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ज्ञानादिक गुणोंका किसी के द्वारा हरणसृजन नहीं शरीरादिक व्यवहार से मेरे हैं, निश्चय से नहीं
दोनों नयोंसे स्व-परको जाननेका फल द्रव्य-पर्यायकी अपेक्षा कर्म-फल-भोगकी
व्यवस्था
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आत्मा औदयिक भावोंके द्वारा कर्मका कर्ता तथा फलभोक्ता १०३ इन्द्रिय विषय आत्माका कुछ नहीं करते १०३ द्रव्य के गुण-पर्याय संकल्प - बिना इष्टानिष्ट नहीं होते निन्दा -स्तुति वचनोंसे रोप तोपको प्राप्त होना व्यर्थ
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मोहके दोष से बाह्यवस्तु सुख - दुःख की दाता
वचन द्वारा वस्तुतः कोई निन्दित या स्तुत नहीं होता
पर-दोष -गुणों के कारण हर्प विषाद नहीं
विषय-सूची
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बनता
परके चिन्तनसे इष्ट-अनिष्ट नहीं होता एक दूसरे के विकल्पसे वृद्धि-हानि मानने पर आपत्ति
मोहका विलय हो जाने पर स्वरूपकी उपलब्धि
जो मोहका त्यागी वह अन्य सब द्रव्योंका त्यागी
परद्रव्यमें राग-द्वेष- विधाताकी तपसे शुद्धि नहीं होती
कर्म करता और फल भोगता हुआ आत्मा कर्म बाँधता है। सारे कर्मफलको पौद्गलिक जाननेवाला शुद्धात्मा बनता है।
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वस्तुतः कोई द्रव्य इष्ट-अनिष्ट नहीं पावन रत्नत्रय में जीवका स्वयं प्रवर्तन १०६ स्वयं आत्मा परद्रव्यको श्रद्धानादिगोचर करता है
मोह अपने संगसे जीवको मलिन करता
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शुद्धज्ञाता परके त्याग ग्रहण में प्रवृत्त नहीं होता सामायिकादि पट् कर्मों में सभक्ति - प्रवृत्तके संवर सामायिकका स्वरूप
३९.
अधिकारी शुद्धात्मतत्त्वको न जाननेवालेका तप कार्यकारी नहीं
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स्तवका स्वरूप
वन्दनाका स्वरूप प्रतिक्रमणका स्वरूप प्रत्याख्यानका स्वरूप
कायोत्सर्गका स्वरूप सम्यग्ज्ञानपरायण आत्मज्ञ- योगी कर्मोंका निरोधक
कोई द्रव्यसे भोजक तो भावसे अभोजक, दूसरा इसके विपरीत द्रव्य-भाव से निवृत्तों में कौन किसके द्वारा पूज्य भावसे निवृत्त ही वास्तविक-संवरका अधिकारी
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भावसे निवृत्त होनेकी विशेष प्रेरणा शरीरात्मक लिंग मुक्तिका कारण नहीं मुमुक्षु के लिए त्याज्य और ग्राह्य
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कौन योगी शीघ्र कर्मोंका संवर करता है ११५
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६. निर्जराधिकार
ध्यान - प्रक्रमका
निर्जराका लक्षण और दो भेद पाकजा-अपाकजा निर्जराका स्वरूप अपाकजा निर्जराकी शक्तिका सोदाहरणनिर्देश परमनिर्जरा-कारक अधिकारी कौन योगी कर्म समूहकी निर्जराका कर्ता ११७ संवरके बिना निर्जरा वास्तविक नहीं ११७ किसका कौन ध्यान कर्मोंका क्षय ११८
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करता है
कौन योगी सारे कर्म मलको धो डालता है १९८ विशुद्धभावका धारी कर्मक्षयका
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