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पंडित अजितकुमारजी शास्त्री प अजितकुमारजी शास्त्री उत्तर प्रदेश के चावली (आगरा ) ग्राम के निवासी थे । छोटी अवस्था मे ही आपको माता पिता का वियोग हो गया । पहिले चौरासी मथुरा मे और फिर बनारस मे आपने शिक्षा प्राप्त की तथा आपको प चैनसुख दासजी, प राजेन्द्र कुमारजी एव प कैलाशचदजी, शास्त्री जैसे मेधावी साथी मिले । सन् 1923 मे आपका विवाह हुआ । आप बम्बई काम करने गये और 1924 में दिगम्बर जैन पाठशाला के अध्यापक के रूप मे मुलतान आ गये । उन्होने वहा पर समस्त युवको, प्रौढ पुरुषो एव महिलाओ को जैन सिद्धान्त पढाया तथा अच्छी धार्मिक जागृति पैदा की । प अजितकुमारजी के मुलतान आने से मुलतान समाज का उत्तर भारत की जैन समाज से और भी प० अजित कुमारजी शास्त्री अच्छा सम्वन्ध स्थापित हो गया । जब अम्बाला मे शास्त्रार्थं सघ की स्थापना की गयी तो प० अजितकुमारजी उसके प्रमुख कार्यकर्ता थे । सघ ने जैन दर्शन नामक पत्र का मुलतान से प्रकाशन किया और पण्डितजी उसके तीन सम्पादको मे से एक सम्पादक थे । आप बहुत उच्च कोटि के लेखक भी थे । आपने 25 से अधिक पुस्तकें लिखी जिनमे 'सत्यार्थ दर्पण', 'श्वेताम्बर मत समीक्षा', 'ढु ढक मत समीक्षा' आदि पुस्तकें प्रमुख हैं । आपने कई पुस्तको एव पत्तो का सम्पादन भी किया। जैन दर्शन मे 'सघ भेद' के नाम से उनकी लम्बी लेखमाला चली थी । उनके सम्पादकीय लेखो की बधी हुई ली थी ।
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पण्डितजी को शास्त्रार्थ करने मे बडी रुचि थी । आपने व पण्डित राजेन्द्र कुमारजी ने आर्य समाज के साथ कई शास्त्रार्थ किये जिनमे मुलतान का शास्त्रार्थ उल्लेखनीय है । जिसके प्रभाव से आर्य समाज के प्रकाण्ड विद्वान्, स्वामी कर्मानन्दजी जैन धर्म मे दीक्षित हुए थे । मुलतान में आपने अकलक प्रेस लगा लिया था ।
मुलतान जैन समाज से आपका विशेष सम्बन्ध हो गया था । यही कारण है कि लगातार 23 वर्ष तक आप मुलतान मे हो रहे और सन् 1947 के पश्चात् आप मुलतान छोड़कर दिल्ली आ बसे । आपका वहा भी मुलतान समाज से वैसा ही सम्पर्क रहा और समाज 'भी आपको अपना अभिन्न अग मानती रही । मृत्यु के कुछ वर्ष पूर्व आप शान्तिवीर नगर श्री महावीर जी आ गये और वहाँ आपने शान्तिवीर मन्दिर मे ग्रन्थ प्रकाशन आदि का कार्य सभाल लिया । 19 मई 1968 को रात्रि मे अचानक छत से गिर जाने के कारण दुर्घटना में आपका स्वर्गवास हो गया ।
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● मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहान के आलोक मे