Book Title: Yogasara Prabhrut
Author(s): Amitgati Acharya, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 235
________________ पद्य ७७-८३ ] चारित्राधिकार १८९ भी फलमें भेद होता है । इसके अतिरिक्त फल भोगनेवालोंकी बुद्धि आदिके भेदसे भी फलमें भेद होता है, यह बात यहाँ खास तौरसे सूचित की गयी है। बुद्धि, ज्ञान और असम्मोहके भेदसे सारे कर्म भेदरूप बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहस्त्रिविधः प्रक्रमः स्मृतः । सर्वकर्माणि भिद्यन्ते तद्भेदाच शरीरिणाम् ॥१॥ 'बुद्धि, ज्ञान और असम्मोह ऐसे तीन प्रकारका प्रक्रम-कार्य में प्रवर्तनरूप उद्यम-है और इसके भेदसे देहधारियोंके सब कार्य भेदको प्राप्त होते हैं-कोई बुद्धिपूर्वक, कोई ज्ञानपूर्वक और कोई असम्मोहरूप होते हैं। ___ व्याख्या-जिस बुद्धि आदिके भेदसे पिछले पद्यमें फलभेदकी बात कही गयी है उसे यहाँ बुद्धि, ज्ञान और असम्मोहके भेदसे तीन प्रकार प्रक्रम-उद्यम बतलाया है-एक बुद्धिपूर्वक, दूसरा ज्ञानपूर्वक और तीसरा असम्मोहहेतुक । इन तीनोंका स्पष्टीकरण अगले कुछ पद्योंमें किया गया है । यहाँ इतनी ही सूचना की गयी है कि इन तीनोंके भेदसे देहधारियोंके सारे कार्य भेदको प्राप्त होते हैं। बुद्धि, ज्ञान और असम्मोहका स्वरूप बुद्धिमक्षाश्रयां तत्र ज्ञानमागमपूर्वकम् । तदेव सदनुष्ठानमसंमोहं विदो विदुः ॥२॥ 'विज्ञ पुरुष उन बुद्धि आदि तीन भेदोंमें इन्द्रियाश्रितको 'बुद्धि' आगमपूर्वकको 'ज्ञान' और आगमपूर्वक ज्ञान हो जब सत्य अनुष्ठानको-अभ्रान्तरूपसे स्थिरताको प्राप्त होता है तब उसे 'असम्मोह' कहते हैं।' व्याख्या-इस पद्यमें बुद्धिको इन्द्रियाश्रित और ज्ञानको आगमाश्रित बतलाकर दोनोंके भेदको स्पष्ट किया गया है, अन्यथा बुद्धि और ज्ञानमें साधारणतया कोई भेद मालूम नहीं होता--एकके स्थानपर दूसरेका प्रयोग पाया जाता है; जैसे ज्ञानको प्रमाण कहा जाता है वैसे 'प्रमाणं बुद्धिलक्षणम्' वाक्यके द्वारा स्वामी समन्तभद्रने स्वयम्भूस्तोत्र (६३) में उस ज्ञानको ही 'बुद्धि' शब्दके द्वारा उल्लेखित किया है। साथ ही जो आगमपूर्वक ज्ञान सदनुष्ठानको प्राप्त हो--अभ्रान्तरूपसे स्थिर हो--उसे 'असम्मोह' बतलाया है । बुद्धयादि पूर्वक कार्योंके फलभेदको दिशासूचना चारित्रदर्शनज्ञानतत्स्वीकारो यथाक्रमम् । तत्रोदाहरणं ज्ञेयं बुद्धयादीनां प्रसिद्धये ॥३॥ 'चारित्र-दर्शन-ज्ञानका जो यथाक्रम-दर्शन-ज्ञान-चारित्रके क्रमसे स्वीकार है-जो चारित्र दर्शन-ज्ञान-पूर्वक है-उसमें बुद्धि आदिकी प्रसिद्धिके लिए यहाँ उदाहरणरूपसे भेदको जानना चाहिए।' १. उद्यमः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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