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कभी कभी त्यागी व्रतियो का भी मुलतान मे समागम होता रहता था ब्रह्मचारी पं० शीतल प्रसादजी का तीन वार चतुर्मास सुलतान मे हुआ, फलस्वरूप समाज को तात्विक एन भेदविज्ञानपरक आध्यात्मिक प्रवचनो का अपूर्व धर्म लाभ मिलता था, इसी प्रकार एक बार ऐलक पन्नालालजी का भी मुलतान मे शुभागमन हुआ जिससे लगभग सात दिन तक धर्म की अमृत वर्षा होती रही।
इसी प्रकार मुलतान नगर के बाहर श्रीमान दासूरामजी सुखानन्दजी गोलेछा ने अपने बाग में चैत्यालय का निर्माण कराया था जिसकी विक्रम सवत् 1992 मे वेदी प्रतिष्ठा के रूप मे समाज ने एक सप्त दिवसीय अभूतपूर्व जलसे का आयोजन किया, जिसमे मुलतान के साथ डेरागाजीखान की पूरी समाज एव भजनमण्डली ने भी आकर भाग लिया तथा उस जलसे की शोभा यात्रा के लिये डेरागाजोखान से रथ एव कृत्रिम विशाल हाथी तथा शोभा का अन्य लवाजमा मगाया गया था, इसके अतिरिक्त विशेष आकर्षण का केन्द्र फिरोजपुर से मगाया गया दो घोडो का विशाल अपूर्ण कलात्मक रथ या।
उन दिनो मूलतान मे हिन्दू मुस्लिम के भारी दगो से वहाँ का वातावरण अशात एन भयावह होने पर भी धर्म के प्रभाव से वह अपूर्व मनोरम गोभा यात्रा वगीचे से प्रमुख वाजारो मे होकर निविघ्न तथा धूमधाम के साथ शहर के मन्दिर तक सानन्द सम्पन्न हुई। इस प्रभावशाली शोभा यात्रा की स्मृति वर्षों तक जैन जैनेतर समाज मे वनी रही।
इसी तरह समय-समय पर विशेष धार्मिक आयोजन जैसे सिद्ध चक्र विधान, त्रिलोक मण्डल विधान, अढाई द्वीप विधान आदि बडे उत्साहपूर्वक मनाये जाते थे जिनमे सम्पूर्ण समाज वडे उत्साह के साथ भाग लेती थी।
पजाव प्रदेश मे अम्बाला एव मुलतान ही ऐसे नगर थे जहा की दिगम्बर जैन समाज अधिक क्रियाशील थी और समाज की कितनी ही गतिविधियो का वह केन्द्र थो । अम्बाला मे 'शास्त्रार्थ सघ' की स्थापना एव मुलतान से जैन दर्शन' मासिक पन का प्रकाशन उम समय की प्रमुख घटना रही। इन दिनो आर्य समाज के साथ खूब शास्त्रार्थ होते रहते थे और इसका प्रमुख केन्द्र भी पजाव के दो चार नगर ही थे। मुलतान समाज जैन विद्वानो एव शास्त्रार्थ सघ को पूरा सहयोग देती थी। मुलतान मे भी आर्य समाज के साथ गास्त्रार्थ हुआ था जिसमे जैन समाज की ही जीत हुई थी और उस जीत के फलम्बरूप म्वामी कर्मानन्दजी जो आर्य समाज के चोटी के दिग्गज विद्वान थे जैन धर्म मे दीक्षित हो गये । मुलतान समाज ही था जिसने सर्वप्रथम स्वामीजी को गले लगाया और समाज मे साधर्मी भाई की तरह उनको रखने लगा।
मन् 1924 मे मुलनान मे पडित अजितकुमारजी गास्त्री के आगमन से भी नमाज मे एक नयो चेतना जागृत हुई। एक ओर पडितजी ने पूरे समाज को धार्मिक विद्या से शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और अपने आपको मुलतान समाज की मेवा मे पूर्णत
मुन्नान दिन जैन नमाज-दतिहास के आलोक में