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चौवीसी पूजा, सवत् 1830 मे आदिपुराण भाषा, सवत् 1889 मे हरिवश पुराण भाषा जैसे ग्रन्थो की प्रतियो के नाम उल्लेखनीय है । लेकिन सवत् 1811 मे पं० टोडरमलजी द्वारा जो रहस्य पूर्ण चिट्ठी लिखी गयी थी उसकी मूल प्रति सुरक्षित नही रह सकी । पता नही वह कहा चली गयी । किन्तु उसकी एक प्रतिलिपि रखने में अवश्य मुलतान समाज सफल हो गयी । यह प्रतिलिपि सवत् 1971 मे लिखी गई है । जिसकी सही प्रतिलिपि पूर्व पृष्ठो मे आ चुकी है |
सवत् 1900 से यद्यपि छपाई ( मुद्रण ) का युग आ गया था । शास्त्रो का प्रकाशन प्रारम्भ हो गया था तथा बम्बई, सूरत, सागर, जयपुर, वाराणसी, देहली एव कलकत्ता आदि नगरो से कितने ही ग्रन्थ प्रकाशित होने लगे थे । यद्यपि कुछ विद्वानो ने ग्रन्थो को छपाने का प्रारम्भ मे विरोध भी किया लेकिन उनकी एक भो नही चली और हमारे सभी विषयो के ग्रन्थ प्रकाशित होने लगे । फिर भी जैन मुलतान समाज द्वारा शताब्दि के अन्त तक मन्दिर के शास्त्र भण्डार मे हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह पूरे वेग से किया जाता रहा । सवत् 1923 मे अर्थ प्रकाशिका की प्रतिलिपि करवायी गई जो प० सदासुख कासलीवाल जयपुर वालो की बहुत सुन्दर कृति है । इस शताब्दि मे कुछ प्रमुख ग्रन्थो की प्रतिलिपियाँ जो भण्डार मे हैं, ऐतिहासिक दृष्टि से उत्तम है, वे निम्न प्रकार है
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1
2
3 कार्तिकेयनुप्रेक्षा
4
5
7
8
9
आचारसार भाषा
उत्तरपुराण भाषा
गोम्मटसार भाषा
चिट्ठी रहस्यपूर्ण जिनदत्तचरित भाषा
तत्वार्थसूत्र वचनिका
दौलत विलास
धर्मविलास
10
नागकुमार चरित भाषा
11 नेमीनाथ पुराण भाषा
12
13
14
15
पद्मपुराण भाषा
पाडवपुराण भाषा
पारस विलास
रत्नकरण्ड श्रावकाचार भाषा
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे
प० पन्नालालजी चौधरी
प० जयचन्द छाबडा प० टोडरमलजी
प० टोडरमलजी
दौलतरामजी
द्यानतरायजी
सवत्
1934
1981
1958
1931
1971
1977
1910
1981
1954
1955
1925
1933
1948
पार्श्वदास निगोत्या पं० सदासुखजी कासलीवाल 1925
दौलतरामजी
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