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समर्पित कर दिया तो दूसरी ओर मुलतान समाज मे शास्त्रीजी के धार्मिक एवं सामाजिक कार्यो मे परामर्श को सबसे अधिक महत्व दिया जाने लगा तथा पडितजी की प्रत्येक आवश्यकता का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाने लगा ।
यह युग सामाजिक जागृति का युग था । सामाजिक सस्थाओ के जन्म का युग था तथा सामाजिक बुराइयो के प्रति जिहाद बोलने का था । ऐसे समय मे मलतान समाज भी पीछे नही रहा । यहा भी समाज पूर्णत समर्पित था और धर्म पर, समाज पर एव दिगम्बर संस्कृति पर जो भी विपत्ति आती उसका डटकर मुकाबला किया जाता था । मुलतान मे उस समय दिगम्बर जैन, ओसवालो के करीब 70 परिवार थे जिनमे सिघवी, गोलेछा, वगवानी, ननगाणी, नौलखा, दुग्गड आदि थे । नौलखा परिवार मुलतान दिगम्बर जैन समाज मे प्राचीनतम परिवारो मे से एक माना गया है क्योकि इसमे अमोलका बाई आदि का प्रमुख स्थान रहा है । और कुछ अग्रवाल दिगम्बर जैन परिवार भी थे। जिनमे रामजी दास परमानन्द आदि के परिवार मुख्य थे जो राजकीय सेवा मे मुलतान आये थे । वे लोग भी धर्मिष्ठ एवं अच्छे तत्व प्रेमी थे । सवत् 1980 मे रामजीदास ने जयपुर के महान दौलतरामजी कासलीवाल के "परमात्म प्रकाश" भाषा टीका की एक प्रति लिखवाकर मुलतान के मन्दिर को भेट स्वरूप प्रदान की थी और श्री रामजीदास तो कई वर्षो तक मुलतान दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष भी रहे ।
उसी प्रकार श्री परमानन्दजी भी शास्त्रो के अच्छे ज्ञाता, तत्व अभ्यासी एव शास्त्र सभा के प्रमुख स्रोता थे । इस प्रकार मुलतान मे रहने वाले सभी जातियो के परिवारो मे भाईचारा, एक दूसरे के प्रति वात्सल्य एव प्रत्येक क्षेत्र मे आपस मे सहयोग के साथ आगे वढने की भावना थी । वास्तव मे इन वर्षो का मुलतान समाज एक आदर्श समाज के रूप में विख्यात था ।
दिगम्बर जैन मन्दिर
मुलतान नगर पर पंजाब का प्रमुख नगर होने के कारण उस पर मुसलमानों के बरावर आक्रमण होते रहे इसलिये न जाने कितनो वार मन्दिरो का विन एव पुनर्निर्माण भी हुआ होगा । कुछ दिगम्बर जैन परिवार दुर्ग (किले) मे रहते थे और इन्होने वही पर अपना मन्दिर भी बना रखा था लेकिन जब लड़ाई में मुल्तान दुर्ग ध्वस्त हुआ तो उसके साथ मन्दिर, मूर्तियाँ, पाण्डुलिपियों एवं अन्य बहुमूल्य नाम भी नष्ट हो गई । जैन बन्धुओ को किला छोड़कर शहर में आकर रहना पड़
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के बालक ने
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