SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपके श्री जगदीशलाल जी, रमेश कुमार, बालकिशन, भारतभूषण, अनिलकुमार व विनोदकुमार छ पुत्र एव दो पुत्रिया है । जो बहुत ही होनहार और भाग्यशाली है । आपका व्यवसाय सेवाराम त्रिलोकचन्द जनरल मर्चेन्ट्स, कटला पुरोहित जी जयपुर मे था। श्री प्रेमचंद जी के पुत्र श्री जगदीशलाल जी आप श्री प्रेमचन्द जी के बडे पत्र है, सरल-स्वभावी एव धर्मज्ञ है। दिल्ली में रहते हैं और अपने परिवार के साथ दिल्ली कार्यालय में कार्यरत है । आपकी धर्मपत्नी का नाम त्रिशला देवो है । राजेश एक मात्र पुत्र है। श्री रमेशकुमार जी आप श्री प्रेमचन्द जी के द्वितीय पुन्न है, विशेष होनहार, बुद्धिजीवी एव कर्मठ कार्यकर्ता है जिन्होने साधारण परिस्थिति मे असीम पुरुषार्थ करके स्वय रत्नो,का व्यवसाय प्रारम्भ किया और अपने ही बल पर विदेश यात्राए की और वहाँ पर आपने स्थाई व्यवसाय प्रारम्भ किया तथा आज एक उच्चकोटि के जौहरी है एव समाज मे धार्मिक आस्था मे बहुत रुचि है। विदेश मे रहते हुए भी रात्रि भोजन एव सप्त व्यसनादिक त्यागी अष्ट मूलगुण का भलीभाति पालन करते है । आपकी परोपकार, दान आदि मे भी अच्छी रुचि है । आपन महावीर कल्याण केन्द्र के ऊपर की मजिल मे पाठशाला के लिए भवन बनाने मे अच्छा आर्थिक योगदान दिया है, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियो मे भाग लेते हुए समाज में आदर्श जैन मिशन की स्थापना मे प्रमुख भाग लिया है तथा राजनीति मे भी आपकी काफी रुचि है और उसमे भी कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते रहते है। आप अपने सब भाइयो को साथ लेकर अपने पद चिन्हो पर चलने की प्रेरणा देते रहते है, तथा उन्हे भी अपने काम का अच्छा व्यवसायी साथी बना लिया है । आपकी धर्मपत्नी का नाम किरण जैन है व रितेश पुत्र एव एक पुत्री है । निवास 579 आदर्शनगर जयपुर मे है । श्रीबालकिशन जी आप प्रेमचन्द जी के तीसरे पत्र है आप अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते हुए पश्चिमी जर्मनी कार्यालय में कार्यरत है। आपकी धर्मपत्नी का नाम चित्रा जैन है व अपने परिवार के साथ सयुक्त रूप से रहते है। श्री प्रेमचन्द जी के बाकी तीन पत्र भारतभषण, अनिल कुमार एव विनोद कुमार अभी अविवाहित है जो विद्या अध्ययन कर रहै हैं तथा अपने परिवार के साथ व्यवसाय करते है। 136 ] मुसतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के मासोक मे .
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy