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________________ अपनी ओर से मझे इस पुस्तक के सन्दर्भ मे यह कहना है कि इसके सकलन तथा सपादन एव प्रकाशन मे यदि किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि रह गई हो तो उसे मेरी अल्पबद्धि ही मानकर क्षमा करने की कृपा करे । यद्यपि मेरी ओर से यथाशक्ति यही चेष्टा रही है कि समाज से सम्बन्धित उल्लेखनीय विवरण अप्रकाशित न रहे पर फिर भी पूर्वाभ्यास. सीमित वृद्धि, शारीरिक स्वास्थ्य, एव सन्तोषप्रद मनोनुकूल परिस्थितियाँ नही होने से अन्जान मे यदि किसी परिवार परिचय मे तथा विशिष्ट जन के विवरण मे कोई विशेष वत्तात का समावेश होने से रह गया हो तो उसकी भूल के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरी ओर से पूरी सतर्कता बरतने मे कोई कसर नही रखो है फिर भी किसी की दृष्टि मे कोई अभिष्ट प्रकरण प्रकाशित होने से रह गया हो अथवा यथास्थान न हो तो क्षम्य समझा जावे। __ ओसवाल दि० जैन परिवारो का बाहुल्य प्राय मुलतान डेरागाजीखान, मजफ्फरगढ आदि (वर्तमान पाकिस्तान) नगरो तक ही सीमित था । यह समाज कब से वहाँ था यह खोज का विषय है किन्तु 15 वी शताब्दी से अस्तित्व के सकेत अवश्य मिलते है, तथा तथ्यो के आधार पर यह भ्रान्ति भी निर्मूल हो जाती है कि यह सब श्वेताम्बर से दिगम्बर हुए होगे । मुलतान दि० जैन समाज का अब तक कोई क्रमबद्ध इतिहास लिपिबद्ध नही था, जबकि यह नितान्त आवश्यक है और इसका अभाव निरन्तर अखर रहा था। इतिहास कालावधि मे समाजिक कार्यकलापो का दिग्दर्शन कराता है और स्वरूप वोध कराने में सहायक होने से उपादेयता को दृष्टि से भी आवश्यक होता है । इसी दृष्टि से यह पुस्तक लिखो गई है । इसमे मुलतान प्रदेश को धार्मिक, आर्थिक एव सामरिक दृष्टि से महत्व वर्धमान नौलखा का पाडित्य, उनकी सुपुत्री कवयित्नी अमोलका वाई की कृतिया विशेष उल्लेखनीय हैं । जयपुर से मुलतान मे दी गई प्रवर पडित टोडरमल की महान रहस्पपूर्ग चिट्ठी वर्तमान सिंगवो परिवार के जनक यशस्वो श्री लुणिन्दामल जी की जीवनी का दिग्दर्शन, मुलतान मे हुए कवि दौलतराम जी को भी उजागर किया गया है। समाज की प्राचीनता पर तो प्रकाश डाला ही है, गत शताब्दि के कतिपय कुछ महानुभावो की जीवन झाकियो का भी समावेश किया गया है । भारत विभाजन का करुण दृश्य दिल्ली तथा जयपुर बसने का वृत्तान्त एवं आदर्शनगर, जयपुर मे बने दि० जैन मन्दिर, महावीर कीर्ति स्तम्भ, महावीर कल्याण केन्द्र एवं सामाजिक गतिविधियो का सक्षिप्त परिचय दिया गया है। इसके अतिरिक्त विशेष व्यक्तियो एवं समाज के परिवारो का परिचय दिए जाने का प्रयास किया गया है । मुलतान दि० जैन समाज के विषय मे भारतवर्षीय दि० जैन विद्वानो के विचार भी उद्धृत किए गये हैं।
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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