पढो सुनो भवि जन भला, मिथ्या मतादूर निवारो, दिन दिन यश प्रति को करन । दिन दिन यश अति की करन ।
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देवा पूजन रो चाव हो, हम अष्टापद में जायस्यां जी।।
मायारी मरुदेव्या जी रो पुत्र हो, हम प्रादिनाथ देव जुहारस्यां जी हम पहले गमत्यां पूजसा जी, देरा पुजन रो चाव हो ॥१॥
___ हम चम्पापुर में जायस्यां जी, माया जयावती रो पुत्र हो । हम वासुपूज्य जुहारस्यां जी, हम पहले गमत्यां पूजस्यां जी।
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मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में