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________________ श्री मनोहरलालजी श्री वल्लभदासजी के द्वितीय पुत्र हैं। संगीत विद्या मे आपकी बहत रचि है, आपने अपनी भजन मडली भी बना रखी है। समय-समय पर होने वाले उत्सवो व शोभा यात्राओ आदि मे भजन मडली द्वारा कार्यक्रम देकर उनकी शोभा बढाते एव उसे सफल बनाते हैं। आप सगीत रचना भी करते है। आपकी धर्मपत्नी सुलोचना देवी एक विदुषी महिला हैं । यह सेन्ट्रल स्कूल में अध्यापिका है एवं आप महारानी गायत्री देवी स्कूल में कार्यरत हैं । आपके राकेश, दिनेश मात्र दो पुत्र हैं। आप अपने सयुक्त परिवार के साथ 143 परनामी व्लाक मे रहते है। श्री भीमसेनजी श्री वल्लभदासजी के तीसरे पुत्र हैं। आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमती निर्मला देवी हैं । आपके शरद जैन एक पुत्र एव एक पुत्री है। अपने परिवार के साथ रहते हैं, जगदीश जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी मे अपने भाइयो के साथ कार्य करते हैं । श्री जगदीशकुमाजी श्री वल्लभदासजी के चौथे पुत्र हैं। अच्छे उत्साही और कर्मठ कार्यकर्ता है। आपने अपने परिवार को ऊँचा उठाने मे पूर्ण योग दिया है आपकी धर्मपत्नी का नाम भुवनेश है । आपके अमित व टिकू दो पुत्र है । आप अपने भाइयो के साथ रहते और जगदीश जनरल स्टोर कटला पुरोहितजी मे जनरल मर्चेन्टस का कार्य करते हैं । श्री अर्जुनलालजी श्री वल्लभदासजी के पाचवे पुत्र है। कर्मठ एव उत्साही नवयुवक है। स्कूली शिक्षा के वाद बम्बई की किसी उच्च सस्थान मे एजेन्ट का कार्य करते हैं । अपने परिवार के साथ 143 परनामी ब्लाक मे रहते है । आप अभी अविवाहित हैं। श्री गणेशदासजी श्री गणेशदासजी श्री सन्तीरामजी के तृतीय पुत्र है । पाकिस्तान बनने से पहले आप डेरागाजीखान मे श्री घनश्यामदास गणेशदास के नाम से चूडी आदि का व्यवसाय करते थे। आज आप जयपुर में रहते है एव भावो से शाति प्रिय एवं भद्र परिणामी है अर्हत भक्ति मे आपकी विशेप रुचि है। 75 वर्ष की आय मे भी आप नित्य पूजन आदि करते है । आपकी धर्मपत्नी का नाम प्यारीवाई है। आपके इन्द्रभान, पदमकुमार, प्रकाशचन्द, जवाहरलाल एव सुभापकुमार पाच पुत्र एव दो पुत्रिया हैं । प्यवनाय - वनश्यामदाम, गणेणदास कटला पुरोहितजी जयपुर तथा निवास 141 फ्रान्टियर कालोनी, आदर्शनगर, जयपुर-4 मे है TY के RAA women -- -- 140 ] मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के बालोक में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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