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________________ श्री मन्दिर जी के रजत जयन्ती एवं महावीर कीर्ति स्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा समारोह के उपलक्ष मे "मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे" पुरतक का प्रकागन अति प्रसन्नता का विपय है। इस इतिहास से समाज का ओसवाल होते हुए दिगम्बर होने की प्राचीनता का सम्यक् परिचय मिलता है । इस अवलोकन से काफी प्राचीन तत्व इसके समर्थन मे प्रकाश मे आये है । इनमे से कुछ मुख्य ऐसे है-जैसे श्री 1008 भगवान पार्श्वनाथ की सवत् 1481 की मुलतान दि० जैन मन्दिर की मूलनायक प्रतिविम्ब थी। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वहा भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा प्रचलित थी । मुलतान दुर्ग ने प्राप्त भगवान पार्श्वनाथ की ही सवत् 1548 वैशाख सुदी 3 की प्रतिष्ठित प्रतिविम्ब इस बात को और पुष्ट करती है। इसके अतिरिक्त सवत् 1565, 1638, 1883, 1 आदि की प्रतिमाये वहा दिगम्बर जैन धर्म की प्राचीनता का प्रमाण है। इस प्रकार सवत् 1745, 1748, 1750, 1778 के हस्तलिखित ग्रन्थो से पता लगता है कि वहा का समाज दिगम्वरत्व मे आस्था रखता था । मुलतान से 60 मील दूर सिन्धु नदी के किनारे रागाजीखान मे भी दि० जैन समाज इतना ही प्रचीन है। जिसके मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा (मति) सवत् लिखने की पद्धति से भी पूर्व की है। ऐसा प्रतीत होता है कि दिगम्बर साधुओ का मध्यकाल मे लोप प्राय होने से जैन समाज के पारस्परिक सम्वन्ध उतने निकट नही रह पाये । परन्तु प० टोडरमल जो की रहस्यपूर्ण चिट्ठी परस्पर तात्विक एव वैचारिक सम्बन्धो को प्रदर्शित करती है। ब. कुमारी कौशल
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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