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समकित सूर प्रगट थया रे, मिथ्या रजनी दूर । सुज्ञानी नवा न प्रगटे अकुर रे । सुज्ञानी आगम ने धर आसरे । सुज्ञानी रे, आरुव ने कर त्याग रे । सुज्ञानी त्रिया बुद्धि अनुसार रे । सुज्ञानी मन्द छै रे, गुण अनन्त अपार रे । सुज्ञानी मानी, मैं तो गुरू वचना यो जाणी ।
पूर्व ला बन्ध भोगव्या रे, संसारी जे प्राणिआं रे, गजता विरला जान जो शास्त्र गमत्या अल्प छै रे, कहन शक्ति मुझ मेरे बात ऐसी मन
नाशे दुबिधा सुती दूर रे । सुज्ञानी संवर
विज्ञानी रे, ए वल निश्चय नय इम जाणो रे । आनोरे, तातै निज गुण नही पिछान्यो रे || सवर रसिया कि मुनि सुख पावें र लाल । सवर रसिया कि इन्द्रिय मन जीत्या रे, आत्म ध्यानसू लांगे डीपा रे । संवर केरा के सुख अगाधा रे, अंतर तिल भर नहीं है बाधा रे । सवर रसिया । मेद विज्ञानी प्रगट सुख पाधे रे । पूर्वला सो शुभाशुभ खिरता रे ॥ संवर रसिया ० पाले पूरा रे । भाव न आवे रे । संवर रसिया ० निर्मल ध्यावे रे ।
संवर पायके भेद वल नर कोई संशय
प्रथम अवस्था मोह खिपावै रे, पर गुण त्यागी संवर थिरता रे,
किया कोड़ि तपस्या सूरा रे, जब लग आपा के भेद न पावे रे,
पंच महाव्रत तब लग संवर
एक शुद्धात तणा सुख पावे रे, ध्यान निरंजन बाहर अभिन्तर परिग्रह त्यागी रे, वीतराग भाव सदा विरागी रे ॥ संवर रसिया ०
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स्वसवेदी त समरस लीधा रे, भेद अभेद विकल्प छड लोधा रे । हेय उपादेय नहीं विचारया रे, परमातम प्रगट सुख धारया संवर रसिया • उपसर्ग सहित या कर्म खिपावे रे, कई अन्तकृत केवल पावे रे । मुनिव्रत चरण कमल मुनि पासे रे, ये ही अवस्था मुझ कब आसे रे । संबर रसिया मुनि सुख पावे रे |
निर्जरा निर्जरा रस लोधो, रस लीधो रस लीधो,
तीन कर्म क्षय कीधो, ज्ञाता मुनि निर्जरा रस लीधो । निर्जरा दोय प्रकार नीरे, एक सकाम अकाम रे, सकाम संसारी वण्या रे, ज्ञानी जीव अकाम रे । निर्जरा
मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक में