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वचनिका को आसानन्द कृत लिख दिया गया है। जबकि यह भाई गयमल्ल द्वाग लिखा गया एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है तथा जिसको प्रतिलिपि जयपुर के भण्डारो मे सग्रहीन है । श्रावकाचारों की प्रतिलिपिया प्राप्त करने की इच्छ क समाज द्वारा इस के अगले वर्ष मागचन्द वृत अमितगति श्रावकाचार भापा की प्रति संग्रहीत की गयी। भागचन्दजी ने मवत 1920 मे इसे ग्वालियर छावनी के मन्दिर में समाप्त की थी। जब मुलतान समाज को श्रावकाचार के बारे मे जानकारी मिली तो पालम नगर मे प० सुगनचन्द से प्रतिलिपि करवाई गयी और उसे शास्त्र भण्डार में विराजमान किया गया । कल्याणीबाई
मुलतान मे महिलाओ मे भी स्वाध्याय एवं तत्वचर्चा की अच्छी प्रवृति थी। पहिले हम माणकदेवी एव अमोलका वार्ड का परिचय दे चुके हैं। अमोलमा बाई के समान कल्याणी वाई यद्यपि कवयत्री नही थी लेकिन ग्रन्थों के पढने में बडी रुचि लेती थी-I कल्याणीवाई कौन थी तथा उसके माता पिता एवं पति के नाम क्या थे इसका अभी पता नही चला सका है। लेकिन मुलतान दि० जैन मन्दिर आदर्शनगर मे कुछ अन्य ऐसे है जिनके पीछे "यह ग्रन्थ कल्याणी बाई का है" इस प्रकार लिखा हआ है। ऐमे ग्रन्थो मे नेमिचन्द्रिका, क्रियासार एव योगसार भाषा के नाम उल्लेखनीय है ।
इस प्रकार समाज में अनेक उदार, धर्मनिष्ठ एवं समाजसेवी व्यक्ति हुए । समाज में एसे बहुत से महानुभाव थे जिसके हदय में सदैव समाजहित की चिन्ता रहती थी, तथा उनकी भगवान महावीर के सिद्धान्तों के प्रचार प्रसार मे रुचि थी। कुछ अपनी माधना द्वारा धर्म की महिमा को प्रकट करना चाहते थे तथा वहुत से धनिक एवं सम्पन्न व्यक्ति गरीवा एवं बेरोजगारी को सहारा देने मे बडी प्रसन्नता का अनुभव करते थे। इसलिये सबका विस्तृत परिचय देना तो सभव नहीं है किन्तु यहा कुछ विशिष्ट ममाज सेवियो का सक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है
1. श्रावकाचार भाषा वचनिका-ज्ञानानन्द पूरित निरभर निजरस नामः संवत 16
राजत केवल ज्ञान जुत परम औदारिककाय । निरखि छवि भवि छकत है पो रस सहज सुनाय । इति श्री श्रावकाचार भाषा वचनिका• आसानन्दकृतः सम्पर्णन । अथ शुभ संवत 1938 श्रावण कृणा प्रतिपदायां भौमे लिपिकृतं सेवालय विप्रेण स्वपठनार्थ भाई 'राजाराम ओसवाल मुलतान देश मध्ये । अमितिगति प्रावकाचार भाषां-भागचन्द । पत्र संख्या 218 । रचना काल संवत 1920 आषाढ की अष्टान्हिका । लिपिकाल संवत 1939 लिख्यत सुगनचन्द श्रावक जैसवाल पालम ग्राम मध्ये । रचना स्थान : ग्वालियर के पास छावनी : पार्श्वनाथ जिनालय ।
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• मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास. आलोक मेने