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________________ जिन विम्बो की प्रतिष्ठा की गयी थी । मुलतान के भी कुछ श्रावक इस प्रतिष्ठा महोत्सव मे सम्मिलित हुये थे। उन्होने मलतान के दिगम्बर जैन मन्दिर के लिए कुछ मूर्तियो की प्रतिष्ठा भी करवायी थी जो आज वहा के मन्दिर मे विराजमान हैं । सम्वत् 1901 से 2004 तक (अगस्त 1947 भारत विभाजन तक) मुलतान का दिगम्बर जैन समाज अपनी धार्मिकता, साधर्मी जनो के प्रति सहज वात्सल्य एव सामाजिक जाग्रति के कारण सारे देश मे प्रसिद्ध हो गया । पजाब के नगरो मे ही नही किन्तु राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, देहली आदि सभी प्रान्तो के श्रावक मुलतान जाते और मुलतानवासी वन्धु अन्य प्रान्तो की यात्रा करते रहते । देश मे अ ग्रेजी शासन का विस्तार हो रहा था और उस समय पजाब मे अ ग्रेजी शासन स्थापित हो चुका था । सामान्यत सर्वत्र शान्ति व्याप्त थी इसलिए मुलतान से अन्य नगरो मे जाने आने का कार्य वरावर चाल था । मुलतान का और देहली के उपनगर पालम एव जिहानावाद का विशेष सम्बन्ध हो गया था । इन दोनो ही उपनगरो मे उस समय ग्रन्थो के प्रतिलिपि करवाने की अच्छी व्यवस्था थी इसलिए मुलतान के श्रावक यहा आते ही रहते और हस्तलिखित पाण्डुलिपियो को खरीद कर अपने नगर के मन्दिर मे विराजमान कर दिया करते थे। जयपुर, आगरा, अजमेर एव इन्दौर की दिगम्बर जैन समाज से वहा की समाज का अच्छा सम्पर्क था । 'सुदृष्टि तरगिणी' जयपुर के विद्वान टेकचन्द की रचना है । सवत 1823 मे प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी थी। इस समय टोडरमल जी का युग था और उनके यूग के अनुसार ही इस ग्रन्थ की रचना सम्पन्न हुई थी। इसी ग्रन्थ की प्रतिलिपि जयपुर के निवासी महात्मा गदचन्द ने जिहानाबाद मे की थी । उसको लिखाने वाले थे गोयल गोत्रीय सनेहीलाल जैनाग्रवाल । सवत 1902 मे पहिले देहली के हरसुखराय के मन्दिर मे ग्रन्थ को विराजमान किया गया लेकिन बाद मे मुलतान समाज के आग्रह से उसे मुलतान के शास्त्र भण्डार मे भेट म्वरूप दिया गया । सददष्टितरगीणी-लिखतं गदचंदमहात्मा वासी सवाई जयपुर का हाल सुसवान दिल्ली जीहानावाद जैसिंघपुरा मध्ये । लिखायत लाला सनेहीलाल न्यात अगरवाल श्रावक जैनी गोत्र गोयल वासी हिसाकहै के हाल सुवखात दिल्ली जिहानाबाद मध्ये अनार की गली मध्ये सहली लाला हरसुखराय के मन्दिर मध्ये लिसी मिती श्रावण सुदी 4 गुरुवासरे सवत 1902 । मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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