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और भाचार्य विना किसी प्रकार की बाधा के बिहार करते थे तथा जन-जन को अहिंसा और विश्व-मैत्री का पाठ पढाते थे। दक्षिण मे अनेक राजाओ ने जैनधर्म स्वीकार कर उसके प्रचार-प्रसार मे योग दिया। इसी तरह महाराजा खारवेल एव सम्राट चन्द्रगुप्त जैसे और भी अनेक शासक हुए जिन्होने अपने शासनकाल मे इस धर्म को चलाया एव उसका विस्तार किया ।
जैन धर्म भारत तक ही सीमित नही रहा अपितु भारत से बाहर विदेशो मे भी इसका अच्छा-प्रचार-हुआ-। अफगानिस्तान मे जैन मन्दिर तथा जैनधर्म को मानने वाले थे, इस बात की पुष्टि कितने ही ऐतिहासिक तथ्यो से मिलती है। इसी तरह मिश्र, ईरान, लका, नेपाल, भूटॉन-एव-तिब्बत और वर्मा आदि देशो मे भी जैनधर्म का प्रचार था । यह इन देशों मे समय-समय पर प्राप्त मूर्तियो एव अन्य सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है। . . पजाव भारतीय सस्कृति का प्रमुख केन्द्र माना जाता है । वैदिक आर्यो-के भारत आने से पूर्व यहा जो सस्कृति विद्यमान थी वह श्रमण सस्कृति थी और उसका भी पहिले पजाव मे प्रमुख स्थान था । सभी इतिहासकारो का विश्वास है कि ऋग्वेद की रचना भी इसी प्रदेश में हुई थी। इसलिए इस प्रदेश मे श्रमण-सस्कृति और वैदिक-सस्कृति साथ-साथ पल्लवित होती रही । लेकिन अ ग्रेजो के पूर्व जितने भी आक्रमणकारी आये उन्होने सिन्ध और पजाव की सस्कृति को सबसे अधिक हानि पह चायी और इसे विकसित होने का अवसर नही दिया। इसलिए जब कभी इस प्रदेश मे खुदाई होती है तो प्राचीनतम सस्कृति के नये-नये तथ्य सामने आते हैं। पंजाब में जैन धर्म . : मोहनजोदडो एव हडप्पा की खुदाई से भारतीय सस्कृति बहुत प्राचीन सिद्ध हो चुकी है। उक्त दोनो स्थान वर्तमान सिन्ध प्रदेश के लरकाना जिले मे तथा पजाब के मोन्टगुमरी नामक स्थान के समीप स्थित है। उस समय इस प्रदेश का नाम पजाव नहीं था किन्तु पजाब प्रदेश विभिन्न प्रदेशो के नाम से विख्यात ,था। अकबर के शासन काल मे लाहौर, मुलतान, सरहिन्द एव भटिण्डा,ये,चार प्रान्त थे। बाद मे अकबर ने और भी स्थानो पर विजय प्राप्त करली । इसलिये ऐसा मालुम पडता है कि पजाव शव्द मुस्लिम बादशाहो का दिया हुआ है क्योकि इस प्रदेश मे सतलज, व्यास, रावी, चिनाब एव झेलम ये पाच नदिया है । पज़ाब शब्द फारसी एवं उर्दू भाषा मे पज+आब इन दो शब्दो से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है पाच नदियो वाला प्रदेश । लेकिन प्राचीन साहित्य मे इस प्रदेश का नाम "वाहिक प्रदेश" था जिसका उल्लेख महाभारत में किया गया है। भगवान महावीर के परम भक्त राजा श्रेणिक को वाहिक वासी कहा गया है। राजा श्रेणिक शिशुनाग वशी था। ईसा से 642 वर्ष पूर्व शिशुनाग ने इस वश की स्थापना की थी और अंगिक इस वश का पाचवा.राजा था। इसके पूर्वज पजाब से मगध मे कब बस गये थे यह अभी खोज का विषय है । इसके अतिरिक्त सिन्ध, बिलोचिस्तान, कच्छ, उत्तरी-पश्चिमी-सीमान्त प्रान्त एव अफगानिस्तान आदि प्रदेशो से चन्ह-दडो, लोहुजदडो, कोहीरो, नम्री, नाल, अलीमुराद सक्कर-जो-दडो, काहु जो-दडो आदि विभिन्न स्थानो पर जो खुदाई हुई है, जिसके आधार परं भारतीय संस्कृति की विपुल सामग्री प्राप्त हुई है । पुरातत्वविज्ञो ने इस सभ्यता की सिन्धु 1. पचाना सिन्धु षोष्टानां नदीना ये अन्तराश्रिता वाहिकानाम देश - __ महाभारत अ० 44 श्लोक 7
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे