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४. बन्धाधिकार
बन्धका लक्षण
प्रकृति-स्थित्यादिके भेदसे कर्मबन्धके
चार भेद
चारों बन्धका सामान्य रूप कौन जीव कर्म बाँधता है और कौन नहीं बाँधता
पूर्वकूथनका उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण अमूर्त आत्माका मरणादि करने में कोई समर्थ नहीं, फिर भी मरणादिके परिणामसे बन्ध मरणादिकसब कर्म-निर्मित, अन्य कोई करने-हरने में समर्थ नहीं जिलाने-मारने आदि की सब बुद्धि मोहकल्पित
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कोई किसीके उपकार - अपकारका कर्ता नहीं, कर्तृत्वबुद्धिं मिथ्या चारित्रादिकी मलिनताका हेतु मिथ्यात्व मलिन चारित्रादि दोष के ग्राहक हैं। अप्राक द्रव्यको भोगता हुआ भी वीतरागी अवन्धक
न भोगता हुआ भी सरागी पाप बन्धक विषयोंका संग होनेपर भी ज्ञानी उनसे
लिप्त नहीं होता नीरागी योगी परकृतादि अहारादिसे बन्धको प्राप्त नहीं होता परद्रव्यगत-दोपसे नीरागीके बँधनेपर दोषापत्ति
वीतराग-योगी विषयको जानता हुआ भी नहीं बँधता
ज्ञानी जानता है वेदता नहीं, अज्ञानी वेदता है जानता नहीं ज्ञान और वेदनमें स्वरूप-भेद अज्ञानमें ज्ञान और ज्ञान में अज्ञान पर्याय नहीं है
ज्ञानी कल्पोंका अबन्धक और अज्ञानी बन्धक होता है कर्मफलको भोगनेवाले ज्ञानी अज्ञानीमें अन्तर
योगसार-प्राभृत
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कर्म-ग्रहणका तथा सुगति-दुर्गति-गमन
का हेतु संसार परिभ्रमणका हेतु और निर्वृत्तिका
उपाय
रागादिसे जीवका परिणाम युक्त कौन परिणाम पुण्य, कौन पाप, दोनोंकी स्थिति पुण्य-पाप-फलको भोगते हुए जीवकी स्थिति पुण्य-पापके वश अमूर्त भी मूर्त हो जाता
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
पुण्य-बन्धके कारण पाप-बन्धके कारण पुण्य-पाप में भेद-दृष्टि पुण्य-पाप में अभेद-दृष्टि निर्वृतिका पात्र योगी
५. संवराधिकार
संवरका लक्षण और उसके भेद भाव तथा द्रव्य-संवरका स्वरूप कपाय और द्रव्यकर्म दोनोंके अभाव से
पूर्ण शुद्धि कषाय-त्यागकी उपयोगिताका सहेतुक निर्देश
कपाय क्षपण में समर्थ योगी मूर्त-पुद्गलोंमें राग-द्वेष करनेवाले मूढ
बुद्धि
किसीमें रोप-तोप न करनेकी सहेतुक प्रेरणा
अपकार- उपकार बननेपर किसमें राग-द्वेष किया जावे ? शरीरका निग्रहानुग्रह करनेवालों में रागद्वेष कैसा ?
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अवश्य आत्माओंका निग्रहानुग्रह कैसे ? ९९ शरीरको आत्माका निग्रहानुग्राहक
मानना व्यर्थ किसीके गुणोंको करने - हरने में कोई समर्थ नहीं
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