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प्रात समय सूर्य का प्रकाश भया । वदीजन मधुर मधुर स्वर सहित गीति गायते हते । अनेक प्रकार घर घर विषै मगल होते भये । ता समय भेरी का गब्द मुनि कटि क्षीण भई है निन्द्रा जाकी ऐसी प्रजावती राणी समस्त मगल की धरण हारी, प्रबोध प्राप्ति भई । सती जिन पल्यक से उठि करि समस्त मगल की मिद्वि अथि सामायिकादि धर्मध्याण करती हुई ।
मल्लिनाथ चरित्र भाषा का आदि भाग निम्न प्रकार है
ॐ नमः सिध्देभ्यः। अथ मल्लनाथ चरित्र लिख्यते । प्रथम ही मगलाचरण निमिति चौवीस तीर्थकरनि को नमस्कार करे हैं । दोहा
श्री आदीश्वर आदि पुनि अंत समय जिनवीर ।
नमो जोरि करि ते हम, देउ बुद्धि गम्भीर ॥ जिनवाणी को नमस्कार
श्री जिनवर वागीश्वरी सप्तभग मय सार ।
नमो जोरि करि सो हमै होह सुमति दातार । गुरुनि को नमस्कार-गतागत दोहा
नमौ जतन वसि वपु तजौ तपु वसि वन तजि भौन ।
नमो चरण गुरुवर तपो तरवर गुण रचि मौन । दोहा
मल्ल जिणेस असल्य होइ, पायो अविचल थान । मति माफिक तिनि को अगम, कहो चरित्र वधान ॥
___ संवत् 1851 से 1900 तक सम्वत 1851 से 1900 का काल मुलतान समाज के लिए अधिक उत्साहवर्धक सिद्ध नहीं हुआ । इन वर्षो मे विभिन्न श्रावको द्वारा ग्रन्थो की प्रतिलिपिया करवा कर शास्त्र भण्डार मे विराजमान की गयी। लेकिन स्वाध्याय की उस परम्परा मे कुछ शिथिलता आयी लगती है। यद्यपि बनारसीदास का समयसार नाटक समाज मे सर्वाधिक लोकप्रिय कृति मानी जाती रही लेकिन मुलतान जैन समाज का इसके प्रति पहिले जैसा आकर्षण नही रहा ।।
सवत 1868 मे उकेश वश मे प्यारामल दुग्गड हुए । ये धार्मिक प्रवृति के श्रावक थे। इन्होने अपने स्वय के पढने के लिए मुलतान मे ही तत्वार्थ सूत्र सस्कृत टीका की प्रतिलिपि करवायी। प्रति लिपि से यह स्पष्ट है कि मुलतान मे उस समय सस्कृत के पाठी श्रावक थे ।। 1. तत्वार्थ सूत्रटीका-सर्वार्थसिद्धि , अपूर्ण, पत्र संख्या 149 । संवत 1868 वर्षे
फागण सुदी 5 मूलचक्र मध्ये लिखावंत उकेशवंशे जेकामल जी तत्पुत्र सूबेराय जी तत्पुत्र प्यारामल दुगर पठनार्थ ।
• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
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