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पद्य ४१-४६]
चारित्राधिकार 'जिस जिनेन्द्र-देशित धर्ममें दोनों लोकोंको अपेक्षा नहीं पायी जाती-इस लोक तथा परलोकको लक्ष्य करके धर्म नहीं किया जाता-उसमें स्त्रियोंके लिंगको अपेक्षा-सहित-वस्त्रप्रावरणकी अपेक्षा रखनेवाला-कों कहा गया ?'
व्याख्या-यह पद्य प्रश्नात्मक है। इसमें लोक-परलोककी अपेक्षा न रखनेवाले जिनधर्म में स्त्रियोंके जिनलिंग-ग्रहणको 'सव्यपेक्ष' क्यों कहा गया है ? यह एक प्रश्न उपस्थित हुआ है, अगले कुछ पद्योंमें इसका उत्तर दिया गया है।
पूर्व प्रश्नका उत्तर : स्त्री पर्यायसे मुक्ति न होना आदि 'नामना जन्मना स्त्रीणां सिद्धिनिश्चयतो यतः ।
अनुरूपं ततस्तासां लिङ्ग लिङ्गविदो विदुः ॥४४॥ 'चं कि स्त्रियोंके अपने उस जन्मसे-स्त्री पर्यायसे-स्वात्मोपलब्धिरूप सिद्धिकी (मुक्तिकी) प्राप्ति नहीं होती अतः लिंगके जानकारोंने उनके अनुरूप लिंगको देशना की है।'
व्याख्या-पिछले पद्यमें जो प्रश्न किया गया है उसका उत्तर इस पद्यमें यह दिया है कि स्त्रीजनोंको स्त्रीपर्यायसे मुक्तिकी प्राप्ति निश्चित रूपसे न हो सकनेके कारण लिंगके विशेपज्ञोंने उनके लिए उनके अनुकूल लिंगकी-वस्त्रादि सहित वेषकी-व्यवस्था का है।
प्रमाद-मय-मूर्तीनां प्रमादोऽतो यतः सदा । 'प्रमदास्तास्ततः प्रोक्ताः प्रमाद-बहुलत्वतः ॥४५॥ विषादः प्रमदो मूर्छा जुगुप्सा मत्सरो भयम् ।
चित्ते चित्रायते माया ततस्तासां न निवृतिः ॥४६॥ 'चंकि प्रमाद-मय-मूर्तियों, स्त्रियोंके सदा प्रमाद बना रहता है अतः प्रमादको बहलताके कारण उन्हें 'प्रमदा' कहा गया है । और चूँकि उनके चित्तमें प्रमद, विषाद, ममता, ग्लानि, ईर्ष्या, भय तथा माया चित्रित रहती है इससे उनकी (स्त्रीपर्यायसे ) मुक्ति नहीं होती।
व्याख्या-यहाँ स्त्रीजनोंको स्त्रीपर्यायसे मुक्तिकी प्राप्ति क्यों नहीं होती ? इस पिछले पधमें-से उठनेवाले प्रश्नका समाधान किया गया है और उसमें कुछ ऐसे दोषोंको दर्शाया गया है जो मुत्ति में बाधक होते हैं और स्त्रियों में स्वभावसे अथवा प्रायः बहुलतासे पाये जाते हैं। उनमें प्रमादको सबसे पहले लिया गया है, जिसकी बहुलताके कारण रि 'प्रमदा' कहा जाता है और उन्हें यहाँ 'प्रमाद-मय-मूर्ति के नामसे भी उल्लेखित किया गया है । 'प्रमाद' शब्द मात्र आलस्य तथा असावधानीका वाचक नहीं, बल्कि उसमें क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कषाय, स्त्री, राज, भोजन तथा चोर ये चार प्रकारकी विकथाएँ राग, निद्रा और पाँचों इन्द्रियोंके पाँच विषय ये १५ बातें शामिल हैं। आम तौरसे स्त्रियोंमें इनकी
१. णिच्छयदो इत्थीणं सिद्धी हि तेण जम्मणदिदा । तम्हा तप्पडिरूवं वियप्पियं लिंगमित्थीणं ॥३.२५ (ख)-प्रवचनसार । २. पयडी पमादमया एदासि वि त्ति भासिया पमदा । तम्हा ताओ पमदा पमादबहुले ति णिद्दिट्ठा ॥३-२५ (ग) ॥ संति धुवं पमदाणं मोह पदोसा भयं दुगुंछा य । चित्ते चित्ता माया तम्हा तासिं ण णिव्वाणं ।। ३. २५ (घ)॥ --प्रवचनसार ।
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