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पद्य ४८-५२ ]
संवराधिकार
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वन्दना वाक्यरूप है, इसकी कोई सूचना नहीं की, और इसलिए उसका सुप्रसिद्ध रूप बन्धके आगे वन्द्यके गुणोंका चिन्तन करते हुए हाथ जोड़कर शिरोनति करना - सिर झुकाना अथवा नीभूत होना जैसा समझना चाहिए ।
प्रतिक्रमणका स्वरूप
कृतानां कर्मणां पूर्व सर्वेषां पाकमीयुषाम् । आत्मीयत्व - परित्यागः प्रतिक्रमणमीर्यते || ५०||
'पूर्व किये हुए तथा फलको प्राप्त हुए सर्व कर्मोंके आत्मीयत्वका जो परित्याग है--उन कर्मों तथा कर्मफलोंको अपना न मानना है-उसको 'प्रतिक्रमण' कहा जाता है।'
व्याख्या - पूर्वकृत सब कर्मोंके फलोंमें जो आत्मीयत्व बुद्धिका परित्याग है -- उन्हें अपने अथवा अपने उपादानसे बने (निष्पन्न ) न मानना है - उसको यहाँ 'प्रतिक्रमण' कहा गया है । वास्तव में जीवके भावोंका निमित्त पाकर उत्पन्न हुए जितने भी पूर्वकृत कर्म हैं और उनके जो भी फल हैं वे सब पुद्गल द्रव्यके उपादानसे उत्पन्न होते हैं अतः उन्हें आत्मीयआत्माके उपादानसे उत्पन्न मानना भूल है, इस भूलका ही प्रस्तुत आवश्यक कर्म-द्वारा परिमार्जन किया जाता है ।
प्रत्याख्यानका स्वरूप
आगाम्यागो' निमित्तानां भावानां प्रतिषेधनम् ।
प्रत्याख्यानं समादिष्टं विविक्तात्म-विलोकिनः ॥ ५१ ॥
'विविक्तात्मावलोकीको आगामी पाप कर्मोंके निमित्तभूत भावों- परिणामोंका जो प्रतिषेध है— न करना है - उसे 'प्रत्याख्यान' कहा गया है ।'
व्याख्या - यहाँ उन परिणामोंके परित्यागको 'प्रत्याख्यान' बतलाया है, जो कि भावी कर्मास्रव निमित्तभूत हों और उसका अधिकारी 'विविक्तात्मविलोकिनः' पदके द्वारा उसी शुद्धात्मदर्शीको सूचित किया है जिसे ४७ पद्य में 'आत्मतत्त्व - निविष्टस्य' और ५३ वें पद्य में 'स्वात्मतत्त्वव्यवस्थितः' पदके द्वारा उल्लेखित किया है, और इसलिए जो इन सभी आवश्यक कर्मों के अधिकारियोंका परमावश्यक विशेषण है ।
कायोत्सर्गका स्वरूप
ज्ञात्वा योऽचेतनं कार्यं नश्वरं कर्म-निर्मितम् । न तस्य वर्तते कार्ये कायोत्सर्ग करोति सः ||१२||
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'जो योगी काय (शरीर ) को अचेतन, नाशवान् और कर्मनिर्मित जानकर उसके कार्य में नहीं वर्तता है वह कायोत्सर्ग करता है ।'
व्याख्या -- यहाँ कायके कार्य में-- अंगोपांग के संचालनमें-न प्रवृत्त होनेका नाम 'कायोत्सर्ग' बतलाते हुए उसके कारण रूपमें यह सूचना की है कि काय (शरीर ) अचेतन है, जबकि जीव चेतन है अतः चेतनको अचेतनके कार्य में नहीं प्रवर्तना चाहिए; काय कर्म
१. मु आगम्यागो। २. आ विविक्तात्मा ।
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