Book Title: Yogasara Prabhrut
Author(s): Amitgati Acharya, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 210
________________ १६४ योगसार-प्राभृत [अधिकार ८ मुक्तिमार्गपर तत्पर होते हुए भी सभीको मुक्ति नहीं मुक्तिमार्गपरं चेतः कर्मशुद्धि-निबन्धनम् । मुक्तिरासन्नभव्येन न कदाचित्पुनः परम् ॥२२॥ _ 'जो चित्त मुक्तिमार्गपर तत्पर है वह कर्ममलको हटाकर आत्मशुद्धिका कारण है। परन्तु मुक्तिको प्राप्ति आसन्न भव्यको होती है और दूसरेको कदाचित् (कभी) नहीं।' व्याख्या-मुक्तिमार्गपर तत्पर होते हुए भी सभीको मुक्तिकी प्राप्ति नहीं होती; मुक्तिकी प्राप्तिके लिए निकटभव्यताकी योग्यताका होना साथमें आवश्यक है, यह यहाँपर दर्शाया है। भवाभिनन्दियोंका मुक्तिके प्रति विद्वेष कल्मष-क्षयतो मुक्तिर्भोग-सङ्गम(वि)वर्जिनाम् । भवाभिनन्दिनामस्यां विद्वषो मुग्धचेतसाम् ।।२३।। 'जो भोगोंके सम्पर्कसे रहित हैं, अथवा इन्द्रिय विषय भोग और परिग्रहसे विवजित हैंपूर्णतः विरक्त हैं--उन ( महात्माओं ) के कर्मोंके क्षयसे मुक्ति होती है। जो मूढ़चित्त भवाभिनन्दी हैं उनका इस मुक्तिमें विशेषतः द्वेषभाव रहता है।' व्याख्या-पिछले पद्यमें यह बतलाया है कि मुक्ति आसन्नभव्योंको होती है-दूसरोंको नहीं। इस पद्यमें एक तो उन आसन्नभव्योंको 'भोगसंगविवर्जित' विशेषणके द्वारा स्पष्ट किया गया है-लिखा है कि जो भोगों और परिग्रहोंसे सर्वथा अथवा पूर्णतः विरक्त हैं। दसरे मुक्तिके हेतुका निर्देश किया है और वह है कर्मोंका सर्वथा विनाश | तीसरे यह उल्लेख किया है कि जो भवाभिनन्दी मुनि होते हैं उन विवेकशन्य मूढ-मानसोंका इस मुक्तिमें अतिद्वेषभाव रहता है-संसारका अभिनन्दन करनेवाले दीर्घ संसारी होनेसे उन्हें मुक्तिकी बात नहीं सुहाती-नहीं रुचती-और इसलिए वे उससे प्रायः विमुख बने रहते हैं-उनसे मुक्तिकी साधनाका कोई भी योग्य प्रयत्न बन नहीं पाता; सब कुछ क्रियाकाण्ड ऊपरी और कोरा नुमायशी ही रहता है। मुक्तिसे द्वेष रखनेका कारण वह दृष्टिविकार है जिसे 'मिथ्यादर्शन' कहते हैं और जिसे आचार्य महोदयने अगले पद्यमें ही 'भवबीज' रूपसे उल्लेखित किया है। जिनके मुक्तिके प्रति विद्वेष नहीं वे धन्य नास्ति येषामयं तत्र भवबीज-वियोगतः । तेऽपि धन्या महात्मानः कल्याण-फल-भागिनः ॥२४॥ "जिनके भवबीजका-मिथ्यादर्शनका-वियोग हो जानेसे मुक्तिमें यह द्वेषभाव नहीं है वे महात्मा भी धन्य हैं-प्रशंसनीय हैं--और कल्याणरूप फलके भागी हैं।' व्याख्या-यहाँ उन महात्माओंका उल्लेख है और उन्हें धन्य तथा कल्याणफलका भागी बतलाया है जो मुक्तिमें द्वेषभाव नहीं रखते, और द्वेषभाव न रखनेका कारण भवबीज जो मिथ्यादर्शन उसका उनके वियोग सूचित किया है। १. आ मुक्तेरासन्नभव्येन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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